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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 22 अप्रिल, 2021 05:45 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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यूपी की योगी सरकार को जब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पांच शहरों में लॉकडाउन लगाने का आदेश दिया तो वो सुप्रीम कोर्ट चले गये - और सुप्रीम कोर्ट ने स्टे भी दे दिया - कोविड के वायरल प्रसार के चलते जैसे हालात महाराष्ट्र और दिल्ली में हैं, मिलते जुलते ही यूपी और गुजरात में हैं, लेकिन लगता तो ये है कि लॉकडाउन पर एक पॉलिटिकल लाइन (Lockdown Politics) खींच दी गयी हो.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने बेशक कहा है कि लॉकडाउन अंतिम विकल्प होना चाहिये - सवाल है कि वो कौन सी स्थिति है जब समझा जाये कि वो स्थिति आ गयी है और फिर राज्य सरकारें अंतिम विकल्प के तौर पर लॉकडाउन का फैसला करें.

आखिर उस अंतिम स्थिति को परिभाषित करने का क्या तरीका होगा? विपक्षी दलों (Opposition) के मुख्यमंत्री जहां अपने अलग फैसले ले रहे हैं, वहीं बीजेपी वाले अपने नेता का मुंह देखते हुए एक्ट या रिएक्ट कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ही तरह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी बार बार बता रहे हैं कि आर्थिक गतिविधियां भी जरूरी हैं - और लॉकडाउन जैसे फैसले लेकर गरीबों को कोरोना वायरस की वजह से रोजी रोटी से वंचित नहीं किया जाएगा.

ठीक है, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने बड़ा मुद्दा उठाया है - "हमें आश्चर्य है कि सरकार जमीनी सच्चाई से वाकिफ ही नहीं है. हजारों लोग देश में मर रहे हैं, ऐसे में स्टील प्लांट चलाना आपकी प्राथमिकता है?"

दरअसल, कोरोना संकट के बीच दिल्ली के मैक्स अस्पताल ने आरोप लगाया कि उसके यहां आने वाले ऑक्सीजन टैंकर को AIIMS भेज दिया गया, जिसके चलते उसके मरीजों की जान खतरे में पड़ गई है.

हाई कोर्ट ने कहा कि लोगों को मरने के लिए यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता. ये एक बहुत गंभीर मुद्दा है - लोगों की जिंदगी उनका मौलिक अधिकार है, 'आप उनकी जान बचाने के लिए क्या कर रहे हैं?'

यूपी सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने स्टे ऑर्डर तो दे दिया था, लेकिन अब स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि वो बताये कि कोरोना संकट पर उसका प्लान क्या है?

ये तो अभी का हाल है. 2020 में भी केंद्र सरकार और राज्यों की गैर बीजेपी सरकारों में लॉकडाउन को लेकर ऐसे ही विरोधाभास देखने को मिले थे - और उसमें भी अपने अपने राजनीतिक हित ज्यादा महत्वपूर्ण लग रहे थे, न की आम आदमी की जान की कीमत.

जब विपक्षी सरकारो में लॉकडाउन की होड़ मची थी

19 मार्च, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रात 8 बजे देश के नाम संबोधन में जनता से सहयोग की अपील की और संकल्प के साथ साथ संयम की जरूरत पर जोर दिया - और उसी दौरान दो दिन बाद यानी 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के पालन का सुझाव दिया.

प्रधानमंत्री मोदी ने खुद ही समझाया कि 22 मार्च को सुबह 7 बजे से रात 9 बजे तक ये कर्फ्यू जनता के लिए जनता के द्वारा ही होगा और जनता कर्फ्यू के दौरान लोग घरों में ही रहें, कोई बाहर न निकले.

