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Updated: 30 अगस्त, 2018 09:53 PM
संतोष चौबे
संतोष चौबे
  @SantoshChaubeyy
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इमरान खान कहने को तो लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री हैं, लेकिन अगर देखें तो पाकिस्तान की मिलिट्री के अनुसार चलने की परंपरा उनमे सबसे ज्यादा दिखाई देती है. कहा भी जाता है नवाज़ शरीफ के प्रति पाकिस्तानी सेना की नफरत और इमरान खान की पाकिस्तानी सेना को साथ लेकर चलने की नीति ने पाकिस्तान को इमरान खान के रूप में नया प्रधानमंत्री दिया है. और इमरान खान ने उसी तरह से चलना शुरू किया है जैसे पाकिस्तान की मिलिट्री चाहती है, फिर चाहे वो एंटी-अमेरिका स्टैंड हो या एंटी-इंडिया स्टैंड.

इमरान पाकिस्तान को एक इस्लामिक वेलफेयर स्टेट बनाना चाहते हैं, लेकिन उनकी कैबिनेट में भारत पर परमाणु हमले की वकालत करने वाले मिनिस्टर हैं. भारत की बात करनी हो कश्मीर सबसे पहले आता है, आतंक की बात नहीं होती है, जैसे वहां की सेना चाहती है. अमेरिका की बात करनी हो तो आतंकवाद का कोई जिक्र नहीं होना चाहिए.

इमरान खान, पाकिस्तान, सेना, माइक पोम्पिओ, अमेरिकाइमरान खान को पाकिस्तानी सेना के काफी करीब माना जाता है

पाकिस्तान को दुनिया में टेरर हैवन (Terror Heaven) के रूप में देखा जाता है. अमेरिका से उसके रिश्ते इसी वजह से लगातार नकारात्मक होते जा रहे हैं. अमेरिका ने पाकिस्तान की आर्थिक मदद बंद कर दी है और दबाव काफी बढ़ाता जा रहा है. कहा जा रहा है कि पाकिस्तान अपने यहां से विभिन्न आतंकवादी संगठनों का सफाया करे ताकि अफगानिस्तान में शांति हो सके और भारत जैसे देश भी चैन की बंसी बजा सकें.

लेकिन जिन आतंकवादियों का पोषण पाकिस्तान की सेना करती हो, उनपर पाकिस्तान की सिविलियन गवर्नमेंट क्या कर सकती है? और वो भी जब पाकिस्तान का नया प्रधानमंत्री उन्हीं के मत से चलने वाला हो. इसका उदारहण अभी-अभी हमें देखने को मिला जो कहता है कि आतंकवाद के मुद्दे पर इमरान पाकिस्तान को और शर्मिंदा करने वाले हैं!

अभी पिछले ही हफ्ते पाकिस्तान-अमेरिका के रिश्ते ने एक और झटका झेला था. वैसे ही पाकिस्तान और अमेरिका के रिश्ते काफी बुरे हालात से गुजर रहे हैं. पिछले हफ्ते पाकिस्तान और अमेरिका दोनों आतंकवाद को लेकर तन गए थे. अमेरिका के विदेश मंत्री 5 सितम्बर को पाकिस्तान में होंगे और पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए ये यात्रा बुरी होने की उम्मीद की जा रही है.

अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने कहा कि विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने पिछले हफ्ते पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान को फ़ोन किया था जिसमें उन्होंने पाकिस्तान से वहां के आतंकवादियों पर निर्णायक कदम लेने को कहा था और ये भी साफ़ किया था कि ये अफ़ग़ानिस्तान में शांति कायम करने के लिए ये कितना आवश्यक है.

इमरान खान, पाकिस्तान, सेना, माइक पोम्पिओ, अमेरिकाइमरान खान और माइक पोम्पिओ

पाकिस्तान इस पर तुरंत तन गया. उसने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं हुई थी और अमेरिका को अपनी भूल सुधारनी चाहिए. पाकिस्तान ने कहा कि इमरान खान और माइक पोम्पिओ के बीच बधाई के अलावा कई मुद्दों पर चर्चा हुई लेकिन आतंकवाद का जिक्र नहीं आया. पर अमेरिका ने पाकिस्तान की बात को कोई वैल्यू नहीं दी और अपनी घोषणा पर कायम रहा.

और अब तो ये घोषणा ही कर दी है कि इमरान खान की अमेरिका के किसी मंत्री से पहली व्यक्तिगत मुलाक़ात आतंकवाद के ही मुद्दे पर होगी. माइक पोम्पिओ सितम्बर के पहले हफ्ते में पाकिस्तान में होंगे और उनके साथ अमेरिका के मिलिट्री चीफ जनरल जोसफ डनफोर्ड भी होंगे और अमेरका के रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस के अनुसार इमरान खान और पोम्पिओ-डनफोर्ड के बीच वार्ता का मुख्य मुद्दा आतंकवाद पर ही होगा.

तो अमेरिका का दबाव तो होगा पर पाकिस्तान के लिए फिर वही पुराना राग होगा के हमारे यहां कोई आतंकवादी नहीं है. जैसा कि वो हमेशा करता रहा है वो कहेगा कि अमेरिका हमेशा अपनी ही बात करता रहता है और दोहराएगा की हमारे साथ तो चीन है, अब हम अमेरिका की फ़िक्र नहीं करते हैं.

तो दुनिया की नजर में ये यात्रा इमरान खान और पाकिस्तान के लिए आतंकवाद के मुद्दे पर शर्मिंदा करने वाली हो सकती है, लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है जब इमरान ही ऐसा नहीं सोचते हैं.

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लेखक

संतोष चौबे संतोष चौबे @santoshchaubeyy

लेखक इंडिया टुडे टीवी में पत्रकार हैं।

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