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Updated: 13 जुलाई, 2020 11:16 PM
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राजस्थान में कांग्रेस सरकार पर खतरा अभी टला नहीं, बल्कि होल्ड पर है. मौके का फायदा उठाते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने अपनी ताकत भी दिखा दी है, लेकिन जो ताकत दिखायी है, वो सिर्फ सचिन पायलट (Sachin Pilot) के मुकाबले ही मानी जाएगी - वो ताकत इतनी भी नहीं है कि सचिन पायलट को दरकिनार करअशोक गहलोत बीजेपी से भी पंगा ले सकें.

कांग्रेस विधायकों की बैठक में अशोक गहलोत समर्थकों की तादाद ने सचिन पायलट को सवालों के घेरे में जरूर ला दिया है - क्योंकि जिस तरह के दावे उनकी तरफ से हो रहे थे, वे सही नहीं साबित हो पाये. कम से कम अभी तक तो ऐसा ही लगता है.

अशोक गहलोत ने नंबर गेम के जरिये जो शक्ति प्रदर्शन किया है, वो तात्कालिक ही लगता है. वो कोई स्थायी भाव नहीं है - ये सब सत्ता की बयार के हिसाब से बढ़ता घटता रहता है. कांग्रेस आलाकमान की सख्ती के चलते सिर्फ वे ही विधायक बैठक से दूर रहे जो सचिन पायलट के प्रति निष्ठावान हैं. जरूरी नहीं कि अशोक गहलोत की आंखों के सामने बैठे सभी विधायक उनके प्रति निष्ठावान ही हों - अगर उनको ये भनक होती कि अशोक गहलोत के कुर्सी पर बैठने का टाइम खत्म हो गया है तो वैसा मजमा नहीं लगता. न तो अशोक गहलोत जादू दिखा पाते और न ही कुर्सी बचा पाते. भीड़ में ऐसे भी विधायक होंगे जो कांग्रेस की तरफ से एक्शन के डर से भी हाजिरी लगा दिये होंगे और सचिन पायलट के संपर्क में भी हो सकते हैं. ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि ये सब होता ऐसे ही है. ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है, 72 घंटे के लिए जब देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के दोबारा मुख्यमंत्री बने थे तब भी ऐसे ही पल पल बदलती निष्ठा का नजारा दिखा था. भले ही सचिन पायलट एक्सपोज हो गये हों, लेकिन एक बात तो अभी माननी ही पड़ेगी - कांग्रेस नेतृत्व (Sonia Gandhi) की हेकड़ी तो फिलहाल निकाल ही दी है.

सचिन पायलट ने कांग्रेस नेतृत्व को झुका तो दिया ही है

जो सोनिया गांधी और राहुल गांधी मिलने से भी कतरा रहे थे वे प्रियंका गांधी वाड्रा को भी मोर्चे पर ला दिये और सचिन पायलट को मैसेज पर मैसेज भिजवाये जा रहे हैं - आइये बात करते हैं. ठीक वैसे ही जैसे आये दिन की किचकिच से आजिज आकर कोई घर छोड़ कर चला जाता है तो पोस्टर छपवा कर जगह जगह लगाया जाता है कि लौट आओ कोई कुछ नहीं कहेगा.

जयपुर भेजे गये कांग्रेस मिशन के सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला भी पहले कांग्रेस नेतृत्व वाले ही अंदाज में पेश आ रहे थे और कह रहे थे - व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा के कारण चुनी हुई सरकार को अस्थिर करना वाजिब नहीं है. सुरजेवाला के निशाने पर भी सचिन पायलट ही रहे जिनको वो इस तरीके से कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल होने की सलाह दे रहे थे.

ashok gehlot, sachin pilotसचिन पायलट भले चूक गये हों, लेकिन अभी अशोक गहलोत भी अपने जादू का मायाजाल ही दिखा रहे हैं!

जब सचिन की तरफ से साफ कर दिया गया कि वो अशोक गहलोत की बुलायी बैठक में नहीं जा रहे हैं - और लगे हाथ ये भी बता दिया कि अशोक गहलोत की सरकार तो अल्पमत में आ चुकी है. तब कहीं जाकर कांग्रेस नेतृत्व को लगा कि अब तो राजस्थान भी हाथ से गया. जो बात विपक्ष की तरफ से कही जानी चाहिये, वो बात कांग्रेस का ही प्रदेश अध्यक्ष कहे, इससे खराब बात क्या हो सकती है.

