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Updated: 30 दिसम्बर, 2021 03:40 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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चुनाव पूर्व सर्वे पर कम ही लोग यकीन करते हैं. पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर कई सर्वे आ चुके हैं. हर सर्वे में एक जैसे ही अनुमान लगाये गये हैं. वैसे ज्यादातर सर्वे एक ही एजेंसी की तरफ से कराये गये हैं.

चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव (Chandigarh Corporation Poll Results) में भी जो नतीजे आये हैं वे उन्हीं सर्वे जैसे हैं. हालांकि, नगर निगम और पंजाब में सत्ता समीकरण और राजनीतिक दलों की हैसियत अलग अलग रही है - बस एक ही बात कॉमन लगती है, किसी भी राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिल पाना.

नगर निगम के नतीजों से पंजाब विधानसभा (Punjab Assembly Election 2022) का भविष्य कैसा होगा, ये अनुमान लगाया जा सकता है. लेकिन कई पेंच ऐसे हैं जिन पर पहले गौर करना ही होगा. जो बात सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली है वो है मौजूदा राजनीतिक समीकरण.

निश्चित तौर पर चंडीगढ़ नगर निगम में अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने AAP को सबसे बड़ी पार्टी बना दिया है, लेकिन नतीजे तो अलग ही कहानी सुना रहे हैं. नतीजे अगर बीजेपी की हार बता रहे हैं तो उछल उछल कर ये भी कह रहे हैं कि कांग्रेस ने अपने प्रदर्शन में 2016 के मुकाबले सुधार किया है.

आम आदमी पार्टी की ये उपलब्धि महज तीन महीनों की मेहनत मानी जा रही है. आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने तो एक ही पब्लिक मीटिंग की थी, लेकिन चुनाव प्रभारी जरनैल सिंह अपनी टीम के साथ शुरू से आखिर तक डटे रहे और नतीजा सामने है - लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या पंजाब विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी ये प्रदर्शन दोहरा सकेगी?

इशारों को अगर समझें...

जैसे नगर निगम के त्रिकोणीय नतीजे आये हैं, वैसे ही तो सर्वे में पंजाब में नतीजों का भी अनुमान लगाया जा रहा है. जैसे आम आदमी पार्टी ने नगर निगम चुनाव में बढ़त हासिल की है, वैसे ही पंजाब विधानसभा चुनाव में भी, चुनाव पूर्व सर्वे के लिहाज से, अरविंद केजरीवाल की पार्टी के सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरने का अनुमान लगाया गया है.

arvind kejriwalक्या पंजाब में अरविंद केजरीवाल असर दिखाने लगे हैं?

35 सीटों वाले निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी को 14 सीटों पर जीत मिली है. बीजेपी को 12 सीटें मिली हैं, लेकिन उसके मेयर अपनी सीट नहीं बचा पाये हैं. तीसरे नंबर पर रही कांग्रेस को 8 और अकाली दल को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा है.

2016 के नगर निगम चुनाव में बीजेपी को एकतरफा जीत मिली थी. तब 26 ही सीटें थीं और बीजेपी ने 20 सीटों पर जीत का परचम लहरा दिया था. पिछली बार कांग्रेस को 5 लेकिन अकाली दल के एक ही सीट मिल पायी थी.

केजरीवाल के आगे बाकी फेल: विधानसभा चुनावों के मुकाबले ये एक छोटी सी लड़ाई रही, लेकिन राजनीति तो बिलकुल वैसी ही हुई. अरविंद केजरीवाल के मुकाबले बीजेपी ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर, दिल्ली विधानसभा चुनावों से फायरब्रांड नेता बन कर उभरे केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और भोजपुरी स्टार मनोज तिवारी को तैनात किया था.

कांग्रेस ने युवा ब्रिगेड को उतार दिया था. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी शैलजा और स्टार प्रचारक कन्हैया कुमार भी मैदान में उतरे थे. ये तो है कि कांग्रेस पांच सीटों से 8 पर पहुंच गयी है, लेकिन बीजेपी से पीछे ही रह गयी, तीसरे नंबर पर.

AAP की 50 फीसदी महिला पार्षद: ज्यादा मतदान बदलाव के प्रतीक के तौर पर देखा जाता रहा है. रिकॉर्ड मतदान तो इस बार हुआ, लेकिन पिछली बार के मुकाबले महज एक फीसदी ही ज्यादा रहा. आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को पछाड़ तो दिया लेकिन महज दो सीटों की ही लीड पायी और बहुमत से दूर रह गयी.

आम आदमी पार्टी की चुनावी उपलब्धियों में एक और खास बात सामने आयी है - चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों में 50 फीसदी महिलाएं हैं. आप ने 14 सीटों पर जीत हासिल की है और उनमें से सात महिला पार्षद चुन कर आयी हैं. बीजेपी को भी तीन महिला पार्षद मिली हैं और कांग्रेस को एक.

मेयर किस पार्टी का होगा: जैसे आम आदमी पार्टी आगे बढ़ कर भी बहुमत से पीछे रह गयी है, बीजेपी भी बहुमत से पीछे जरूर है लेकिन सत्ता की रेस से बाहर नहीं हुई है.

