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Updated: 05 दिसम्बर, 2021 10:52 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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यूपी के जोरदार चुनावी माहौल में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने निजी कार्यक्रम बना कर अलग ही सस्पेंस पैदा कर दिया है. प्रयागराज के साथ साथ राहुल गांधी के वाराणसी का भी कार्यक्रम बनता है, लेकिन पहले से ही बता दिया जाता है कि चुनावी राजनीति से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं रहने वाला है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे से हफ्ते भर पहले राहुल गांधी का वाराणसी पहुंचने पर कुछ सीनियर नेता स्वागत की भी बातें बतायी जाती हैं, लेकिन लगे हाथ ये भी साफ किया जाता है कि कोई भी राजनीतिक मुलाकात या मीटिंग नहीं होनी है.

मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि राहुल गांधी ने प्रयागराज में एक शादी समारोह में शामिल होने के बाद वाराणसी (Prayagraj Varanasi visit) में रात्रि विश्राम का कार्यक्रम बना चुके हैं - और ये भी संयोग ही है कि 5 दिसंबर को ही केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का भी अमेठी का कार्यक्रम बना हुआ है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 दिसंबर को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के लिए वाराणसी जाने वाले हैं.

हैरानी की बात ये है कि राहुल गांधी से मिलने की इजाजत स्थानीय नेताओं को भी पहले से नहीं दी जाती है, जबकि इसी साल अगस्त में कांग्रेस नेता के जम्मू-कश्मीर दौरे में अलग ही नजारा देखा गया था - राहुल गांधी ने कांग्रेस नेता के बेटे के शादी समारोह में हिस्सा तो लिया ही, जम्मू-कश्मीर के कांग्रेस दफ्तर का उद्घाटन भी किया था.

लेकिन अगर जम्मू-कश्मीर में शादी समारोह के बाद राहुल गांधी कांग्रेस दफ्तर का उद्घाटन कर चुके हों तो यूपी के चुनावी (UP Election 2022) माहौल में चुपचाप आने जाने पर सवाल तो खड़े होंगे ही - वो भी प्रयागराज और वाराणसी जैसे दो महत्वपूर्ण शहरों की जब बात हो.

सवाल उठने की एक बड़ी वजह ये भी है कि 2019 के आम चुनाव के बाद से राहुल गांधी को अमेठी से परहेज करते देखा गया है - और इसी साल हुए विधानसभा चुनावों के दौरान उत्तर और दक्षिण भारतीय लोगों की राजनीतिक समझ की तुलना कर विवादों में फंस चुके हैं.

जैसे रस्मअदायगी हो रही हो

राहुल गांधी के यूपी दौरे को लेकर ये कहना ठीक नहीं होगा कि वो यूपी चुनाव से दूरी बना रहे हैं. क्योंकि तकनीकी तौर पर राहुल गांधी ने ऐसा ही किया है. लखनऊ में शिक्षकों की भर्ती में घोटाले के आरोपों के साथ हुए विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस लाठीचार्ज को राहुल गांधी ने यूपी विधानसभा चुनावों से जोड़ दिया है.

rahul gandhi, priyanka gandhi vadra, smriti iraniराहुल गांधी आखिर किस बात को लेकर यूपी चुनाव से दूरी बना रहे हैं?

राहुल गांधी प्रदर्शन कर रहे लोगों पर पुलिस लाठीचार्ज का वीडियो ट्विटर पर शेयर करते हुए यूपी के लोगों से अपील की है कि जब बीजेपी के लोग वोट मांगने आयें तो वे ये घटना न भूलें. उत्तर प्रदेश में 69 हजार सहायक शिक्षकों की भर्ती में गड़बड़ी के आरोप लगे हैं और उसी के विरोध में जब नौजवान लखनऊ में कैंडल मार्च निकालने पहुंचे, तभी पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया. राहुल गांधी की ही तरह उनके चचरे भाई लेकिन बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने वीडियो शेयर कर पुलिस एक्शन पर ऐतराज किया है. वरुण गांधी ने लाठीचार्ज का विरोध किसानों वाले अंदाज में ही किया है. जैसे मुजफ्फरनगर में जुटे किसानों का वीडियो साझा करते हुए वरुण गांधी ने ध्यान दिलाया था कि 'ये अपने ही खून हैं' - अब लिखा है, 'ये भी मां भारती के लाल हैं.' वरुण गांधी का ये अंदाज देख कर समझना मुश्किल हो जाता है कि उनके निशाने पर बीजेपी नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह हैं या सिर्फ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ?

लेकिन लखनऊ के लाठीचार्ज पर राहुल गांधी का ये रिएक्शन वैसा ही लग रहा है जैसे नगालैंड में हुई फायरिंग में लोगों की मौत पर वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से पूछ रहे हैं - 'गृह मंत्रालय कर क्या रहा है?'

यहां तक कि किसानों की मौत का रिकॉर्ड न होने के मुद्दे को भी जिस तरीके से राहुल गांधी ने उठाया है, उसमें पंजाब चुनाव को लेकर कैंपेन की झलक मिलती है. किसान आंदोलन के दौरान हुई किसानों की मौत की सूची के साथ राहुल गांधी ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस किया था, सिर्फ एक ट्वीट नहीं. साथ ही, राहुल गांधी ने ये भी बताया कि पंजाब सरकार ने किसानों के लिए क्या क्या किया है.

