New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 04 मार्च, 2016 05:31 PM
सुशांत झा
सुशांत झा
  @jha.sushant
  • Total Shares

उम्र के हिसाब से 90 फीसदी
मैं उम्र के हिसाब से जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार के भाषण को 90 फीसदी दूंगा. क्योंकि एक लड़कपन के उम्र के नौजवान में जो परिपक्वता के लक्षण उस भाषण में दिखे वो कई बड़े नेताओं में नहीं होते. दूसरी बात ये कि उस भाषण में जो संजीदगी, एक हद तक विनम्रता और शब्दों का चयन था वो कन्हैया का कद बढ़ाता है. एक ऐसे दौर में जब नेताओं के मुंह से जहरीले बोल और सतही बातें निकलती हों कन्हैया उम्मीद जगाते हैं.

दलित समुदाय से "दूरी" और भारी "टर्मिनॉलॉजी" की बात स्वीकारने के लिए 100 फीसदी
मैं इस भाषण को इमानदारी के लिए भी याद रखूंगा. कन्हैया ने कहा कि उनके दल के लोग या जेएनयू जैसे संस्थान के लोग भी भारी-भरकम टर्मिनोलॉजी में बात करते हैं जो सच के करीब है. भारतीय वामपंथ कई बार आम जनता के नजदीक नहीं पहुंच पाया क्योंकि उसके नेता अक्सर अंग्रेजी में बोलते हुए दिखाई देते थे. कन्हैया ने माना कि 'नीला' और 'लाल' में मेल होना जरूरी है-एक वाम नेता से इसकी उम्मीद नहीं की जाती जो स्वंयभू गरीबों की पार्टी होने का दावा करती है. 'नीला' रंग दलित राजनीति का प्रतीक है, जबकि लाल वाम राजनीति का. प्रकारांतर में कन्हैया ने माना कि वाम की दूरी दलितों से बढ़ गई है. ये इमानदार वक्तव्य है.

स्टाइल के लिए 80 फीसदी
कन्हैया को उसकी भाषण शैली के लिए मैं 80 फीसदी नंबर देता हूं. हालांकि नेताओं के भाषण में नाटकीयता होती है लेकिन कन्हैया ने जिस स्वभाविक अंदाज में बातों को रखा, वो प्रभावित करता है. वो वास्तविक दर्द, वो तीखापन एक गरीब पृष्ठभूमि से आनेवाले व्यक्ति का हो सकता है. उसमें नाटकीयता नहीं थी.

मोदी पर आक्रामक हमला के लिए 100 फीसदी
कन्हैया ने प्रधानमंत्री मोदी को जिस तरह से आड़े हाथों लिया, इसकी उम्मीद कई लोग बड़े नेताओं से भी नहीं करते. प्रतीकों में ही सही, उसने मन की बात, मां के वक्तव्य, सूट-बूट सब का जिक्र कर दिया. संसद भवन में बैठे नेताओं से लेकर टीवी चैनल के एंकरों तक को शालीन भाषा में जवाब दिया.

राजनीतिक कसौटी पर 60 फीसदी
लेकिन जहां तक राजनीतिक कसौटी पर इस भाषण को कसने की बात है तो मैं उसे 60 फीसदी ही देता हूं. इसकी वजहें हैं. कन्हैया ने ज्यादातर वहीं बातें की जो भारतीय वामपंथ पिछले नब्बे सालों से दुहरा रहा है. उसमें एकाध नई बातें ही थीं. तिरंगे को लेकर अचानक का सम्मान या अपनी आस्तिकता का प्रदर्शन उदारता की प्रतीक तो हैं लेकिन कन्हैया ने वैकल्पिक आर्थिक-राजनीतिक मॉडल पर कोई बात नहीं की. ऐसा लगा कि ये किसी वामपंथी दल की चुनावी रैली है.

कांग्रेस पर सायास चुप्पी के लिए 20 फीसदी
जब वह इस कॉरपोरेट के शिकंजे में जा रहे सिस्टम की आलोचना कर रहे थे वे सायास या अनायास कांग्रेस या केजरीवाल की आलोचना से बच रहे थे. उन्हें बताना चाहिए था कि इस देश की शिक्षा या स्वास्थ्य के कॉरपोरेटीकरण में कांग्रेस का कितना बड़ा हाथ है. लेकिन ऐसा लगा कि ये चुनावी सभा है.

ABVP पर हल्के औसत तंज के लिए 30 फीसदी
कन्हैया ने अपने प्रतिपक्षी छात्र संगठन एबीवीपी पर हल्के तंज कसे, जो उनकी गरिमा के अनुकूल नहीं थे. एबीवीपी भले ही उनका प्रतिपक्षी हो, लेकिन किसी संगठन को बौद्धिकता-विहीन बताना-खासकर उनको जो आपके सहपाठी हों-उचित नहीं कहा जा सकता. ये JNU की पढ़ाई पर भी एक सवाल है. हालांकि उन्होंने थोड़ा बचाव किया कि JNU के एबीवीपी वाले थोड़े ठीक हैं!

DSU के बारे में खाना-पूर्ति के लिए 5 फीसदी
लेकिन सबसे निराशाजनक बात ये थी कि कन्हैया ने संस्थान में देशविरोधी नारा बोलने वालों पर लगभग कुछ नहीं बोला या बहुत कम बोला. अतिवादी वाम संगठन डीएसयू पर बहुत कम या न के बराबर शब्द खर्चे गए.

कॉमरेड होकर आस्तिकता दर्शाने के लिए 15 फीसदी
हां, कॉमरेड कन्हैया ने ये माना कि उनकी समझ में इस ब्रह्मांड का रचियता ईश्वर है! कम से कम अध्यात्मिक स्तर पर ही सही, कॉमरेड लोहियावाद के नजदीक जाते दिखे.

कुल मिलाकर कन्हैया उदार वामपंथ की एक संभावना हो सकते हैं और स्टीरियोटाइप वामपंथ का विचलन भी. लेकिन ये हवा का एक ताजा झोंका जरूर है!

लेखक

सुशांत झा सुशांत झा @jha.sushant

लेखक टीवी टुडे नेटवर्क में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय