रजनीकांत ने यूं ही मोदी-शाह की तारीफों के पुल नहीं बांधे
जिस तरह कश्मीर मसले पर रजनीकांत ने मोदी-शाह की जोड़ी की तारीफ की है तमिलनाडु की सियासत में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. माना जा रहा है कि आने वाले वक़्त में रजनीकांत और भाजपा तमिलनाडु के खाली वैक्यूम को भर सकते हैं.
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भारतीय सिनेमा में रजनीकांत के लिए कुछ कहना सूरज को दिया दिखाने जैसा है. उनके बारे में तो शायद गूगल भी सबकुछ नहीं जानता. वो कब क्या करेंगे और उससे भी बढ़कर कि वो क्या क्या कर सकते हैं शायद ही इस धरती पर कोई जानता हो. रजनीकांत ने बीते कुछ दिनों में प्रधान मंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की तारीफों के जो पुल बांधे है और जिस तरह वो इशारा कर रहे हैं उससे एक नई बहस की शुरुआत हो गई है. रजनीकांत ने जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाए जाने के ऐतिहासिक फैसले का खुल कर स्वागत किया है. कुछ दिन पहले इस कदम को उठाने वाली मोदी शाह की जोड़ी को उन्होंने कृष्णा अर्जुन की जोड़ी बताया था. अब रजनीकांत ने कहा है कि जिस तरह मोदी सरकार द्वारा कश्मीर मुद्दे की प्लानिंग की गई थी वह एक 'मास्टर स्ट्रेटजी' है.
अगर तमिलनाडु की राजनीती पर एक नज़र डाली जाए तो मिलता है पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता और करूणानिधि के निधन के बाद वहां एक पॉलिटिकल वैक्यूम है. जिसको भरने का भरसक प्रयास DMK सुप्रीमो और करूणानिधि के छोटे बेटे स्टालिन और टीटीवी दिनाकरन कर रहे हैं (दिनाकरन, किसी जमाने में जयललिता की करीबी रही शशिकला के भतीजे हैं)
रजनीकांत ने कश्मीर मसले पर जिस तरफ मोदी-शाह की तारीफ की है उसने तमिलनाडु में एक नई बहस को जन्म दे दिया है
अगर कर्नाटक को हटा दिया जाए तो दक्षिण की राजनीती में भारतीय जनता पार्टी का कोई बड़ा दखल नहीं है. जहां तक तमिलनाडु की बात है वो AIADMK के साथ गठबंधन में है. इस गठबधन को अभी हाल ही में हुए लोक सभा चुनाव में ज़ोर का झटका उस वक़्त लगा जब पार्टी को जनता ने लगभग खारिज करते हुए सिर्फ एक सीट दी. ध्यान रहे कि राज्य में इसी की सरकार है.
इस परिणाम का एक बड़ा कारण है AIADMK में सत्ता को लेकर अंतरकलह है. इस अंतरकलह का असर बीजेपी की उस योजना के लिए घातक है जिसमे उसको दक्षिण में भी फ़तेह हासिल करनी है. ऐसे में अगर रजनीकांत की इस तारीफ को समझा जाये तो यह उनकी बीजेपी से बढ़ती नजदीकियों का परिचायक है. बीजेपी और रजनीकांत दोनों को एक दूसरे की जरुरत हैं. बीजेपी के पास सत्ता है संगठन की ताक़त और समझ है और रजनीकांत का सिर्फ नाम ही काफी है.
वैसे रजनीकांत ने दिसंबर 2017 में राजनीति में पदापर्ण की घोषण की थी मगर तब से अब तक उस दिशा में कोई प्रगति नहीं दिखती. कुल मिला कर मामला ठंडे बास्ते में ही है. उनके प्रसंशक उनके इस नए राजनीतिक अवतार का इंतज़ार कर रहे हैं और रजनीकांत के शब्दों में कहें तो 'भगवान के इशारे' का. रजनीकांत और बीजेपी अगर साथ आते हैं तो दक्षिण की राजनीती बहुत दिलजस्प हो जाएगी. रजनीकांत के कदम के साथ बीजेपी भी तमिल पॉलिटिक्स में अपने कदम रखेगी. और अगर ये कदम जम गए तो किसी भी दल या नेता के लिए इनको उखाड़ना बहुत मुश्किल होगा.
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