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Updated: 08 अगस्त, 2021 07:54 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की राजनीति जिंदगी में उतार-चढ़ाव ही नहीं कई ऐसे पड़ाव भी आते हैं, जिन्हें उनके लिए भूलना ही बेहतर होता है. अक्सर ही कुछ वक्त बीतने के बाद राहुल गांधी को नये अवतार में देखने को मिलता है - और हर बार वो नये एनर्जी लेवल के साथ खुद को प्रोजेक्ट भी करते हैं. कुछ दिन तक तो रफ्तार बनी रहती है, लेकिन फिर रूटीन में आने के बाद बस ट्विटर तक सिमट कर रह जाती है.

ट्विटर का ताजा एक्शन भी राहुल गांधी के लिए बड़ा सबक है. विपक्षी खेमे (Opposition Unity) के बीच जब से राहुल गांधी एक्टिव हुए हैं, रफ्तार कुछ ज्यादा ही तेज हो चली है. रफ्तार में एक बड़ा रिस्क हमेशा होता है - सावधानी घटी और दुर्घटना घटी.

संसद के सड़क के रास्ते जंतर मंतर तक विपक्ष को साथ लेकर आगे आगे चल रहे राहुल गांधी अचानक दिल्ली में ही एक ऐसे पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचते हैं जो अपनी 9 साल की बच्ची खो चुका होता है. परिवार का आरोप है कि बेटी के साथ रेप के बाद हत्या कर दी गयी - और फिर आरोपियों ने ही अंतिम संस्कार भी कर दिया. बहरहाल, पुलिस हरकत में आती है और चारों आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लेती है.

राहुल गांधी हों या फिर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा, ऐसे मौकों पर पीड़ित परिवार के साथ खड़े नजर आते हैं. कठुआ और उन्नाव रेप के खिलाफ इंडिया गेट पर कैंडल मार्च तो भाई-बहन ने मिल कर किया ही था, हाथरस तक भी प्रशासनिक रोक के बावजूद पहुंच ही गये - लेकिन हड़बड़ी में कई बार हादसे भी हो जाते हैं.

दिल्ली के पीड़ित परिवार के साथ मुलाकात की तस्वीर ट्विटर पर शेयर करना भी रफ्तार भरी राजनीति के चलते हुआ हादसा ही लगता है. भले ही राहुल गांधी की टीम में से किसी ने वो तस्वीर ट्विटर पर शेयर की है, लेकिन जिम्मेदारी तो राहुल गांधी की ही बनती है - और वो ट्वीट हटा कर ट्विटर ने एक्शन के साथ राहुल गांधी को आगे के लिए नसीहत भी दी है.

ममता बनर्जी के दिल्ली पहुंचते ही जिस तरह राहुल गांधी एक्टिव हुए, तृणमूल कांग्रेस नेता के लौट जाने के बाद भी उसी रफ्तार से विपक्ष के नेताओं का नेतृत्व करते नजर आ रहे हैं - और 9 अगस्त को वो जम्मू-कश्मीर के दौरे पर जाने वाले हैं.

ये तो तय है कि जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) की धरती से भी राहुल गांधी धारा 370 पर बीजेपी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के कदम के खिलाफ अपना स्टैंड दोहराएंगे - मुश्किल ये है कि अगर अपने ट्रैक रिकॉर्ड के अनुसार कोई नया विवाद खड़ा कर दिये तो फिर से रफ्तार पर ब्रेक लग जाएगा - वो भी ऐसे में जबकि यूपी और पंजाब सहित पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने में करी छह महीने का ही वक्त बचा है.

राहुल गांधी का कश्मीर दौरा

राहुल गांधी एक खास अंतराल के बाद रफ्तार तो पकड़ लेते हैं, लेकिन फिर सावधानी हटते ही दुर्घटना भी घट जाती है. किसी भी दुर्घटना के बाद उबरने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है. ये वक्त किसी काम में एक कदम आगे बढ़ाकर दो कदम पीछे खींचने जैसा हो जाता है और नतीजों में पीछे रह जाना पड़ता है.

rahul gandhi2019 में विपक्षी नेताओं के साथ जम्मू-कश्मीर जा रहे राहुल गांधी को श्रीनगर एयरपोर्ट से ही दिल्ली भेज दिया गया था - धारा 370 खत्म किये जाने के बाद कांग्रेस नेता का पहली बार कार्यक्रम बना है.

ट्विटर के राहुल गांधी की पोस्ट हटाये जाने के बाद वो दो साल बाद फिर से जम्मू-कश्मीर के दौरे पर जाने वाले हैं - 9 अगस्त को. विपक्षी नेताओं को मोदी सरकार और बीजेपी के खिलाफ एकजुट करने में जुटे होने के बावजूद इस बार वो अकेले जा रहे हैं. 2019 में वो विपक्षी नेताओं को साथ लेकर जा रहे थे, लेकिन एयरपोर्ट से ही दिल्ली भेज दिये गये थे.

विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में राहुल गांधी को एक्टिव ही नहीं, काफी हद तक सफल भी देखा जा रहा है. ये ठीक है कि राहुल गांधी की विपक्षी दलों के साथ बैठक में ज्यादातर पार्टियों के बड़े नेता नहीं होते और बीएसपी-आप जैसे राजनीतिक दल दूरी भी बना लेते हैं, लेकिन माना जा रहा है कि विपक्षी नेताओं के बीच राहुल गांधी अपना मैसेज देने में कामयाब रहे हैं.

राहुल गांधी को लेकर विपक्षी खेमे में पुरानी धारणा बदलने लगी है. बताते हैं कि वो सभी के साथ सम्मानजनक तरीके से पेश आते हैं और अपनी बात कहने के साथ साथ उनकी राय जानने की भी कोशिश करते हैं. कोशिश होती है कि विपक्ष के नेताओं को भी अपनी बात कहने का पूरा मौका मिले - ऐसी कई बैठकों के बाद राहुल गांधी सबके साथ मीडिया के सामने आते हैं और अपनी बात कहते हैं. बातें तो नयी नहीं होतीं, लेकिन उनके आस पास कांग्रेस के कुछ नेताओं के अलावा अब विपक्षी चेहरे भी नजर जरूर आते हैं - और ये कोई मामूली बात नहीं है.

राहुल गांधी का जम्मू-कश्मीर दौरा एक पंथ दो काज टाइप ही है. सूबे के कांग्रेस प्रमुख गुलाम अहमद मीर के बेटे की शादी है - और उसमें शिरकत के बाद राहुल गांधी पार्टी के स्टेट मुख्यालय का उद्घाटन भी करने वाले हैं. जम्मू-कश्मीर में भी कांग्रेस के भीतर दो गुट बने हुए हैं - एक तो गुलाम नबी आजाद का है और दूसरा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर का, जो राहुल गांधी के होस्ट बनने वाले हैं.

विपक्षी खेमे हाल तक भाव नहीं मिलने से परेशान रहे राहुल गांधी के लिए जम्मू-कश्मीर दौरा बड़ा ही अहम और नाजुक होगा - अब तक तो यही देखा गया है कि राहुल गांधी ऐसे मौकों पर कोई न कोई ऐसी बात कह देते हैं कि बस बवाल मच जाता है. राहुल गांधी के सलाहकारों को ध्यान रखना होगा कि जम्मू-कश्मीर पर अपने बयान से कोई विवाद खड़ा कर वो कोई नयी मुसीबत न मोल लें.

राहुल के कश्मीर एजेंडे में क्या है

कांग्रेस का स्टैंड जम्मू-कश्मीर पर पुरानी स्थिति बहाल करने की रही है. हाल ही में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुलाकात के लिए कश्मीरी नेताओं को दिल्ली बुलाया था, तब भी कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद पहले स्टेटहुड और फिर चुनाव के पक्षधर दिखे थे.

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह तो यहां तक कह चुके हैं कि अगर कांग्रेस की केंद्र में सरकार बनी तो जम्मू-कश्मीर में पुरी स्थिति पूरी तरह बहाल कर दी जाएगी और कांग्रेस ने आधिकारिक तौर पर सामने आकर इसे दिग्विजय सिंह की निजी राय जैसा कोई बयान भी जारी नहीं किया है.

कुछ दिन पहले गुलाम नबी आजाद भी जम्मू-कश्मीर गये थे, लेकिन साथियों के साथ वो मोदी सरकार के पक्ष में ही खड़े आये - और उनके इस एक्ट को कांग्रेस में बने G23 की बगावती गतिविधियों से ही जोड़ कर देखा और समझा गया. कांग्रेस के G23 ग्रुप के नेता भी गुलाम नबी आजाद ही हैं.

2019 में जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के बाद जब राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर के दौरे पर निकले थे तो उनके साथ आजाद के अलावा कांग्रेस के साथ साथ विपक्ष के भी कई नेता रहे - केसी वेणुगोपाल, आनंद शर्मा, सीताराम येचुरी, तिरुचि सिवा, डी राजा, माजिद मेमन, मनोज झा और शरद यादव के साथ साथ तब तृणमूल कांग्रेस नेता के रूप में दिनेश त्रिवेदी भी थे. दिनेश त्रिवेदी अब बीजेपी में हैं.

तब राहुल गांधी का कहना रहा कि वो तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बुलावे पर जा रहे थे, लेकिन सबको श्रीनगर एयरपोर्ट से बाहर जाने की अनुमति नहीं मिली थी. दिल्ली लौट कर राहुल का कहना था, 'हम यह जानना चाहते थे कि लोग किस स्थिति में हैं और अगर हम उनकी मदद कर सकते हैं तो करेंगे, लेकिन दुर्भाग्य से हमें हवाई अड्डे से आगे नहीं जाने दिया गया. हमारे साथ के प्रेस लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया गया...'

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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