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Updated: 09 दिसम्बर, 2021 08:41 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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यूपी चुनाव 2022 की सियासी पिच पर कांग्रेस अब अकेले ही बैटिंग करने के लिए पूरी तरह से तैयार नजर आ रही है. उत्तर प्रदेश 403 विधानसभा सीटों में से 40 प्रतिशत पर महिला उम्मीदवारों को टिकट देने की घोषणा करने वाली कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने अब महिलाओं पर केंद्रित विशेष घोषणा पत्र भी जारी कर दिया है. प्रियंका गांधी ने सरकारी नौकरी में आरक्षण, 10 लाख रुपये तक का मुफ्त इलाज, 10+2 की लड़कियों को स्मार्टफोन, स्नातक पास लड़कियों को स्कूटी, महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े इंतजाम समेत कई घोषणाएं कर आधी आबादी को लुभाने की कोशिश की है. प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के चुनावी कैंपेन को पूरी तरह 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' के अपने नारे पर केंद्रित कर दिया है. कांग्रेस की ओर से चलाया जा रहा महिला सशक्तिकरण का ये चुनावी कैंपेन कितना सफल होगा, ये यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजे तय कर देंगे? लेकिन, इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि प्रियंका गांधी ने यूपी चुनाव 2022 के तौर पर अपने हाथ में आया एक बड़ा मौका गंवा दिया है और महिलाओं के लिए घोषणा पत्र से अब कांग्रेस की राह आसान नही होगी.

Priyanka Gandhi Women Manifestoप्रियंका गांधी ने कांग्रेस के चुनावी कैंपेन को पूरी तरह 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' के अपने नारे पर केंद्रित कर दिया है.

राजनीति को लेकर गंभीरता न दिखने से हुआ नुकसान

बीते कुछ समय में प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हर कमजोर नस पर भरपूर हमला बोला है. खासकर महिलाओं से जुड़े अपराध के मामलों में प्रियंका गांधी ने जितनी लाइमलाइट बटोरी थी, उसके आगे समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी कहीं नहीं ठहर रहे थे. हाथरस से लेकर आगरा और सोनभद्र से लेकर लखीमपुर खीरी तक जिस तरह प्रियंका गांधी ने योगी आदित्यनाथ और भाजपा के खिलाफ माहौल बनाया था, वो उसे कांग्रेस के पक्ष में भुनाने से पूरी तरह से चूक गई हैं. उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी को कांग्रेस का चेहरा बनने के लिए उठ रही मांगों को शीर्ष नेतृत्व के फैसले के भरोसे छोड़ देना उन्हें सूबे में भारी पड़ने वाला है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो प्रियंका गांधी ने राहुल गांधी की तरह ही राजनीति को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई. कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व यानी गांधी परिवार के इस तरीके के फैसलों की वजह से ही तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी अब राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को चुनौती दे रही हैं.

कांग्रेस की ओर से ये घोषणा कई बार की जा चुकी है कि यूपी विधानसभा चुनाव 2022 प्रियंका गांधी के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. लेकिन, प्रियंका गांधी कभी भी नेतृत्व की बागडोर थामने के लिए खुद को आगे करती नजर नही आईं. क्योंकि, उत्तर प्रदेश में नेतृत्व का मतलब केवल और केवल मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी ही होता है. भाजपा ने अपनी ओर से घोषणा कर रखी है कि यूपी चुनाव सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लड़ा जाएगा. समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने तमाम गठबंधन किए हों, लेकिन इस गठजोड़ की ओर से सीएम फेस वो ही बने हैं. यहां तक कि साइलेंट मोड में नजर आ रहीं बसपा सुप्रीमो मायावती भी सूबे में सीएम पद की उम्मीदवार हैं. लेकिन, कांग्रेस की ओर से अभी तक कोई चेहरा घोषित नहीं किया गया है. सवाल ये है कि प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की ओर से सीएम फेस बनने से रोकने वाला कौन था? आसान शब्दों में कहा जाए, तो 'शीर्ष नेतृत्व फैसला करेगा' वाली घुट्टी उन्होंने कार्यकर्ताओं का जोश बनाए रखने के लिए दी थी.

अगर इस मौके को प्रियंका गांधी भुना ले जातीं, तो उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता था. महंगाई, किसान आंदोलन जैसे कई मुद्दे ऐसे थे, जिनके साथ हाथिये पर जा चुकी कांग्रेस सत्ता में वापसी न सही, लेकिन एक सम्मानजनक सीट संख्या तक पहुंच सकती थी. उसके लिए कांग्रेस को केवल इतना करना था कि मुख्यमंत्री पद के लिए प्रियंका गांधी के नाम की घोषणा करनी थी. कोई भी शख्स आंख बंद कर के ये भी कह सकता है कि कांग्रेस में प्रियंका गांधी के फैसले को शायद ही कोई टक्कर देता. लेकिन, 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' के नारे को प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में एक चुनावी नारा बनाकर रख दिया. राजनीतिक तौर पर देखा जाए, तो सूबे में प्रियंका गांधी के पास हारने के लिए कुछ भी नहीं था. क्योंकि, तमाम वरिष्ठ नेताओं के दल-बदल के बाद कांग्रेस उस जगह पर आ खड़ी हुई थी, जहां से उसे 'संजीवनी' केवल प्रियंका गांधी के नाम से मिल सकती थी. लेकिन, प्रियंका गांधी ने इस जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया. 

ओवैसी से बड़ी वोट-कटवा बनेगी कांग्रेस

प्रियंका गांधी ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उनके अलग घोषणा पत्र को जारी करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है. लेकिन, इससे कांग्रेस को कोई खास फायदा होता नहीं दिख रहा है. हां, इतना जरूर कहा जा सकता है कि कांग्रेस इस सियासी रणनीति के सहारे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से बड़ी वोटकटवा पार्टी बन सकती है. क्योंकि, असदुद्दीन ओवैसी पहले से ही अखिलेश यादव के एमवाई समीकरण यानी मुस्लिम+यादव समीकरण से मुस्लिम मतदाताओं को अलग होने का निमंत्रण दे चुके हैं. काफी हद तक संभावना है कि मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम मतदाता अपने समाज की लीडरशिप बनाने के लिए असदुद्दीन ओवैसी के साथ जा सकते हैं. वहीं, इसके ठीक विपरीत अगर प्रियंका गांधी के महिला केंद्रित घोषणा पत्र की बात की जाए, तो वो केवल आधी आबादी के वोटों में बिखराब का एक कारण ही बनती नजर आ रही हैं. भाजपा से अलग-अलग मुद्दों पर नाराज मतदाताओं की आधी आबादी के वोटों पर कांग्रेस पार्टी वोटकटवा के तौर पर हक जमाती नजर आ रही है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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