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Updated: 22 अप्रिल, 2021 04:44 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) लॉकडाउन के पिछले दौर में लोगों के लिए मसीहा बने हुए थे. यूपी के जो मजदूर दूसरे राज्यों में फंसे हुए थे या फिर इंजीनियरिंग की तैयारी करने गये जिनके बच्चे कोटा में फंसे हुए थे - उत्तर प्रदेश में हर किसी के लिए मदद की आखिरी मुख्यमंत्री उम्मीद योगी आदित्यनाथ ही हुआ करते रहे.

योगी आदित्यनाथ की हद से ज्यादा सक्रियता से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बेहद खफा रहे - और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के साथ कोरोना वायरस को लेकर हुई मीटिंग में तो मजदूरों की घर वापसी को लेकर एक राष्ट्रीय नीति बनाने की मांग कर डाली थी. मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में नीतीश कुमार ने जो कुछ भी बोला था, निशाने पर योगी आदित्यनाथ ही नजर आये.

दरअसल, नीतीश कुमार लोगों के बिहार लौटने के पक्ष में कभी नहीं रहे. वो खुल कर बोल भी रहे थे कि जो जहां है वहीं रहे, वरना लॉकडाउन फेल हो जाएगा. हालांकि, लॉकडाउन से ज्यादा चिंता उनके अपने सिस्टम के फेल हो जाने की रही. हुआ भी वही. लगातार हाहाकार मचा रहा.

और बिहार विधानसभा चुनाव के नजदीक आते आते सर्वे में भी नीतीश कुमार की लोकप्रियता घटती दर्ज की जाने लगी. बीजेपी के आंतरिक सर्वे में भी मालूम हुआ कि नीतीश कुमार के लिए चुनाव जीत पाना मुश्किल हो सकता है - और फिर चुनाव जिताने का पूरा दारोमदार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही आ गया. मोदी ने मिशन हाथ में तो लिया ही, मुमकिन भी बनाया.

मोदी ने मुमकिन तो बनाया लेकिन सब कुछ बीजेपी के खाते में डाल दिया. बीजेपी के साथ नीतीश कुमार की भी पार्टी चुनाव जीती जरूर लेकिन जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गयी. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री तो बन गये, लेकिन पावर छिन गया. बिहार सरकार में बीजेपी का दखल काफी बढ़ गया.

योगी आदित्यनाथ के बीजेपी के होने के चलते नीतीश कुमार जैसी समस्या तो नहीं आने वाली, लेकिन कोरोना संकट का दूसरा दौर अब पहले दौर की उनकी सारी कमाई पर पानी फेरने लगा है - उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ ही नहीं, प्रधानमंत्री मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी के साथ साथ प्रयागराज और कानपुर सभी शहरों का हाल एक जैसा हो चला है.

ऐसे में जबकि उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हो रहे हैं, सूबे के किसानों के निशाने पर रहे योगी आदित्यनाथ, कोरोना वायरस से बेकाबू हो चुके हालात में आम लोगों के गुस्से का शिकार हो रहे हैं - और वो भी तब जब विधानसभा चुनावों की अग्नि परीक्षा की तारीख एक साल भी दूर नहीं रह गयी है - अब तो यही लगता है नीतीश कुमार की ही तरह प्रधानमंत्री मोदी को ही योगी आदित्यनाथ के लिए भी खेवनहार बनना पड़ेगा.

योगी को हीरो से जीरो बनाने पर तुला कोरोना

मार्च, 2020 में जब दिल्ली में मजदूरों का सैलाब किराये के मकानों से अपने पुश्तैनी घरों के लिए सड़क पर निकल कर आनंद विहार या गाजियाबाद बस अड्डा पहुंच गया तो सबसे पहले मदद की बसें भिजवाने वाला कोई और नहीं बल्कि योगी आदित्यनाथ ही रहे.

योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर कुछ ही घंटे के भीतर कई बसें भेज दीं - और लोगों को पूरे प्रदेश भर में उनके घरों तक पहुंचाया था. ऐसे ही इंतजाम योगी आदित्यनाथ ने दूसरे राज्यों में फंसे यूपी के रहने वाले दिहाड़ी मजदूरों के लिए भी किया - वैसे भी मुसीबत की घड़ी में मिली मदद को हर कोई जिंदगी भर याद रखता है, फिर भी कुछ एहसानफरामोश होते जो दुनिया के तमाम अपवादों की तरह ऐसे मामलों में भी होते हैं.

याद कीजिये कैसे नीतीश कुमार ने कोटा में पढ़ रहे बच्चों के सवाल पर रिएक्ट किया था. तब तो नीतीश कुमार यही समझा रहे थे कि सारे बच्चे सक्षम परिवारों के हैं और वे अपने बूते भी सब कर सकते हैं, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने ऐसा कतई नहीं किया था.

yogi adityanath, narendra modiयोगी आदित्यनाथ को चुनाव में मोदी ही कराएंगे बेड़ा पार

योगी आदित्यनाथ ने न सिर्फ कोटा में फंसे छात्र-छात्राओं को साधन मुहैया कर उनका अपने अपने घरों तक पहुंचना सुनिश्चित कराया बल्कि शिक्षा विभाग के अधिकारियों को निर्देश भी दे रखा था कि वे बच्चों से बराबर संपर्क में रहें और अगर उनकी कोई जरूरत हो तो हर संभव मदद भी करें.

लेकिन कोरोना वायरस का मौजूदा दौर तो जैसे पहले दौर में हीरो बने रहे योगी आदित्यनाथ को जीरो बनाने पर तुला हुआ है - क्या लखनऊ और क्या बनारस या फिर कोई और भी शहर क्यों न हो, हाल बेहाल ही है. और शहर ही क्यों गांव देहात में भी हाहाकार मचा हुआ है.

योगी आदित्यनाथ डंके की चोट पर दावा कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, लेकिन जमीनी हालात तो ये हैं कि लोग ऑक्सीजन सिलिंडर के लिए लगातार इधर से उधर भाग रहे हैं. वैसे ये योगी आदित्यनाथ ही हैं जिनका गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों की मौत के मामले में भी ऐसा ही दावा रहा. ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत के तमाम संकेत मिलने के बावजूद योगी आदित्यनाथ और उनका पूरा सरकारी अमला यही दावा करता रहा कि बच्चों की ऑक्सीजन से नहीं बल्कि अगस्त महीने के कारण हुई थी.

अब ये ऑक्सीजन की कालाबाजारी है या और कोई वजह लेकिन दावा और हकीकत में फासला तो लंबा ही है. ये जरूर है कि योगी आदित्यनाथ ऐसे हर किसी के खिलाफ अपने फेवरेट एनएसए लगाने की बात कहने लगे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 1 मई से 18 साल के लोगों के लिए भी वैक्सीनेशन की सुविधा दिये जाने की घोषणा के बाद, योगी आदित्यनाथ ने 18 साल से ऊपर के सभी लोगों के लिए मुफ्त में टीका लगाये जाने की घोषणा की है. हालांकि, सरकार की तरफ से ये अपील भी की गयी है कि जो लोग सक्षम हैं वे निजी अस्पतालों में पैसे देकर लगवा लें ताकि सरकार पर भार कम पड़े.

यूपी में फिलहाल नाइट कर्फ्यू और वीकेंड कर्फ्यू ही चल रहा है, लेकिन दिल्ली में एक हफ्ते के लॉकडाउन के कारण मजदूरों का पलायन फिर से शुरू हो गया है. ऐसे में एक बार फिर यूपी सरकार के मंत्री दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर हमलावर हो गये हैं.

यूपी के एक मंत्री को सुनना भी बड़ा ही दिलचस्प लगा जब वो बोल रहे थे कि पिछले साल भी अरविंद केजरीवाल ने आनन फानन में दिल्ली में लॉकडाउन लगा दिया था - और एक बार फिर वैसा ही किया है.

