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Updated: 29 अप्रिल, 2016 07:01 PM
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बिहार में हाल की आगजनी की घटनाओं ने '...हाथ जलने' वाले मुहावरे को 'हवन करते घर जलने' में तब्दील कर दिया है. लिहाजा सरकार ने दिन में हवन करने पर बैन लगा दिया है.

पानी ऐसे बचाओ

औरंगाबाद जिले में 22 अप्रैल को 13 लोग जलकर मर गए थे. मालूम हुआ कि ये आग हवन के दौरान निकली चिंगारी से लगी और फिर फैल गई. इसी हफ्ते लालू प्रसाद ने गर्मी से बचने के टिप्स दिये थे, जिनमें गर्मी में यज्ञ बंद करने की भी सलाह थी. लालू ने अपील की थी कि गर्मी में लोग तरह-तरह के यज्ञ करने से बचें क्योंकि इससे गांव में आग लगने का खतरा और बढ़ जाता है - साथ ही पानी की भी बर्बादी होती है.

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बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने गांवों में सुबह नौ बजे के बाद और शाम छह बजे से पहले हवन न करने का आदेश दिया है. इस एडवाइजरी में लोगों को इस दौरान खाना भी नहीं बनाने की सलाह दी गई है.

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हवन पर होगी जेल...

सही में ऐसे हवन का क्या फायदा जिसमें हिस्सा लेते हुए इंसान खुद ही आहुति बन जाए और घर परिवार की सुख समृद्धि की जगह उस पर नई आफत आ जाए.

जातीय राजनीति और जंगलराज के लिए जाने जाने वाले लालू के इस सुझाव का स्वागत किया जाना चाहिए कि हवन न करके आग से बचा और पानी बचाया जा सकता है. आग लगने पर बुझाने में जितना पानी खर्च होगा उसे तो बचाया ही जा सकता है. खासकर तब जब देश के कई हिस्सों में भयंकर सूखे के चलते जिंदगी भारी पड़ रही हो.

यूपी-बिहार के गांवों में सुंदरकांड पाठ और हवन वैसे ही हिट है, जिस तरह दिल्ली-एनसीआर में साई कीर्तन का फैशन. शहर में साई मंडली की जबरदस्त डिमांड है तो सुंदरकांड के गवैयों का गांव-गांव में बैंड बन गया है.

हवन की दुकान

अपनी अपनी श्रद्धा के हिसाब से पूजा-पाठ, हवन-कीर्तन की सबको आजादी है. मगर, देखा जाए तो गांवों में आज कल हवन-कीर्तन अनावश्यक रेग्युलर फीचर बनते जा रहे हैं. लंबे सफर या दिन भर के काम के बाद अगर कोई थका हारा घर पहुंचा तो कीर्तन के नाम पर इतना शोर शराबा होने लगा है जिसे कोई देखने वाला नहीं. बाजार और कस्बों की पान दुकानों से भी बुरा हाल गांवों का बनता जा रहा है.

मुंडन, उपनयन, बर्थडे और दूसरे सेलीब्रेशन अपनी जगह है - लेकिन हवन कीर्तन के नाम पर दुकानदारी के क्या मतलब हैं?

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आजकल एक नई ट्रेंड देखने को मिल रही है. अक्सर कोई न कोई बाबा किसी गांव में पहुंच जा रहा है. गांव के बाहर किसी कुएं या हैंडपंप के पास एक दो दिन चुपचाप बैठता है - फिर गांव के कुछ निठल्लों की काउंसलिंग कर अपने साथ कर लेता है. पहले तो वो आत्मा परमात्मा की बात करता है फिर अपनी औकात पर आ जाता है. देखते ही देखते वो उस जगह को गंजेड़ियों का अड्डा बना देता है.

हफ्ते भर के भीतर ही बाबा के नाम पर गांव के निठल्ले घर घर से हवन और कीर्तन के नाम पर चंदा जुटाने लगते हैं. कुछ दिन चंदा जुटाने में तो कुछ दिन तैयारियों में लग जाते हैं.

ऐसे लोगों को चंदा देने वाली गांव की जनता में कहीं कुछ हो न जाए वाला डर ज्यादा और श्रद्धा कम ही होती है. चंदे की रकम से बाबा और उसके तथाकथित चेले खूब ऐश करते हैं - और कई दिनों तक वो जगह गंजेड़ियों का अड्डा बनी रहती है. नीतीश सरकार की तरह अखिलेश सरकार को भी या जहां कहीं भी धर्म के नाम पर ऐसी चीजें चल रही हैं रोक लगानी चाहिए.

कुछ लोग कह सकते हैं कि ये धार्मिक मामलों में ये बिना मतलब सरकारी दखल है, लेकिन जब हवन करते घर जल रहा हो तो भला धर्म को कौन बचाए.

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