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Updated: 24 दिसम्बर, 2020 07:26 PM
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) कांग्रेस मुख्यालय से राष्ट्रपति भवन तक विरोध मार्च करने वाले थे, लेकिन ऐन वक्त पर दिल्ली पुलिस ने उस जगह धारा 144 लागू कर दिया. पुलिस ने कांग्रेस के उन तीन नेताओं को नहीं रोका जिनके नाम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मुलाकात का समय मिला हुआ था.

राहुल गांधी को जब धारा 144 की बात मालूम हुई तो कांग्रेस मुख्यालय के लॉन में बैठ कर किसी से फोन पर बात करने लगे. फिर प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ करीब आधे घंटे तक नयी रणनीति बनाई.

राहुल गांधी ने तो राष्ट्रपति भवन का रुख कर लिया, लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) नहीं मानीं और मार्च निकालने की कोशिश में आगे बढ़ने को हुईं, तभी दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया. पुलिस प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके साथ आये कांग्रेस नेताओं को पकड़ कर मंदिर मार्ग थाने ले गयी. करीब आधे घंटे बाद प्रियंका गांधी को रिहा भी कर दिया गया.

कुछ देर बाद राहुल गांधी राष्ट्रपति से मिल कर बाहर निकले और मीडिया से मुखातिब हुए. प्रधानमंत्री मोदी पर हमले में वजन लाने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत का भी नाम भी ले डाला - ये राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की कांग्रेस के किसानों के समर्थन देने की एक झलकी भर है.

किसानों (Farmers Protest) की आवाज उठाने के लिए राहुल गांधी लंबी यात्राएं भी कर चुके हैं. किसानों के दिल्ली पहुंचने से पहले पंजाब और हरियाणा में आयोजित कांग्रेस की ट्रैक्टर रैली में भी शामिल हुए और ट्रैक्टर भी चलाते दिखे, लेकिन अभी तो ऐसा ही लग रहा है जैसे वो किसानों के नाम पर मोदी विरोध का एजेंडा ही आगे बढ़ाना चाहते हैं - जैसे लगे हाथ किसान आंदोलन को सपोर्ट करने का कोई शॉर्ट कट तरीका खोज रह हों!

किसानों की बात पर फोकस क्यों नहीं?

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने के बाद वायनाड से कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने भारत-चीन सीमा विवाद की ओर देश का ध्यान खींचने की कोशिश की. जो लोग किसानों के नाम पर राष्ट्रपति से मुलाकात को लेकर राहुल गांधी के बयान की उम्मीद कर रहे होंगे, कांग्रेस नेता ने उनको निराश तो नहीं किया लेकिन थोड़ा इंतजार जरूर कराया.

राहुल गांधी अपना अपना पुराना आरोप फिर से दोहराया और पूछा - "चीन ने भारत की हजारों किलोमीटर की जमीन छीन ली है और प्रधानमंत्री मोदी उसके बारे में क्यों नहीं कुछ कहते?"

फिर राहुल गांधी ने ये समझाने की कोशिश की कि जो भी मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाएगा, वो आतंकवादी घोषित कर दिया जाएगा. अपनी बात को वजनदार बनाने के लिए राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का नाम लेकर दावा किया कि मोदी सरकार के खिलाफ बोला तो वो भी बख्शे नहीं जाने वाले.

rahul gandhi, priyanka gandhi vadraकिसानों के हक को लेकर राहुल गांधी ने राष्ट्रपति से मुलाकात की तो प्रियंका गांधी वाड्रा के मार्च निकालने पर हिरासत में ले लिया गया, बाद में थाने से रिहा कर दिया गया

राहुल गांधी बोले, , “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूंजिपतियों के लिए पैसा बना रहे हैं... जो कोई भी उनके खिलाफ खड़े होने की कोशिश करेगा, आतंकवादी घोषित कर दिया जाएगा - फिर चाहे वो किसान या मजदूर या फिर मोहन भागवत ही क्यों ना हों."

