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Updated: 20 मई, 2020 06:32 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi Vadra) ने योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को बस पॉलिटिक्स में फेर में तो डाल ही दिया था, लेकिन वो कांग्रेस के सड़े हुए सिस्टम के चलते बैकफायर हो गया - फिर भी कांग्रेस महासचिव मोर्चे पर डटी हुई हैं.

ऐसे कई मौके आये हैं जब प्रियंका गांधी को पीछे हटते या राहुल गांधी की तरह मुद्दा छोड़ कर आगे बढ़ते या सोनिया गांधी की तरह नजरअंदाज करते देखने को नहीं मिला है - और ये काफी महत्वपूर्ण बात है जिससे राहुल गा्धी ही नहीं सोनिया गांधी (Sonia and Rahul Gandhi) भी दूसरी पारी में सबक के तौर पर इस्तेमाल कर सकती हैं.

सवाल ये है कि कांग्रेस के सीनियर नेताओं की चेतावनी भरी सलाह नजरअंदाज करने वाली सोनिया गांधी और राहुल गांधी क्या प्रियंका गांधी की मौजूदा फजीहत से कोई सबक लेंगे?

ये कांग्रेस के सड़े हुए सिस्टम ने अलर्ट भेजा है

मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए बसें भेजने के मामले में प्रियंका गांधी की जो फजीहत हो रही है, लगता नहीं कि उनको इस बात का अंदाजा रहा होगा. अगर जरा भी इस बात का एहसास होता कि ऐसी गड़बड़ी हो सकती है तो कई बार सोची होतीं - और ये भी हो सकता है कि टाल देतीं, लेकिन प्रियंका गांधी को इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि हमले के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार का रिस्पॉन्स कैसा होगा?

प्रियंका गांधी ने ये तो बिलकुल नहीं सोचा होगा कि बसों की सूची मांगी जाएगी और फिर जांच-पड़ताल भी शुरू हो जाएगी. बसों की सूची में मिले ऑटो और बाइक के नंबर को लेकर जो बवाल हुआ वो तो शुरुआती था - राजनीति तो हुई ही, कानूनी कार्रवाई भी हो चुकी है.

सब चलता है ऐसे मौकों पर नहीं चलता. हो सकता है बसों की लिस्ट और फिर वैसी ही बसें भी मंगा ली गयी हों, लेकिन प्रियंका गांधी को इस बात के लिए पहले से तैयार रहना चाहिये था. स्क्रूटिनी तो होगी ही. कागजात सही तो होने ही चाहिये. मदद के लिए कानून को ताक पर तो रखा नहीं जा सकता. वो भी तब जब राजनीतिक तौर पर एक दूसरे को नीचा दिखाते हुए मजदूरों की सबसे बड़े मदद होने का क्रेडिट लेना हो. लगता तो ऐसा ही है कि ये सब कांग्रेस में कभी पनपे और बाद में फले-फूले ऐसे ही कल्चर का ये नतीजा है.

राहुल गांधी जिस सिस्टम को सुधारने की बातें करते रहे उसी सिस्टम ने उनको नाकाम नेता साबित कर दिया है. वही सिस्टम दूसरी पारी में सोनिया गांधी को भी पंगु बना रखा है - और प्रियंका गांधी के साथ जो हुआ है वो ताजातरीन मिसाल है.

अब राहुल गांधी की जितनी भी खिल्ली उड़ायी जाती हो, यूपीए सरकार के वक्त जब उनसे प्रधानमंत्री बनने को लेकर पूछा जाता था वो यही समझाते कि ये ठीक है कि परिस्थितियां उनके पक्ष में हैं और प्रधानमंत्री बनना उनके लिए बहुत मुश्किल भी नहीं है, लेकिन उनका जोर सिस्टम सुधारने पर हुआ करता था. वो कहा करते थे कि सिस्टम बदलना चाहते हैं - शायद वो कांग्रेस के इसी सिस्टम की बात करते रहे जो आज कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ही नहीं, राहुल गांधी और सोनिया गांधी के लिए कदम कदम पर मुश्किलों का अंबार लगा रखा है.

rahul, priyanka, sonia gandhiबसों पर हो रही प्रियंका गांधी की फजीहत कांग्रेस नेतृत्व के लिए सिस्टम एरर का अलर्ट है

ये वही सिस्टम है जो इस कदर सड़ चुका है कि भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से सत्ता गवां देने के छह साल बाद भी कांग्रेस पार्टी के खड़े होने के कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं. वही सिस्टम और कल्चर कांग्रेस को कदम कदम पर भारी पड़ता जा रहा है.

प्रियंका गांधी का बचाव करने वाले कांग्रेस नेता ये दलील दे सकते हैं कि अब कांग्रेस महासचिव बसों की डीटेल तो चेक करेंगी नहीं, लेकिन जो चेक करने वाले हैं उनको चेक करने की जिम्मेदारी तो प्रियंका गांधी की ही बनती है. आखिर क्या वजह है कि प्रियंका गांधी एक ऐसी टीम नहीं बना पायी हैं जो योजनाबद्ध तरीके से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ मोर्चा ले सके? बसों के मामले में यूपी में जो कुछ हुआ है अगर सोनिया और राहुल उसे गंभीर अलर्ट समझें तो फिर से खड़े होने का रास्ता नहीं बंद हुआ है.

