भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में विपक्ष की छिछली राजनीति
आम जनता के नाम पर रुदन कर रहा विपक्ष केवल निजी स्वार्थ से भरा हुआ है. लोगों की दुहाई देकर यह लोग अपनी राजनीतिक रोंटियां सेंकने के साथ-साथ अपने काले-धन को बचाने की फिराक में लगे हुए हैं.
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जबसे केंद्र सरकार ने 500 और1000 के नोट बंद किए हैं. देश में एक विमर्श चल पड़ा है कि यह फैसला किसके हक में है? सबसे पहले एक बात स्पष्ट होनी चाहिए कि इस फैसले से आम जनता को कुछेक दिन की दिक्कत है, लेकिन काले कारोबारियों, हवाला कारोबारियों, आतंकवाद के पोषकों के लिए यह फैसला उनके ऊपर त्रासदी लेकर आया है.
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| कुछ दिन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है |
सभी भ्रष्टाचार के अड्डों पर सन्नाटा पसरा हुआ है. यकायक इस फैसले ने सभी दो नंबर के धंधे करने वालों की कमर तोड़ कर रख दी है. सवाल पर गौर करें तो इस फैसले में किसका हित छुपा है. इसपर व्यापक विमर्श कि जरूरत है. दरअसल हम सरकार के इस साहसिक फैसले को आम जनता और काले कारोबारियों तक समेट कर अन्याय कर रहे हैं. इस फैसले को विस्तार और स्वतंत्र दृष्टि से सोचें तो यह फैसला राष्ट्रहित में लिया गया फैसला नजर आएगा. जिसमें न केवल आगामी भविष्य में भारत की आर्थिक स्थिति और मजबूत होगी बल्कि भ्रष्टाचार, आतंकवाद पर भी अंकुश लगेगा. यही कारण है कि मोदी सरकार इस फैसले के बाद आमजनता की परेशानियों पर बार–बार यह बताने कि कोशिश कर रही है कि ये दिक्कतें कुछ ही दिनों की हैं, परन्तु इसके परिणाम राष्ट्र को नई दिशा देने वाले होंगे.
गौरतलब है कि सरकार एक याचक की भूमिका में खड़ी है. यहीं नहीं, प्रधानमंत्री खुद देशवासियों से बार-बार यह अपील कर रहे हैं कि ‘देशहित के लिए थोड़ी कठिनाई उठनी पड़े तो उठाइए’. सरकार की इस अपील को आमजन ने भी माना है और उन्हें देश के लिए थोड़ी कठिनाई उठाने में कोई परहेज नहीं है. परन्तु इस फैसले ने देश के कई राजनीतिक दल काले कारोबारियों, आतंकवाद के जनको की नींद हराम कर दी है. समूचा विपक्ष इस मसले पर सरकार को घेरने की नाकाम कोशिश कर रहा है.
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संसद से सड़क तक विपक्षी दलों का फिजूल का ड्रामा जारी है. संसद ठप्प है और विपक्ष अपनी वोट बैंक की राजनीति करने में व्यस्त है. गौर करें तो भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार के इस बड़े युद्ध में सहयोग करने के बजाय विपक्षी दल आमजनता के हितैषी बनने को ढोंग कर रहे हैं. यह वो राजनेता हैं जिनको इस फैसले से करारा झटका लगा है. आमजन के बहाने ये लोग अपनी काली कमाई को छुपाने का कुत्सित प्रयास कर रहें हैं.
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| विपक्ष इस फैसले का विरोध कर रहा है |
कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, ममता बनर्जी समेत अन्य राजनीतिक दल इस फैसले से हलकान क्यों है? आम जनता इस बात को बखूबी समझती है कि उनके पैसे सुरक्षित हैं, थोड़ी परेशानी है जिसके लिए देश की जनता तैयार है. असल में पीड़ा उन्हीं को सबसे ज्यादा है जिनके पास करोड़ों रूपये पड़े हुए हैं, जिनको अपना पैसा सुरक्षित नजर नहीं आ रहा है. यह गोरखधंधे का पैसा देश का पैसा है, आम जनता का पैसा है. जिसे खोने का डर इन्हें सोने नहीं दे रहा. और तो और सरकार ने इस फैसले के उपरांत नोट बदलने के नियमों में भी सख्ती ला दी है जो इनकी परेशानियों को और बढ़ने वाला है.
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अरविन्द केजरीवाल और ममता बनर्जी ने दिल्ली के आजादपुर मंडी में आयोजित एक रैली में इस फैसले को लेकर सरकार पर फिजूल का निशाना साधते हुए इस फैसले की तुलना आपातकाल से की और इस फैसले को वापस न लेने पर आंदोलन की धमकी दे डाली. अब सवाल यह उठता है कि यह आंदोलन किस लिए ? नोटबंदी के फैसले को वापस लेने की मांग क्यों ? क्या भ्रष्टाचार के विरूद्ध इस लड़ाई में अपनी छिछली राजनीति के लिए विपक्ष भ्रष्टाचार पर अपनी सहमती प्रदान कर रहा है? इस पूरे सवाल के निहितार्थ यही है कि विपक्ष को आमजनता की इतनी ही चिंता है तो सरकार को ऐसे सुझाव अभी तक क्यों नहीं दिए जिससे परेशानियों में कमी आए? आम जनता के नाम पर रुदन कर रहा विपक्ष केवल निजी स्वार्थ से भरा हुआ है. आमजनता की दुहाई देकर यह लोग अपनी राजनीतिक रोंटियां सेंकने के साथ-साथ अपने काले-धन को बचाने की फिराक में लगे हुए हैं.
सरकार रोज नये नियम ला रही है जिससे आम जनता को जल्द राहत मिले, बैंकिग व्यवस्था सुचारू रूप से चले, किन्तु विपक्ष इसमें बाधा डालने का काम कर रहा है, जो निंदनीय है. बहरहाल, कहीं न कहीं यह बात आर्थिक विश्लेषक भी मानते हैं कि यह फैसला भ्रष्टाचार और आतंकवाद की कमर तोड़ने वाला है. ऐसे फैसले पर विपक्ष का यह अड़ियल रवैया निहायत ही निराशजनक है.
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