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Updated: 14 मई, 2021 09:27 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) अमित शाह (Amit Shah) की बात जरूर मानते हैं - और ये बात भी नीतीश कुमार ने खुद ही बतायी भी है. अब अगर अमित शाह के कहने पर वो अपनी पार्टी में प्रशांत किशोर को ले सकते हैं, तो सोचिये भला और क्या नहीं कर सकते?

वैसे जब तक पप्पू यादव (Pappu Yadav) केस को लेकर नीतीश कुमार खुद ये नहीं बताते कि किसके कहने पर गिरफ्तारी की गयी अनुमान लगाने से कोई फायदा भी नहीं है, लेकिन संदेह वाली बात ये भी नहीं है कि नीतीश सरकार को बीजेपी के दबाव में ही ये कदम उठाना पड़ा है.

कोरोना संकट के दौर में लोगों के बीच मुसीबत के मसीहा बन कर पहुंच जाने वाले पप्पू यादव की गिरफ्तारी के बाद ऐसा लग रहा है जैसे नीतीश कुमार अकेले पड़ गये हों - बिहार के आम लोग, पप्पू यादव के समर्थक, लालू यादव की पार्टी ही नहीं, जेडीयू के दो प्रमुख सहयोगी जीतनराम मांझी और सन ऑफ मल्लाह मुकेश साहनी भी पप्पू यादव की गिरफ्तारी को गलत बता रहे हैं.

पप्पू यादव की पत्नी और पूर्व कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने भी पटना में धावा बोल दिया है - "अगर 2 दिनों में पप्पू यादव की रिहाई नहीं हुई, तो मैं मुख्यमंत्री जी आपको, आपके गुर्गे को, राजीव प्रताप रूडी और भाजपाई को सड़क पर खड़ा करूंगी.'

रंजीत रंजन ने पटना पहुंचने से पहले ही कह दिया था कि पप्पू यादव कोरोना नेगेटिव हैं, लेकिन अगर पॉजिटिव हुए तो सीएम ऑफिस से सबको चौराहे पर लाकर खड़ा कर दूंगी. पटना में प्रेस कांफ्रेंस के दौरान भी रंजीत रंजन ने दोहराया कि पप्पू यादव के गॉल ब्लैडर का ऑपरेशन हुआ है और वो हाई-रिस्क कैटेगरी में आते हैं.

मान लेते हैं कि पप्पू यादव लोगों की सेवा के साथ साथ नीतीश कुमार सरकार की खामियों को भी सामने ला रहे थे. अस्पतालों में सुविधाओं का न होना, दवाइयों की कमी और बाकी व्यवस्थाओं को लेकर पप्पू यादव हमेशा ही आक्रामक रहे हैं.

राजीव प्रताप रूडी के घर पर खड़ी एंबुलेंस पर ढका पर्दा हटाने का काम भी पप्पू यादव के उन रणनीतियों का ही हिस्सा है, जिनकी बदौलत वो मुख्यधारा की राजनीति में फिर से जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

सवाल ये है कि क्या नीतीश कुमार क्या बीजेपी के इतने दबाव में फंस गये हैं कि वो कहे तो पैर पर कुल्हाड़ी मार लेंगे या फिर ज्यादा दबाव बनाये तो कुल्हाड़ी पर ही पैर दे मारेंगे - अगर ऐसा नहीं है तो नीतीश कुमार ऐसे फैसले क्यों ले रहे हैं जिसमें उनकी अकेले ही फजीहत हो रही है.

पप्पू की गिरफ्तारी को लेकर अकेले पड़े नीतीश कुमार

पूर्वांचल में एक कहावत चलती है - 'ठठेरे ठठेरे बदलैया नहीं हो पाती.' ठठेरा बर्तन का व्यवसाय करने वालों को कहते हैं. कहावत की समझाइश ये है कि बाकी लोग भले ही बर्तनों की सही जानकारी न होने के चलते अदला-बदली कर लें, लेकिन जो उसके एक्सपर्ट हैं वे खूबियां और खामियां दोनों जानते हैं और अगर मामला दो ठठेरों के बीच हो तो एक दूसरे को कोई धोखा नहीं दे सकता.

ये मिसाल देने के पीछे दो दिग्गज नेताओं की अपनी अपनी राजनीतिक जोर आजमाइश है - बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों को ही चाणक्य कहा जाता है. नीतीश कुमार को बिहार में जैसे तैसे कुर्सी पर जमे रहने के कारण और अमित शाह को बीजेपी को सबसे ताकतवर पार्टी बनाने और चुनावी मशीन में तब्दील कर देने को लेकर.

pappu yadav, nitish kumar, ranjit ranjanपप्पू यादव को छोड़ने के लिए उनकी पत्नी रंजीत रंजन ने नीतीश कुमार को अल्टीमेटम दे दिया है

पप्पू यादव की गिरफ्तारी का मामला देखें तो हो सकता है नीतीश कुमार और अमित शाह के बीच सीधा संवाद न हुआ हो. माना जा रहा है कि अमित शाह पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी पर सियासी नकेल कसने और जल्द से जल्द सत्ता से बेदखल कर राइटर्स बिल्डिंग में बीजेपी का झंडा फहराने की तैयारी में जुटे हैं - और फिर कोरोना संकट में सरकारी कामकाज का बोझ भी तो है. ये बात अलग है कि देश के लोगों को ये महसूस नहीं हो रहा है कि सरकार उनकी जिंदगी बचाने के लिए क्या कर रही है?

लेकिन ये तो हुआ ही होगा कि दोनों के बीच संवाद सेतु की भूमिका निभाने वाले नेताओं ने मन की बात बता दी हो और फिर उसी के आधार पर नीतीश कुमार पर पप्पू यादव की गिरफ्तारी को लेकर दबाव बनाया हो.

अब एक बात समझ में नहीं आती कि नीतीश कुमार ने आंख मूंद कर ऐसा फैसला क्यों किया - और गिरफ्तारी का फैसला भी हुआ तो महामारी एक्ट में पकड़ लेने के बाद 1989 के अपहरण के केस में जेल भेजने का फैसला किसने लिया. और ये फैसला भी किसके कहने पर लिया गया.

अब भले ही ये कहानी समझायी जाये कि पप्पू यादव की गिरफ्तारी बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी के के यहां उनकी छापेमारी का बदला है, लेकिन ऐसा है तो महामारी एक्ट के तहत ही जेल भी क्यों नहीं भेजा गया?

क्या इसलिए क्योंकि बीजेपी ने ऐसी तोहमत से बचने का रास्ता पहले ही निकाल लिया था? फिर तो नीतीश कुमार सरकार को ही समझाना पड़ेगा कि लॉकडाउन के उल्लंघन के आरोप में पकड़ने के बाद जेल किसी दूसरे मामले में क्यों भेजा?

अब तो ये शक भी पैदा होता है कि पप्पू यादव को महामारी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया जाना संभव ही नहीं हो पा रहा होगा - फिर पकड़ लेने बाद माथापच्ची शुरू हुई कि केस कैसे बने - और तब तक पुराने मामले में रास्ता मिल गया.

मालूम हुआ है कि 1989 के एक अपहरण केस में पप्पू यादव जमानत पर छूटे हुए थे, लेकिन कोर्ट के आदेश पर ध्यान नहीं दिया. मधेपुरा की अदालत ने 22 मार्च को ही पप्पू यादव के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी किया था - और पुलिस की पड़ताल में करीब डेढ़ महीने बाद जेल भेजने का ग्राउंड तैयार हो गया. और मिशन पूरा हो गया.

नीतीश कुमार पर पप्पू यादव की पूर्व सांसद पत्नी रंजीत रंजन ने हमला तो बोला ही है, बिहार के मुख्यमंत्री अपने गठबंधन और कैबिनेट साथियों के भी निशाने पर हैं जो पप्पू यादव की गिरफ्तारी को गलत बता रहे हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और नीतीश कुमार के गठबंधन और कैबिनेट साथी मुकेश साहनी ने भी पप्पू यादव की गिरफ्तारी की तीखी आलोचना की है. जीतनराम मांझी ने तो इसे असंवेदनशील कदम बताया है.

