New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 23 अगस्त, 2017 02:31 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
  @arvind.mishra.505523
  • Total Shares

तमिलनाडु में पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता के निधन के बाद से ही राजनीतिक उथल-पुथल मची हुई थी. ओ. पन्नीरसेल्वम और ओ. पलानीसामी के बीच चल रही खींचतान का पटाक्षेप दोनों गुटों के विलय के साथ हो गया. और इसके साथ ही सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार में अधिकारों को लेकर चल रही लड़ाई का अंत भी हो गया. लेकिन इन सबके बीच, अन्नाद्रमुक की महासचिव वीके शशिकला को हाशिये पर धकेल दिया गया. AIADMK पार्टी महासचिव वी के शशिकला को पार्टी से निकले जाने की पूरी तैयारी भी हो चुकी है.

aiadmk, Tamilnaduपन्नीरसेल्वम और पलानीसामी, दोनों गुटों में विलय

बिहार का याद ताजा

इन सब घटनाक्रम के बीच पिछले महीने बिहार में भी इसी तरह का राजनीतिक घटनाक्रम हुआ था. यहां नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ सरकार बनाते हुए बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के कुनबे को ठिकाने लगा दिया था. और उसका असर ये हुआ कि अभी तक लालू प्रसाद इसे पचा नहीं पा रहे हैं, और नीतीश कुमार के खिलाफ लालू एंड संस मोर्चा खोले हुए हैं.

nitish kumar, bihar

तमिलनाडु में भी ठीक उसी प्रकार पलानीसामी और ओ पनीरसेल्वम के साथ आने से शशिकला का कुनबा किनारे हो गया. शशिकला के भतीजे दिनाकरण को भी कुछ दिन पहले पार्टी के सह महासचिव पद से पलानीसामी गुट ने प्रस्ताव पारित कर हटा दिया था. पार्टी के बड़े नेता वैदलिंगम के अनुसार पार्टी महासचिव वी के शशिकला को AIADMK पार्टी से निकाल सकती है.

बिहार और तमिलनाडु के राजनीतिक घटनाक्रम में फर्क सिर्फ इतना है कि नीतीश कुमार को महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था और भाजपा के समर्थन से दोबारा मुख्यमंत्री की शपथ लेनी पड़ी थी. लेकिन तमिलनाडु में एक ही पार्टी के दो गुट थे और मुख्यमंत्री को इस्तीफा देने का नौबत नहीं आई. हां, मंत्रिमंडल विस्तार ज़रूर हुआ.

बीजेपी की रणनीति

माना यह जाता है कि बिहार में महागठबंधन को तोड़ने में भाजपा की ही रणनीति थी, जिससे कि वो 2019 के लोकसभा चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत कर सके. ठीक उसी तरह तमिलनाडु में भी दोनों गुटों के विलय के पीछे बीजेपी की रणनीति मानी जा रही है ताकि इस प्रदेश में उसकी पकड़ हो सके. भाजपा के मंसूबे तो उसी समय साफ हो गए थे जब जयललिता के निधन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पन्नीरसेल्वम के साथ गले मिले थे.

NDA का कुनबा बढ़ाना भाजपा का लक्ष्य

बिहार में गठबंधन में दरार डालने के बाद नीतीश कुमार की पार्टी को NDA में शामिल कर लिया गया था और आने वाले समय में केंद्र में इसके शामिल होने की संभावना भी है. ठीक उसी प्रकार, तमिलनाडु में इस विलय के बाद AIADMK का NDA में विलय हो जाएगा. जिसके कारण भाजपा को सियासी फायदा मिलेगा. कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा सांसद AIADMK के पास हैं, ऐसे में विलय के बाद अगर AIADMK का NDA से गठबंधन हो जाता है तो मोदी सरकार को संसद में भी मजबूती मिलेगी.

aiadmk, Tamilnadu

पहले भी AIADMK और नीतीश कुमार NDA का हिस्सा रहे हैं

इससे पहले भी AIADMK NDA सरकार का हिस्सा रह चुकी है. साथ ही बाहर से भी NDA का समर्थन कर चुकी है. 1998-1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के वक्त AIADMK, NDA का हिस्सा थी. इसके बाद 2004-2006 तक भी वो NDA का हिस्सा रही.

नीतीश कुमार 13 साल से NDA के साथ रह चुके हैं. अटलजी की सरकार में वे मंत्री थे, लेकिन सितंबर 2013 में उन्होंने मोदीजी को बीजेपी की कमान मिलने को सेक्युलर नीतियों के खिलाफ बताते हुए एनडीए छोड दी थी.

अभी तक बिहार और तमिलनाडु में भाजपा की रणनीति को सफल कहा जा सकता है लेकिन आने वाले लोकसभा चुनाव में इसे कितना फायदा मिलेगा ये तो वक़्त ही बताएगा. लेकिन अगर AIADMK इसमें शामिल होता है तो NDA शामिल होने वाली 50वीं पार्टी बन चुकी होगी.

ये भी पढ़ें-

नीतीश तो सेट हो गये, मगर मंडल-कमंडल की जंग में बीजेपी को कितना मिल पाएगा?

शशिकला को छोडि़ए, वीवीआईपी जेल देखना है तो हमारे साथ आइए...

लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय