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Updated: 25 जनवरी, 2023 08:32 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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कांग्रेस छोड़ने वालों की लिस्ट में एक नया नाम शामिल हो गया है. अनिल कुमार एंटनी - ये नाम अपनी वजह से तो नहीं, लेकिन अपने पिता के नाम की वजह से खास हो जाता है, ये कांग्रेस नेतृत्व के बेहद भरोसेमंद नेताओं, और सोनिया गांधी के करीबियों में से एक एके एंटनी के बेटे हैं.

एके एंटनी अपने हिसाब से राजनीतिक वीआरएस ले चुके हैं, लेकिन हाल ही में कांग्रेस के लिए सलाहियत भरा उनका एक बयान काफी चर्चा में रहा. मोटे तौर पर समझने की कोशिश करें तो एके एंटनी ने कांग्रेस नेतृत्व को मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति छोड़ कर हिंदुत्व की राजनीति पर फोकस करने के लिए कहा था. एंटनी ने अपनी तरफ से ये भी समझाने की कोशिश की कि ये वक्त की जरूरत भी है.

एंटनी के बेटे अनिल कुमार ने कांग्रेस छोड़ने की वजह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 2002 के गुजरात दंगों को लेकर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को लेकर अपने स्टैंड को लेकर पार्टी का रवैया बताया है. केंद्र की बीजेपी सरकार ने डॉक्यूमेंट्री पर पाबंदी लगा दी है. फिर भी कुछ जगहों पर इसे दिखाने के प्रयास चल रहे हैं. सोशल मीडिया पर पर लोग इंटरनेट आर्काइव का लिंक शेयर कर रहे हैं, लेकिन जब तक लोग देखने की कोशिश करते हैं, वो डिलीट हो जाता है. ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस की लोक सभा सांसद महुआ मोइत्रा ने एक ट्वीट में बताया है कि टेलीग्राम पर डॉक्यूमेंट्री का ऑडियो सुना जा सकता है.

अनिल कुमार एंटनी का आरोप है कि डॉक्टूमेंट्री को लेकर उन पर अपना ट्वीट डिलीट करने के लिए दबाव बनाया जा रहा था. एक ट्वीट में अनिल एंटनी ने डॉक्टूमेंट्री के जरिये प्रचारित किये जा रहे विचार को देश की संप्रभुता को खतरा बताया था. अनिल एंटनी ने ब्रिटेन के विदेश मंत्री रहे जैक स्ट्रा की मंशा की तरफ, उनके इराक युद्धा का मास्टरमाइंड बताते हुए डॉक्यूमेंट्री की आलोचना की थी.

अनिल एंटनी ने डॉक्यूमेंट्री को लेकर ट्वीट डिलीट करने वालों के दबाव का जिक्र करते हुए लिखा है, 'दोमुंहापन इसी को कहते हैं... जिंदगी चलती रहती है.' अनिल अंटोनी ने ये कदम ऐसे वक्त उठाया है, जब कांग्रेस से जुड़े कई संगठनों ने केरल डाक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की घोषणा कर रखी है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे नेताओं ने कांग्रेस भले ही बाद में और अलग अलग समय पर छोड़ी हो, लेकिन मन तो उसी दिन बना लिया था जब धारा 370 पर कांग्रेस की कार्यकारिणी में विचार विमर्श चल रहा था. ऐसे कई नेता रहे जो जम्मू-कश्मीर पर कांग्रेस के स्टैंड से सहमत नहीं थे. मीटिंग में गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) की बातों पर आपत्ति जताने वाले नेताओं को पी. चिदंबरम जैसे नेता समझाने की कोशिश कर रहे थे, जबकि कुछ नेता जैसे तैसे चुप कराने की कोशिश कर रहे थे.

तब गुलाम नबी आजाद को राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सहित पूरे गांधी परिवार का समर्थन हासिल था, लेकिन वो दिन भी आ ही गया जब राहुल गांधी को ही कांग्रेस के लिए पनौती जैसा पेश करते हुए कश्मीरी नेता ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी. ये चिट्ठी G-23 वाली चिट्ठी से ज्यादा खतरनाक थी, क्योंकि वही गुलाम नबी आजादा का त्याग पत्र भी था.

अपने पत्र में ही गुलाम नबी आजाद ने पार्टी नेतृत्व को भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) से पहले कांग्रेस जोड़ो यात्रा शुरू करने की सलाह दी थी - और अब ये भी देखने को मिल रहा है कि गुलाम नबी आजाद से राहुल गांधी माफी भी मांग रहे हैं.

आखिर क्या वजह हो सकती है जो राहुल गांधी बिना किसी संकोच के सरेआम गुलाम नबी आजाद से माफी मांग रहे हैं. कांग्रेस छोड़ने वाले बाकी नेताओं को छोड़ भी दें तो ऑपरेशन ब्लू स्टार को लेकर राहुल गांधी से बार बार माफी मांगने की बात पूछी गयी, लेकिन वो हमेशा ही टाल देते रहे. जम्मू-कश्मीर से पहले भारत जोड़ो यात्रा को लेकर राहुल गांधी पंजाब में थे, तब भी ये सवाल उठा था. राहुल गांधी चुप रहे. चूंकि राहुल गांधी की फितरत ऐसी नहीं रही है, इसीलिए ज्यादा हैरानी भी हो रही है.

