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Updated: 29 अक्टूबर, 2021 07:58 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) को यूपी में इंतजार बहुत करना पड़ता है. 2019 के आम चुनाव से पहले प्रियंका गांधी वाड्रा जब कांग्रेस महासचिव बन कर लखनऊ पहुंचीं तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) एस्कॉर्ट कर रहे थे - प्रियंका गांधी सिर्फ मुस्कुरा रही थीं क्योंकि बोल तो राहुल गांधी ही रहे थे. तभी पुलवामा आतंकी हमले के चलते प्रियंका गांधी को अपना कार्यक्रम समेट कर दिल्ली लौटना पड़ा. अपने स्तर पर बगैर लोगों से सीधे या मीडिया के जरिये अपने मन की बात कहे ही.

कांग्रेस की प्रतिज्ञा रैली के साथ भी ऐसा ही हुआ. पहले रैली बनारस में होनी थी, लेकिन लखीमपुर खीरी हिंसा के चलते राजनीतिक नफा नुकसान के हिसाब से रणनीति बदलनी पड़ी. बनारस रैली का नाम बदल कर किसान न्याय रैली कर दिया गया था. वो रैली भी पहले गांधी जयंती पर दो अक्टूबर को होने वाली थी, अब जाकर वो 31 अक्टूबर को गोरखपुर में होगी - और 31 अक्टूबर इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि होती है.

प्रतिज्ञा रैली के लिए पहले वेन्यू के रूप में वाराणसी तय किया जाना तो यही जता रहा है कि यूपी चुनाव की तैयारी कर रहीं प्रियंका गांधी वाड्रा के निशाने पर पहले नंबर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं - चूंकि लखीमपुर खीरी हिंसा में आरोपी आशीष मिश्रा मोदी सरकार में मंत्री अजय मिश्रा टेनी का बेटा रहा, इसलिए रैली की जगह न बदल कर बस नाम भर बदल दिया गया था.

गोरखपुर रैली की तारीख हो सकता है पहले से ही 31 अक्टूबर रखी गयी हो क्योंकि गोरखपुर के एक उपचुनाव से इंदिरा गांधी का कनेक्शन भी जुड़ जाता है. 1971 में हुए एक उपचुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कांग्रेस प्रत्याशी रामकृष्ण द्विवेदी के लिए चुनाव प्रचार किया था - और नतीजा ये हुआ कि रामकृष्ण द्विवेदी ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह को चुनाव में हरा दिया. चूंकि त्रिभुवन नारायण सिंह तब यूपी के किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे और उपचुनाव भी हार गये, लिहाजा मुख्यमंत्री की कुर्सी से भी हाथ धोना पड़ गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के संसदीय क्षेत्र से किसानों के नाम पर न्याय के लिए लड़ने का संकल्प लेने के बाद प्रियंका गांधी की पहली प्रतिज्ञा रैली अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के इलाके गोरखपुर के चंपा देवी पार्क में होने जा रही है - रैली में देखना होगा कि प्रियंका गांधी अपने बॉडी लैंग्वेज और भाषण से इंदिरा गांधी से तुलना करने का संकेत देती हैं या फिर दादी का नाम लेकर बीजेपी नेतृत्व को किसी नये तरीके से घेरने की कोशिश करती हैं.

प्रियंका गांधी के निशाने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का होना तो स्वाभाविक है क्योंकि वो यूपी में कांग्रेस को खड़ा करने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन योगी आदित्यनाथ के साथ साथ प्रियंका गांधी वाड्रा लगातार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी टारगेट कर रही हैं - प्रियंका गांधी की ये रणनीति कई वजहों से हो सकती है.

निशाने पर योगी या फिर मोदी

हाल ही में एक मीडिया रिपोर्ट शेयर करते हुए प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्विटर पर लिखा था, 'सरसों तेल, दाल व सब्जी के बढ़े हुए दामों से परेशान उत्तर प्रदेश में मोदी जी की जनसभा से निकलती हुई मेरी बहनों की पीड़ा सुनिए. वे सरकार से पूछ रही हैं - का सूखा खाईं'

एक अलग ट्वीट में प्रियंका गांधी वाड्रा ने किसानों की समस्या के जिक्र के साथ ये बताने की कोशिश की कि वो खाद को लेकर वे कैसे परेशान हैं - 'किसान मेहनत कर फसल तैयार करे तो फसल का दाम नहीं. किसान फसल उगाने की तैयारी करे, तो खाद नहीं. खाद न मिलने के चलते बुंदेलखंड के 2 किसानों की मौत हो चुकी है, लेकिन किसान विरोधी भाजपा सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगा है. इनकी नीयत और नीति दोनों में किसान विरोधी रवैया है.'

