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Updated: 17 दिसम्बर, 2019 02:48 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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मोदी सरकार ने पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में विपक्षी पार्टियों के विरोध के बीच नागरिकता संशोधन बिल (Citizenship Amendment Bill) यानी सीएबी यानी कैब (CAB) को मंजूरी दिलाने में सफलता हासिल की. इसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovind) की मंजूरी मिलते ही इस बिल ने कानून की शख्स ले ली और नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship Amendment Act) यानी सीएए (CAA) बन गया. इससे पहले कि इस बिल के तहत मोदी सरकार आगे की कार्रवाई शुरू कर पाती असम का विरोध उग्र हो गया, बंगाल भी इस विरोध की चपेट में आ गया और अब इस बिल के खिलाफ हो रहा विरोध दिल्ली के जामिया से होते हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और लखनऊ के नदवा कॉलेज तक जा पहुंचा है. इसमें एक खास बात ये है कि इन सभी जगहों के विरोध (Protest against CAB and NRC) एक जैसे नहीं हैं. हर कोई अलग-अलग सोच के साथ विरोध करने सड़क पर उतरा है. असम में लोगों को डर है कि बाहर के लोग वहां बसकर उनका हक छीन लेंगे, तो जामिया (Jamia Protest), एएमयू (AMU Protest) और नदवा कॉलेज (Nadva College Protest) में इस बात को लेकर प्रदर्शन हो रहा है कि मुस्लिमों की नागरकिता खतरे में है. यानी एक बात तो साफ है कि लोगों को नागरिकता संशोधन कानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (National Register of Citizens) सही से समझ नहीं आया है, जिसकी वजह से तमाम तरह के भ्रम फैल रहे हैं. ऐसे में ये समझना बहुत जरूरी है कि कैब क्या है (CAB kya hai hindi mein bataen) और एनआरसी क्या है (NRC kya hai hindi mein bataen). आइए जानते हैं कैब (CAB ka full form) और एनआरसी की फुल फॉर्म (NRC ka full form) से लेकर उनके मतलब और अंतर (CAB vs NRC) तक सब कुछ.

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क्या है नागरिकता संशोधन बिल 2019?

नागरिकता संशोधन बिल के तहत कुछ खास देशों से नागरिकों को भारत की नागरिकता देने के प्रावधान में ढील दी गई है. आइए जानते हैं इस बिल के बारे में सब कुछ-

- नागरिकता संशोधन बिल के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता दी जा सकेगी.

- इस बिल के तहत कोई भी हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने के नियमों में ढील देने का प्रावधान है.

- इन अल्पसंख्यक लोगों को नागरिकता उसी सूरत में मिलेगी, अगर इन तीनों देशों में किसी अल्पसंख्यक का धार्मिक आधार पर उत्पीड़न हो रहा हो. अगर आधार धार्मिक नहीं है, तो वह इस नागरिकता कानून के दायरे में नहीं आएगा.

- मुस्लिम धर्म के लोगों को इस कानून के तहत नागरिकता नहीं दी जाएगी, क्योंकि इन तीनों ही देशों में मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं हैं, बल्कि बहुलता में हैं. मुस्लिमों को इसमें शामिल ना करने के पीछे मोदी सरकार का ये तर्क है कि इन तीनों ही देशों में मुस्लिमों की बहुलता के चलते वहां धार्मिक आधार पर किसी मुस्लिम का उत्पीड़न नहीं हो सकता.

- इस बिल के तहत किसी अल्पसंख्यक को भारत की नागरिकता पाने के लिए कम से कम 6 तक भारत में रहना जरूरी है. बता दें कि पुराने कानून (Citizenship Act 1955) के तहत भारतीय नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना जरूरी था.

- नागरिकता संशोधन कानून के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है.

नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन क्या है?

जिस तरह अभी पूरे देश में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ लोग गुमराह होकर विरोध कर रहे हैं, वैसे ही नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन लागू होने के दौरान भी हो रहा था. विरोध में अधिकतर लोग दूसरों की बातों पर भरोसा कर के हाथों में झंडे और कई बार पत्थर तक उठा ले रहे थे. आइए एक बार फिर से समझें कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन यानी एनआरसी क्या है, जिसे सीएबी से जोड़ते हुए विरोध के स्वर बुलंद किए जा रहे हैं.

- एनआरसी से यह पता चलता है कि कौन भारत का नागरिक है और कौन नहीं. जो इसमें शामिल नहीं हैं और देश में रह रहे हैं उन्हें अवैध नागरिक माना जाता है.

- असम एनआरसी के तहत उन लोगों को भारत का नागरिक माना जाता है जो 25 मार्च 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं. जो लोग उसके बाद से असम में रह रहे हैं या फिर जिनके पास 25 मार्च 1971 से पहले से असम में रहने के सबूत नहीं हैं, उन्हें एनआरसी लिस्ट से बाहर कर दिया गया है.

- एनआरसी लागू करने का मुख्य उद्देश्य ही यही है कि अवैध नागरिकों की पहचान कर के या तो उन्हें वापस भेजा जाए, या फिर जिन्हें मुमकिन हो उन्हें भारत की नागरिकता देकर वैध बनाया जाए.

- एनआरसी की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि 1971 के दौरान बांग्लादेश से बहुत सारे लोग भारतीय सीमा में घुस गए थे. ये लोग अधिकतर असम और पश्चिम बंगाल में घुसे थे. ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि जो घुसपैठिए हैं, उनकी पहचान कर के उन्हें बाहर निकाला जाए.

नागरिकता संशोधन बिल vs नेशनल रजिस्टर सिटिजन (CAB vs NRC)

नागरिकता संशोधन बिल के सामने आने के बाद से तरह-तरह की बहस हो रही हैं. कुछ लोग कह रहे हैं कि ये एनआरसी का उल्टा है तो ममता बनर्जी जैसे लोग कह रहे हैं इसे लाया ही इसलिए गया है ताकि एनआरसी को लागू करना आसान हो जाए, दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. अब सवाल ये है कि आखिर इन दोनों में अंतर क्या है और किस बात को लेकर पूरा बवाल मचा हुआ है.

- नागरिकता संशोधन कानून में एक विदेशी नागरिक को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है, जबकि एनआरसी का मकसद उन लोगों की पहचान करना है जो भारत के नागरिक नहीं हैं, लेकिन भारत में ही रह रहे हैं.

- सीएबी के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी लोगों को नागरिकता देने के नियमों में ढील दी गई है. जबकि एनआरसी के तहत 25 मार्च 1971 से पहले से भारत में रह रहे लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है.

CAB के नाम पर NRC का विरोध!

भले ही लोग नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरे हैं, लेकिन असल में वह विरोध कर रहे हैं एनआरसी का. बल्कि यूं कहिए कि ये दोनों ही एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. प्रदर्शन कर रहे लोग कह रहे हैं कि नागरिकता संशोधन कानून में मुस्लिमों को शामिल क्यों नहीं किया गया है? उनका आरोप है कि ये सरकार मुस्लिमों की नागरिकता छीनना चाहती है. कहा जा रहा है कि मोदी सरकार एनआरसी से बाहर हुए हिंदुओं और अन्य धर्मों के लोगों को नागरिकता संशोधन कानून के तहत नागरिकता दे देगी, जबकि उसमें शामिल मुस्लिमों को देश से बाहर निकाल देगी.

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