ये तब की बात है जब देश में लॉकडाउन लागू किये जाने के कोई संकेत नहीं मिले थे, हां, चर्चा जरूर होने लगी थी. केंद्र सरकार के साथ साथ राज्य सरकारें अपने अपने स्तर पर कोरोना संकट से निबटने की तैयारियों में जुटी हुई थीं.

yogi adityanath, narendra modi, nitish kumarकोरोना संकट का मामला अभी तो देश की सर्वोच्च अदालत में है, एक दिन जनता की अदालत में भी तो आएगा ही

22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दिन ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य में लॉकडाउन लागू करने की घोषणा कर दी. फिर उनको फॉलो करते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी सूबे में लॉकडाउन लागू कर सख्त पाबंदियां लागू कर दीं.

ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 24 मार्च को पूरे देश में संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा से भी दो दिन पहले की ही बात है. यानी, पूरे देश में सबसे पहले राजस्थान में लॉकडाउन लागू करने वाले अशोक गहलोत पहले मुख्यमंत्री रहे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की थी - और आखिर दौर में उसे बढ़ाये जाने या खत्म किये जाने पर बहस चल ही रही थी कि गैर बीजेपी सरकारों की तरफ से लॉकडाउन बढ़ाये जाने की खबरें आने लगीं. आगे भी ये सिलसिला जारी रहा.

एक बार फिर वैसी ही स्थिति दिखाई दे रही है. कोरोना के प्रसार को देखते हुए सख्त पाबंदियों के पैरोकार उद्धव ठाकरे और अरविंद केजरीवाल सबसे पहले सामने आये. पहले नाइट कर्फ्यू, फिर वीकेंड कर्फ्यू और अब लॉकडाउन जैसी पाबंदियां लागू की गयी हैं, लेकिन ऐसा बीजेपी शासित राज्यों में देखने को नहीं मिल रहा है जबकि यूपी, मध्य प्रदेश, हरियाणा सभी जगह करीब करीब एक जैसी ही मुश्किल स्थिति बनी हुई है.

महाराष्ट्र ने पहले पूरे राज्य में धारा 144 लागू किया था और अब पाबंदियों और ज्यादा सख्त किया गया है, लेकिन उसे लॉकडाउन नाम नहीं दिया गया है. दिल्ली में भी हफ्ते भर के लिए ऐसा ही किया गया है.

ये तो 2020 में ही साफ तौर पर देखने को मिला था कि केंद्र सरकार ने लॉकडाउन तो लागू कर दिया, लेकिन उसके बाद पूरे देश में जो अफरातफरी मची कि कोहराम मच गया. सड़कों पर, खास कर हाइवे पर हर जगह दिहाड़ी मजदूर ही नजर आ रहे थे - लॉकडाउन के कई दर्दनाक किस्से याद कर आज भी मन सिहर उठता है.

2020 के लॉकडाउन को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार निशाने पर रहे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर सोनिया गांधी और उनके साथियों ने मोदी सरकार पर बगैर तैयारियों के बिना सोचे समझे लॉकडाउन लागू करने का आरोप लगाया - यहां तक कि कांग्रेस नेताओं का कहना रहा कि सरकार को अगर किसी बात का इंतजार रहा तो वो सिर्फ मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का.

पिछले साल तो सड़क पर बेहाल परेशान लोगों में ज्यादातर प्रवासी मजदूर ही नजर आये, लेकिन इस बार तो हर कोई जैसे अपनी जिंदगी की सबसे मुश्किल चुनौतियों से दो-दो हाथ करने को मजबूर हो गया हो. पिछली बार तो महाराष्ट्र में भी धारावी जैसे स्लम इलाके ज्यादा प्रभावित रहे, लेकिन इस बार तो जो खबर आ रही है, मालूम होता है कि ऊंची इमारतों में रहने वाले लोग हैं - और अच्छी खासी जिंदगी बसर करने वाले लोग भी दर दर भटकने को मजबूर हैं.

लोग कितनी मुश्किल से भूखे प्यासे भाग भाग कर अस्पताल में बेड, दवा और ऑक्सीजन के सिलिंडर के लिए परेशान हैं - और व्यवस्था ऐसी है कि अस्पताल में ऑक्सीजन लीक होने से एक झटके में वेंटिलेटर पर पहुंच कर भी जिंदगी की जंग लड़ रहे लोग इसलिए हार जाते हैं क्योंकि अचानक उनकी ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो जाती है.

