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Updated: 25 जून, 2022 07:09 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का नेतृत्व पूरी तरह से फेल साबित हो चुका है. पार्टी और आघाड़ी सरकार के मुखिया के तौर पर वे लगभग सभी मोर्चों पर अप्रभावी नजर आ रहे हैं. कई बार तो ऐसा भी लगा कि बची खुची शिवसेना पर भी उनका जैसा नियंत्रण होना चाहिए, वैसा नहीं है. उन्हें शरद पवार नियंत्रित करते दिख रहे हैं. शिवसेना का अंदरूनी मामला होने के बावजूद पवार, ठाकरे के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं. एक दिन पहले पवार और उद्धव के बीच हुई बैठक में कुछ ऐसी ही बातें सामने आई हैं. पवार ने पता नहीं किस हैसियत से पूछा कि शिवसेना में इतनी बड़ी टूट हो गई और आपको भनक तक नहीं लगी. स्थिति यह हो गई कि शिवसेना कार्यकर्ता कथित रूप से उद्धव की कुर्सी बचाने के लिए 'कुरान ख्वानी' तक करते दिख रहे हैं.

फिलहाल शिवसेना जिस तरह की स्थितियों से गुजर रही है- उसे देखकर हैरानी होती है कि क्या ये वही पार्टी है जिसे बाला साहेब ठाकरे ने बनाया था? एक ऐसी पार्टी जो सत्ता में रही हो या विपक्ष में, कभी किसी की मजाल नहीं हुई कि उससे आंख से आंख मिलाकर बात कर सके. मुंबई में हमेशा सत्ता का सबसे बड़ा केंद्र मुख्यमंत्री आवास की बजाए 'मातोश्री' ही था जहां ठाकरे रहा करते थे. अन्य राज्यों के बड़े बड़े नेता, वे चाहे किसी भी पार्टी के रहे हों- मातोश्री में हाजिरी लगाने पहुंचते थे. लेकिन उद्धव के मुख्यमंत्री बनने के बाद मातोश्री सूना पड़ गया. मुख्यमंत्री बनने के बाद उद्धव अपना कुनबा लेकर सरकारी आवास 'वर्षा' शिफ्ट हो गए थे. उद्धव पर उनके विधायक जिस तरह के आरोप लगा रहे हैं- वो लगभग सही साबित होते दिख रहे हैं.

हमारे सहयोगी चैनल आजतक के वरिष्ठ पत्रकार साहिल जोशी ने भी पवार-ठाकरे की बंद कमरे में हुई मीटिंग के पॉइंट्स को साझा किया हैं. इसके जरिए भी बागियों के तमाम आरोप सही नजर आ रहे हैं. साहिल जोशी के हवाले से मीटिंग की बातों को यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं. मीटिंग में ठाकरे की तरफ से पार्टी कार्यकर्ताओं की भविष्य में प्रतिक्रिया को लेकर भी विचार हैं. आज महाराष्ट्र के तमाम इलाकों में शिवसैनिकों की हिंसक प्रतिक्रिया दिख रही है. अब वे शिवसैनिक ही हैं या कोई और यह अलग विषय है.

shivsenaपुणे में बागी विधायक का दफ्तर तोड़ते कथित शिवसैनिक.

क्या शिवसेना की खोल में एनसीपी काडर बागी विधायकों को हिंसा से डराना चाहता है?

