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Updated: 17 अगस्त, 2021 09:28 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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क्या केरल के समाज और सियासत में धार्मिक समीकरण बदल गए हैं? वहां बीजेपी का वजूद हिंदी भाषी क्षेत्रों की तरह प्रभावी नहीं है. लेकिन मुस्लिमों के खिलाफ एक नैरेटिव मजबूती से पांव पसार चुका हैं. वहां की राजनीति पर इसके असर कितने प्रभावी हैं रेफरेंस में देखे जा सकते हैं. यहां भी लव जिहाद का नैरेटिव है, मगर उसके दोनों ध्रुव हिंदी पट्टी या शेष भारत के नैरेटिव से बिल्कुल अलग है. यहां लव जिहाद के नैरेटिव में मुस्लिम और ईसाई एक-दूसरे के आमने-आमने हैं. लवजिहाद के अलावा भी कई मुद्दों पर दोनों समुदायों में टकराव साफ़ दिखता है. दोनों का टकराव यहां की राजनीति में धार्मिक ध्रुवीकरण को भी हवा दे रहा है. ताज्जुब भले हो मगर यहां वो पार्टियां भी ध्रुवीकरण का हिस्सा बनती दिख रही हैं जो राजनीतिक मंचों से 'साम्प्रदायिक सद्भाव' के नारे बढ़-चढ़कर चिल्लाती हैं.

कुछ दिन पहले आई दो खबरें काफी अहम है. एक- वामपंथी पार्टियों ने आजाद भारत के इतिहास में पहली बार तिरंगा फहराया और दूसरा केरल में सीपीआई ने "रामायण पर चर्चा" का आयोजन किया. सीपीआई ने भले ही इसके लिए मार्क्सवादी दृष्टि अपनाई मगर सबकुछ अनायास होता नहीं दिख रहा है. दरअसल, ये सबकुछ केरल की राजनीति में नया बन रहा पॉलिटिकल नैरेटिव है. संघ और उसके अनुषांगिक संगठन यहां काफी समय से सक्रिय हैं. स्वाभाविक रूप से तमाम चीजें उनके एजेंडा में हैं. पर वो इन्हें लीड करने का ऑपरेट करने में बहुत सक्षम नहीं है. केरल की वाम मोर्चे की सरकार में शामिल कांग्रेस (एम) इसी नैरेटिव को चमका रही है. कांग्रेस (एम) ने हालिया चुनाव में 5 सीटें जीती. यहां तक कि पार्टी के सिम्बल पर गठबंधन में शामिल सीपीआई का भी एक उम्मीदवार मैदान में उतरा था. केरल में कांग्रेस (एम) की राजनीति 'एंटी मुस्लिम' है. दिलचस्प यह है कि पार्टी का जनाधार हिंदुओं की बजाय क्रिश्चियनों में है.

चर्च का सबसे बड़ा संगठन ही लगा रहा है मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप

पिछले कुछ सालों में केरल में जिस तरह का सामजिक माहौल बनता दिख रहा है वामपंथी पार्टियां भी परोक्ष/अपरोक्ष रूप से उसका दोहन करने की फिराक में दिखती हैं. वामपंथी ही क्यों, कई बार कांग्रेस का गठबंधन भी ऐसा करता नजर आता है. एक वामपंथी पार्टी की ओर से पहली बार तिरंगा फहराने और रामायण पर चर्चा को लेकर ताज्जुब कर रहे लोगों को यह भी याद कर लेना चाहिए कि गंभीर समझे जाने वाले सीपीएम नेता और पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन ने आज से 11 साल पहले राज्य में लवजिहाद को लेकर चिंता जताई थी. उन्होंने कहा था कि केरल को "लव जिहाद" से खतरा है. उनसे पहले केरल हाईकोर्ट ने भी चिंता जताते हुए लवजिहाद पर क़ानून बनाने की बात कही थी. हो सकता है कि ये सब वाम राजनीति की रणनीति का हिस्सा हो जिसमें मुसलमानों की खिलाफत के बहाने वो भाजपा को मौका नहीं देने की कोशिश कर रहे हों.

