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Updated: 21 अक्टूबर, 2021 02:37 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) उत्तर प्रदेश में 'न्याय' की लड़ाई लड़ रही हैं - और ये न्याय गरीबों के लिए कांग्रेस की NYAY स्कीम से अलग है. चुनावी स्कीम तो वो भी रही है, लेकिन ये लखीमपुर खीरी से आगे बढ़ी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस होते हुए दिल्ली के राष्ट्रपति भवन तक पहुंची है.

इंसाफ दिलाने के मकसद से ही वो आगरा जा रही थीं, लेकिन पुलिस ने रास्ते में ही रोक लिया. करीब करीब वैसे ही जैसे लखीमपुर खीरी के रास्ते में या उससे पहले हाथरस या सोनभद्र के उभ्भा गांव के रास्ते में रोका जाता रहा है, लिहाजा कांग्रेस नेता ने पुराने अंदाज में ही यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार पर हमला बोला है - किस बात का डर लगता है?

वाल्मीकि जयंती के मौके पर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा आगरा में पुलिस कस्टडी में जान गंवाने वाले अरुण वाल्मीकि के परिवार से मिलने जा रही थीं. हिरासत में मौत को लेकर एक इस्पेक्टर सहित पांच पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया है.

लखीमपुर खीरी से आगे संभावित पॉलिटिकल लीड से उत्साहित प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में हद से ज्यादा ही सक्रिय नजर आ रही हैं - और अपनी तरफ से क्रांतिकारी कदम उठाते हुए 2022 के विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में 40 फीसदी महिला उम्मीदवारों (Women Candidates) को टिकट देने का ऐलान किया है.

प्रियंका गांधी की ये महिला उम्मीदवार स्कीम चुनावी कामयाबी में भले ही बुलंदियों न पहुंचा सके लेकिन बीजेपी सहित सभी राजनीतिक दलों को दबाव में तो ला ही दिया है. प्रियंका गांधी ये स्कीम यूपी चुनाव से पहले 2020 के बिहार चुनाव की याद दिला रही है - जब तेजस्वी यादव ने घोषणा की थी कि आरजेडी की सरकार बनने पर कैबिनेट की पहली ही बैठक में 10 लाख नौकरियां देने का चुनावी वादा किया था. नतीजा ये हुआ कि बीजेपी को भी रोजगार देने के साथ साथ फ्री वैक्सीन देने की घोषणा करनी पड़ी - और बाद में जो फजीहत हुई वो तो अलग ही रही.

अब देखने वाली बात ये होगी कि प्रियंका गांधी सिर्फ 40 फीसदी महिला उम्मीदवारों तक ही सीमित रहती हैं या फिर कांग्रेस के पिटारे से महिला चीफ मिनिस्टर का भी कोई चेहरा निकल कर आने वाला है. बनारस रैली के मंच से ये तो बताया ही जा चुका है कि यूपी चुनाव कांग्रेस प्रियंका गांधी के चेहरे पर ही लड़ने जा रही है - वो मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी होंगी ये नहीं साफ है.

लड़की हूं, लड़ सकती हूं

कांग्रेस 2017 का विधानसभा चुनाव यूपी के लड़कों के भरोसे लड़ी थी. राहुल गांधी और अखिलेश यादव साथ साथ रैलियां और रोड शो कर रहे थे और स्लोगन रहा - 'यूपी को ये साथ पसंद है'.

पांच साल कांग्रेस का नारा बदल गया है और लड़कों की जगह लड़कियों के सहारे चुनावी लड़ाई की तैयारी में जुटी हुई है - 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं.'

राहुल गांधी को कभी कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो कभी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कॉपी करते देखा गया है - और प्रियंका गांधी का ताजा चुनावी अंदाज भी प्रधानमंत्री मोदी जैसा नजर आ रहा है.

priyanka gandhi vadra, supriya srinetये लड़ाई जमीन पर भी उतर पाएगी क्या?

2014 के चुनाव प्रचार के आखिरी दौर की ही तरह मोदी 2019 में भी अपने नाम पर लोगों से वोट मांग रहे थे - भाइयों और बहनों मुझे देखो... मुझे वोट दो. 2014 में तो ब्रांड मोदी लोगों के दिमाग में रजिस्टर हो जाने के बाद ये टैक्टिस प्रशांत किशोर की तरफ से अपनायी गयी थी, लेकिन 2019 में अमित शाह ने उसी तरकीब को सत्ता विरोधी लहर की काट के तौर पर आजमाया था.

प्रियंका गांधी भी फिलहाल मोदी जैसा ही प्रयोग करती नजर आ रही हैं. जिस तरीके से प्रियंका गांधी प्रेस कांफ्रेंस में कह रही थीं, 'मेरे साथ कंधे से कंधा मिला कर चलिये,' - और उससे पहले बनारस रैली में भी प्रियंका का वही अंदाज देखा गया था. अब आगे देखना है - आगे आगे होता है क्या?

प्रियंका गांधी की 40 फीसदी महिला उम्मीदवार स्कीम में केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के चुनावी वादे 'तीन तलाक' कानून का भी थोड़ा सा अक्स महसूस किया जा सकता है. ये तो तभी समझ में आ गया था कि बीजेपी की मोदी सरकार ने तीन तलाक कानून को मुस्लिम वोट बैंक में महिलाओं के जरिये सेंध लगाने के मकसद से लाया था.

