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Updated: 01 मार्च, 2022 04:13 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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Russia Ukraine Conflict: रूस-यूक्रेन युद्ध अब पांचवें दिन में प्रवेश कर चुका है. इस युद्ध की विभीषिका का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब तक लाखों लोग यूक्रेन से पलायन कर चुके हैं. युद्ध की इन खबरों के बीच हर किसी को यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों और नागरिकों की चिंता सता रही है. क्योंकि, यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों के साथ यूक्रेनी सैनिकों द्वारा मारपीट और हिंसा की खबरें भी सामने आ रही हैं. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बाबत एक वीडियो शेयर करते हुए भारत सरकार को फटकार लगाई है. राहुल गांधी ने ट्वीट किया है कि 'इस तरह की हिंसा झेल रहे भारतीय छात्रों और इन वीडियोज को देख रहे उनके परिजनों के प्रति मेरी संवेदना है. किसी भी अभिभावक को इससे नहीं गुजरना चाहिए. भारत सरकार को वहां फंसे छात्रों और उनके परिवारों के साथ तत्काल निकाले जाने का विस्तृत प्लान साझा करना चाहिए. हम अपनों को नहीं छोड़ सकते हैं.' लेकिन, यहां सवाल ये है कि आखिर भारतीय छात्रों के साथ यूक्रेनी सैनिक ऐसा क्यों कर रहे हैं? 

इसका जवाब बहुत ही सीधा और सरल है. दरअसल, बीती 26 फरवरी को यूक्रेन के राष्ट्रपति वलाडिमीर जेलेंस्की ने पीएम नरेंद्र मोदी से बातचीत कर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में राजनीतिक समर्थन करने की मांग की थी. लेकिन, भारत ने अब तक रूस के खिलाफ पेश किए गए सभी प्रस्तावों पर वोटिंग से दूरी बना रखी है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के यूक्रेन का पक्ष न लेने की वजह से यूक्रेन के सैनिक बौखला गए हैं. दावा किया जा रहा है कि भारत के इस कदम से यूक्रेन के लोगों की भावनाएं आहत हो गई है. जिसके चलते भारतीय छात्रों को गंतव्य तक ले जाने के लिए यूक्रेन के टैक्सी ड्राइवर तैयार नहीं हो रहे हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारत से समर्थन पाने के लिए यूक्रेन अब 'मानवता' को छोड़कर नीचता की सारी हदों को पार करने पर आमादा हो गया है. वैसे, ये तस्वीरें और वीडियो भारत के उस कथित बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों के लिए भी हैं, जो युद्धग्रस्त यूक्रेन से सामने आने वाली तस्वीरों पर मानवता की बड़ी-बड़ी बातें कर रहे थे. और, यूक्रेन की हालत पर सहानुभूति जताते हुए भारत सरकार को कोसने में लगे थे.

क्या रूस-यूक्रेन जंग पर भारत की कूटनीतिक रणनीति गलत है?

भारत का एक बड़ा कथित बुद्धिजीवी वर्ग और सेकुलर लोगों की जमात छाती पीट-पीटकर यूक्रेन के लिए आंसू बहा रहे थे. लेकिन, अब यूक्रेन के सैनिकों द्वारा भारतीय छात्रों से किए जा रहे अमानवीय व्यवहार को लेकर भी इन लोगों ने भारत सरकार को कोसना शुरू कर दिया है. इसे भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक विफलता बताने के लिए पूरी ताकत झोंकी जा रही है. लेकिन, यहां सवाल यही है कि क्या भारत को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ हुई खूनी झड़प के दौरान यूक्रेन का साथ मिला था? आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले पड़ोसी देश पाकिस्तान को हथियारों के सबसे बड़े सप्लायर्स में से एक यूक्रेन क्या युद्ध की स्थिति में भारत का साथ देगा? जो यूक्रेन आतंकवाद से लेकर कश्मीर मुद्दे तक पर भारत का साथ देने से बचता रहा हो. इतना ही नहीं, 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण करने पर संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में भारत पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की वकालत करने वाले देश यूक्रेन के लिए आखिर क्यों भारत को अपने सबसे पुराने और मजबूत कूटनीतिक और राजनीतिक रिश्तों वाले रूस के खिलाफ हो जाना चाहिए.

