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Updated: 27 अप्रिल, 2019 04:21 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रधानमंत्री के तौर पर नामांकन के पहले और बाद में नरेंद्र मोदी ने हर पल विनम्रता दिखायी और कदम कदम पर शक्ति प्रदर्शन भी किया. एक साथ ऐसा करना मुश्किल होता है. शायद उन्हें बताना भी था और जताना भी - 'मोदी है तो मुमकिन है'!

वाराणसी में रोड शो शुरू करने से पहले मोदी ने जिस भाव से मदन मोहन मालवीय की मूर्ति को प्रणाम किया ठीक उसी प्रकार झुक कर काशीवासियों का भी अभिवादन किया. जब एनडीए के सहयोगी समर्थन देने पहुंचे तो शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल के भी पैर छुए - और प्रस्तावक बनीं अन्नपूर्णा शुक्ला के भी. यहां तक कि नामांकन पत्र सौंपने के बाद निर्वाचन अधिकारी का भी हाथ जोड़ कर अभिवादन किया.

'सबका साथ, सबका विकास' का भाव छूटा नहीं है ये जताने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने काशी के डोमराजा जगदीश चौधरी को भी प्रस्तावक बना कर विशेष मैसेज देने की कोशिश की. वाराणसी की जमीन से प्रधानमंत्री मोदी ने मतदान के बाकी बचे चरणों के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं, समर्थकों के साथ साथ जनता को भी संदेश दिया - 'वोट जरूर करें'.

काशी के कोतवाल काल भैरव दर्शन और फिर नामांकन के बाद सबसे आखिर में प्रधानमंत्री मोदी ने जो बात कही, उससे ऐसा लगता है कि बीजेपी नेतृत्व 2004 के शाइनिंग इंडिया कैंपेन की दहशत से अब भी उबर नहीं पाया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नामांकन में कई बातें देखने को मिलीं जिन्होंने बरबस ही ध्यान खींचा. NDA की एकजुटता के प्रदर्शन में नीतीश कुमार और ओ. पनीरसेल्वम की मौजूदगी विशेष रूप से उल्लेखनीय लगती है.

1. डोमराजा की मौजूदगी

वाराणसी संसदीय सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नामांकन में काशी में दाह संस्कार कराने वाले डोमराजा परिवार के जगदीश चौधरी की मौजूदगी खास लगती है - और मोदी का एक प्रस्तावक का पैर छूना उसे और भी खास बना देता है.

प्रधानमंत्री मोदी के चार प्रस्तावकों में शुमार रहे - डोमराजा परिवार से जगदीश चौधरी, संघ के पुराने कार्यकर्ता सुभाष गुप्ता, वनिता पॉलिटेक्निक की पूर्व प्रधानाचार्या, अन्नपूर्णा शुक्ला और राम शंकर पटेल.

प्रधानमंत्री मोदी के नामांकन के मौके पर उनके कैबिनेट सहयोगियों और बीजेपी नेताओं की मौजूदगी तो स्वाभाविक रही लेकिन जिस तरीके से एनडीए के नेताओं ने मौजूदगी दिखायी वो लोगों के लिए संदेश था. NDA नेताओं में बिहार से नीतीश कुमार, पंजाब से प्रकाश सिंह बादल, महाराष्ट्र से उद्धव ठाकरे, तमिलनाडु से ओ. पनीरसेल्वम, नगालैंड से नेफियू रियो के साथ साथ लोक जनशक्ति पार्टी नेता राम विलास पासवान और अपना दल की अनुप्रिया पटेल भी मौजूद रहीं.

narendra modiसबका साथ, सबका विकास और सबका आशीर्वाद!

2. कांग्रेस पर कटाक्ष

प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं के सलाह दी, 'हेकड़ी नहीं मारनी चाहिए, हेकड़ी दिखाने वाले 400 से 40 हो गए. हम पूरी तरह सिर झुकाकर राजनीति करेंगे. कोई मोदी को कितनी ही भद्दी गाली दे, इसकी चिंता नहीं हम जो टीवी में झगड़ा करते हैं उससे प्रेरणा नहीं लें. कोई जितनी गाली दे... सब मुझे पोस्ट कर दो, मैं उसमें से खाद बनाता हूं और उसी में कमल खिलाता हूं.'

3. बनारस में बंगाल-केरल का जिक्र

बीजेपी के बूथ कार्यकर्ताओं से मुलाकात में मोदी ने बंगाल और केरल का खास तौर पर जिक्र किया. मोदी ने बताया कि जब पश्चिम बंगाल में हर कार्यकर्ता घर मां को बोलकर निकलते हैं कि वो भाजपा का काम करने के लिए जा रहा है - और अगर शाम को जिंदा नहीं आ सका तो तो छोटे भाई को भेज देना.

प्रधानमंत्री मोदी ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल और केरल में बम, बंदूक और पिस्तौल के साये में बीजेपी के कार्यकर्ता काम कर रहे हैं.

4. ताकि किताब लिखनी पड़े

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि वाराणसी के चुनाव को ऐसा बनाना है कि सियासी पंडितों को किताब लिखनी पड़ जाए. मोदी ने ऐसा करने के लिए कार्यकर्ताओं से आखिरी दम तक डटे रहने की अपील की.