हैरान करने वाली एक बात और है. राहुल गांधी ने कठुआ गैंग रेप को लेकर विवादों में रहे चौधरी लाल सिंह से भी माफी मांगी है, जिनको भारत जोड़ो यात्रा में बुलाये जाने के विरोध में कांग्रेस की प्रवक्ता दीपिका पुष्कर नाथ ने इस्तीफा दे दिया था.

आजाद से माफी मांगने का मतलब?

सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख कर गुलाम नबी आजाद ने राहुल गांधी के बारे में जो कुछ कहा था, उसके मुकाबले तो हिमंत बिस्वा सरमा जैसे नेताओं की टिप्पणी फीकी लगती है. कहने को तो ज्योतिरादित्य कांग्रेस और नेतृत्व को लेकर कुछ न कुछ कहा ही है, लेकिन राहुल गांधी पर सीधे सीधे कोई व्यक्तिगत टिप्पणी तो कभी नहीं की.

rahul gandhi, ghulam nabi azadये राहुल गांधी को ताबड़तोड़ यू टर्न लेने लगे - ऐसे तो कभी न थे वो!

ये जरूर है कि असम के मुख्यमंत्री राहुल गांधी की बातों से लगा है कि राहुल गांधी मिलने आने वाले कांग्रेस नेताओं से गुलामों सा व्यवहार करते हैं. कहने का मतलब ये रहा है कि जब कांग्रेस नेता अपनी समस्यायें सुना रहे होते हैं तो उससे ज्यादा दिलचस्पी वो पिडी या किसी भी अपने पालतू जानवरों को बिस्कुल खिलाने में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं.

राहुल गांधी के कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनने के बाद से ही गुलाम नबी आजाद ने उनकी जिन हरकतों का जिक्र किया था, वैसा तो शायद ही किसी कांग्रेस नेता ने कभी कहने की हिम्मत जुटा पायी हो. कहने की कौन कहे, कई तो ऐसे भी कांग्रेस नेता होंगे जो वैसी बातें सोचने तक की हिम्मत नहीं जुटा पाते होंगे.

गुलाम नबी आजाद का वो 5 पन्नों का पत्र: गुलाम नबी आजाद ने पहली चिट्ठी तो कांग्रेस के लिए एक अदद स्थायी अध्यक्ष को लेकर लिखी थी, लेकिन दूसरी चिट्ठी में साफ कर दिया था कि कांग्रेस में सीनियर नेताओं की कद्र करने वाला कोई नहीं है - और सारी बातों के लिए वो राहुल गांधी को ही जिम्मेदार ठहरा रहे थे.

मनमोहन सिंह सरकार में दागी नेताओं वाले ऑर्डिनेंस की कॉपी फाड़ने से लेकर कई घटनाओं का जिक्र किया था, वो कांग्रेस की दुर्गति और हर फजीहत के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया था. गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि सोनिया गांधी ने जो सिस्टम बनाया था, राहुल गांधी ने सब कुछ बर्बाद कर दिया.

गुलाम नबी आजाद के भी शुरू में वैसे ही बीजेपी में शामिल होने की बात चलने लगी थी, जैसे पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की. लेकिन गुलाम नबी आजाद ने भी कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह अपनी अलग राजनीतिक पार्टी ही बनायी है. बाद में कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी शामिल हो गये - जम्मू कश्मीर में चुनाव होने के संकेत तो मिलने लगे हैं, लेकिन गुलाम नबी आजाद के मन में क्या चल रहा है सार्वजनिक तौर पर किसी को अभी तो नहीं मालूम है.

माफीनामे में राहुल गांधी ने क्या कहा: राहुल गांधी की पहल पर कई कश्मीरी नेताओं को भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने का न्योता दिया गया था. ऐसे नेताओं में गुलाम नबी आजाद और चौधरी लाल सिंह भी शामिल थे.

गुलाम नबी आजाद को न्योता दिये जाने को लेकर जब राहुल गांधी से सवाल पूछा गया तो वो उनके सम्मान की बात और तारीफ करने लगे. बोले, गुलाम नबी आजाद की पार्टी के ज्यादातर लोग तो हमारे साथ बैठे थे... नब्बे फीसदी लोग तो कांग्रेस में शामिल हो गये... बस उस तरफ सिर्फ गुलाम नबी आजाद रह गये हैं... मैं गुलाम नबी आजाद का सम्मान करता हूं.

सम्मान की बात तक तो सब ठीक था, लेकिन उसके बाद राहुल गांधी ने जो कहा, वो था - 'अगर मैंने उनको किसी तरह से कोई दुख पहुंचाया हो, तो मैं उनसे माफी मांगता हूं.'

गुलाम नबी आजाद होने का मतलब: ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने पर शुरू में तो राहुल गांधी ने सिर्फ इतना ही कहा था कि वो दबाव में हैं. और ये भी कि उनको अपने फैसले पर अफसोस होगा.