यह बहस का विषय नहीं रहा कि महा विकास आघाड़ी की सरकार घोर अल्पमत में है. पहले राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में आघाड़ी सरकार का कमजोर संख्याबल समूचा देश देख ही चुका है. इसके बाद बगावत में आगे आए विधायकों की संख्या भी लगभग सभी न्यूज चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया पर खुली आंखों से दिख रही है. अल्पमत सरकार को बचाने के लिए आघाड़ी नेताओं की छटपटाहट देखने लायक है. एनसीपी-कांग्रेस एकनाथ शिंदे के साथ भी सरकार बनाने को राजी है. लोगों ने नाना पटोले, अजित पवार और शरद पवार के बयानों पर गौर किया ही होगा. वहीं, संजय राउत अपने बागी विधायकों को लगातार धमका रहे हैं. वे सड़कों पर खून-खराबे तक की धमकी दे रहे हैं. राउत कह रहे कि पार्टी बालासाहेब की विरासत है और कार्यकर्ता उसे किसी दूसरे को कब्जा नहीं करने देंगे.

पिछले 24 घंटों में महाराष्ट्र में जिस तरह से सड़कों पर हिंसा की कोशिशें हुई हैं, क्यों ना इसे बागी विधायकों को डराने धमकाने की कोशिश के तौर पर देखा जाए? पहले सरकार ने पता नहीं किस वजह से विधायकों के परिवार को मिली सुरक्षा वापस ले ली. सुरक्षा वापस लेने के साथ अब तक राज्य के कई इलाकों में विधायकों के कार्यालयों को निशाना बनाया जा चुका है. पुणे में भी बागी नेता तान्हाजी सावंत के कार्यालय में तोड़फोड़ के जरिए दहशत फैलाने का प्रयास हुआ. इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार गौरव सांवत ने एक डिबेट में बताया कि शिवसैनिकों के रूप में तोड़फोड़ करने वाले कार्यकर्ताओं में एनसीपी का काडर भी शामिल है. सोशल मीडिया पर भी ऐसे ही आरोप लगाए जा रहे हैं कि सेना के नाम पर जो बवाल काटने की कोशिश हो रही है उसमें एनसीपी कार्यकर्ता भी हैं.

eknath shindeएकनाथ शिंदे और बालासाहेब ठाकरे.

अब सवाल है कि उद्धव और राउत राज्य में बालासाहेब की किस विरासत को बचाने की बात कर रहे हैं? पार्टी के करीब-करीब 38 विधायक आपके खिलाफ हैं. 8 सांसदों ने बगावती तेवर दिखाए हैं. राज्य की महापालिकाओं में सेना के कुल 532 में से 400 से ज्यादा नगर सेवक भी शिंदे के साथ बताए जा रहे हैं. जिला परिषदों में भी यही हाल है. कई पूर्व नगर प्रमुखों, नगर सेवकों और जिला परिषद सदस्यों ने भी शिंदे का समर्थन किया है. समूचे मामले में पार्टी की लोकल यूनिट ने लगभग तटस्थ रास्ता अपनाया है जो शिंदे को मूक सहमति ही देता नजर आ रहा है. सेना को समर्थन देने वाले ज्यादातर निर्दलीय विधायक भी शिंदे के साथ है.  उद्धव और राउत को यह भी साफ करना चाहिए कि सिर्फ आघाड़ी गठबंधन के खिलाफ शिंदे के पीछे जो हुजूम नजर आ रहा है वे लोग कौन हैं? क्या इन सभी लोगों को सीबीआई और ईडी ने डराया हुआ है. सवाल यह भी है कि जब सीबीआई और ईडी की कार्रवाई से उद्धव या संजय राउत नहीं डरे तो बाकी लोग क्यों डर रहे हैं?

क्या यह वही शिवसेना है जो कांग्रेस-एनसीपी के राजनीतिक अवसरवाद और तुष्टिकरण के खिलाफ महाराष्ट्र में लोगों को एकजुट किया. लग तो नहीं रहा. पार्टी हिंदुत्व की लाइन से पीछे जा चुकी है. ढाई साल की सरकार में पार्टी ने एक भी काम उस दिशा में नहीं किया जो उसके कोर एजेंडा में शामिल रहा है. यहां तक कि औरंगाबाद शहर का नाम संभाजीनगर करने का काम भी शिवसेना नहीं कर पाई. जबकि बालासाहेब आजीवन औरंगाबाद को संभाजीनगर ही कहते रहे. हाल में जब ओवैसी छत्रपति संभाजी महाराज के क्रूर हत्यारे औरंगजेब की कब्र पूजने पहुंचा, समूचा महाराष्ट्र उबल पड़ा था. शिवसैनिक भी नाराज थे. गुस्सा इस कदर था कि लोग औरंगजेब की कब्र तक उखाड़ने की बात कहने लगे. सरकार को मजबूरन औरंगजेब की कब्र को कुछ दिनों के लिए बंद करने का फैसला करना पड़ा.