लॉकडाउन जैसे कदम से मोदी सरकार के भागने की जो भी वजह हो, लेकिन अब तो कोरोना वायरस से मुकाबले की तैयारियों को लेकर ही निशाने पर आ गयी है - सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस देकर केंद्र सरकार से सवाल पूछा है, देखते हैं क्या जवाब दिया जाता है?

सवाल तो जनता भी पूछ रही है, लेकिन जैसे तैसे उसे गुमराह करने की ही कोशिश की जा रही है, लेकिन ये नहीं भूलना चाहिये कि एक निश्चित वक्त के अंतराल के बाद सबको जनता की अदालत में जाना ही होता है - और जब जनता खुद को त्रस्त महसूस करती है तो बगैर सवाल पूछे, बगैर जिरह किये और बगैर सफाई का मौका दिये सीधे फैसला सुना देती है.

ये कौन सा 'खेला' चल रहा है?

लॉकडाउन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नहीं, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी स्टैंड बदला बदला नजर आ रहा है. नीतीश कुमार जहां पिछली बार लोगों से जहां हैं वहीं बने रहने की अपील कर रहे थे, वहीं इस बार उसके उलट कह रहे हैं कि वे जल्द से जल्द अपने राज्य में लौट आयें.

हैरानी की बात ये है कि नीतीश कुमार का ये स्टैंड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ जा रहा है, अभी राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा था कि जो जहां हैं वहीं रुके रहें.

अब तक तो यही देखने को मिला है कि नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री मोदी के बयान कभी विरोधी नहीं हुआ करते थे जैसा विरोधाभास नीतीश कुमार और योगी आदित्यनाथ की बातों में हमेशा ही देखने को मिलता है.

क्या नीतीश कुमार का नया स्टैंड राजनीतिक वजहों से हो सकता है और उनके निशाने पर परोक्ष रूप से ही सही बीजेपी नेतृत्व ही लगता है?

बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल की फेसबुक पोस्ट के बाद तो ऐसा लग रहा है जैसे नीतीश कुमार कोरोना संकट में केंद्र की सत्ता में होने की वजह से लोगों के गुस्से का शिकार हो रही बीजेपी से बदले का कोई खेल खेल रहे हों.

और हाल फिलहाल का ये घटनाक्रम नीतीश कुमार और बिहार बीजेपी के बीच टकराव का नया मुद्दा बन चुका है - सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि बिहार बीजेपी अध्यक्ष संजय जायसवाल भी नीतीश कुमार को निशाना बनाते हुए प्रधानमंत्री मोदी की बातों को ही काटते नजर आ रहे हैं.

संजय जायसवाल फेसबुक पर लिखते हैं, 'मैं कोई विशेषज्ञ तो नहीं हूं, फिर भी सभी अच्छे निर्णयों में इस एक निर्णय को समझने में असमर्थ हूं कि रात का कर्फ्यू लगाने से करोना वायरस का प्रसार कैसे बंद होगा... अगर करोना वायरस के प्रसार को वाकई रोकना है तो हमें हर हालत में शुक्रवार शाम से सोमवार सुबह तक की बंदी करनी ही होगी... घरों में बंद इन 62 घंटों में लोगों को अपनी बीमारी का पता चल सकेगा और उनके बाहर नहीं निकलने के कारण बीमारी के प्रसार को रोकने में कुछ मदद अवश्य मिलेगी.'

संजय जायसवाल पेशे से डॉक्टर हैं और MD की डिग्री उनके पास है. निश्चित तौर कोरोना को लेकर बाकियों के मुकाबले उनकी बेहतर समझ होगी, लेकिन खुद के विशेषज्ञ न होने की बात वो कटाक्ष में कहते हैं, ऐसा लगता है.

