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Updated: 17 मई, 2020 10:30 PM
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के फुटपाथ दौरे (Footpath Visit) का आइडिया बेशक बहुत बढ़िया था, लेकिन ये थोड़ा पहले हुआ होता तो मजदूरों के साथ साथ कांग्रेस के लिए राजनीतिक तौर पर फायदेमंद हो सकता था. मजदूरों के पास पहुंच कर राहुल गांधी ने जिस तरह उनको ढाढ़स बंधाया और मदद की, कुछ पहले ये काम कर दिया होता तो औरों को भी काफी राहत मिली होती.

राहुल गांधी का ये फुटपाथ दौरा भी कांग्रेस की उसी प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा है जिसे वो एक अरसे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ आजमा रही है - और अब तो दबाव का मकसद भी राहुल गांधी ने काफी हद तक खुद ही साफ कर दिया है.

राहुल गांधी का फुटपाथ दौरा

राहुल गांधी का फुटपाथ दौरा करीब करीब वैसा ही रहा जैसा दिल्ली के दंगा प्रभावित इलाकों में उनका जाना हुआ था - देखा जाये तो मौका मुआयना करने से पहले सोचने में दोनों ही मामलों में लगभग बराबर समय का गैप भी रहा. दिल्ली के दंगा पीड़ितों का हाल पूछने की तरह ही राहुल गांधी ने मजदूरों का भी हाल पूछा - और केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की नाकामियों की कांग्रेस की तरफ से तैयार फेहरिस्त भी बांची.

निश्चित तौर पर राहुल गांधी को अपने बीच पाकर सड़क पर भटकते मजदूरों को काफी सुकून मिला होगा. करीब आधे घंटे के लिए तो वे अपना दुख दर्द भूल ही गये होंगे. राहुल गांधी ने बड़ी ही आत्मीयता से उनसे मुलाकात की - और भावनात्मक लगाव प्रकट करते हुए बातचीत की. जाहिर है सब ठीक होने का भरोसा भी दिलाया ही होगा.

राहुल गांधी के फुटपाथ दौरे की तैयारी भी अच्छी तरह हुई थी, वरना पंजाब की तरह बैरंग भी लौटना पड़ सकता था. 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी कई बार दौरे पर गये थे. जब भी जाते कोई न कोई मुद्दा भी उठाते और केंद्र सरकार के साथ साथ तब की प्रकाश सिंह बादल सरकार को निशाने पर लेते. एक दौरे में राहुल गांधी को किसानों से मुलाकात करनी थी, लेकिन जिस तरह के किसान बातचीत के लिए चाहिये थे उनका इंतजाम कांग्रेस कार्यकर्ता कर ही नहीं पाये. फिर होना क्या था, दौरा संशोधित हो गया और जहां की बात थी वहीं छोड़ दी गयी.

अगर दिल्ली में भी ऐसी चूक हो जाती तो मजदूरों का क्या जब सड़क पर निकल चले तो आगे भी बढ़ जाते. या चलते चलते ऐसी जगह पहुंच जाते जहां वैसी मुलाकात नहीं हो पाती जैसी सुखदेव विहार फ्लाईओवर के पास ढंग से हुई.

कुछ भी हो मजदूरों के लिए तो अविस्मरणीय क्षण ही रहा होगा - क्योंकि मुलाकात के बाद उनके जाने का इंतजाम भी कांग्रेस पार्टी की तरफ से किया गया था. ये बात अलग है कि ऐसा मौका गिनती के कुछ मजदूरों को ही मिल पाया.

rahul gandhi with migrant workersदिल्ली के एक फुटपाथ पर प्रवासी मजदूरोें के साथ राहुल गांधी

कोई दो राय नहीं होगी ये कहने में कि राहुल गांधी की ये पहल तारीफ के काबिल है, लेकिन क्या ये दौरा थोड़ा पहले नहीं प्लान किया जा सकता था? मसलन, औरैया हादसे से पहले या तभी जब दिल्ली में मजदूर लॉकडाउन लागू होते ही सड़कों पर निकल पड़े थे?

अगर ये फुटपाथ दौरा पहले ही हो गया होता तो कांग्रेस नेता सोच नहीं सकते पार्टी को कितना पुण्य मिला होता और राहुल गांधी को कितनी दुआएं मिली होतीं?

ये भी तो हो सकता था राहुल गांधी मजदूरों को तभी समझाये होते कि उनके लिए क्या करना और क्या न करना ठीक रहेगा. तब तो ये भी बता सकते थे कि सड़क पर निकलने के क्या खतरे हैं और जिस तरीके की मदद संभव थी कर भी सकते थे. जिन मजदूरों से मिले होते उनको कितनी ताकत मिली होती?

मालूम नहीं राहुल गांधी फैसले लेने में देर कर देते हैं या देर हो जाती है?

ये राहुल गांधी ही थे जिनके ट्वीट का बार बार नाम लिया जा रहा है जो 12 फरवरी को उनके हैंडल से हुआ था. वो ट्वीट जिसमें कोरोना वायरस के खतरे को लेकर गंभीर चेतावनी दी गयी थी. उस ट्वीट के बाद भी कांग्रेस नेताओं की तरफ से मोदी सरकार पर लॉकडाउन के लिए दबाव बनाया जाने लगा था.

गौर करने वाली एक बात ये भी है कि अपने फुटपाथ दौरे से ठीक पहले राहुल गांधी ने दबाव की इस राजनीति का खुलासा भी कर दिया था. हो सकता है ऐसा न किये होते तो राहुल गांधी के फुटपाथ दौरे का असर भी ज्यादा होता. ये भी तो हो सकता है कि अगर राहुल गांधी के दिमाग में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वाला आइडिया आ गया होता तो सरकार पर और ज्यादा दबाव बनाने में कामयाब हो सकते थे - फर्ज कीजिये राहुल गांधी मजदूरों के बच्चों को गोद में उठाकर उनके साथ साथ कुछ दूर पैदल चल दिये होते तो क्या होता?