बीजेपी के मेयर रहे रविकांत शर्मा वार्ड नंबर 17 से चुनाव हार गये. सिर्फ रविकांत शर्मा ही नहीं बीजेपी के तीन पूर्व मेयर भी चुनाव हार गये हैं. 35 सीटों वाले निगम में बहुमत का आंकड़ा 19 है.

आप और बीजेपी की सीटों में दो का फासला है, लेकिन चंडीगढ़ संसदीय सीट बीजेपी के पास होने के कारण वो एक ही कदम पीछे लगती है. केंद्र शासित क्षेत्र चंडीगढ़ से सांसद किरण खेर हैं और चुनाव होने पर एक वोट उनका भी होता है, जिससे बीजेपी के पास 13 वोट हो जा रहे हैं.

मौजूदा परिस्थितियों में बीजेपी अपना मेयर चुनने में आप के मुकाबले सिर्फ एक वोट से पिछड़ रही है - आगे का खेल मैनेज करने का है और बीजेपी ऐसे खेल की सबसे माहिर खिलाड़ी है.

केजरीवाल चाहें तो अपना मेयर ला सकते हैं, लेकिन उसके लिए उनको राहुल गांधी से बात करनी होगी. ट्रैक रिकॉर्ड तो यही बताता है कि ये नामुमकिन है, लेकिन बदले हालात में ऐसी बीजेपी को रोकने के नाम पर ऐसी संभावनाओं से इनकार भी नहीं किया जा सकता.

बीजेपी के लिए भी कोई संकेत है क्या?

अगर आम आदमी पार्टी घोषित तौर पर अपना मेयर नहीं बना सकती, तो साफ है सारी बातें बीजेपी के पक्ष में चली जाएंगी - और ये पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए बड़ी राहत होगी.

चंडीगढ़ में विधानसभा चुनाव नहीं होते, सिर्फ संसदीय चुनाव होते हैं. देखना ये होगा कि क्या पंजाब भर में होने वाले विधानसभा चुनावों में भी ऐसा ही कुछ होने जा रहा है. बीजेपी की हार से भी ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि उसे आम आदमी पार्टी से पिछड़ना पड़ा है, लेकिन कांग्रेस पीछे ही रही है.

बीजेपी ने तोड़फोड़ शुरू कर दी: पंजाब में कांग्रेस सत्ता में है. सर्वे रिपोर्ट में आम आदमी पार्टी को सबसे आगे माना जा रहा है. दूसरे नंबर पर बीजेपी नहीं बल्कि कांग्रेस को ही माना जा रहा है. चंडीगढ़ में हार कर भी बीजेपी पंजाब में ताकतवर होती जा रही है.

ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कि कांग्रेस छोड़ने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह बीजेपी के साथ हो गये हैं. कांग्रेस विधायक फतेह सिंह बाजवा बीजेपी में शामिल हो गये हैं. बीजेपी के पंजाब प्रभारी गजेंद्र सिंह शेखावत ने दिल्ली में फतेह बाजवा और एक अन्य कांग्रेस विधायक बलविंदर सिंह लाडी को दिल्ली में बीजेपी ज्वाइन कराया. फतेह बाजवा कांग्रेस के राज्य सभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा के भाई हैं, जो कैप्टन अमरिंदर सिंह से पहले पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे.

एक दौर ऐसा भी आया था जब सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाये जाने के विरोध में बाजवा ने कैप्टन से हाथ मिला लिया था. प्रताप सिंह बाजवा को पहले राहुल गांधी का करीबी नेता समझा जाता था. नवजोत सिंह सिद्धू के चलते वो थोड़े पिछड़ से गये हैं.

कैप्टन के सहयोगी बीजेपी में जाने लगे: बीजेपी ज्वाइन करने वाले कांग्रेस विधायकों में सबसे महत्वपूर्ण नाम है - राणा गुरमीत सिंह सोढ़ी का. गुरमीत सोढ़ी कैप्टन सरकार में मंत्री रह चुके हैं, लेकिन जब चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बने तो वो बाहर हो गये. कारण तो यही समझा गया कि वो कैप्टन के करीबी माने जाते रहे हैं.

हैरानी की बात ये है कि ये नेता कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी क्यों ज्वाइन कर रहे हैं, कैप्टन की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस क्यों नहीं?

जो हाल कांग्रेस का यूपी में है, बीजेपी का तकरीबन वैसा ही हाल पंजाब में है. पंजाब में बीजेपी भी सरकार बनाने के बारे में नहीं सोच रही होगी, लेकिन इतना जरूर चाह रही होगी कि थोड़ा पांव जमा लें. कांग्रेस का भी यूपी में बस इतना सा ही ख्वाब है - और इतना हो जाता है या किंगमेकर वाली स्थिति में भी पहुंच जाती है तो ऑपरेशन लोटस है ना.

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#पंजाब चुनाव, #अरविंद केजरीवाल, #भाजपा, Arvind Kejriwal, Punjab Assembly Election 2022, Chandigarh Corporation Poll

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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