लगे हाथ ये भी बताया कि कैसे देश का नेतृत्व अक्षम हाथों में होने से हिंदुस्तान कमजोर हो रहा है और सिस्टम को तोड़ा मरोड़ा जा रहा है - वो भी महज तीन चार लोगों के लिए.

राहुल गांधी ने प्रियंका गांधी वाड्रा को पुलिस के हिरासत में लेने पर भी रिएक्ट किया - 'हिरासत में लेना और मार-पीटना इस सरकार का यही तरीका है लेकिन हम नहीं डरते इनसे.'

किसानों की बात पर राहुल गांधी ने बताया कि वे तीन लोग करोड़ों किसानों के हस्ताक्षर लेकर उनकी आवाज बन कर राष्ट्रपति से मिलने गये थे, 'सर्दी का मौसम है और पूरा देश देख रहा है कि किसान दुख में है, दर्द में है और मर रहा है - PM को सुनना पड़ेगा.'

कोरोना वायरस को लेकर अपने फरवरी, 2020 वाले बयान की याद दिलाते हुए राहुल गांधी बोले, 'मैं अडवांस में बोल देता हूं. मैंने कोरोना पर बोला था कि नुकसान होने जा रहा है. आज फिर बोल रहा हूं कि किसान और मजदूर के सामने कोई ताकत नहीं चलेगी... इससे बीजेपी आरएसएस नहीं, देश को नुकसान होने जा रहा है.'

किसानों के साथ खड़े होने का दावा करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि सरकार भले लगता हो कि किसान और मजदूर घर चले जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं होने वाला. राहुल गांधी ने मोदी सरकार से संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की है.

राष्ट्रपति से मिलने राहुल गांधी के साथ राज्य सभा में कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद और लोक सभा के नेता अधीर रंजन चौधरी भी गये थे. गुलाम नबी आजाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखने वाले G-23 के नेता बने हुए हैं और फिलहाल कांग्रेस में सुधार के लिये असंतुष्टों की अगुवाई कर रहे हैं. गुलाम नबी आजाद को साथ लेकर जाना राहुल गांधी की मजबूरी भी रही क्योंकि वो कांग्रेस पार्टी के कोई पदाधिकारी भी नहीं है, कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोड़ने के बाद वायनाड से कांग्रेस सांसद के रूप में उनकी पहचान बनी हुई है - कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी की ही चलती होगी, लेकिन सार्वजनिक तौर पर तो औपचारिक स्वरूप भी देखा जाता है.

किसानों से दूरी और आवाज बनने का दावा!

वे जनांदोलन दुर्लभ कैटेगरी में आते हैं जिनको राजनीतिक सपोर्ट हासिल नहीं होता, लेकिन राजनीतिक सपोर्ट भी अगर आधे मन से हो तो आंदोलन मकसद हासिल करने से पहले बीच रास्ते में ही दम तोड़ देता है.

जनांदोलनों के सपोर्ट में राजनीति दल सीधे सीधे शामिल हों कोई जरूरी नहीं है, सपोर्ट किसी भी तरीके से किया जा सकता है. शाहीन बाग के आंदोलन को भी राजनीतिक समर्थन हासिल रहा और अन्ना आंदोलन को भी. शुरू में भले ही इनकार किया गया हो लेकिन धीरे धीरे स्वीकारोक्ति भी सामने आयी ही. जब राजनीतिक दल मुद्दों पर आधारित लोगों के आंदोलन को परदे के पीछे से समर्थन देते हैं तो जरूरतों की कमी आड़े नहीं आती. अन्ना आंदोलन से लेकर हाल के शाहीन बाग तक यही देखने को मिला - और अब किसानों के आंदोलन को भी महीना भर हो रहा है फिर भी किसान मोर्चे पर डटे हुए हैं.

समझ में ये नहीं आता कि कांग्रेस नेतृत्व को किसान आंदोलन से सीधे सीधे जुड़ जाने में दिक्कत क्या है?