बिहार ही नहीं महाराष्ट्र को लेकर भी संजय जायसवाल के पास सुझाव है और उसी में नीतीश कुमार के लिए चेतावनी भी. कहते हैं, 'करोना प्रसार रोकने की महाराष्ट्र में सर्वोत्तम स्थिति यही रहती कि 4 दिन रोजगार और 3 दिन की बंदी... बिहार में अभी इसकी जरूरत नहीं है पर अगर हम हफ्ते में 2 दिन कड़ाई से कर्फ्यू नहीं लगा पाये तो हमारी स्थिति भी महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ जैसी हो सकती है.'

ध्यान देने वाली बात ये है कि नीतीश कुमार के जिस नाइट कर्फ्यू के फैसले का संजय जायसवाल मजाक उड़ा रहे हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसके लिए बुद्धिजीवियों का आंदोलनजीवियों की तरह मजाक उड़ा चुके हैं.

देश के मुख्यमंत्रियों के साथ कोरोना महामारी को लेकर हुई मीटिंग में प्रधानमंत्री मोदी ने नाइट कर्फ्यू का समर्थन किया था. प्रधानमंत्री का कहना रहा कि दुनिया भर में रात्रि कर्फ्यू को स्वीकार किया गया है - अब हमे नाइट कर्फ्यू को कोरोना कर्फ्यू के नाम से याद रखना चाहिये.

प्रधानमंत्री की बातों पर लगता है संजय जायसवाल का ध्यान नहीं गया, 'कुछ बुद्दिजीवी डिबेट करते हैं क्या कोरोना रात में आता है? हकीकत में दुनिया ने रात्रि कर्फ्यू के प्रयोग को स्वीकार किया है, क्योंकि हर व्यक्ति को कर्फ्यू समय में ख्याल आता है कि मैं कोरोना काल में जी रहा हूं - और बाकी जीवन व्यवस्थाओं पर कम से कम प्रभाव होता है.'

अस्पताल में बच्चों की मौत का महीना अगस्त को बता चुके यूपी सरकार के मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कठघरे में खड़ा करने के चक्कर में यही भूल जा रहे हैं कि पिछले साल देश में लॉकडाउन केंद्र की मोदी सरकार ने लागू किया था या दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार ने.

लखनऊ में मची कोरोना वायरस के चलते मची तबाही के बीच, सिद्धार्थनाथ सिंह अपने आवास पर मीडिया से बातचीत में काफी आक्रामक नजर आये, 'दिल्ली सरकार ने गरीबों, बेसहारा और प्रवासी मजदूरों को नजरअंदाज करते हुए अपनी कमियों को छुपाने और जनता को धोखे में रखने के लिए आनन-फानन में एक सप्ताह का लॉकडाउन लगाया है - दिल्ली सरकार ने फिर वही काम किया है, जो कोरोना काल शुरू होने पर एक साल पहले किया था.'

राजनीतिक विरोधी को गलत साबित करने के लिए यूपी के मंत्री भूल तो नहीं गये कि एक साल पहले लॉकडाउन लगाने का फैसला मोदी सरकार का था - और बाद में भी जब लॉकडाउन में छूट देने पर केंद्र सरकार राज्यों की राय ले रही थी, तब भी अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों से राय ली और केंद्र को सीधे सीधे भेज दिया - ये कहते हुए कि जो केंद्रीय गृह मंत्रालय की गाइडलाइन होगी दिल्ली सरकार उसी पर अमल करेगी.

महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 22 अप्रैल से 1 मई तक पाबंदियां लगाई हैं. नाम तो लॉकडाउन नहीं है, लेकिन स्थिति करीब करीब वैसी ही रहेगा. ऐसी ही पाबंदियां दिल्ली, राजस्थान और झारखंड की सरकारों ने भी अपने अपने स्तर से लगायी हैं - ये बात अलग है कि बिलकुल वैसी ही चुनौंतियों से दो चार हो रहे बीजेपी के मुख्यमंत्री आलाकमान का मुंह देख कर या तो खामोश हैं या फिर सपोर्ट में जो कुछ समझ में आ रहा है बोले जा रहे हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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