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Updated: 29 अक्टूबर, 2022 04:00 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने बिहार के उपचुनावों में प्रचार से अचानक दूरी बना कर हर किसी को हैरत में डाल दिया है. अगर नीतीश कुमार ने पहले चुनाव प्रचार के लिए जाने की बात नहीं कही होती तो किसी के भी मन में शायद ही संशय का भाव होता.

पहले नीतीश कुमार ने ही ऐलान किया था कि वो 27 अक्टूबर को महागठबंधन के उम्मीदवारों के लिए वोट मांगने मोकामा और गोपालगंज जाएंगे. ये भी बताया गया था कि नीतीश कुमार के साथ बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी भी जाएंगे.

3 नवंबर को देश भर की सात विधानसभा सीटों के साथ बिहार की दो सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं. मोकामा और गोपालगंज विधानसभा सीट पर एक ही दिन में वोटिंग हो जाएगी - और वोटों की गिनती के साथ नतीजे 6 नवंबर को आ जाएंगे.

मोकामा विधानसभा सीट तो आरजेडी के पास ही थी, लेकिन गोपालगंज में 2020 के चुनाव में भी बीजेपी ने ही बाजी मार ली थी. खास बात ये है कि दोनों ही सीटों पर नतीजे भी लंबे समय से एक जैसे ही आते रहे हैं. मोकामा को जहां बाहुबली नेता अनंत सिंह का गढ़ माना जाता है, गोपालगंज सीट पर बीजेपी ही लगतार जीतती आयी है. अनंत सिंह को एक केस में सजा हो जाने की वजह से मोकामा सीट पर उपचुनाव हो रहे हैं - और इस बार उनकी पत्नी नीलम सिंह मोकामा से आरजेडी की उम्मीदवार हैं.

अव्वल तो नीतीश कुमार ने पेट में चोट लगे होने की वजह से चुनाव प्रचार से कदम पीछे खींच लिया है, लेकिन बीजेपी को उनकी ये मेडिकल छुट्टी सही नहीं लग रही है. गोपालगंज में बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने नीतीश कुमार से सवाल किया कि जब वो पटना में कहीं भी जा सकते हैं, फिर चुनाव में भाग लेने क्यों नहीं जा रहे हैं? बीजेपी नेता ने ये भी आरोप लगाया कि नीतीश कुमार पर तेजस्वी यादव को जल्द से जल्द मुख्यमंत्री बनाने के लिए लालू यादव का दबाव है - और ये सब उसी की वजह से हो रहा है.

तेजस्वी यादव ने मोर्चा संभाल लिया है

नीतीश कुमार के पीछे हट जाने के बाद आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने खुद मोर्चा संभाल लिया है. दरअसल, दोनों ही जगह उम्मीदवार तो आरजेडी के ही मैदान में हैं.

वैसे दोनों सीटों पर आरजेडी का चुनाव लड़ना भी संदेह की स्थिति पैदा तो कर रहा है. जब आरजेडी के पास एक ही सीट थी तो दोनों सीटें एक पार्टी के पास रहने की आखिर क्या वजह रही होगी?

Nitish Kumarनीतीश कुमार तो आरजेडी के साथ भी बीजेपी जैसा ही 'खेला' करने लगे

क्या नीतीश कुमार अभी बीजेपी से सीधे टक्कर नहीं लेना चाहते थे? गोपालगंज में बीजेपी लगातार जीतती आयी है. अच्छा तो यही होता कि नीतीश कुमार मोकामा आरजेडी के पास रहने देते और गोपालगंज में जेडीयू का उम्मीदवार उतारते, लेकिन लगता है बात नहीं बन पायी होगी. हो सकता है, लालू यादव का दबाव हो कि दोनों ही सीटों पर आरजेडी के उम्मीदवार ही चुनाव लड़ेंगे.

गोपालगंज के जादोपुर में रैली करते हुए तेजस्वी यादव ने बीजेपी को निशाना बनाया, ये बात अलग है कि बहाने से नीतीश कुमार भी निशाने पर आ जा रहे थे. तेजस्वी यादव ने कहा कि बिहार के लोगों ने 17 साल बीजेपी को मौका दिया... एक मौका तीन साल के लिए आरजेडी यानी महागठबंधन को देकर भी देख लें. बिहार में अगला चुनाव 2025 में होगा और उपचुनाव का कार्यकाल तो बचा हुआ समय ही होता है.

