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Updated: 15 जुलाई, 2021 04:43 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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राजनीति में कुछ भी न तो पूर्व नियोजित होता है. न पूर्व निर्धारित. घटनाएं बस होती हैं और दास्तां बनती जाती है. ऐसी ही एक दास्तां पश्चिम बंगाल में ठीक विधानसभा चुनावों के बाद रची जा रही है. ये क्या है? गर जो इसे समझना हो हमें सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये गए मंत्रिमंडल विस्तार और उसमें लिए गए कुछ जरूरी फैसलों का अवलोकन करना होगा. बीती 7 जुलाई को पीएम मोदी ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार तो किया मगर उन विश्वासपात्रों के इस्तीफे ले लिए जिनका शुमार प्रधानमंत्री के करीबियों में था. ऐसा ही एक चेहरा थे पश्चिम बंगाल के आसनसोल से भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो. मंत्रिमंडल से हटाए जाने से आहत बाबुल सुप्रियो ने फेसबुक पोस्ट लिखा था और पोस्ट में जैसा अंदाज बाबुल सुप्रियो का था, साफ था कि वो पीएम मोदी और उनके द्वारा लिए गए फसलों से नाराज हैं. तभी मान लिया गया था कि बाबुल सुप्रियो भी कुछ ऐसा कर सकते हैं जो भाजपा और पीएम मोदी दोनों को मुसीबत में डाल सकता है. वो तमाम कयास सही साबित हुए हैं. दरअसल बाबुल सुप्रियो ने बंगाल में भाजपा की धुर विरोधी कही जाने वाली टीएमसी को ट्विटर पर फॉलो करना शुरू कर दिया है. इसके अलावा बाबुल सुप्रियो मुकुल रॉय को भी फॉलो कर रहे हैं.

Babul Supriyo, BJP, TMC, Mamata Banerjee, Cabinet Reshuffle, Prime Minister, Narendra Modiअगर भविष्य में बाबुल सुप्रियो भाजपा छोड़ तृणमूल के खेमे में आते हैं तो ये ममता बनर्जी की बड़ी सांकेतिक जीत होगी

बाबुल सुप्रियो और उनके बागी तेवरों पर बात होगी मगर पहले बात उस फेसबुक पोस्ट की जिसने राजनीतिक सूरमाओं को एक नई बहस में उलझने का मौका दिया था. बीते दिनों मंत्रिमंडल से हटाए जाने के बाद बाबुल सुप्रियो ने पीएम मोदी को धन्यवाद अर्पित करते हुए लिखा था कि, 'मैं माननीय प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने मुझे अपने मंत्रिपरिषद के सदस्य के रूप में अपने देश की सेवा करने का सौभाग्य दिया.' फेसबुक पोस्ट ने जाहिर कर दिया था कि अपने साथ हुई इस घटना के बाद बाबुल का दिल भाजपा से खिन्न है.

अब जबकि बाबुल ने ट्विटर पर अपने विरोधियों को फ़ॉलो कर लिया कहा जा सकता है कि आने वाले वक्त में बंगाल में बड़ा सियासी घमासान देखने को मिल सकता है. भविष्य क्या होता है इसपर शायद अभी कुछ कहना जल्दबाजी हो लेकिन जैसे समीकरण बंगाल में पीएम मोदी के कैबिनेट विस्तार के बाद देखने को मिल रहे हैं इसे सीधे तौर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बड़ी सांकेतिक जीत कहा जाएगा.

Babul Supriyo, BJP, TMC, Mamata Banerjee, Cabinet Reshuffle, Prime Minister, Narendra Modiबाबुल सुप्रियो का वो फेसबुक पोस्ट जिसने एक नए संवाद की शुरुआत कर दी है

इस मामले में सबसे दिलचस्प बात यही है कि भले ही आज टीएमसी के करीब आने के लिए बाबुल सुप्रियो को सही या ये कहें कि उचित मौके की तलाश हो लेकिन अभी जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा के चुनाव हो रहे थे तो यही बाबुल सुप्रियो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तरह तरह के आक्षेप लगा रहे थे.

भले ही ममता बनर्जी और बाबुल सुप्रियो के रिश्ते कभी कुछ खास न रहे हों मगर चूंकि राजनीति मौकों और अवसरवादिता का खेल है यहां संभव कुछ भी है. बाबुल ने पीएम मोदी के नहले पर जो दहला जड़ा है उसने भाजपा के खेमे में न केवल हलचल बढ़ा दी है बल्कि पार्टी आलाकमान को भी महत्वपूर्ण संदेश दिया है.

बहरहाल बाबुल सुप्रियो अकेले नहीं हैं. दुखी नेताओं की एक पूरी फेहरिस्त है जिनके साथ ऐसा बहुत कुछ हो गया है जिसके चलते वो पाला बदलने को मजबूर हैं. तो आइये देर किस बात की एक नजर डाल ली जाए उन नेताओं पर जिनके दल बदलने से जुड़ी खबर राजनीतिक पंडितों के बीच एक नए संवाद को जन्म दे सकती है.