narendra modi, priyanka gandhi vadra, yogi adityanathकभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे प्रियंका गांधी यूपी में अगले आम चुनाव की तैयारी कर रही हैं - और उस आंच में राहुल गांधी भी झुलस सकते हैं

चूंकि यूपी चुनाव सिर्फ योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक के दायरे का मामला नहीं है - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सीधे सीधे जुड़े हुए हैं. महज इसलिए नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र यूपी में पड़ता है, बल्कि इसलिए भी क्योंकि अगले आम चुनाव के लिए यूपी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है.

प्रियंका गांधी को तो वैसे भी 2022 से बहुत ज्यादा उम्मीद तो होगी नहीं क्योंकि कांग्रेस नेता ही कह रहे हैं कि अभी तो कांग्रेस को अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, लिहाजा लगे हाथ कोशिश ये होगी कि 2024 के आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए भी तैयारी कर ली जाये - ऐसा भी नहीं कि कोई चीज अलग से करनी पड़ेगी.

प्रियंका गांधी वाड्रा को जहां कहीं भी आम लोगों, खासकर मेहनत मजदूरी करने वालों, से मिलने का मौका मिलता है उसे हाथ से जाने नहीं दे रही हैं. अगर बाराबंकी में धान के खेतों में काम कर रही महिलाओं के बीच चली जाती हैं तो सरेराह आगरा रोड पर स्कूली छात्राओं से भी मिल लेती हैं - और रेल यात्रा के दौरान कूलियों के साथ. बड़ा फायदा ये है कि तस्वीरें शेयर करने लायक होती हैं और देखते ही देखते वायरल हो जाती हैं. कांग्रेस के आईटी सेल को बीजेपी वालों से डायरेक्ट फाइट की जरूरत कम हो जाती है.

बुंदेलखंड में किसान की मौत के बाद प्रियंका गांधी पीड़ित परिवार से मिलने वैसे ही पहुंच जाती हैं जैसे हाल में लखीमपुर खीरी या पुलिस हिरासत में मारे गये सफाई कर्मी अरुण वाल्मीकि के घर.

अभी कुछ दिन पहले ही खाद वितरण की समस्या को बीजेपी नेता बेबी रानी मौर्य ने भी उठाया था. वाराणसी में बीजेपी के एक कार्यक्रम में बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने आगरा के ही एक केस के जरिये वस्तुस्थिति से रूबरू कराने की कोशिश की. बेबी रानी मौर्या का कहना रहा कि अधिकारी निचले स्तर पर बदमाशी करते हैं - ये ठीक है, लेकिन सबको समझ में तो यही आ रहा है कि किसानों को खाद मिलने में मुश्किल हो रही है.

खाद को लेकर बेबी रानी मौर्य और प्रियंका गांधी वाड्रा का एक राय होना प्रधानमंत्री मोदी के लिए न सही, लेकिन मुख्यमंत्री योगी के लिए तो ज्यादा ही खतरनाक है. भले ही बेबी रानी मौर्या की तरफ से ऐसी बातें उनकी निजी महत्वाकांक्षा के चलते सामने आ रही हो.

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा तो खाद और किसान के बहाने सियासत की अपनी कहानी सीधे लखीमपुर खीरी से जोड़ दे रही हैं - क्योंकि वो तो चाहती ही हैं कि कैसे यूपी की हर घटना को किसी न किसी रूप में लखीमपुर खीरी से जोड़ा जा सके.

साइड इफेक्ट तो राहुल पर ही पड़ना है

लखीमपुर खीरी की घटना को लेकर कांग्रेस की तत्परता भले ही चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को बेकार लगे, लेकिन प्रियंका गांधी के लिए तो ये ऐसा कॉम्बो पैकेज है - जिसके जरिये एक साथ वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आसानी से टारगेट कर सकती हैं - फिलहाल तो प्रियंका गांथी के निशाने पर मोदी और योगी दोनों ही बराबर लगते हैं, लेकिन गुजरते वक्त के साथ टारगेट बदल भी सकता है क्योंकि ये सब भी तो देश काल और परिस्थितियों पर ही निर्भर करता है.