तेजस्वी यादव ने लोगों से अपील की कि उनको तीन साल का मौका दें और उसके बाद भी अगर गोपालगंज में विकास न दिखे तो अगली बार वे जो भी फैसला लेंगे मंजूर होगा. तेजस्वी यादव समझा रहे थे कि तीन साल में वो बिहार को काफी आगे ले जाने वाले हैं.

चोट गहरी थी तो छुपाया क्यों गया: नीतीश कुमार को चोट लगी थी, ये तो सबको मालूम था, लेकिन चोट इतनी गहरी थी कि जख्म पूरी तरह भरे नहीं हैं, ये किसी को नहीं पता था - ऐसा इसलिए भी क्योंकि अधिकारियों की तरफ से यही बताया जा रहा था कि नीतीश कुमार बिलकुल फिट हैं.

लेकिन अब नीतीश कुमार ने ये बता कर कि चुनाव प्रचार लायक फिट नहीं हैं, अधिकारियों के दावे पर भी सवाल खड़ा कर दिया है - सबसे बड़ी बात ये रही कि नीतीश कुमार ने मीडिया के सामने कुर्ता ऊपर उठाकर कर जख्म ही दिखा दिया.

अगर नीतीश कुमार ने वैसे भी बता दिया होता कि चोट ज्यादा लगी थी और अब तक वो ठीक नहीं हो पाये हैं, हर कोई मान लेता. फिर भी नीतीश कुमार ने सबूत पेश कर दिया तो सब चुप हो गये - लेकिन क्या नीतीश कुमार को मीडिया के सामने सरेआम ऐसा करना जरूरी था?

आखिर नीतीश कुमार को अपनी चोट के सबूत सरेआम दिखाने की क्या जरूरत रही? ऐसा करके नीतीश कुमार किसे विश्वास दिलाना चाहते थे?

क्या नीतीश कुमार ने अपने जख्म मोकामा और गोपालगंज के लोगों की सहानुभूति हासिल करने के लिए दिखायी है? या बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद जैसे राजनीतिक विरोधियों के लिए, जो उनके चोट दिखाने के बावजूद शक जाहिर कर रहे हैं?

ऐसा तो नहीं कि नीतीश कुमार ने ये सब तेजस्वी यादव और लालू यादव को यकीन दिलाने के लिए किया है? और ऐसा कर के मोकामा और गोपालगंज जाकर कर चुनाव प्रचार करने से मुक्ति पा ली है?

बताते हैं कि 15 अक्टूबर को नीतीश कुमार का स्ट्रीमर गंगा सेतु के पिलर से टकरा गया था और उसी में वो घायल हो गये थे. तब तो बिहार सरकार के अधिकारियों ने स्टीमर टकराने की बात मानी थी, लेकिन मीडिया को बताया था कि मुख्यमंत्री को किसी तरह की चोट नहीं आई है - और वो बिल्कुल ठीक हैं.

मीडिया को पेट पर लगा बैंडेज दिखाते हुए नीतीश कुमार बोले, 'क्या आप मेरी चोट देखना चाहते हैं ? मैं चोटिल हूं... और गाड़ी की आगे की सीट पर बैठने में असमर्थ हूं... क्योंकि वहां सीट बेल्ट लगाना पड़ेगा.'

नीतीश कुमार ने आश्चर्य जताते हुए कहा, 'हम 2006 से छठ के घाटों का निरीक्षण करते आ रहे हैं, मगर ऐसा पहली बार हुआ जब स्ट्रीमर गंगा सेतु के पिलर से टकराया... मेरे पेट और पैर पर जो चोट लगी है उसे लेकर मुझे अभी सतर्क रहना होगा.'

क्या नीतीश कुमार को चुनाव प्रचार करना ही नहीं था?

क्या नीतीश कुमार मोकामा और गोपालगंज में महागठंबधन उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार नहीं करना चाहते थे? और अगर ये बात सही है तो सवाल ये भी उठता है कि नीतीश कुमार ऐसा क्यों चाहते थे?

नीतीश कुमार चोट लगने और जख्म पूरी तरह ठीक ने होने के बाद भी काम कर रहे हैं, लेकिन बीजेपी ने चुनाव प्रचार से दूरी बनाने को लेकर जो सवाल उठाया है, उसे सभी लोग सिर्फ राजनीतिक मानने को भी तैयार नहीं हैं - क्योंकि ध्यान देने पर ऐसी कई चीजें नजर आती हैं जो नीतीश कुमार को मोकामा और गोपालगंज में चुनाव प्रचार करने से रोक रही हैं.

