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Updated: 13 नवम्बर, 2016 05:10 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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मोदी सरकार द्वारा पांच सौ और हजार के नोट बंद करने के निर्णय को जहां एक तरफ भारी जन-समर्थन प्राप्त होता दिख रहा है. लोग थोड़ी-बहुत परेशानी उठाने के बावजूद भी इस निर्णय के प्रति सहमति जता रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ तमाम विपक्षी दल सरकार के इस निर्णय के बाद परेशान नज़र आ रहे हैं. कुछ दलों की दिक्कत उनके विरोधी स्वर के जरिए सामने आ रही है तो कुछ की समस्याओं को उसके वक्तव्यों व सरकार पर लगाए जा रहे ऊल-जुलूल आरोपों से भी समझा जा सकता हैं कांग्रेस की तरफ से शुरुआत में इस निर्णय के प्रति सहमति तो जताई गई, पर जल्दी-ही वो भूल सुधार करते हुए अपने 'विरोध के लिए विरोध' के एजेंडे पर आ गई.

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कांग्रेस की तरफ से इसे आम आदमी को मुश्किल में डालने वाला कदम बताया गया तो वही कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी इस फैसले का प्रतीकात्मक विरोध करने के लिए लाखों-करोड़ों की कार से चार हजार रुपए निकालने पार्लियामेंट एटीएम पहुँच गए। उनकी इस नौटंकी से और कुछ तो नहीं हुआ, मगर आम जनता को असुविधा जरूर हुई. खैर, कांग्रेस का कहना है कि वो नोटबंदी के इस निर्णय को संसद के शीतकालीन सत्र में मुद्दा बनाएगी.

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 अरविंद केजरीवाल- फाइल फोटो

कांग्रेस के अलावा दिल्ली के मुख्यमंत्री, आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और स्वयंभू ईमानदार नेता अरविन्द केजरीवाल साहब इस निर्णय से अलग बिफरे नज़र आ रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार ने इस निर्णय की जानकारी अपने लोगों यानी भाजपा को पहले से देकर अपना पैसा सुरक्षित कर लिया होगा और अब दूसरों को परेशान कर रहे हैं. ये एकदम आधारहीन और अमान्य बात है. क्योंकि जैसा कि सरकार कह भी चुकी है और देखा भी जा सकता है कि यह अत्यंत गोपनीय निर्णय था. इसकी जानकारी सिर्फ इससे जुड़े कुछ एक लोगों को ही थी.

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यदि भाजपा में इसकी ज़रा भी भनक होती तो यह इतना गोपनीय कभी नहीं रह पाता और जैसे न तैसे मीडिया के सूत्रों तक इसकी भनक अवश्य पहुँच गई होती. वैसे भी, जो प्रधानमंत्री मोदी अपने परिवारजनों तक को अपने ओहदे का कोई अतिरिक्त लाभ नहीं देते, उन्होंने इस गोपनीय निर्णय की जानकारी अपनी पार्टी को पहले से ही दे दी होगी, ये कहना एकदम अनुचित और अन्यायपूर्ण है. अतः इस तरह की फिजूल की बातों के जरिए सरकार का विरोध करने से पहले अरविन्द केजरिवाल को सोचना चाहिए. मगर, उन्हें तो बस मोदी विरोध करना है, इसलिए पहुँच गए दिल्ली के लक्ष्मीनगर इलाके में बैंक के पास लाइन में लगे लोगों को भड़काने. पर वहाँ उनकी दाल गल नहीं पाई और लोगों ने उनके खिलाफ नारेबाजी कर उन्हें बेरंग लौटा दिया.

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 मायावती- फाइल फोटो

इधर यूपी की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के सर्वेसर्वा मुलायम सिंह यादव ने इस निर्णय को ठीक तो कहा, मगर यह भी कह गए कि एक सप्ताह की पूर्व सूचना देनी चाहिए थी. अब उन्हें कौन समझाए कि इस निर्णय का अचानक आना ही तो इसकी असली ताकत है. अगर पूर्व सूचना दे दी जाती तो फिर इसका असर ही कितना होता. वैसे भी, उन्हें पूर्व सूचना की इतनी जरूरत क्यों महसूस हो रही है? उनका कौन-सा धन है, जिसे ठिकाने लगाने के लिए वे समय चाहते थे. यूपी की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बसपा के तेवर तो इस निर्णय पर और भी तीखे रहे. बसपा प्रमुख मायावती ने इसे आर्थिक आपातकाल बता दिया. चूंकि, बसपा प्रमुख मायावती के विषय में पैसे लेकर टिकट देना प्रसिद्ध है. अब इस चुनाव के समय में टिकट बेचकर उन्होंने जितना पैसा इकठ्ठा किया होगा, वो सब मोदी सरकार के इस निर्णय से बेकार ही हो गया. बैंक जाने पर न केवल उसपर कर लगेगा, बल्कि उसकी पूरी जांच-पड़ताल भी होने लगेगी. संभव है कि इस निर्णय के विरोध के पीछे बसपा का यही कष्ट मुख्य कारण हो.

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इन सब बातों को देखते हुए कह सकते हैं कि मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी के निर्णय के जरिए चोट तो काले धन पर की है, लेकिन इससे बिलबिलाहट विपक्षी खेमे में अधिक नज़र आ रही. ऐसे में, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का ये सवाल कि सरकार के इस निर्णय से कांग्रेस, आप, सपा और बसपा जैसे दल इतनी पीड़ा में क्यों हैं, जनता के दिल-दिमाग में भी उठ ही रहा होगा. इस तरह का आचरण प्रस्तुत कर कहीं न कहीं ये विपक्षी राजनीतिक दल स्वयं को जनता की नज़रों में संदिग्ध ही बनाते जा रहे हैं. 

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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