कांग्रेस में नेतृत्व पर सवाल तो कई सीनियर नेता किसी न किसी बहाने उठाते ही रहते हैं. कांग्रेस में स्थायी अध्यक्ष पद को लेकर संदीप दीक्षित के बयान को शशि थरूर कांग्रेस के ज्यादातर नेताओं के मन की बात बता चुके हैं, लेकिन हाल फिलहाल सचिन पायलट की तरह चैलेंज तो किसी ने भी नहीं किया है.

जिस तरह से कपिल सिब्बल ने सचिन पायलट की बगावत पर ट्वीट किया था, सचिन पायलट ने भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने पर वैसी ही भावनाओं का इजहार किया था. कपिल सिब्बल के ट्वीट का असर हुआ हो न हो, कांग्रेस नेता पीएल पुनिया के बयान का तो सचिन पायलट को फायदा मिला ही. ये खबर भी पीएल पुनिया के बयान के बाद ही आगे बढ़ी कि सचिन पायलट तो बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं. बाद में पीएल पुनिया ने सफाई जरूर दी है कि उनकी जबान फिसल गयी थी - वो, दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात कर रहे थे क्योंकि सवाल भी उनके बारे में ही पूछा गया था.

जैसे भी संभव हुआ हो, खबर है कि राहुल गांधी सहित कांग्रेस के पांच बड़े नेताओं ने सचिन पायलट को फोन कर उनको मनाने की कोशिश की है. ये नेता हैं - राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, अहमद पटेल, पी. चिदंबरम और केसी वेणुगोपाल. हालांकि, सचिन पायलट की तरफ से कहा गया है कि कांग्रेस आलाकमान से उनकी कोई बात नहीं हो रही है. एनडीटीवी ने कांग्रेस सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि सचिन पायलट कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी से ज्यादा बात कर रहे हैं. वैसे इसका संकेत तो तभी मिल गया जब अशोक गहलोत के फंड मैनेजरों के जयपुर और दिल्ली के ठिकानों पर आयकर अफसरों ने छापे मार कर जांच पड़ताल शुरू कर दी थी - और बीजेपी के आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय की ट्विटर पर डिमांड आ गयी कि अशोक गहलोत विधानसभा में बहुमत साबित करें.

और किसी ने तो शायद ही इतनी हिम्मत दिखायी हो, सचिन पायलट से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के सामने जरूर अपनी ताकत का एहसास कराया था. बाद में भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी तकरीबन वही रास्ता अख्तियार किया था. जैसे अमरिंदर सिंह ने प्रताप सिंह बाजवा को हटा कर पंजाब प्रदेश कांग्रेस की कमान अपने हाथ में ले ली थी, हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी अशोक तंवर को पैदल कर दिया और वो कांग्रेस से भी बाहर हो गये. हुड्डा पीसीसी अध्यक्ष तो नहीं बन सके, लेकिन अधिकारों का वीटो अपने नाम तो लिखा ही लिया था. सोनिया गांधी को कुमारी शैलजा पंसद रहीं, इसलिए बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दस्तखत का अधिकार उनको ही मिला था.

सचिन के स्टैंड से कांग्रेस में खुशी आरके सिंह जैसे कई नेता महसूस कर रहे होंगे, लेकिन कांग्रेस से बाहर सबसे ज्यादा प्रसन्न ज्योतिरादित्य सिंधिया ही होंगे. सचिन से तो अब लोग बात भी कर रहे हैं या बात करने को लेकर तत्परता दिखा रहे हैं - सिंधिया के बीजेपी ज्वाइन कर लेने के बाद राहुल गांधी कह रहे थे कि वो मेरे कॉलेज के दोस्त थे कभी भी मिलने आ सकते थे. अगर, राहुल और सिंधिया जैसी दोस्ती सचिन पायलट की भी है तो उनको भी लग रहा होगा कि बदला तो ले ही लिया है.

चूक तो गये ही हैं सचिन पायलट

अब तो सचिन पायलट भी उस हकीकत से वाकिफ हो चुके होंगे कि देश में डिप्टी सीएम होने का मतलब क्या होता है. डिप्टी सीएम होने का कोई मतलब तभी है जब तेजस्वी यादव के पीछे लालू प्रसाद यादव बैकअप सपोर्ट सिस्टम बने हुए हों - और सुशील मोदी के साथ अमित शाह और पूरा बीजेपी अमला.