विपक्ष कैसा दबाव बनाना चाहता है

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान दौरान पुलिस एक्शन के शिकार लोगों के साथ हमेशा खड़े रहने का वादा कर चुकीं कांग्रेस महासचिव फिलहाल योगी सरकार पर दबाव बनाने के लिए वीडियो मैसेज की मदद ले रही हैं. सोनिया गांधी भी इन दिनों ऐसे ही वीडियो मैसेज जारी करती रही हैं - और ये सब कांग्रेस के मोदी सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति का ही हिस्सा है.

फुटपाथ दौरे के ठीक पहले पत्रकारों से वीडियो कांफ्रेंस के दौरान राहुल गांधी ने जो कुछ कहा था उसमें एक महत्वपूर्ण बात रही सरकार पर विपक्ष के दबाव डालने को लेकर. राहुल गांधी ने कहा कि अगर प्रवासी कामगारों की तकलीफ मीडिया ने नहीं दिखायी होती तो वो सरकार पर दबाव नहीं बना पाते. तभी 12 फरवरी के राहुल गांधी के कोरोना वायरस की चेतावनी वाले ट्वीट को लेकर भी सवाल उठा - क्‍या सरकार से चूक हुई?

राहुल गांधी का जबाव था - 'अब इसका कोई मतलब नहीं हैं. मैं आपसे इसलिए बात कर रहा हूं ताकि सरकार पर दबाव डाल सकूं. बहुत जबर्दस्‍त आर्थिक डैमेज होने वाला है... सरकार के लोग विपक्ष की बात अच्‍छी तरह से सुनेंगे तो हमारी बात मान लेंगे...'

मतलब, 12 फरवरी से लेकर अब तक राहुल गांधी, सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा और तमाम कांग्रेस नेता अपने अपने तरीके से मोदी सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं. पहले लॉकडाउन लागू करने के लिए दबाव बनाया जाता है, फिर लॉकडाउन लागू हो जाने के बाद उसे बकवास करार दिया जाता है. पहले आर्थिक पैकेज लाने की लगातार मांग की जाती है और जब सरकार ऐसा कर देती है तो बकवास करार दिया जाता है. कभी सोनिया गांधी पत्र लिख कर मोदी सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश करती हैं तो कभी रघुराम राजन और अभिजीत बनर्जी से वीडियो इंटरव्यू कर राहुल गांधी नये तरीके से दबाव बनाने की कोशिश करते हैं. ऐसा बिलकुल नहीं कि ये कोई गलत बात है. ये तो विपक्ष का हक है और कांग्रेस वही काम कर रही है. सबसे अच्छी बात तो ये है कि राहुल गांधी इमानदारी से बता भी देते हैं कि वो सब कुछ सरकार पर दबाव बनाने के लिए कर रहे हैं.

अब सवाल ये है कि ये सारे दबाव किस बात के लिए बनाये जा रहे हैं?

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की सुझावों वाली चिट्ठियों से लेकर मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री मोदी की वीडियो बैठकों पर थोड़ा सा गौर करने पर बड़ी आसानी से सवाल का जवाब भी मिल जाता है.

1. NYAY योजना लागू कराना: ये स्कीम राहुल गांधी ने 2019 के आम चुनाव में पेश की थी और कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र में भी शामिल किया गया था. अब राहुल गांधी दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं कि मोदी सरकार न्याय योजना लागू करे - अब तो यहां तक कहने लगे हैं कि भले ही अस्थायी तौर पर सही, लेकिन एक बार न्याय योजना सरकार लागू तो करे.

2. MNREGA का एक्सटेंशन: पहले ये मांग छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरफ से पेश की गयी प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्रियों की बैठक में. अब राहुल गांधी बार बार दोहरा रहे हैं कि मनरेगा में 200 दिन के काम की व्यवस्था की जाये. अभी इस स्कीम में सबको 100 दिन का काम मिलता है.

अब जरा कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति को समझिये. मनरेगा कांग्रेस की ही लायी गयी स्कीम है और पहले बीजेपी इसके विरोध में खड़े देखी जाती थी. ये स्कीम इतनी असरदार रही कि 2009 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की मनमोहन सिंह सरकार की वापसी में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी गयी थी. बाद में सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगा कि ये तो बड़े काम की चीज है और फिर उसे आगे बढ़ाया जाने लगा.

मोदी सरकार भले ही मनरेगा को प्रमोट कर रही हो, लेकिन कांग्रेस के लिए उसका क्रेडिट लेना आसान होता है. अब कर मनरेगा में 200 दिन के काम की व्यवस्था कर दी जाती है तो लॉकडाउन के चलते बड़ी तादाद में बेरोजगार हुई मजदूरों की आबादी में कांग्रेस के लिए घुसपैठ आसान हो सकती है.

ठीक वैसे ही अगर मोदी सरकार न्याय योजना अस्थायी तौर पर लागू करने को राजी हो गयी, फिर तो कांग्रेस की बल्ले बल्ले हो जाएगी. आने वाले चुनावों में कांग्रेस उछल उछल कर कहने लगेगी कि देश के गरीब और मजदूरों के लिए बेहतर स्कीम उसी के पास है और वही देश को आगे बढ़ा सकती है - लेकिन क्या राहुल गांधी को ये वास्तव में लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कांग्रेस के दबाव में आ जाएंगे? अगर वाकई ऐसा लगता है तो बुद्धि की बलिहारी ही है!

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