योगी आदित्यनाथ के खिलाफ प्रियंका गांधी वाड्रा का आक्रामक होना तो समझ में आता है, लेकिन उसी लहजे में, उसी तेवर के साथ प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाना थोड़ा अजीब भी लगता है - क्योंकि कांग्रेस में बंटी हुई ड्यूटी के हिसाब से मोदी पर हमले की बात तो राहुल गांधी के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आता है.

बेशक पेगासस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश और तेल की कीमतों सहित केंद्र सरकार से जुड़े ऐसे तमाम मुद्दों पर राहुल गांधी ही मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा संभाल रहे हैं, लेकिन कई बार तो लगता है जैसे प्रियंका गांधी वाड्रा की फील्ड में मौजूदगी कांग्रेस के हिस्से में मीडिया की ज्यादा सुर्खियां बटोर रही है.

यूपी चुनाव देश की राजनीति की दिशा तो तय करता ही है, ये तो ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस की अंदरूनी पॉलिटिक्स भी यूपी चुनाव के नतीजों से ही तय होने जा रही है. 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस के भीतर उत्तर प्रदेश का रोल तो सबने देखा ही है. राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफा तो कांग्रेस पार्टी की देश भर में हार की जिम्मेदारी लेना बताकर किया था - लेकिन क्या ऐसा फैसला लेते वक्त अमेठी की हार की जरा सी भी भूमिका नहीं रही होगी.

निश्चित तौर पर अमेठी की हार प्रियंका गांधी के लिए बहुत ही बड़ा झटका रही होगी - क्योंकि कांग्रेस में औपचारिक जिम्मेदारी मिलने पर पार्टी को अमेठी की सीट गंवानी पड़ी थी, लेकिन ज्यादा पीड़ा तो राहुल गांधी को ही हुई होगी. राहुल गांधी ने तो शायद ही कभी ऐसा सोचा भी हो कि अमेठी के लोग उनकी जगह किसी और को भी वोट दे सकते हैं.

सवाल ये है कि यूपी चुनाव के नतीजों के बाद भी क्या प्रियंका गांधी वाड्रा की कांग्रेस में मौजूदा हैसियत ही रहेगी या उसमें कोई इजाफा भी हो सकता है?

यूपी में कांग्रेस की सरकार के बारे में अभी तो कोई सोच भी नहीं रहा है. यहां तक कि समाजवादी पार्टी को पछाड़ कर विपक्ष की भूमिका भी अभी के हिसाब से कांग्रेस के लिए एवरेस्ट फतह करने जैसा लगता है, लेकिन फर्ज कीजिये कांग्रेस बीएसपी को पीछे छोड़ते हुए तीसरे नंबर की पार्टी बन जाती है - फिर क्या कांग्रेस में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के जनाधार को लेकर कोई बहस शुरू नहीं होगी.

प्रियंका गांधी को पहली बार यूपी चुनाव में कांग्रेस की तरफ आधिकारिक तौर पर खुली छूट मिली है. मैंडेट का असर भी साफ साफ नजर आने लगा है. जो काम प्रियंका गांधी यूपी चुनाव के लिए कर रही हैं, ऐसा राहुल गांधी सिर्फ आम चुनाव ही नहीं, इसी साल हुए केरल चुनाव में कर चुके हैं. केरल में राहुल गांधी ने क्या क्या नहीं किया - ताकत दिखाने के चक्कर में बाइसेप्स और ऐब मसल्स तक दिखा डाले, लेकिन नतीजा तो कोई नहीं ही निकला.

जो हालात हैं, खासकर कांग्रेस के भीतर, सोनिया गांधी को कांग्रेस कार्यकारिणी बुलाकर बोलना पड़ रहा है कि वही कांग्रेस अध्यक्ष हैं क्योंकि कांग्रेस के भीतर से ही सवाल उठाये जाने लगे थे कि फैसले ले कौन रहा है? पंजाब के कांग्रेस संकट के बाद तो प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी की भाई-बहन की जोड़ी को ही नयी लीडरशिप के तौर पर देखा जाने लगा - और मान कर चलना चाहिये कि सोनिया गांधी का बयान इसे काउंटर करने के लिए ही सार्वजनिक किया गया था.

मान लेते हैं कि सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष हैं, लेकिन अभी अनऑफिशियल बॉस तो राहुल गांधी ही हैं. फिर तो ये भी मान लेना चाहिये कि यूपी चुनाव के नतीजे आने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा भी कांग्रेस में नये और मजबूत पॉवर सेंटर के तौर पर नजर आने वाली हैं - और राहुल गांधी की राजनीतिक सेहत के लिए ये किसी भी तरीके से ठीक तो नहीं ही होगा.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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