राहुल गांधी कह रहे हैं कि जो काम मोदी सरकार को करना चाहिये वो पंजाब की कांग्रेस सरकार कर रही है. राहुल का कहना था कि मारे गये किसानों के परिवारों को मुआवजा देना पंजाब सरकार का काम नहीं था लेकिन कांग्रेस सरकार ने सरकारी नौकरियां तक दी हैं - और अगर सरकार के पास किसान आंदोलन के दौरान मारे गये किसानों की कोई सूची नहीं है तो वो पंजाब सरकार या कांग्रेस से लिया जा सकता है.

सवाल ये है कि आखिर क्यों राहुल गांधी को पंजाब और यूपी चुनाव में फर्क लगने लगा है - खास वजह अमेठी के लोगों से नाराजगी हो सकती है या कुछ और?

ये कौन सी राजनीति हुई

1. शादी समारोह और राजनीति: अगस्त, 2021 की ही बात है, राहुल गांधी जम्मू-कश्मीर भी एक शादी में ही शामिल होने गये थे. गुलाम अहमद मीर के बेटे की शादी में - लेकिन अगले ही दिन कांग्रेस के दफ्तर का भी उद्घाटन किये थे. गुलाम अहमद मीर जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं - और हाल ही में खबर आयी थी कि करीब दो दर्जन नेताओं ने कांगेस नेता गुलाम नबी आजाद के सपोर्ट में मीर के खिलाफ बगावत की और सोनिया गांधी के साथ साथ सूबे में कांग्रेस की प्रभारी रजनी पटेल को इस्तीफा भेज दिया. फिर तो दिल्ली में जैसे हड़कंप ही मच गया.

सोनिया गांधी ने कमान संभाली और आजाद, मीर और पटेल से संपर्क बना कर मामले को रफा दफा करने की कोशिश में जुट गयीं. अब तो आलम ये है कि गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर के तूफानी दौरे पर हैं और ऐसा लग रहा है जैसे चीजें आलाकमान के कंट्रोल से बाहर जाने लगी हों.

हाल ही में गुलाम नबी आजाद ने कहा था कि उनको नहीं लगता कि अगले आम चुनाव में कांग्रेस 300 सीटें ला पाएगी - और इसीलिए ये भी नहीं लगता कि जम्मू-कश्मीर में कभी धारा 370 की पुरानी स्थिति बहाल हो पाएगी.

2. राहुल गांधी दखल दे रहे हैं या नहीं: कांग्रेस की तरफ से एक मैसेज ये भी देने की कोशिश हो रही है कि चूंकि प्रियंका गांधी को यूपी चुनाव को लेकर पूरी छूट दी गयी है, इसलिए राहुल गांधी दखल नहीं देना चाहते. जब प्रियंका गांधी वाड्रा ने यूपी में 40 फीसदी महिलाओं को टिकट दिये जाने की घोषणा की थी तो कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत का कहना रहा कि प्रभारी होने के नाते फैसला प्रियंका गांधी वाड्रा के स्तर पर लिया गया है. कांग्रेस ऐसे सवालों से बचने की कोशिश कर रही थीं कि क्या कांग्रेस दूसरे राज्यों के चुनावों में भी ऐसा करने का प्लान कर रही है?

तभी राहुल गांधी का बयान आया कि ये तो अभी शुरुआत है - और फिर प्रियंका गांधी भी अगले आम चुनाव में महिलाओं को 50 फीसदी टिकट दिये जाने जैसी बातें करने लगी हैं. आखिर इतने कंफ्यूजन बनाकर क्यों रखती है?

3. निजता के नाम पर कोई राजनीति तो नहीं: राहुल गांधी को पूरा अधिकार है कि वो अपना कोई भी दौरा या कार्यक्रम चाहें तो निजी या सार्वजनिक रख सकते हैं. वैसे भी अगर सोनिया गांधी का विदेश दौरा होता है और राहुल गांधी भी साथ में जाते हैं, लेकिन कांग्रेस नेता निजता की दुहाई देते हुए ज्यादा जानकारी देने से मना कर देते हैं तो कोई भी सवाल नहीं पूछने नहीं जाता - और ऐसा हमेशा ही हुआ है.

लेकिन ऐसे में जबकि प्रियंका गांधी यूपी चुनाव के लिए फील्ड में उतरी हुई हों और कांग्रेस को खड़ा करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हों, राहुल गांधी का यूपी की राजनीति से दूरी बनाना थोड़ा अजीब लगता है - क्योंकि हाथरस के बाद लखीमपुर खीरी भी तो दोनों भाई-बहन साथ ही गये थे!

ऐसे में सवाल तो ये भी उठता है कि क्या राहुल गांधी उत्तर और दक्षिण भारतीय लोगों की राजनीतिक समझ की तुलना पर मचे विवाद के चलते यूपी की राजनीति से परहेज कर रहे हैं? या राहुल गांधी अमेठी के लोगों से अब भी इतने खफा हैं कि एक बार जाने के बाद से हमेशा के लिए मुंह मोड़ लिया है - और अब अमेठी के लोगों से नाराजगी का बदला पूरे यूपी के लोगों से लेने लगे हैं?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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