नवजोत सिंह सिद्धू

भले ही अभी बीते दिनों प्रियंका गांधी ने नवजोत सिंह सिद्धू से मिलकर इस बात के संकेत दिए हों कि पार्टी में सब कुछ ठीक है लेकिन जिस तरह उन्होंने आम आदमी पार्टी और पार्टी से जुड़े नेताओं की तारीफ़ की है एकदम स्पष्ट है कि आने वाले वक्त में नवजोत सिंह सिद्धू कभी भी पार्टी को गुड बाय बोल सकते हैं. यदि सिद्धू जाते हैं तो कांग्रेस को नुकसान यूं भी होगा क्योंकि 2022 में पंजाब में चुनाव हैं और जैसी स्थिति वर्तमान में नवजोत सिंह सिद्धू की है वो वहां किंग मेकर की भूमिका में आ सकते हैं.

सचिन पायलट

बात जब जब राजनीति में बागी तेवरों की आएगी राजस्थान का जिक्र होगा. अशोक गहलोत पर बात होगी. सचिन पायलट का जिक्र होगा. अब इसे बदकिस्मती कहें या कुछ और वो सचिन पायलट जो राजस्थान विधानसभा चुनावों के न केवल स्टार प्रचारक थे बल्कि जिनके कारण ही राजस्थान की गद्दी कांग्रेस को वापस मिली आज हाशिये पर हैं. कितना दुखदाई होता होगा उनके लिए कि जो राहुल गांधी चुनावों के दौरान उनके इशारों पर चलते थे उनके पास आज वक़्त नहीं है कि वो आज उनके साथ बैठें और दो मिनट शांति से बात करें. हमें बिल्कुल भी हैरत नहीं होनी चाहिए यदि हम भविष्य में उन्हें भाजपा की कश्ती में सवार देखें.

केशव प्रसाद मौर्या

कहने को तो भाजपा भी अपने को लोकतांत्रिक पार्टी कहती है. वहीं अगर बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हो तो अपने अलग अलग मंचों से कई बार उन्होंने इस बात को दोहराया है कि भाजपा में सबकी बात न केवल सुनी जाती है बल्कि जिसके जो अधिकार हैं उन्हें उन अधिकारों का इस्तेमाल करने की पूरी छूट दी जाती है. अब यदि हम इन तमाम बातों को यूपी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्या के संदर्भ में देखें तो स्थिति बहुत अलग है.

2017 में जिस दिन योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बतौर मुख्यमंत्री शपथ ली और जिस तरह यूपी को दो मुख्यमंत्री मिले ये बात योगी को अच्छी नहीं लगी. तब भाजपा द्वारा लिए गए इस फैसले पर योगी आदित्यनाथ की काबिलियत भी सवालों के घेरे में आई थी. कह सकते हैं कि यही योगी और केशव के रिश्तों का टर्निंग पॉइंट था. अब जबकि उत्तर प्रदेश चुनावों के मुआने पर खड़ा है यूपी में केशव प्रसाद मौर्या के बगावती तेवर एक बार फिर बुलंद हैं.

जैसे हालात हैं, यदि केशव ने पार्टी छोड़ दी तो इसका बड़ा खामियाजा भाजपा को आने वाले विधानसभा चुनावों में भुगतना होगा.

ओम प्रकाश राजभर

बात बगावत की चल रही हो और साथ ही भविष्य में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों का जिक्र हुआ हो तो हम ओम प्रकाश राजभर को कैसे भूल सकते हैं. होने को तो ओम प्रकाश राजभर वर्तमान में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से विधायक और उत्तर प्रदेश की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार में पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री हैं. राजभर सरकार से खफा हैं और चूंकि यूपी में चुनाव हैं उन्होंने सूबे के अन्य दलों के साथ मेल जोल शुरू कर दिया है.

अभी बीते दिनों ही राजभर ने दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की है. माना जा रहा है कि राजभर भी आने वाले वक़्त में भाजपा को बड़ा झटका दे सकते हैं.

प्रशांत किशोर

2014 में पीएम मोदी को देश की सत्ता कैसे मिली? चाय पर चर्चा का सूत्रधार कौन था? बिहार में नीतीश की जीत का कारक क्या था? इन तमाम सवालों के जवाब पीके यानी प्रशांत किशोर हैं. राजनीति में ऊंट किस करवट बैठता है इसका जवाब तो बड़े से बड़ा चुनावी पंडित भी नहीं दे सकता मगर वो तमाम लोग जो प्रशांत किशोर को जानते हैं एक सुर में इस बात को कहते हैं कि उनका शुमार उन नेताओं में है जो ऊंची डाल पर बैठना पसंद करते हैं.

शायद ये फिर से ऊंची डाल पर बैठकर परवाज भरने की फिक्र ही है जिसने प्रशांत किशोर को कांग्रेस के खेमे की तरफ रुख करने के लिए बाध्य किया है. माना जा रहा है कि चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर कांग्रेस जॉइन कर सकते हैं. अभी हाल ही में प्रशांत किशोर ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से मुलाकात की है.

बताया जा रहा है कि प्रशांत किशोर ने ये कदम 24 के आम चुनावों में कुछ बड़ा करने की नीयत से उठाया है. प्रशांत किशोर का एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को राष्ट्रपति बनाने के लिए गोलबंदी करना इस बात की पुष्टि कर देता है कि आने वाले वक़्त में पीके भी भाजपा के लिये किसी चुनौती से कम नहीं हैं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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