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Updated: 01 जुलाई, 2016 12:25 PM
बालकृष्ण
बालकृष्ण
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क्रिकेट के मैच में कई बार, कौन बैट्समैन आउट हो गया, इससे ज्यादा अहम ये हो जाता है कि वो किस वक्त पर आउट हो गया. रोमांचक वन डे मैच के आखिरी कुछ ओवर बचे हों, तो कई बार दसवें नंबर के खिलाडी का आउट होना भी फैसला पलट सकता है. मुश्किल मैच में विकेट बचाना कई बार, रन बनाने से भी ज्यादा अहम हो जाता है. कुछ ही महीनों बाद होने वाला उत्तर प्रदेश का चुनाव एक बेहद मुश्किल मैच है इससे कोई पार्टी इंकार नहीं कर सकती. लेकिन मायावती, एक के बाद एक, हाथ मलते हुए, अपने विकेट गिरते हुए देख रहीं हैं.

बुधवार को बीएसपी छोडने का ऐलान करने वाले आर के चौधरी, राजनीति के कोई ऐसे धुरंधर खिलाडी नहीं थे जो चुनाव में वोटों का अंबार लगा दें. दलित-पासी समाज से आने वाले आर के चौधरी वोटों कि हैसियत के हिसाब से तो बीएसपी में नीचे के पायदान पर ही थे. वो पहले भी बीएसपी से निकाले गए थे. उन्होंने अपनी राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी बनाई जो चली नहीं. बारह साल का राजनैतिक वनवास झेलने के बाद 2013 में वो फिर से मायावती की शरण में आ गए. 2014 में मायावती ने उन्हें मोहनलालगंज से लोकसभा के चुनाव में उतार दिया. मोदी की उस आंधी में जब बडे बडे सूरमा नहीं चल पाए, तो आर के चौधरी भला कहां टिक पाते. चुनाव हार कर पार्टी में किनारे पडे थे. कहा जा रहा है वो विधानसभा चुनाव में भी वो मोहनलालगंज से टिकट मांग रहे थे जो मायावती ने देने से इंकार कर दिया. वो पहले ही राजबहादुर को यहां से प्रत्याशी घोषित कर चुकी हैं.

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'मायावती ने कांशीराम के सिद्धांतो को भुला दिया है'- आर के चौधरी

आर के चौधरी चार बार विधायक भी रहे और मंत्री भी. लेकिन उनकी एक पहचान ऐसी पहचान भी है जो मायावती भी उनसे नहीं छीन सकतीं. जिस कांशीराम की मर्तियों बनवाकर मायावती पूजती है, जो कांशीराम बहुजन समाज के लिए प्रेरणा के सोत्र हैं- आर के चौधरी ने बीएसपी बनने से भी पहले उनके साथ लंबे समय तक काम कर चुके है. यही उनकी सबसे बडी पूंजी है. पार्टी छोडने का ऐलान करते समय आर के चौधरी ये कहना नहीं भूले की मायावती ने कांशीराम के सिद्धांतो को भुला दिया है, पार्टी को रियल एस्टेट कंपनी बना दिया है, और खुद उसकी मालकिन बन गयी हैं.

आर के चौधरी जिस पासी समाज से आते हैं वो दलित हैं और उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी तीन फीसदी से कुछ ज्यादा हैं. ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि आर के चौधरी के कहने पर सारे पासी समुदाय के लोग मायावती से किनारा कर लेंगे. लेकिन जब बीजेपी एक-एक दलित जाती को अपने साथ जोडने में लगी हो, उस समय  स्वामी प्रसाद मौर्य के आउट होते ही, उनके पीछे-पीछे चौधरी का पेवेलियन लौट जाना मायावती के लिए अच्छी खबर तो नहीं ही है. खासतौर पे तब, जब औरों के बगावत की आहट भी सुनाई दे रही हो.

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पिछले हफ्ते ही मायावती से बगावत करके बीएसपी छोडने वाले मौर्य ने आरे के चौधरी के पार्टी छोडने के बाद कहा कि उनकी ये  बात अब सही साबित हो रही है कि मायावती सिर्फ धन की उगाही में लगी हैं. समाजवादी पार्टी और बीजेपी से लेकर जनता दल में जाने की चर्चा के बीच मौर्य शुक्रवार को अपनी समर्थकों की बैठक कर रहे हैं. अति उत्साह में स्वामी प्रसाद मौर्य ने आज यहां तक कहा कि बीएसपी छोडने वाले सभी नेताओं को साथ लेकर वो ऐसी हालत कर देंगें कि मायावती मुख्यमंत्री बनना तो दूर राजनीति का पिच ही छोडने को मजबूर हो जाएंगी.

स्वामी प्रसाद मौर्य या आर के चौधरी इतनी हैसियत तो नहीं रखते कि मायावती को राजनीति से बाहर कर दें. लेकिन कमजोर ही सही, मुश्किल मैच के आखिरी चंद ओवर में, विकेट पर विकेट गिरना मायावती जैसे अनुभवी कैप्टन को भी चिंता में तो डाल ही देता है. विरोधी खेमे से तालियों की गडगडाहट उन्हें और बैचैन कर रही होगी.

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बालकृष्ण बालकृष्ण @bala200

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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