सचिन पायलट खून का घूंट पीकर खामोश तो तभी हो गये थे जब अशोक गहलोत को उनके ऊपर मुख्यमंत्री बना कर बैठा दिया गया. जाहिर है मौके की ताक में तो हमेशा ही रहते होंगे. SOG के नोटिस का कोई मतलब नहीं था. ये तो सचिन पायलट भी जानते ही थे कि उनको दरकिनार करने की होने वाली कोशिशों में ये भी एक और कड़ी है. सचिन को लगा कि नोटिस को मुद्दा बना कर कांग्रेस आलाकमान को समझाया जाये कि पांच साल में आधा वक्त तो बीत ही गया, ऐसे ही कब तक चलेगा. सचिन पायलट ने खुद को विक्टिम के तौर पर पेश करने की कोशिश भी की, लेकिन अशोक गहलोत तो पुराने खिलाड़ी, आलाकमान के कान में एक ऐसा मंत्र फूंक दिया जो रामबाण जितना असरदार साबित हुआ - सचिन पायलट बीजेपी के संपर्क में हैं. बात दमदार लगे इसलिए ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम भी जोड़ ही दिया होगा. आलाकमान को तो बस मान लेना था, लगा होगा दोनों दोस्त तो हैं ही. फिर कुछ कुछ ऐसा भी लगा होगा - धोखेबाज का साथी भी धोखेबाज. फिर ऐसे धोखेबाज या दगाबाज से बात करने का क्या मतलब है.

मौका तो सचिन पायलट ने सही चुना था, लेकिन लगता है अपनी हैसियत का सही आकलन नहीं कर पाये - एरर ऑफ जजमेंट.

ऐसा लगता है, अशोक गहलोत को उम्मीद से कहीं ज्यादा और सचिन पायलट को उम्मीद से काफी कम हासिल हुआ है. कांग्रेस विधायकों की जयपुर के मुख्यमंत्री आवास में बैठक में विधायकों की मौजूदगी का एक इशारा तो ये है ही. सचिन पायलट के साथ साथ गांधी परिवार और बीजेपी नेतृत्व सबको दिखाने के लिए ही तो अशोक गहलोत ने विधायकों की परेड मीडिया के सामने करा डाली है.

अशोक गहलोत के 100 से ज्यादा विधायक जुटा लेने के बावजूद सचिन पायलट खेमा दावा कर रहा है कि उनके पास 84 विधायक ही हैं और उनके साथ हैं. सचिन पायलट का दावा है कि उनके सपोर्ट में कांग्रेस के 30 विधायक हैं.

सचिन पायलट की तरफ से ये भी बताया गया है कि कांग्रेस आलाकमान के साथ न तो उनकी कोई बातचीत चल रही है - और न ही समझौते को लेकर कोई शर्त रखी गयी है. दरअसल, कुछ मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि सचिन पायलट अपने मंत्रियों के लिए गृह मंत्रालय और वित्त जैसे विभाग चाहते हैं, साथ ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद भी अपने पास रखना चाहते हैं. एक रिपोर्ट में कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से उनको पार्टी में महासचिव या कार्यकारी अध्यक्ष जैसे पद देने की बात भी कही गयी है. इसी बीच, सचिन पायलट के कांग्रेस में न लौटने और बीजेपी में न जाने की सूरत में राजस्थान में कोई तीसरा मोर्चा बनाने की बात भी सुनी गयी है और उसके नाम तक की चर्चा होने लगी है.

बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन शिवराज सिंह चौहान की तरह वसुंधरा राजे एक्टिव नहीं नजर आ रही हैं. ऐसा तो नहीं कि वो मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह का हाल देखकर चुप्पी साधे बैठी हैं. या फिर वसुंधरा राजे को लगता हो कि सचिन पायलट के आने के बाद अगर बीजेपी नेतृत्व ने उनको मुख्यमंत्री बना भी दिया तो मंत्री बनाने से लेकर विभागों के बंटवारे तक सब दिल्ली से ही तय होने लगेगा - परदे के पीछे जो भी चल रहा हो लेकिन ये अशोक गहलोत के निश्चिंत होने - और सचिन पायलट के लिए बड़ी चिंता वाली बात है.

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