यूपी में मुस्लिम वोट बैंक का सपोर्ट हासिल करने के लिए नसीमुद्दीन सिद्दीकी और सलमान खुर्शीद के जरिये उलेमा सम्मेलन करा चुकीं प्रियंका गांधी को भी ऐसी उम्मीद है क्या कि मुस्लिम वोट के बंटवारे की स्थिति में वो महिलाओं के जरिये कुछ हासिल कर सकती हैं?

CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस एक्शन के शिकार लोगों के साथ तो प्रियंका गांधी वाड्रा खड़ी थीं ही, ऐसे में जबकि यूपी में गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर ब्राह्मण पॉलिटिक्स होने लगी हो, माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को बचाने का आरोप भी बीजेपी प्रियंका गांधी पर लगा चुकी हैं - और बीजेपी विधायक अलका राय तो उनको कई चिट्ठियां भी लिख चुकी हैं.

दलित और पिछड़े वोटों पर तो प्रियंका गांधी वाड्रा की पहले से नजर है ही. मायावती और बेबी रानी मौर्या के खिलाफ भी कांग्रेस का महिला उम्मीदवार थोड़ा बहुत काम तो कर ही सकता है.

लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा से पहले भी प्रियंका गांधी यूपी दौरे में लखनऊ से सीधे लखीमपुर खीरी ही गयीं थी - और वो भी महिलाओं की सुरक्षा में खड़े होने का भरोसा दिलाती नजर आयी थीं - तब प्रियंका गांधी ने ब्लॉक प्रमुख चुनाव के दौरान बदसलूकी की शिकार एक समाजवादी पार्टी कार्यकर्ता से मिलने गयी थीं.

प्रियंका गांधी के ये फील्ड पॉलिटिक्स शुरू तो सोनभद्र के उभ्भा गांव में हुए नरसंहार से हुई थी, उसके बाद उन्नाव से लेकर हाथरस तक - और फिर लखीमपुर खीरी में भी पीड़ित महिलाओं से गले मिलते प्रियंका गांधी कि तस्वीरें बढ़ चढ़ कर शेयर की गयीं - और ये महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देने की सियासी चाल भी उसी से निकल कर आयी हुई लगती है.

महिला मुख्यमंत्री उतारने का भी कोई प्लान है क्या?

कहने को तो छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बनारस की रैली में कांग्रेस की तरफ से ऐलान कर चुके हैं कि 2022 का यूपी चुनाव पार्टी महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में लड़ेगी. हालांकि, ये कंफर्म नहीं किया गया है कि नेतृत्व से आशय मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार भी हो सकता है और कांग्रेस नेता इमरान मसूद के बयान के बाद तो ये भी लगने लगा है कि प्रियंका गांधी वाड्रा को सीएम उम्मीदवार बनाये जाने की पार्टी के अंदर भी कोई गंभीर चर्चा नहीं है.

वैसे भी राहुल गांधी के लगातार साल दर साल फेल होने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा का नाम कांग्रेस तब तक बचाये रखेगी जब तक वायनाड की तरह जीत पक्की होना निश्चित न हो. अभी तो कांग्रेस अमेठी की हार से भी उबर नहीं पायी होगी.

बीएसपी नेता मायावती की वजह से बीजेपी उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को विशेष महत्व देते हुए प्रोजेक्ट कर रही है - और आलम ये है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक भी चूक उन पर बहुत भारी पड़ सकती है - क्योंकि भीतर ही भीतर बीजेपी नेतृत्व कुछ नयी दूरगामी नतीजों वाली रणनीति पर काम कर रहा है.

सवाल ये है कि प्रियंका गांधी वाड्रा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार न होने की स्थिति में पास भी मुख्यमंत्री पद का कोई और उम्मीदवार है क्या? अगर ऐसा है तो वो कोई महिला चेहरा है या कोई दलित महिला फेस? ये सवाल मायावती और बेबी रानी मौर्या के रेस में आने के बीच ही उठ रहा है.

प्रेस कांफ्रेंस में कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत भी अपनी खास मौजूदगी दर्ज करा रही थीं - और उसके बाद इंडिया टुडे टीवी डिबेट में भी उनका आत्मविश्वास कुछ ज्यादा ही प्रदर्शित हो रहा था. पत्रकारिता से राजनीति में आयीं सुप्रिया श्रीनेत 2019 में लोक सभा का चुनाव भी लड़ चुकी हैं.

प्रियंका गांधी वाड्रा के वूमन कार्ड को लेकर राजनीतिक विरोधी सवाल उठाने लगे हैं कि कांग्रेस ने ये कदम अब से पहले 2019 के आम चुनाव या हाल में हुए विधानसभा चुनावों में क्यों नहीं उठाया?

सुप्रिया श्रीनेत का कहना है कि बतौर यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने ये फैसला लिया है - लेकिन सोनिया गांधी के नेतृत्व में राहुल गांधी को भी ऐसी कोई प्रेरणा मिल रही है क्या? और क्या पंजाब, उत्तराखंड और गोवा जैसे राज्यों में भी ये 'न्याय' स्कीम लागू होने की कोई संभावना है क्या?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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