5. हर उम्मीदवार सम्माननीय

दोबारा बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने मोदी ने विपक्षी दलों के नेताओं के सम्मान की भी सलाह दी. मोदी ने कहा, 'किस पार्टी से कौन उम्मीदवार मैदान में है, कृपा करके ये चर्चा मत करें. हर उम्मीदवार सम्मानीय है. वो भी लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए मैदान में आया है... वो हमारा दुश्मन नहीं है.'

6. दिल जीतो, दल जीत जाएगा

विरोधियों के सम्मान के साथ ही मोदी ने चुनाव को उत्सव के रूप में देखने की सलाह दी. मोदी बोले, 'ये चुनाव जंग नहीं लोकतंत्र का उत्सव है. जनता का दिल जीतने में जिंदगी खपानी है. हम दिल जीतने आए हैं... दल अपने आप जीत जाएगा.'

7. फिर तो मजा आ जाता

मोदी ने ये भी समझाया कि जीत का मजा यूं ही नहीं आता, उसके लिए कुछ खास करना होता है, 'मुझे बनारस जीतने का मजा नहीं आएगा, अगर मेरा साथी बूथ हार जाता है. मुझे पोलिंग बूथ जीतना है - जैसे श्रीकृष्ण ने गोवर्धन उठाया था, उसी प्रकार काशी में विजय हासिल करनी है.'

मोदी ने कहा, 'मैं भी बूथ कार्यकर्ता रह चुका हूं. मुझे भी दीवारों पर पोस्टर चिपकाने का सौभाग्य मिल चुका है.'

8. चुनाव खर्च कैसे बचायें

प्रधानमंत्री मोदी ने चुनावों में हो रहे बेतहाशा खर्च पर चिंता जतायी और बचत के तरीके भी सुझाये. मोदी ने बीजेपी के बूथ कार्यकर्ताओं को समझाया कि कैसे वे बगैर खर्च के चुनाव लड़ सकते हैं. मोदी बोले - 'जितने दिन चुनाव में बचे हैं लोगों के घर जाइए, चाय-नाश्ता और अखबार उनका इस्तेमाल कीजिए. आखिर में उन लोगों को कहिये कि वो बीजेपी को वोट करें. दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचार का तरीका भी यही है. मोदी लंबे अरसे तक संघ के प्रचारक के तौर पर काम कर चुके हैं.

9. एक इच्छा पूरी कर दो

प्रधानमंत्री मोदी ने एक अधूरी इच्छा भी पूरी करने की अपील की. मोदी ने पूछा, 'मेरी एक इच्छा है जो मैं गुजरात में भी पूरा नहीं कर पाया. बनारस वाले मेरी वो इच्छा पूरी कर सकते हैं क्या?

फिर अपनी इच्छा बतायी, मैं चाहता हूं कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं का मतदान 5 फीसदी ज्यादा होना चाहिए. हमें तय करना चाहिए कि अगर हमारे पोलिंग बूथ में 100 वोट पुरुष के पड़ते हैं तो 105 माताओं-बहनों के पड़ें.'

10. डांट भी खानी पड़ी

प्रधानमंत्री ने बताया कि रोड शो के दौरान उन्हें सोशल मीडिया पर लोगों की डांट भी सुननी पड़ी. मोदी ने बताया, 'लोग कह रहे थे कि अंधेरे में कैसे जा रहे हैं. श्रीलंका में जो हुआ है. मोदी की कोई सुरक्षा करता है, तो इस देश की करोड़ों माताएं, बहनें...21वीं सदी की ताकत हमारी माताएं, बहनें बनने वाली हैं.

नामांकन के बाद वाराणसी से प्रस्थान के वक्त मोदी ने बनारस के लोगों की फिर से तारीफ की. मोदी ने कहा, टरात के चार-छह घंटे निकाल दें तो कल शाम पांच बजे से रोड शो चल रहा है... ये काम काशीवासी ही कर सकते हैं.'

जाते जाते मोदी ने वाराणसी की धरती से लोगों से अपील की कि वो वोट जरूर करें. मोदी ने जोर देकर समझाया कि अगर कोई कहता है कि मोदी जीत गये तो ये सुनकर वोट देना न छोड़ें.

2004 के चुनाव को लेकर सोनिया गांधी ने रायबरेली में अपने नामांकन के बाद कहा था कि वाजपेयी को भी अजेय माना जा रहा था लेकिन कांग्रेस ने हरा दिया. सोनिया के कहने का मतलब रहा कि देर भले हो जाये लेकिन इतिहास दोहराता है.

narendra modiये भाव तो वोट मांगते वक्त ही दिखता है, लेकिन मोदी तो यहां भी...

2004 में बीजेपी ने शाइनिंग इंडिया कैंपेन चलाया था और 'अच्छे दिनों...' से पहले हर तरफ 'फील गुड' का एहसास कराया जा रहा था. माना जाता है कि वाजपेयी की लोकप्रियता पर भरोसा कर बीजेपी कार्यकर्ताओँ का बूथ मैनेजमेंट से ध्यान हट गया. बीजेपी नेतृत्व तब भूल गया कि जीत के लिए सबसे जरूरी वोट दिलाना होता है. अब भी माना जाता है कि तब भी ऐसा हुआ होता तो नतीजे अलग होते. लगता है 'शाइनिंग इंडिया' का डर बीजेपी का पीछा नहीं छोड़ रहा.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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