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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 11 जुलाई, 2020 04:27 PM
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10 जुलाई को देश के दो बड़े राज्यों, जनसंख्या के हिसाब से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा राज्य राजस्थान (Rajasthan) में दो ऐसी घटनाएं हुई जो हमेशा याद रखी जाएंगी. उत्तर प्रदेश की पुलिस (UP Police) ने कानपुर में विकास दुबे का एनकाउंटर (Vikas Dubey Encounter) किया तो सरकार ने शाबाशी देकर उनका मनोबल बढ़ाया, उसी तरह से राजस्थान (Rajasthan) में पुलिस ने अशोक गहलोत की सरकार (Ashok Gehlot Government) गिराने की साजिशों का खुलासा किया तो सरकार ने पुलिस का मनोबल बढ़ाया. हालांकि यह भी सच है कि विकास दुबे के एनकाउंटर की घटना और अशोक गहलोत के सरकार गिराने की साजिश की एफआईआर दोनों ही किसी मनोहर कहानियों से कम नहीं हैं. मगर जो पुलिस दिन रात हमारी सुरक्षा में तैनात रहती है, जो पुलिस हमारे लिए रात भर जागती है तो हम चैन से अपने घरों में सो पाते हैं उन पर सवाल उठाकर हम उनका मनोबल गिरा रहे हैं. विकास दुबे के एनकाउंटर की कहानी तो टीवी चैनलों से बेहतर सोशल मीडिया पर अच्छी तरह से बताई जा रही है कि आखिर कैसे गाड़ी पलटी और विकास दुबे मारा गया मगर आज हम राजस्थान पुलिस की भी पीठ थपथपाएंगे कि आखिर कैसे राजस्थान की पुलिस ने सरकार पलटने से बचा ली.

Rajasthan, Police, Ashok Gehlot, Sachin Pilot, Congressराजस्थान पुलिस ने गहलोत सरकार को लेकर एक बड़ा खुलासा किया है

पहले मैं आपको राजस्थान पुलिस के महत्वपूर्ण अंग स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप यानी एसओजी की एफआईआर का मजमून बता दूं फिर आगे चर्चा करेंगे. एफआईआर में कहा गया है कि स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप 13 जून को अवैध हथियारों और विस्फोटकों की तस्करी को लेकर टेलीफोन टेपिंग कर रहा था. उस दौरान एक मोबाइल नंबर 99292-29909 की कॉल रिकॉर्डिंग हुई. रिकॉर्डिंग सुनने पर पता लगा कि अशोक गहलोत सरकार को गिराने की साजिश हो रही है.

एफआईआर के अनुसार बातचीत में ऐसी वार्ता की जा रही है कि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री में झगड़ा चल रहा है, ऐसी स्थिति में सत्तापक्ष कांग्रेस पार्टी और निर्दलीय विधायकों को तोड़कर सरकार गिराई जाए. यह भी जानकारी में आया है कि कुशलगढ़ विधायक श्रीमती रमिला खड़िया को एक भाजपा नेता द्वारा धन का प्रलोभन देकर अपने पक्ष में करने का प्रयास किया जा रहा है. एफआईआर में कांग्रेस विधायक महेंद्र सिंह मालवीय का भी जिक्र है जो पहले उपमुख्यमंत्री के पाले में थे मगर अब जिन्होंने अपना पाला बदल लिया है.

कांग्रेस विधायकों और निर्दलीय विधायकों को 20 से 25 करोड़ रुपए देने के प्रलोभन की भी जानकारी सूत्रों से प्राप्त हुई है. उपरोक्त नंबरों में हुई बातचीत में यह भी सामने आया है कि वर्तमान सरकार को गिरा कर नया मुख्यमंत्री बनाया जाए. लेकिन भाजपा का कहना है कि मुख्यमंत्री हमारा होगा और उपमुख्यमंत्री को केंद्र में मंत्री बना दिया जाएगा. लेकिन उपमुख्यमंत्री का कहना है कि मुख्यमंत्री वही बनेंगे.

इन वार्ताओं में जिक्र आया है कि राज्यसभा चुनाव से पहले सभी विधायकों को इकट्ठा किए जाने पर वार्ता करते हैं कि 25- 25 करोड़ वाला मामला अब टांय टांय फिस्स हो गया है. बातचीत में यह भी ज्ञात हुआ है कि राज्यसभा चुनाव से पहले ही राजस्थान सरकार को गिराने की पूरी तैयारी की गई थी. उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के दिल्ली दौरे के संबंध में वार्ता करते हैं कि बड़े-बड़े राजनीतिक फैसले दिल्ली में हो रहे हैं और 30 जून के बाद घटनाक्रम तेजी से बढ़ेगा. वार्ता में यह भी प्रकट हुआ है कि इस वर्तमान सरकार को गिराने के बाद नई सरकार का गठन करवा कर यह लोग 1000 से 2000 करोड़ कमा सकते हैं. यह भी कहते हैं कि यह तभी होगा जब इनके हिसाब से मुख्यमंत्री बनेगा.

मंत्रिमंडल विस्तार की बात पर वार्ता में प्रकट होता है कि विस्तार करेंगे तो चार मंत्री आएंगे और 6 नाराज होंगे. फिर उपमुख्यमंत्री के ग्रह नक्षत्रों की भी बात करते हैं कि 30 जून के बाद इनके ग्रहों में तेजी आएगी और पांच 10 दिन में शपथ ले लेंगे. दो तीन विधायकों और खास करके निर्दलीय विधायकों के पास धन राशि लेकर उनसे संपर्क साधने की सूचना दी सूत्रों से प्राप्त हुई है.

कांग्रेस के विधायक ही FIR पर आगबबूला

एफआईआर के अनुसार कहा गया है कि वर्तमान सरकार को गिराने की योजना में काफी लोग सम्मिलित हैं और इससे धन कमाने की योजना है. 'मैं कांग्रेसी थी, कांग्रेसी हूं और कांग्रेसी रहूंगी' कहने वाली निर्दलीय विधायक रमिला खड़िया और कांग्रेसी विधायक महेंद्र सिंह मालवीय ने साफ मना कर दिया है कि हमारे पास ऐसा कोई ऑफर नहीं आया था. यहां तक कि एफआईआर में हमारा नाम डालने से पहले राजस्थान सरकार ने एक बार हमसे पूछा तक नहीं.

जो चौराहे की जनता बतिया रही है उसी को विस्फोटक जानकारी मान ली! 

अब बड़ा सवाल उठता है कि जब 9 जून के बाद से ही सभी कांग्रेस के विधायक और कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक शिव विलास रिजॉर्ट में बंद थे और उसके बाद जेडब्ल्यू मैरियट में बंद थे जहां पर सैकड़ों की तादाद में राजस्थान की पुलिस विधायकों की सुरक्षा में लगी थी. वहां पर इन्हें खरीदने कौन चला आया था. ऐसी मूर्खता आखिर कौन सा बीजेपी नेता कर रहा था कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बयान दे रहे हैं कि हमारे विधायकों को 35 -35 करोड़ में खरीदा जा रहा है और सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी डीजीपी से लेकर एंटी करप्शन ब्यूरो तक के एडीजी को यह शिकायत दे रहे हैं कि हमारे सरकार को गिराने की साजिश हो रही है.

इसकी जांच की जाए और उसके बावजूद 13 जून को एक गुमनाम सा बीजेपी नेता विधायकों को यह कह रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट में झगड़ा चल रहा है. ऐसा लगता है कि आज राजस्थान के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप किसी आर्कमिडीज से कम नहीं. जिसने यूरेका यूरेका चिल्लाते हुए एफआईआर दर्ज कर ली कि हमें पता चल गया है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट में पट नहीं रही है.