उद्धव ठाकरे की शिवसेना को अब कुरान ख्वानी का सहारा

बालासाहेब की शिवसेना के लोग हैरान हैं कि पार्टी का मुख्यमंत्री होने के बावजूद राज्य में इस तरह की चीजें देखने को मिल रही हैं. सोशल मीडिया पर शिवसेना काडर की प्रतिक्रियाओं को देखिए. उसकी नाराजगी उद्धव नहीं बल्कि एनसीपी/कांग्रेस के साथ पार्टी के गठबंधन को लेकर है. हिंदुत्व के मुद्दे से पार्टी का पीछे हटने को लेकर है. हनुमान चालीसा पढ़ने के लिए लोग जेल भेजे गए. और उद्धव की कुर्सी बचाने के लिए मुंबई में कुरान ख्वानी हो रही है. मलाड का एक वीडियो सामने आया है. वीडियो के साथ दावा किया जा रहा है कि शिवसेना की मलवानी शाखा में उद्धव की कुर्सी बचाने के लिए करीब एक दर्जन से ज्यादा मुस्लिम नौजवान और बच्चों ने कुरान ख्वानी की.

अल्लाह से राजनीतिक बलाएं टालने की दुआएं मांगी ताकि ठाकरे की कुर्सी बचाई जा सके. वायरल वीडियो- दावा किए जा रहे संदर्भ से ही जुड़ा है या अलग है, अभी कुछ भी साफ-साफ नहीं कहा जा सकता. लेकिन वीडियो से इतना तो समझा जा सकता है कि वह किसी शिवसेना काडर के घर या दफ्तर का ही है. शिवसेना का कोई कार्यकर्ता सरकार बचाने के लिए मंदिर तो नहीं गया, अलबत्ता वह हाथ में रड लिए विधायकों के कार्यालय तोड़ते जरूर नजर आया है. वह सड़क पर हिंसक प्रदर्शन करने की कोशिश में दिख रहा है. और बालासाहेब के नाम पर वरिष्ठ नेता इशारों में इसी बात की धमकी भी तो दे ही रहे हैं.

भाजपा विरोधी बुद्धिजीवी तबका भी शिवसेना को उसकी पुरानी विरासत याद दिलाते हुए हिंसक प्रतिक्रिया के लिए उकसा रहा है. उस कांग्रेस/एनसीपी के लिए बालासाहेब ने जिसे जलील करने के लिए शब्दकोष के खराब से खराब और अश्लील से अश्लील शब्दों तक का इस्तेमाल किया. सच में. यह शिवसेना बालासाहेब की तो नहीं लग रही. बल्कि यह शरद पवार, संजय राउत की ज्यादा दिख रही और जो कुछ बच खुच रहा है वह उद्धव ठाकरे का नजर आ रहा है. ऐतिहासिक शोरगुल में ठाकरे परिवार के 'योग्य उत्तराधिकारी' आदित्य ठाकरे तो कहीं नजर ही नहीं आ रहे हैं.  ये कौन सी शिवसेना है उद्धव ठाकरे जी?

#उद्धव ठाकरे, #शिवसेना, #उद्धव के लिए कुरान ख्वानी, Quran Khwani In Favour Of Shiv Sena, CM Uddhav Thackeray, NCP Workers In Pune Vandalized

लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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