उधर, राज्य में क्रिश्चियनों के कई धार्मिक संगठन तो सीधे तौर पर वाम और कांग्रेस मोर्चे के गठबंधनों पर कुछ सालों से मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाते आ रहे हैं. यहां तक कि चर्च भी इसमें शामिल हैं. राज्य में चर्च की सबसे बड़ी ईकाई सायरो-मालाबार चर्च तो सीधे तौर पर कह चुका है कि लव जिहाद के जरिए ईसाई महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है मगर ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई (सरकारों की तरफ से) नहीं की जा रही है.

malik-movie-650_081721015320.jpgमलयाली फिल्म मलिक में फहद फासिल.

क्यों केरल में आमने सामने दिख रहे मुसलमान और ईसाई?

दरअसल, ये शोर पिछले ढाई दशकों में राज्य में मुसलमान और ईसाइयों के बीच कई मर्तबा टकराव होने के बाद बढ़ता दिख रहा है. दोनों समुदायों के बीच का टकराव जमीन, मछली कारोबार पर कब्जे और कमाई के दूसरे लोकल रिसोर्सेज को लेकर होते रहते हैं. खासकर कोस्टल इलाकों में. कुछ झगड़ों ने तो बड़े दंगों (1995 विझिंजम, 2004 और 2005 में पूवर, 2002 में अनछुतेनगु आदि) का रूप भी लिया. शायद स्थानीय स्तर पर बहुत सारी चीजें ऐसी हैं जो दोनों समुदायों को एक-दूसरे के खिलाफ लाने का काम कर रही हैं. यह भी एक फैक्ट है कि पिछले कुछ सालों में केरल देश का इकलौता ऐसा राज्य है जहां अंतर धार्मिक शादियां बहुत बड़े पैमाने पर हुई हैं. हालांकि विशेषज्ञ शादियों के बढ़ने की वजह के पीछे राज्य की शैक्षिक और विकसित अप्रोच को जिम्मेदार मानते हैं. तीसरा प्रमुख तथ्य भी ध्यान देने लायक है कि दक्षिण के इस राज्य में इस्लामिक आतंकवाद की वैश्विक जड़े भी गहरी हैं. इकलौता राज्य है जहां आईएसआईएस के लिए सबसे ज्यादा महिला और पुरुषों को रिक्रूट किया गया. जो लोग रिक्रूट किए गए उनमें ज्यादातर दूसरे धर्मों को छोड़कर इस्लाम अपनाने वाले लोग थे. ज्यादातर महिलाएं जिन्हें ब्रेनवाश कर सीरिया और दूसरी जगहों पर जिहाद के लिए भेजा गया.

इसमें अब तालिबान को भी शामिल किया जा सकता है. शशि थरूर ने अफगानिस्तान में जीत के बाद तालिबानी लड़कों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर साझा किया है जिसमें दो आतंकी मलयाली बोलते नजर आ रहे हैं. यानी दोनों संदिग्ध केरल के भी हो सकते हैं. ऐसा है तो मुसलमानों के खिलाफ राज्य में आतंकवाद को लेकर नैरेटिव और मजबूत होने जा रहा है.

साल 2016 में खबर थी कि धर्मांतरण करने वाली 20 महिलाओं को आईएसआईएस ने रिक्रूट किया. वैश्विक मसले भी घृणा को फैला रहे हैं. राज्य का ईसाई समुदाय तुर्की में हागिया सोफिया चर्च को मस्जिद के रूप में बदलने को अब तक पचा नहीं पाया है. मुसलमानों के खिलाफ क्रिश्चियनों की एकजुटता को इन्हीं चीजों ने हवा दी है. हालांकि कुछ लोग राज्य के मुस्लिमों के खिलाफ जो नैरेटिव बना है उसके लिए संघ को ही अकेले जिम्मेदार मानते हैं और दावा करते हैं कि सायरो-मालाबार चर्च जैसे संगठन में संघ के नेताओं का प्रभाव है. झगड़े में संघ और भाजपा का कितना हाथ है यह तो नहीं पता लेकिन राज्य के हालिया विधानसभा चुनाव में भाजपा ने लवजिहाद को मुद्दा बनाया था और सरकार बनने पर इसके खिलाफ कड़े क़ानून लाने की बात कही थी. ये दूसरी बात है कि भाजपा मतदाताओं को प्रभावित करने में नाकाम रही. लेकिन यह करीब करीब साफ़ दिखता है कि लवजिहाद का विरोध करने वाला एक व्यापक ईसाई तबका वाम गठबंधन के साथ ही गया.

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मलिक जिसमें दिखती है केरल की सामजिक सच्चाई

केरल की आबादी में मुसलमानों का हिस्सा 26 प्रतिशत से ज्यादा, ईसाइयों का 18 प्रतिशत से ज्यादा और हिंदुओं की आबादी 54 प्रतिशत से ज्यादा है. करीब 00. 33 प्रतिशत अन्य धर्मों के मनाने वाले लोग भी हैं. हाल में अमेजन प्राइम वीडियो पर एक मलयाली फिल्म आई है मलिक. फहद फासिल स्टारर फिल्म में लगभग इन्हीं क्लैश को कहानी का हिस्सा बनाया गया है. फिल्म के जरिए यह स्थापित करने की कोशिश है कि राजनीतिक वजहों से क्रिश्चियनों को मुसलमानों के खिलाफ भड़काया जा रहा है. केरल के कोस्टल इलाके रमादानपल्ली के एक साधारण मुसलमान युवा अली इक्का (फहद फासिल) की कहानी है. वो ईसाइयों के साथ गोलबंदी कर कमाई के रिसोर्सेज पर कब्जा जमाता है. मछली के कारोबार और समुद्र के रास्ते स्मगलिंग कंट्रोल करता है. मुसलामनों को एकजुट करता है और उनका मसीहा बन बैठता है. हालांकि अली इक्का के सामाजिक काम मुसलमान और ईसाई दोनों के लिए हैं. लेकिन वो मस्जिद और इस्लाम के लिए बहुत समर्पित नजर आता है. इस्लाम में उसकी गहरी आस्था है.

 

वजह जो भी मगर केरल में एक-दूसरे के आमने-सामने हैं मुसलमान-ईसाई

अली इक्का अपने दोस्त डेविड की बहन से शादी करता है. शादी से जो बच्चा होता है उसे डेविड की मर्जी के खिलाफ इस्लाम के मुताबिक पालता-पोसता है. डेविड, अली इक्का के साथ साए की तरह रहने के बावजूद पीछे छूटता जाता है. जबकि दोनों का सफ़र ख़ाक से एकसाथ ही शुरू हुआ था. अली इक्का मुसलमानों की वजह से इतना ताकतवर बन जाता है कि सीधे तौर पर राजनीति को प्रभावित करने की हैसियत में है. उधर, डेविड के मन में असंतोष पैदा होता है और अली इक्का से परेशान नेता डेविड का इस्तेमाल करते हैं. मुसलमानों-क्रिश्चियनों के बीच धार्मिक फसाद होते हैं. लोग मारे जाते हैं. मलयाली फिल्म की कहानी केरल की उस हकीकत के करीब दिखती है जिसका ऊपर जिक्र किया गया है. हालांकि झगड़ों के पीछे की असल वजहें क्या है और कौन सही है कौन गलत यह बहुत दावे से नहीं कहा जा सकता. लेकिन इस सच्चाई से तो बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि धार्मिक वजहों से मुसलमान-ईसाई राज्य में एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में आगे बढ़ रहे हैं.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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