और तो और बीजेपी एमएलसी रजनीश कुमार ने भी पप्पू यादव की गिरफ्तारी को गलत बताते हुए मानवीय आधार पर उनको फौरन रिहा करने की मांग की है. दो जेडीयू नेताओं ने भी नीतीश कुमार के इस फैसले को गलत बताया है. जेडीयू नेता मोनाजिर हसन का कहना है कि गिरफ्तारी तो छपरा के डीएम और राजीव प्रताप रूडी की होनी चाहिये थी. जेडीयू नेता का कहना है कि मुसीबत के समय गरीबों की मदद करते वक्त पप्पू यादव की गिरफ्तारी निंदा का विषय है.

जेडीयू नेता विजयेंद्र यादव ने पप्पू यादव को मानवीय आधार पर तत्काल रिहा करने और एंबुलेंस केस की जांच कराने और राजीव प्रताप रूडी के इस्तीफे की मांग की है.

रूडी का नहीं - ये तो बंगाल का बदला लगता है

नीतीश कुमार के चेहरे पर अमित शाह ने ममता बनर्जी की जीत की खुशी तत्काल प्रभाव से पढ़ ली थी - और बाद में तो बस मौके के इंतजार में थे.

पश्चिम बंगाल के चुनाव नतीजे आने के बाद जिस तरह से कांग्रेस नेतृत्व ने खुशी महसूस और जाहिर की थी, नीतीश कुमार और उनके साथियों के चेहरे पर भी वैसी ही खुशी देखने को मिली थी. कांग्रेस नेतृत्व के लिए तो विधानसभा चुनावों में हार का दर्द इसलिए भी कम हो गया था कि बंगाल में बीजेपी हार गयी - और वे उसका इजहार भी उसी तरीके से कर रहे थे.

बधाई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ममता बनर्जी को दी थी, लेकिन जैसा जोश जेडीयू खेमे में दिखायी दिया, बीजेपी नेतृत्व के लिए बर्दाश्त करना काफी मुश्किल रहा होगा - और खास तौर पर उपेंद्र कुशवाहा का रिएक्शन जिसमें बीजेपी के पुराने साथी ने 'चक्रव्यूह' शब्द का इस्तेमाल किया, बीजेपी के लिए बेहद नागवार रहा होगा. कभी नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी रहे उपेंद्र कुशवाहा ने बिहार के मुख्यमंत्री के बढ़ते दबदबे की वजह से ही 2018 में एनडीए छोड़ दिया था और कुछ दिन बाद महागठबंधन ज्वाइन कर लिये थे, लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तेजस्वी यादव से खटपट हो जाने के बाद उनका साथ छोड़ कर अलग अलग पार्टियों के साथ गठबंधन कर लिया था. चुनावों में कामयाबी नहीं मिली तो थक हार कर नीतीश कुमार का ही नेतृत्व स्वीकार कर लिया.

फिलहाल उपेंद्र कुशवाहा जेडीयू के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं - और ममता बनर्जी को जिस तरीके से उपेंद्र कुशवाहा ने बधायी दी, साफ साफ नजर आ रहा था कि उनके निशाने पर बीजेपी नेतृत्व ही है. ममता बनर्जी को हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा चुके मोदी-शाह के लिए उपेंद्र कुशवाहा की टिप्पणी जले पर नमक छिड़कने जैसी ही रही.

ये ठीक है कि पप्पू यादव नीतीश सरकार पर सीधे सीधे हमलावर थे - लेकिन ऐसा तो तब भी दिखा जब पटना में बाढ़ आयी थी और जब बुखार से लोग मर रहे थे, लेकिन तब तो नीतीश कुमार टिप्पणी करना तक उचित नहीं समझते थे. फिर ऐसा क्या हुआ कि पप्पू यादव को उठाकर जेल भेज दिया?

बहाना भले ही पप्पू यादव हों, लेकिन उनकी गिरफ्तारी बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी के यहां छापेमारी से कहीं ज्यादा बंगाल चुनाव में बीजेपी की हार से मिले जख्मों को कुरेदना लग रहा है - बीजेपी नेतृत्व नीतीश कुमार के पर तो पहले ही कतर चुका है अब तो लगता है उनको राजनीतिक रूप से दिव्यांग बनाने की तैयारी चल पड़ी है. वैसे भी बीजेपी नेतृत्व को भी मालूम होना चाहिये कि नीतीश के खिलाफ ये सब करने के लिए बीजेपी नेतृत्व ने गलत वक्त चुना है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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