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Updated: 20 जुलाई, 2022 01:50 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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'अग्निपथ योजना' ने एक बार फिर विपक्ष को एकजुट कर दिया है. अग्निपथ योजना के अंतर्गत रिक्रूटमेंट फॉर्म में जाति का कॉलम देखकर बौखलाए विपक्षी दलों द्वारा तमाम तरह की खोखली दलीलें दी जा रही हैं. कहा तो यहां तक जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अग्निवीरों का उपयोग करके 'जातिवादी' बनाने की कोशिश कर रही है. अपने ऊपर लगे आरोपों को ख़ारिज करते हुए, भाजपा ने अपनी सफाई में कहा है कि, नियम हमेशा से ही ऐसे थे. भर्ती प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं किया गया है.' आरोपों पर सेना ने भी अपना पक्ष रखा है और भर्ती फॉर्म में जाति के कॉलम की प्रासंगिकता बताते हुए विपक्षी दलों को आईना दिखा दिया है. बे बात की बात पर विपक्ष की बातें भले ही घटिया हों लेकिन इन घटिया बातों की ये खूबसूरती है कि अक्सर ही इनके जरिये दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है. 

Agnipath Scheme, Agniveer, Hiring, Controversy, Sanjay Singh, Tejashwi Yadav, Aam Aadmi Party, Sambit Patraअग्निपथ योजना के अंतर्गत पुनः विपक्ष जाति को आधार बनाकर मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाता नजर आ रहा है

जिक्र क्योंकि 'अग्निपथ योजना' के अंतर्गत भर्ती के फॉर्म में जाति के कॉलम, और विपक्षी दलों की एकजुटता का हुआ है. तो मामले पर कैसे घिनौनी राजनीति को अंजाम दिया जा रहा है? यदि इसे समझना हो तो हमें आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह के उस ट्वीट को देखना चाहिए जिसमें उन्होंने लिखा है कि मोदी सरकार का घटिया चेहरा देश के सामने आ चुका है. क्या मोदी जी दलितों/पिछड़ों/आदिवासियों को सेना भर्ती के क़ाबिल नही मानते? भारत के इतिहास में पहली बार 'सेना भर्ती' में जाति पूछी जा रही है. मोदी जी आपको 'अग्निवीर' बनाना है या 'जातिवीर'

संजय सिंह के अलावा मुद्दे पर अपने अधकचरे ज्ञान की छीटें मारते हुए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने भी ट्वीट किया है और मोदी सरकार को आड़े हाथों लेने की नाकाम कोशिश की है. ट्विटर पर तेजस्वी ने लिखा है कि, आजादी के बाद 75 वर्षों तक सेना में ठेके पर 'अग्निपथ' व्यवस्था लागू नहीं थी. सेना में भर्ती होने के बाद 75% सैनिकों की छंटनी नहीं होती थी लेकिन संघ की कट्टर जातिवादी सरकार अब जाति/धर्म देखकर 75% सैनिकों की छंटनी करेगी. सेना में जब आरक्षण है ही नहीं तो जाति प्रमाणपत्र की क्या जरूरत? 

भले ही अग्निपथ योजना पर संजय सिंह और तेजस्वी यादव जैसे विपक्ष के नेताओं को आरोप-प्रत्यारोप की घटिया राजनीति का 'अवसर' दिखा हो लेकिन हम उन्हें इतना जरूर बताना चाहेंगे कि ऐसा बिलकुल नहीं है कि पहली बार सेना भर्ती फॉर्म में जाति का जिक्र हुआ है. हो सकता है कि अपने अपने मोदी विरोध के चलते विपक्षी दलों की नजर इसपर अभी पड़ी हो लेकिन ये कॉलम फॉर्म में हमेशा से ही रहा है.

विवाद पर अपना पक्ष रखते हुए भाजपा नेता संबित पात्रा ने 2013 में सुप्रीम कोर्ट में सेना द्वारा पेश किये गए एफिडेविट का हवाला दिया है. सुप्रीम कोर्ट में पेश किये गए अपने हलफनामें में भारतीय सेना की तरफ से कहा गया था कि चयन प्रक्रिया के संबंध में जाति की कोई भूमिका नहीं है. हालांकि, जाति के लिए एक कॉलम है जिसे भर्ती प्रक्रिया के दौरान भरना आवश्यक है क्योंकि यह एक प्रशासनिक या परिचालन आवश्यकता है.'

चाहे वो आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह हों. या फिर तेजस्वी यादव इनकी बातें इसलिए भी नजरअंदाज नहीं की जा सकतीं क्योंकि ये जन प्रतिनिधि हैं. चुन के आए हैं लाखों लोग इन्हें फॉलो करते हैं. और शायद यही वो कारण हैं जिसके चलते सेना ने भी मामले पर अपनी सफाई दी है और तमाम तरह के आरोपों को ख़ारिज किया है. भारतीय सेना ने अपने बयान में कहा है कि अग्निवीर के लिए सेना की भर्ती नीति में कोई बदलाव नहीं किया गया है और शुरुआत से ही जाति और धर्म के कॉलम का इस्तेमाल किया जा रहा है.

भारतीय सेना के अधिकारियों के मुताबिक, 'उम्मीदवारों को जाति प्रमाण पत्र जमा करने की आवश्यकता होती है और यदि आवश्यक हो, तो धर्म प्रमाण पत्र हमेशा से रहा है. इस संबंध में अग्निवीर भर्ती योजना में कोई बदलाव नहीं किया गया है.'

सेना के अधिकारियों ने कहा, 'प्रशिक्षण के दौरान मरने वाले रंगरूटों और प्रशिक्षण के दौरान मरने वाले सैनिकों के लिए धार्मिक अनुष्ठानों के अनुसार अंतिम संस्कार करने के लिए भी धर्म की आवश्यकता होती है.'

बहरहाल, सिर्फ भाजपा ही नहीं, अब जबकि खुद सेना की तरफ से बयान आ गया है. तो चाहे वो आम आदमी के सांसद संजय सिंह हों. या फिर तेजस्वी यादव जैसे लोग. इस बात का अंदाजा तो पहले ही था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के विरोध में ये लोग नीचे गिरेंगे लेकिन ऐसा करने के लिए ये लोग अधकचरे ज्ञान का सहारा लेंगे इसका अंदाजा शायद ही किसी को रहा हो. विपक्ष द्वारा की गयी ये नीचता इसलिए भी शर्मनाक है. क्योंकि इस बार इनके एजेंडे पर सेना को घेरने की नाकाम कोशिश थी.     

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बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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