ये भी कोई छुपी हुई बात नहीं कि किसानों के आंदोलन को हवा भी पंजाब से ही मिली है और ऐसे कई वाकये हैं जिनसे साबित हो चुका है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का पूरा समर्थन हासिल है. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों का मामला अपने मत्थे पड़ने से हटाने के लिए ऐसी रणनीति बनायी कि सारे किसान नेता पंजाब से दिल्ली पहुंच गये. किसान नेताओं से मुसीबत भी बढ़ी है तो केंद्र की मोदी सरकार के अलावा हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार और दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार की.

किसानों के नाम पर ही मंत्री पद छोड़ने वाली हरसिमरत कौर बादल और उनकी पार्टी अकाली दल को तो ये भी समझ नहीं आया कि कैसे किसान आंदोलन से जुड़े और उनको भरोसा दिलायें कि वो हर कुर्बानी देने को तैयार हैं. अकाली दल नेता प्रकाश सिंह बादल ने भी किसानों के समर्थन में अपना पद्म पुरस्कार लौटा दिया है.

हो सकता है राहुल गांधी को डर हो कि अगर आंदोलन में शामिल होने की कांग्रेस नेता कोशिश किये तो किसान नेता ऐसा करने नहीं देंगे. आंदोलनों के लिए भी ऐसा मुश्किल होता है. आंदोलन के गैर राजनीतिक होने पर तो सब लोग जमे रहते हैं लेकिन जैसे ही उनको पता चलता है कि ये राजनीतिक एजेंडा तो दल विशेष के समर्थक ही टिक पाते हैं और बाकी मौके से निकल लेते हैं.

CAA विरोध के दौरान ऐसा ही हुआ था जब प्रियंका गांधी वाड्रा ने खुद आंदोलन का हिस्सा बनने की कोशिश की तो उनको घुसने नहीं दिया गया. बाद में वो पुलिस एक्शन के शिकार लोगों के घर पहुंच कर साथ खड़े होने का यकीन दिलाती रहीं.

CAA का विरोध भी कृषि कानूनों की तरह ही हो रहा था - और कानून वापस लेने की डिमांड थी. गैर एनडीए सरकारों ने अपने पास उपलब्ध संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए थोड़ी बहुत कोशिश भी की - और बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने भी अपने मैनिफेस्टो में कृषि कानूनों के खिलाफ भी वैसा ही डिटरेंट इंतजाम करने का वादा भी किया था.

लेकिन अभी तक किसान आंदोलन को लेकर कांग्रेस वैसी एक्टिव नजर नहीं आयी है जैसे सीएए के खिलाफ थी. सोनिया गांधी ने रामलीला मैदान में भारत बचाओ रैली कर लोगों को घरों से निकल कर आंदोलन में शामिल होने का आह्वान भी किया था.

रामलीला मैदान की रैली के हफ्ते भर बाद पूरा गांधी परिवार राजघाट भी पहुंचा था और सोनिया गांधी ने वहां आयोजित सभा में संविधान की प्रस्तावना का पाठ भी किया था - लेकिन किसान आंदोलन को लेकर अभी तक सिर्फ बयानबाजी और राष्ट्रपति से मुलाकात हो हुई है.

राहुल गांधी को नहीं लगता कि अगर किसानों के बीच न सही तो सीएए विरोध की तरह राजघाट या जंतर मंतर पर बैठ कर अनशन ही कर लेना चाहिये. आखिर राहुल गांधी किसान आंदोलन में शॉर्ट कट क्यों तलाश रहे हैं - क्या सिर्फ इसलिए कि ये पंजाब से कंट्रोल हो रहा है और रिमोट कैप्टन अमरिंदर के हाथ में है? अगर ये काम कैप्टन अमरिंदर सिंह की जगह कोई कांग्रेस नेता की पहल होती तो भी क्या राहुल गांधी को ऐसा ही परहेज रहता?

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