जो बात टीवी चैनल पर खड़े होकर पत्रकार कहते हैं, चौराहे पर बैठी हुई जनता बात करती है. इस बात को पता लगाने के लिए स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप को टेलीफोन टेप करना पड़ा.मजेदार बात है कि स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप को टेलीफोन के टेपिंग में इसके अलावा कुछ भी पता नहीं चला है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच झगड़ा चल रहा है और बीजेपी सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी, केंद्र में मंत्री बनाएगी. यानी सड़कों पर चल रही आम चर्चा को टेलीफोन के टेपिंग में डालकर सनसनी बनाने का काम राजस्थान के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप में शानदार ढंग से किया है.

सूत्रों के हवाले से दर्ज हो गई एफआईआर!

अब आगे की कहानी सुनिए की एफआईआर में क्या लिखा हुआ है. एफआईआर में लिखा हुआ है कि सूत्रों से पता चला है कि पैसे की लेनदेन की बात हो रही है. सूत्रों के अनुसार ऐसा पता चला है कि हजार दो हजार करोड़ रुपए तक की कमाई हो सकती है और विधायकों को खरीदा जा सकता है. सूत्रों के अनुसार सचिन पायलट का भाग्य 30 जून के बाद पलटने वाला है और 5-10 दिन में मुख्यमंत्री पद का शपथ ले सकते हैं. सूत्रों के अनुसार गत दो दिनों में पैसे लेकर निर्दलीय विधायकों से संपर्क साधने की कोशिश की गई है. यानी राजस्थान के स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप का सब कुछ सूत्रों से पता चला है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी की कसमें खाने वाले प्रेस नोट आधी रात को मुख्यमंत्री निवास से जारी होता है जिसमें विधायक कहते हैं कि चट्टानी एकता की तरह हम एक हैं और बीजेपी हमें खरीद नहीं पाएगी लेकिन यह नहीं बताते हैं कि क्या कोई इन्हें खरीद भी रहा है. ऐसी पार्टी आपने धरती पर शायद पहले ही देखी होगी.

महेश जोेशी के सबूतों का एफआईआर में कोई जिक्र नहीं!

पुलिस का और कमाल देखिए आप. राजस्थान सरकार के मुख्य सचेतक महेश जोशी ने 9 जून को पुलिस के तमाम तरह के विभागों चाहे एसओजी हो एटीएस हो या एंटी करप्शन ब्यूरो या डीजीपी ऑफिस हो सबको बता दिया कि विधायकों को खरीदा जा रहा है यहां तक कह दिया कि हमारे पास सबूत है और हम ने पुलिस को सबूत दे दी है और भी आगे सबूत देंगे मगर जो एफआईआर दर्ज की गई उसमें सरकारी मुख्य सचेतक महेश जोशी के सबूतों का कोई जिक्र नहीं है.

सब कुछ राज्यसभा चुनाव के बाद का तमाशा है. अब ऐसी मनोहर कहानियां एफआईआर के रूप में सामने आएंगी तो सवाल उठेंगे ही. सवाल उठता है कि राज्यसभा चुनाव से पहले जो 35 -35 करोड़ रुपए देकर विधायकों को खरीदने की बात कही गई थी और विधायकों के पास टेलीफोन आने की बात कही गई थी. उस घटना का क्या हुआ? चुपके से बिना कैमरे और माइक का गिरिराज मलिंगा से पत्रकारों के सामने शिव विलास होटल के बाहर लाकर कहलवाया गया था कि हां हमें पैसे का ऑफर देने का फोन आया था.

कांग्रेस विधायक मुकर गए अपने बयान से और झूठी पड़ गई पुलिस

मलिंगा ने तो भावुक होते हुए यहां तक कह दिया था कि मेरी पत्नी ने कहा कि 30 -35 करोड़ क्या है, 100 करोड़ रुपए देंगे तब भी हम अपना ईमान नहीं बेचेंगे. आखिर हमारे घर में भी तो बाल बच्चे हैं. मगर राज्य सभा चुनाव खत्म होते हीं गिराज मलिंगा कसमें खाने लगे कि मैंने तो कभी पैसे के ऑफर मिलने की बात कही नहीं थी. और अब जब 2 विधायकों के नाम एफआईआर में दर्ज हो गए हैं और वह विधायक कह रहे हैं कि हमारे पास ऐसा कोई फोन आया ही नहीं था तो फिर सवाल उठता है कि कांग्रेसी झूठे हैं या पुलिस वाले झूठे हैं.