1. क्या ललन सिंह नहीं चाहते थे: मोकामा और आस पास के इलाकों में ललन सिंह और अनंत सिंह की पुरानी दुश्मनी रही है, जहां अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं .

2019 में ललन सिंह को अनंत की पत्नी नीलम देवी ने मुंगेर लोक सभा सीट पर कड़ी टक्कर दी थी. बीजेपी के साथ एनडीए उम्मीदवार के रूप में ललन सिंह ने भी मोदी लहर का पूरा फायदा उठाया और सीट निकाल ली थी, लेकिन जैसे हर कोई भविष्य की चुनौतियां पहले ही खत्म करना चाहता है - ललन सिंह भी अनुभवी नेता हैं.

हैरानी की बात तो ये है कि नीतीश कुमार की गैरहाजिरी में ललन सिंह मोकामा में ही डेरा डाल रहे हैं - क्या तेजस्वी यादव की तत्परता की भी ये कोई खास वजह हो सकती है?

1. क्या नीतीश को छवि की चिंता हो रही है: गोपालगंज के आरजेडी उम्मीदवार का नाम ले लेकर बीजेपी नीतीश कुमार की शराबबंदी पर सवाल उठा रही है - और वो भी तब जब मोकामा में बीजेपी ने भी बाहुबली उम्मीदवार ही मैदान में उतारा है.

अनंत सिंह से ललन सिंह की दुश्मनी तो कायम है ही, नीतीश कुमार के भी संबंध अच्छे नहीं रह गये हैं. हालांकि, इसमें लालू यादव की भी भूमिका है - ऐसे में माना ये भी जा रहा है कि नीतीश कुमार को अपनी छवि की भी चिंता हो सकती है.

1. क्या तेजस्वी को नीतीश बेलगाम नहीं छोड़ना चाहते: नीतीश कुमार के उपचुनाव में प्रचार से दूरी बनाने की एक और भी वजह हो सकती है - और वो है तेजस्वी यादव को बेलगाम न छोड़ देने की मंशा.

महागठबंधन के उम्मीदवार अगर दोनों सीटों से चुनाव हार भी जायें तो सबको पता है, नीतीश कुमार की सरकार और राजनीतिक सेहत पर बिलकुल भी असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन अगर दोनों सीटें महागठबंधन जीत ले तो नीतीश कुमार की गणित के हिसाब से ठीक नहीं होगा.

नीतीश कुमार ने असदुद्दीन ओवैसी के पांच विधायकों को आरजेडी ज्वाइन करा कर पहले ही उसे सबसे बड़ी पार्टी बना दिया है. नीतीश कुमार ने उन विधायकों को जेडीयू में इसलिए नहीं लिया था क्योंकि उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, जबकि बीजेपी के सबसे बड़ी पार्टी होने की वजह से राज्यपाल उसे सरकार बनाने का न्योता दे सकते थे. जब नीतीश कुमार ने एनडीए से पाला बदला तो ये ट्रिक उनकी काम भी आयी.

फिलहाल बिहार विधानसभा में आरजेडी के पास 79 विधायक हैं और बीजेपी के पास 76 विधायक, जबकि जेडीयू के पास 45. ऐसे में अगर आरजेडी और बीजेपी एक एक सीटें जीत ले तो मौजूदा अंतर बरकार रहेगा, लेकिन अगर दोनों ही सीटें बीजेपी जीत ले तो अंतर सिर्फ एक सीट का रह जाएगा. नीतीश कुमार को अभी ऐसी कोई जरूरत है भी नहीं, जिसमें विधायकों के नंबर की जरूरत पड़े.

प्रशांत किशोर का तो ये खुल्लम खुल्ला आरोप है कि नीतीश कुमार जेडीयू नेता और राज्य सभा के सभापति हरिवंश के जरिये अब भी बीजेपी के संपर्क में हैं. अगर वास्तव में ऐसा है तो नीतीश कुमार को भविष्य के समीकरण की भी चिंता तो होगी ही - ये भी तो है कि जैसे अपनी रणनीति से नीतीश कुमार ने बीजेपी की नकेल कस दी थी, ठीक वैसा ही करके तेजस्वी यादव को भी बेलगाम छोड़ कर अपने लिए ही मुसीबत नहीं खड़ी करना चाहते होंगे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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