यूपी के मंत्री शायद भूल गये थे कि पिछले साल केंद्र सरकार ने संपूर्ण लॉकडाउन लगाया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इसकी टीवी पर सामने आकर घोषणा की थी. इस बार दिल्ली में जो भी सख्ती लागू की गयी है वो अरविंद केजरीवाल का फैसला है क्योंकि केंद्र सरकार ने सारी जिम्मेदारी राज्यों पर ही डाल दी है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर वाराणसी में उनके संसदीय कार्यालय में एक हेल्पलाइन शुरू की गयी है. हेल्पलाइन के जरिये लोगों को अस्पताल, बेड, ऑक्सीजन, एंबुलेंस जैसी जानकारियां मुहैया कराने की कोशिश की जा रही है, लेकिन डिमांड इतनी ज्यादा है कि वहां के कर्मचारी तो परेशान हैं ही, अफरातफरी मच जा रही है.

सोशल मीडिया पर ई-रिक्शा पर सवार एक मां-बेटे का वीडियो वायरल हो रहा है जो इलाज के लिए जौनपुर से वाराणसी आयी हुई होती है, लेकिन इलाज के अभाव में बेटा वहीं दम तोड़ देता और मां को बेटे के शव के साथ लौटने को मजबूर होना पड़ा है.

हालात इतने बेकाबू हो चले हैं कि जब योगी आदित्यनाथ ऑक्सीजन की बात करते हैं तो गोरखपुर अस्पताल याद आ जाता है - और दूसरी चीजों के दावे करते हैं तो लखनऊ में श्मशान घाट को ढका जाना आंखों के सामने दिखायी देने लगता है - जाहिर है ये तस्वीरें लोग लंबे समय तक भुला तो नहीं ही पाएंगे.

योगी को भी मोदी का ही आसरा

अभी हो रहे यूपी पंचायत चुनाव के नतीजे अगर योगी आदित्यनाथ के शासन पर जनमत संग्रह समझे जायें तो इसे विधानसभा चुनावों के लिए सेमीफाइनल के तौर पर भी देखा जा सकता है.

जो हालात हैं, लगता तो ऐसा ही है कि आने वाले चुनाव में योगी आदित्यनाथ को भी चुनावी वैतरणी पार लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही आसरा होगा. ये तो करीब करीब पक्का ही लगता है कि जैसे बिहार चुनाव में पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगे बढ़ कर नीतीश कुमार को उबार लिया था, अगले साल यूपी चुनाव में योगी आदित्यनाथ के लिए भी वैसा ही कुछ करना पड़ेगा, लेकिन क्या कोरोना वायरस से पैदा हुई ये मुश्किलें खुद प्रधानमंत्री मोदी के लिए चुनौती नहीं बनेंगी - बड़ा सवाल ये भी है.

प्रधानमंत्री मोदी के लिए भी यूपी चुनाव बिहार चुनाव जितना आसान नहीं होने वाला. बिहार में तो बीजेपी ने सारी गड़बड़ियों का ठीकरा नीतीश कुमार के सिर फोड़ कर एक रास्ता निकाल लिया था. बिहार चुनाव में बीजेपी सारी बुरी बातों के लिए नीतीश कुमार को प्रोजेक्ट कर रही थी, जबकि सारी अच्छी बातों के लिए मोदी सरकार के नाम पर क्रेडिट ले रही थी.

लेकिन अब ये डबल इंजन ही उत्तर प्रदेश में भारी पड़ने वाला है - क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नीतीश कुमार की तरह अलग करके नहीं प्रोजेक्ट कर सकते.

अगर योगी आदित्यनाथ के खिलाफ सत्ता विरोधी फैक्टर लागू होता है तो मोदी सरकार के साथ ये वैसे ही डबल भी हो जाएगा - जैसे 2018 के आखिर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हुए विधानसभा चुनावों में देखने को मिले थे.

कहते हैं पब्लिक मेमरी शॉर्ट होती है - और पॉलिटिक्स में सबसे ज्यादा इसी बात का फायदा उठाया जाता है. किसानों की नाराजगी और कोरोना के दौर में दर दर की ठोकरें खा रहे लोग अगर 2022 के चुनावों तक ये सब नहीं भूल पाये तो योगी आदित्यनाथ के लिए बहुत बड़ी चुनौती खड़ी हो सकती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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