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Updated: 03 मार्च, 2022 12:18 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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यूं तो बिना किसी लाग-लपेट के अपनी बात रखने वाले को स्पष्टवादी (straightforward) कहा जाता है. लेकिन, बात अगर युद्ध जैसे माहौल की हो रही हो, तो लोगों की सहानुभूति आमतौर पर कमजोर के साथ ही होती है. रूस-यूक्रेन के बीच जारी जंग में भी कुछ ऐसा ही नजर आ रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Invade Ukraine) के सातवें दिन यूक्रेन की राजधानी कीव समेत कई बड़े शहरों में रूसी सेना की ओर से मिसाइलें दागी जा रही हैं. रूसी सेना ने आक्रामक रुख अपनाते हुए यूक्रेन के खेरसन शहर पर कब्जा कर लिया है. वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की ने दावा किया है कि रूसी सेना के 6000 सैनिक मारे जा चुके हैं. खैर, लगातार किए जा रहे हमलों को देखते हुए दुनिया की नजरों में रूस सबसे बड़ा विलेन बनकर उभरा है. और, तमाम लोगों की हमदर्दी यूक्रेन के साथ देखी जा सकती है.

अब तक रूस और यूक्रेन के संबंधों से लेकर कूटनीति और रक्षा नीति तक पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है. लेकिन, इस मामले में रूस का पक्ष अभी तक खुलकर सामने नहीं आ सका था. लेकिन, अब बिहारी मूल के रूसी डेप्यूटेट (Deputat) डॉ. अभय कुमार सिंह ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पड़ोसी देश यूक्रेन पर कि गए हमले के फैसले को सही बताया है. भारतीय मूल के डॉ. अभय कुमार सिंह (Abhay Kumar Singh) ने जितने सरल तरीके से रूस का पक्ष रखा है. शायद ही कोई और ऐसा कर सकता था. ये अलग बात है कि सबके अपने-अपने पूर्वाग्रह होते हैं. लेकिन, तथ्यात्मक बात करने को किसी भी हाल में गलत नहीं कहा जा सकता है. और, भारतीय मूल के रूसी डेप्यूटेट ने जिस तरह से अपनी बात रखी है. उसे देखकर आसानी से कहा जा सकता है कि पुतिन का पक्ष रखने के लिए रूस के बिहारी विधायक से अच्छा शायद ही कोई हो सकता था. 

चीन अगर बांग्लादेश में सैन्य अड्डा बना ले, तो भारत क्या करेगा?

भारत में राजनेताओं से लेकर कथित बुद्धिजीवियों (जो बजट विशेषज्ञ से लेकर रक्षा विशेषज्ञ तक हैं) का एक बड़ा वर्ग नरेंद्र मोदी सरकार पर समर्थन या विरोध को लेकर पक्ष साफ करने का दबाव बना रहा है. लेकिन, यूक्रेन और भारत के पूर्व संबंधों को लेकर बातचीत करना पसंद नहीं कर रहा है. खैर, डॉ. अभय कुमार सिंह, जो पश्चिमी रूस के कुर्स्क से डेप्यूटेट (भारत के विधायक के बराबर का पद) हैं, ने इंडिया टुडे से बातचीत में रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए हमले के फैसले का बचाव किया. अभय कुमार सिंह ने कहा कि 'पड़ोसी देश यूक्रेन को बातचीत के जरिये मामला सुलझाने के लिए काफी समय दिया गया था. लेकिन, इसमें असफल होने के बाद ही युद्ध का फैसला लिया गया है.'

अभय कुमार सिंह ने भारत के नजरिये से एक उदाहरण देते हुए इस हमले को बहुत सरलता से समझाने की कोशिश की. सिंह ने कहा कि 'अगर चीन द्वारा बांग्लादेश में मिलिट्री बेस तैयार कर लिया जाए, तो भारत कैसी प्रतिक्रिया देगा? यह स्पष्ट है कि भारत इसे किसी भी हाल में पसंद नहीं करेगा. ठीक इसी तरह से नाटो सैन्य संगठन को रूस के खिलाफ बनाया गया था. और, सोवियत संघ के टूटने के बावजूद यह खत्म नहीं हुआ. बल्कि, यह धीरे-धीरे रूस के करीब आ गया. अगर यूक्रेन नाटो में शामिल हो जाता है, तो यह नाटो बलों को हमारे करीब लाएगा. क्योंकि, यूक्रेन हमारा पड़ोसी देश है. यह समझौते का उल्लंघन होगा. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और रूसी संसद के पास कार्रवाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. जिसके चलते यूक्रेन पर हमला किया गया.'