पुलिस के मनोबल का ख्याल रखा जाए या कांग्रेस पार्टी के मनोबल का ख्याल रखा जाए. क्योंकि इन दिनों सवाल उठाने से पहले मनोबल का ख्याल रखना बहुत जरूरी हो गया है. दरअसल कांग्रेस के अंदरूनी लड़ाई की एक स्क्रिप्ट राज्यसभा चुनाव से पहले लिखी गई थी मगर बॉक्स ऑफिस पर उसकी असफलता के बाद अब राजनीति के शोमैन अशोक गहलोत दूसरी फिल्म लेकर आए हैं. मगर पटकथा में कसावट की कमी देखी जा रही है.

सचिन पायलट की रवानगी का इंतजाम तो नहीं?

सवाल उठता है कि कहीं पंचायत चुनाव से पहले सचिन पायलट के राजस्थान प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से रवानगी के लिए तो सब कुछ नहीं किया जा रहा है? क्योंकि पायलट इस बात पर अड़े हैं कि पंचायत चुनाव के बाद ही वह पार्टी के अध्यक्ष पद से जाना चाहते हैं और अशोक गहलोत चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी पायलट का विमान रनवे पर उतर जाए. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि 15 अक्टूबर के पहले पंचायत के चुनाव कराने हैं और पंचायत चुनाव के दौरान जो प्रदेश अध्यक्ष रहेगा वही सिंबल बटेगा.

राजस्थान में राजनीतिक नियुक्तियां भी होनी है अगर प्रदेश अध्यक्ष के पद पर सचिन पायलट रहते हैं तो उनकी चलती रहेगी. मंत्रिमंडल में फेरबदल होता है तो प्रदेश अध्यक्ष के नाते सचिन पायलट की थोड़ी बहुत चल सकती है. लिहाजा अशोक गहलोत चाहते हैं इन तमाम झंझट ओं से एक साथ छुटकारा मिल जाए और छुटकारा तब मिले जब सचिन पायलट कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाएं.

...और वसुंधरा राजे की रहस्यमय 'रोल'!

इस कहानी का एक सिरा बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई से भी जुड़ा हुआ है. स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने ब्यावर शहर से बीजेपी के जिस नेता भरत मालानी को यह कह कर हिरासत में लिया है कि वह अशोक गहलोत सरकार को गिराने में लगा हुआ था वह वसुंधरा राजे का करीबी है. वसुंधरा राजे जब बीजेपी में सर्वेसर्वा थी तब यह व्यापार प्रकोष्ठ का प्रदेश अध्यक्ष था. फिलहाल ये जोधपुर के नेता मेघराज लोहिया का राइट हैंड है और मेघराज लोहिया वसुंधरा राजे के राइट हैंड हैं.

इस पूरे मामले की जांच कर रहे स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप के एडीजी अशोक राठौड़ वसुंधरा राजे के बेहद करीबी रहे हैं. और इतने करीबी रहे हैं कि जोधपुर में 5 साल तक कमिश्नर रहे हैं. चर्चा है कि इस दौरान वसुंधरा राज्य और अशोक गहलोत के बीच अच्छी पट रही है. तो क्या बीजेपी के कंधे पर बंदूक रखकर गहलोत सरकार ने सचिन पायलट पर निशाना साधा है? खैर, जो भी हो राजस्थान सरकार को इस मामले में जल्द दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहिए. इतना कुछ खाने के बाद अगर न तो उसे निगलते बने और न ही उगलते बने तो लोग सवाल उठाएंगे ही.  

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