वहीं, यूक्रेन से उलट रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से लेकर हर जगह भारत का बिना किसी लाग-लपेट के खुलकर समर्थन किया है. रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जिस वीटो पावर का इस्तेमाल कर अपने खिलाफ यूक्रेन युद्ध के विरोध में प्रस्ताव को रोका था. उसी वीटो पावर को रूस ने भारत के पक्ष में भी 4 बार इस्तेमाल किया है. जबकि, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे तमाम पश्चिमी देशों के संबंध भी भारत के साथ अच्छे रहे हैं. लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारत के संकट में घिरने पर रूस उसका सबसे बड़ा सहयोगी रहा है. 1957 में रूस ने भारत के पक्ष में कश्मीर मुद्दे पर वीटो पावर का उपयोग किया था. 1961 गोवा की मुक्ति संग्राम में भी रूस ने भारत का खुलकर सहयोग किया था. 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध और 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी रूस ने खुलकर भारत का साथ दिया था. 1998 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण के समय भी रूस ने भारत का साथ दिया था. 2019 में कश्मीर से अनुच्छेद 370 और धारा 35ए हटाने के मुद्दे पर भी भारत को रूस से समर्थन मिला था.

आज अगर भारत यूक्रेन का साथ देकर अपने पुराने दोस्त रूस को नाराज कर देता है, तो भविष्य में वह रूस से मिलने वाली किसी भी तरह की मदद से हाथ खो बैठेगा. वैसे भी हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात कर भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की है. अगर भविष्य में चीन की ओर से कोई हमला किया जाता है, तो भारत के पक्ष में भी अमेरिका, ब्रिटेन जैसे पश्चिमी देशों की ओर से केवल कड़ी निंदा वाले बयान ही आएंगे. जबकि, रूस, जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से भारत को चीन पर दबाव बनाने के लिए ताकत मिलती है.

Indian Student beaten by Ukraine police26 फरवरी को यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने पीएम नरेंद्र मोदी से बातचीत कर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में राजनीतिक समर्थन करने की मांग की थी.

छात्रों को निकालने के लिए भारत सरकार लगा रही है हर जुगत

कथित बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों द्वारा दावा किया जा रहा है कि पोलैंड में भारतीय छात्रों को आश्रय स्थल भगाया जा रहा है. लेकिन, वो ये बताना भूल रहे हैं कि ये पोलैंड बॉर्डर की बात है. नाकि, पोलैंड की. खैर, भारत सरकार तनावग्रस्त क्षेत्रों से भारतीय छात्रों को निकालने के लिए हर संभव जुगत लगा रही है. यूक्रेन के पड़ोसी देशों के रास्ते भारतीयों को निकाला जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यूक्रेन में करीब 18,095 भारतीय छात्र फंसे (Indian Students Stranded In Ukraine) हुए थे. हालांकि, युद्ध की आहट के साथ ही कई छात्र वापस आ गए थे. वहीं, भारत सरकार ने एयर इंडिया की मदद से 'ऑपरेशन गंगा' (Operation Ganga) के तहत अब तक करीब 2000 छात्रों को एयरलिफ्ट किया है. लेकिन, अभी भी करीब 13 हजार भारतीय नागरिक और छात्र वहां फंसे हुए हैं.

यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को निकालने के लिए (India Ukraine Mission) भारत सरकार ने चार केंद्रीय मंत्रियों को पड़ोसी देशों में समन्वय का काम देखने के लिए भेजने का फैसला लिया है. हाल ही में लिए गए इस फैसले में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरेन रिजिजू और वीके सिंह को यूक्रेन के पड़ोसी देशों में ऑपरेशन गंगा के लिए समन्वय करने और छात्रों की मदद करने के लिए भारत के 'विशेष दूत' के तौर पर वहां जाएंगे. बताया जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को रोमानिया और मोल्दोवा, किरेन रिजिजू को स्लोवाकिया, हरदीप सिंह पुरी को हंगरी और पूर्व जनरल वीके सिंह को पोलैंड में समन्वय बनाने के लिए भेजा जाएगा. आसान शब्दों में कहा जाए, तो भारत सरकार यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों और छात्रों को निकालने की हर संभव कोशिश कर रही है. लेकिन, कथित बुद्धिजीवी वर्ग भारत का समर्थन पाने के लिए यूक्रेन द्वारा नीचता की हदें पार करने पर खामोश है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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