Russia Ukraine War Russia Bihari MLAलगातार किए जा रहे हमलों को देखते हुए दुनिया की नजरों में रूस सबसे बड़ा विलेन बनकर उभरा है.

नाटो का पूर्वी यूरोपीय देशों में विस्तार बना युद्ध की वजह

सोवियत संघ के टूटने के दौरान 1990 में पश्चिम जर्मनी और पूर्वी जर्मनी का विलय हुआ. माना जाता है कि इस विलय के दौरान एक मौखिक समझौता हुआ था कि सैन्य संगठन नाटो अपना विस्तार पूर्वी यूरोप में नहीं करेगा. लेकिन, पश्चिमी देशों ने रूस को अपने भविष्य के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देखते हुए पूर्वी यूरोप में विस्तार न करने के समझौते को नहीं माना. पश्चिमी देशों ने एक तरह से वादाखिलाफी करते हुए पोलैंड, हंगरी और चेक रिपब्लिक को नाटो में शामिल किया. इतना ही नहीं, रूस पर चौतरफा दबाव बनाने के लिए सोवियत संघ के लिथुआनिया, लातविया और एस्टोनिया जैसे छोटे-छोटे देशों को भी नाटो में शामिल कर लिया. वहीं, बीते कुछ समय से यूक्रेन की पश्चिमी देशों से बढ़ती करीबी और नाटो में शामिल होने की लालसा ने कहीं न कहीं रूस को उस पर हमला करने के लिए मजबूर किया.

आसान शब्दों में कहा जाए, तो यूक्रेन के नाटो सैन्य संगठन में शामिल होने से पश्चिमी देश जब चाहे रूस का दरवाजा तोड़ उसके घर में घुसने को तैयार हो जाते. यूक्रेन से लंबे समय तक बातचीत के जरिये समाधान निकालने की कोशिश में असफल होने के बाद इस परिस्थिति से बचने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर दिया. क्योंकि, यूक्रेन अभी तक नाटो का सदस्य नहीं बना था. तो, नाटो सैन्य संगठन से जुड़े अमेरिका, ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देश चाह कर भी यूक्रेन में सेना भेजकर उसकी मदद नहीं कर सकते हैं. एक तरह से देखा जाए, तो यूक्रेन पर हमला कर रूस ने अपने डर को जड़ से खत्म करने का मन बना लिया है. वैसे, यूक्रेन को एक संप्रभु देश के तौर पर रखते हुए तमाम तर्क दिए जा रहे हैं. लेकिन, कोई भी देश रूस की संप्रभुता पर पैदा होने वाले खतरे की बात नहीं कर रहा है. 

परमाणु हमला नहीं करेगा रूस

रूस-यूक्रेन युद्ध के चौथे दिन रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने न्यूक्लियर डेटरेंट फोर्स को अलर्ट पर रहने को कहा था. इस खबर के बाद ही दुनियाभर में परमाणु हमले को लेकर डर फैल गया था. लेकिन, रूसी विधायक अभय कुमार सिंह ने परमाणु हमलों की आशंका को खारिज किया है. सिंह ने कहा कि 'परमाणु हथियारों को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है. राष्ट्रपति पुतिन द्वारा परमाणु अभ्यास के ऐलान का उद्देश्य केवल रूस पर हमला होने पर जवाब देने के लिए किया गया था. अगर कोई देश हम पर हमला करेगा, तो रूस हरसंभव तरीके से जवाब देगा.' वैसे, बताना जरूरी है कि डॉ. अभय कुमार सिंह पटना के मूल निवासी हैं. और, 1991 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए रूस गए थे. रूस के कुर्स्क स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह भारत लौटे. लेकिन, कुछ समय बाद वापस रूस चले गए. रूस में उन्होंने पहले दवा का व्यवसाय शुरू किया. बाद में रियल एस्टेट और निर्माण क्षेत्र में काम शुरू किया.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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