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Updated: 14 जनवरी, 2016 10:01 PM
अमित@amitbharteey
अमित@amitbharteey
 
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आदरणीय अरविंद जी,

मेरा कई अवसरों पर आपके डिटरमाइनिंग निर्णयों से मतभेद रहा है. ठीक उसी तरह कई अवसरों पर आपके निर्णयों को मैंने मन ही मन सराहा भी है लेकिन ये पहला मौका है जब आपको इस तरह पत्र लिख रहा हूँ. जब आपने इस ऑड-ईवन की घोषणा की थी तो मैं दिल्ली से बहुत दूर अपने घर पर था. उसी दिन से मैं 1 जनवरी का बेसब्री से इंतजार करने लगा. इन 15 दिनों के ट्रायल पीरियड में कुल तीन बार दिल्ली की सड़कों पर निकला जिसमें से कोई भी रविवार नहीं था. इन तीन दिनों में हर बार नियम को तोड़ने वाली कारों को खोजता रहा. ऐसा नहीं है कि मुझे नियम तोड़ने वाले न दिखें हों, बेशक दिखे. लेकिन इनकी तादात उंगलियों पर गिनने लायक है.

एक दिन मैं केशौपुर से निज़ामुद्दीन तक ऑटो से गया तो एक दिन आईटीओ (के कुख्यात जाम) से गुजरना हुआ... और ये सब पीक ऑवर्स के सफर थे. विश्वास मानिए, आईटीओ से गुजरते वक्त तो लगा ही नहीं कि ट्रैफिक के मामले में ये जनवरी 2016 की दिल्ली है. 1990 का समय तो मैंने देखा नहीं लेकिन महज आज की दशा देख कर अनुमान लगा सकता हूँ कि ये उसी समय की दिल्ली लग रही थी. जिस आईटीओ पर रेड लाइट क्रॉस करने में 40-45 मिनट लगते थे वहाँ अब मात्र 7-8 मिनट लगे! इस दौरान डीटीसी में अलग-अलग सेवा दे रहे लोगों (रनिंग स्टाफ) से बात भी की. आश्चर्यजनक रुप से उन लोगों में सौ फीसदी लोग इस व्यवस्था से खुश हैं.

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 प्रवीण सिंह 2009 से डीटीसी में नौकरी कर रहे हैं. इनका कहना है कि ऑड ईवन से राहत मिली है, इसे परमानेंट होना चाहिए

अब मैं इससे कम होने वाले प्रदूषण की बात करुंगा. मैं कोई पर्यावरण का विशेषज्ञ नहीं हूँ जो तमाम आंकडों का विश्लेशण कर अपनी बात कहने की कोशिश करुं. आंकड़े तो आप अपने अधिनस्थों की सहायता से देख की लेंगे. मेरा मानना ये है कि कार्बन उत्सर्जन से होने वाला प्रदूषण और गाड़ियों की संख्या के बीच संबंध टू प्लस टू इज इक्वल... जैसा सीधा और सपाट है.

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 आशाराम जी डीटीसी में 30 साल से नौकरी कर रहे है,  2017 में उनका रिटायरमेंट है. ऑड ईवन से बेहद खुश हैं और कहते हैं कि ये नियम15 जनवरी के बाद भी जारी रहे.

निश्चित ही प्रदूषण के और भी कारक होंगे लेकिन सड़कों पर सरपट दौडती असंख्य कारें उन कारकों में जरुर शामिल हैं और संभवतः सबसे प्रमुख भी हैं. ऐसे में कोई कारण नहीं है कि इस व्यवस्था को 15 जनवरी तक ही सीमित रखा जाए. हालांकि आपकी सरकार ने ऐसा कुछ कहा नहीं है लेकिन गोपाल रॉय जी का बयान ऐसा है मानो यह व्यवस्था सिर्फ चार दिन की चांदनी बन इतिहास में कहीं खो जाएगी...फिर अब तो दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी आपके इस निर्णय में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया. इसको पालन करवाने वाले भी खुश हैं और इसके पालनकर्ता भी... फिर कोई कारण नहीं जो ऑड-ईवन की इस व्यवस्था को आगे बढ़ा कर स्थाई न कर दिया जाए.

आप की सरकार तो लोगों की इच्छा पर चलने का दावा करती है. तो मुख्यमंत्री जी, इस व्यवस्था को लोगो ने पसंद किया है इसे जारी रखिए. आने वाली पीढ़ियों को प्रदूषण मुक्त समाज देना हमारी रहम की भीख नहीं हैं बल्कि यह उनका अधिकार है. आगे बढ़िए और ऑड-ईवन को स्थाई कीजिए. जो दुनिया में कहीं न हुआ हो उसे सच कर डालिए. वक्त ठहरने या पीछे हटने का नहीं है. 

धन्यवाद.

प्रार्थी,   

भारत का एक आम नागरिक और दिल्ली का बाशिंदा

लेखक

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