राहुल और सोनिया क्या सीख सकते हैं

प्रियंका गांधी ने बसों के मुद्दे पर जिस तरीके से राजनीतिक मोर्चा संभाला हुआ है, ऐसा राहुल गांधी की राजनीति में शायद ही कभी देखने को मिला हो. गुस्से में चीखने और ये बताने से कि मैं नहीं डरता - कुछ भी नहीं होता. न तो बम फूटता है, न भूकंप आता है. बार बार ऐसा होने पर नतीजा ढाक के तीन पात ही रहता है - जैसे हर बार गले मिल कर कोई आंख मार देता हो. सोनिया गांधी की राजनीति में तीन चीजें खास तौर पर देखने को मिलती हैं - बयान जारी कर देना, मीटिंग बुला लेना और बात बात पर कमेटी बना देना. कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच भी मनमोहन सिंह के नेतृत्व में 11 सदस्यों की एक कमेटी बनायी गयी है. कमेटी में राहुल गांधी हैं लेकिन प्रियंका गांधी वाड्रा नहीं हैं.

प्रियंका गांधी उस राह से अलग रास्ता अख्तियार कर रही हैं. न तो वो सोनिया गांधी की तरह चुप बैठ गयी हैं और न ही राहुल गांधी की तरह छुट्टी पर या अज्ञातवास में चली गयी हैं. वो अपनी बात लगातार रख रही हैं - और हर तरीके से यूपी सरकार को मजदूरों की मदद में बसों के इस्तेमाल न करने के लिए कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं.

नये सिरे से मीडिया से मुखातिब होकर प्रियंका गांधी वाड्रा ने योगी सरकार को याद दिलायी है कि बसें 24 घंटे से यूपी की सीमा पर खड़ी हैं. अगर अनुमति नहीं मिलती तो वो वापस भेज देंगी.

प्रियंका गांधी ने एक और चाल चली है. कहती हैं अगर यूपी सरकार चाहे तो बसों पर अपना स्टिकर लगा सकती है. अगर योगी आदित्यनाथ चाहें तो बसों पर बीजेपी के ही स्टिकर लगा सकते हैं लेकिन बसों से मजदूरों को उनके घर भेजे जाने की अनुमति दे दें. ऐसा करके प्रियंका गांधी डबल निशाना साध रही हैं.

प्रियंका गांधी मजदूरों की सहानुभूति लेने की कोशिश तो कर ही रही हैं, एक नयी मुसीबत को देखते हुए बचाव का रास्ता भी खोज चुकी हैं. जब तक कानूनी एक्शन कांग्रेस नेताओं पर हो रहा था तब तक तो कोई बात नहीं थी, अब तो बस वालों पर आ पड़ी है. बसों के ड्राइवर और मालिकों पर. ऐसा भी नहीं है कि जो यूपी सरकार बसों की जांच पड़ताल कर रही है वहां सब बड़े ही कायदे कानून से चलता है. अगर ऐसा होता, आम दिनों में, तो जिस दिन रोड पर आरटीओ की गाड़ी निकलती आधे से ज्यादा पब्लिक ट्रांसपोर्ट सड़कों से नदारद नहीं हो जाते. बसों का तो जो हाल है वो है ही, नोएडा और गाजियाबाद में चलने वाले ज्यादातर ऑटो वाले यही बताते हैं कि वे जुगाड़ से चलते हैं - और मालूम ये भी होता है कि ज्यादातर तिपहिया वाहनों के रजिस्ट्रेशन भी यूपी के दूर दूर के जिलों के होते हैं. अभी सख्ती की वजह से ये सड़कों पर नहीं नजर आ रहे, लेकिन दोबारा नहीं आएंगे, कहना मुश्किल है. जब बस वालों ने देखा कि यूपी पुलिस बसों के रजिस्ट्रेशन नंबर और बाकी डीटेल नोट करने लगी है तो वे खिसकने लगे हैं. दिक्कत वाली बात ये है कि ये पुलिस एक्शन सीधे बस वालों पर हो रही है. एफआईआर दर्ज हो रहा है, इस बात के लिए कि बसें बाकायदा अनुमति लेकर भेजी गयी हैं या नहीं. एक्शन तो ये वैसे ही हो रहा है जो बगैर अनुमति के बॉर्डर क्रॉस करने वाले किसी भी वाहन के खिलाफ चल रहा है, लेकिन ऐसा हुआ है तो वो लॉकडाउन उल्लंघन के दायरे में भी आ सकता है.

प्रियंका गांधी वाड्रा के बसें वापस भेज देने की बात ड्राइवरों के खिसकने की हरकत से जोड़ कर देखा जा सकता है - और अपने झंडा बैनर के साथ बसें चलवाने की बातें योगी आदित्यनाथ पर तंज हैं. बसों की राजनीति में कांग्रेस और बीजेपी को जो भी फायदा हो, मजदूरों को तो इसका कोई लाभ नहीं मिलने वाला है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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