बाद में राहुल गांधी ने कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं के बारे में कहा कि वे लोग डरते हैं. और ऐसे डरपोक नेताओं की कांग्रेस में कोई जरूरत नहीं है. हां, बाहर से निडर नेताओं को कांग्रेस में लाये जाने की कोशिश जरूर होनी चाहिये.

अब तक तो यही समझ में आया है कि राहुल गांधी किसी की भी परवाह नहीं करते. राजनीतिक नफे नुकसान की भी उनको शायद ही कभी परवाह रही हो. अगर किसी के प्रति राहुल गांधी नरम दिल दिखाते तो पहला नंबर ज्योतिरादित्य सिंधिया का आता - लेकिन वो तो ऐसे नेता से माफी मांग रहे हैं जिसने उनके बारे भला बुरा क्या क्या न कहा!

आखिर फिर गुलाम नबी आजाद पर राहुल गांधी के इतने मेहरबान होने की क्या वजह हो सकती है?

कांग्रेस को तो हर राज्य में कोई न कोई कांग्रेसी ही खत्म करने में लगा है. कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह नया नाम सूची में गुलाम नबी आजाद का भी जुड़ रहा है. कांग्रेस छोड़ कर ही पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और महाराष्ट्र में शरद पवार अपनी जमीन तैयार किये, और धीरे धीरे वे कांग्रेस को खत्म करते गये.

जम्मू-कश्मीर में भी गुपकार गठबंधन अपेक्षाकृत ज्यादा एकजुट है, और सीधे बीजेपी से टक्कर ले रहा है. डीडीसी चुनावों के नतीजे इस बात के सबूत हैं. गुलाम नबी आजाद अभी तक तो गुपकार गठबंधन से अलग ही नजर आये हैं, लेकिन कांग्रेस के पास कोई चेहरा भी तो नहीं बचा है.

राहुल गांधी के गुलाम नबी आजाद से माफी मांगने के कई अजीब पहलू हैं. कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी और आम आदमी पार्टी की ही तरह गुलाम नबी आजाद की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी को भी बीजेपी की बी टीम बताया है - ऐसे में राहुल गांधी के इस कदर झुकने का क्या मतलब हो सकता है?

धारा 370 पर कांग्रेस का स्टैंड: जम्मू-कश्मीर पर कांग्रेस का स्टैंड को लेकर राहुल गांधी के बयान को समझें तो अब भी वही है जिसे तब कांग्रेस में रहते गुलाम नबी आजाद ने ड्राफ्ट किया होगा - या ड्राफ्ट को लेकर सहमति दी होगी.

पूछे जाने पर राहुल गांधी का कहना रहा, कांग्रेस की वर्किंग कमेटी के प्रस्ताव को पढ़ लिजिये - कांग्रेस का अब भी वही स्टैंड है.

लाल सिंह से माफी क्यों?

गुलाम नबी आजाद की ही तरह चौधरी लाल सिंह भी कभी कांग्रेस में ही हुआ करते थे, लेकिन 2014 में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने पर वो बीजेपी में चले गये. जब महबूबा मुफ्ती के साथ बीजेपी की सरकार बनी तो लाल सिंह को मंत्री भी बनाया गया - लेकिन कठुआ गैंग रेप को लेकर उनको कैबिनेट से हटा भी दिया गया.

बीजेपी छोड़ कर लाल सिंह ने अपनी पार्टी बना ली. डोगरा स्वाभिमान संगठन. हाल में लाल सिंह तब विवाद में आये जब भारत जोड़ो यात्रा में उनको शामिल किये जाने को लेकर कांग्रेस प्रवक्ता दीपिका पुष्कर नाथ ने इस्तीफा दे दिया. दीपिका पुष्कर नाथ की तरफ से सीधे राहुल गांधी को मैसेज था कि वो लाल सिंह को यात्रा में बुलाये जाने का विरोध कर रही हैं - और उनके इस्तीफे की वजह भी वही हैं.

अव्वल तो लाल सिंह को भारत जोड़ो यात्रा में बुलाया जाना ही अजीब लगा था. जिस कठुआ गैंग रेप के मुद्दे पर बीजेपी की गठबंधन सरकार ने लाल सिंह को मंत्रिमंडल से हटा दिया था, राहुल गांधी को उनके साथ मोहब्बत की दुकान खोलने की जरूरत पड़ गयी?

कठुआ गैंगरेप को लेकर तो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने इंडिया गेट पर कैंडल लाइट प्रोटेस्ट भी किया था - फिर उसी कठुआ गैंग रेप को लेकर विवादों में रहे लाल सिंह से राहुल गांधी माफी क्यों मांगने लगे हैं?

ठीक है, राहुल गांधी की बात मान लेते हैं कि जम्मू-कश्मीर और धारा 370 को लेकर उनका स्टैंड नहीं बदला है, लेकिन क्या कठुआ गैंग रेप पर बदल गया है? कांग्रेस का रुख जानने के लिए राहुल गांधी के अगले बयान का इंतजार है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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