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Updated: 12 नवम्बर, 2019 10:06 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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महाराष्ट्र का सियासी ड्रामा (Maharashtra Government Formation), जो पहले रोचक था अब उबासी और बोरियत पैदा कर रहा है. (Confusion over Maharashtra CM) कहते हैं कि व्यक्ति जब बोर हो तो उसे अच्छी अच्छी कहानियां सुननी चाहिए. ताजगी बनी रहती है. हम भी आपको कहानी सुनाएंगे. हमारी ये कहानी है तो लेकिन इसमें हर वो एलिमेंट है जो एक अच्छी कहानी में होना चाहिए. हमारी इस कहानी में शेर है. किसान है. बकरी है और घास का ढेर हैं. कहानी उतनी ही पेचीदा है जितनी वर्तमान में महाराष्ट्र की राजनीति.

कहानी है पशोपेश की, तो सुनिए -

एक किसान के पास एक बकरी, एक घास का गट्ठर और एक शेर था. मार्ग में एक नदी पड़ती थी, जिसे पार करने के लिए नदी तट पर एक छोटी नौका थी. लेकिन उस नौका से एक बार में दो ही चीजें नदी पार कर जा सकती थी.

किसान सोचने लगा कि अब क्या करूं? यदि मैं पहले शेर को ले जाता हूं तो बकरी पीछे से घास खा जाएगी. यदि घास को ले जाता हूं  तो पीछे से शेर बकरी को खा जाएगा. बकरी को ले जाना ही ठीक होगा. इसे दूसरे किनारे पर छोड़कर फिर शेर को ले जाऊंगा. लेकिन शेर को बकरी के पास छोडूंगा तो बकरी को शेर खा जाएगा. क्या करूं?

आखिर में उसके दिमाग में एक उपाय आया.

किसान सबसे पहले बकरी को दूसरे किनारे पर छोड़ आया. फिर वापस आकर शेर को ले गया. शेर को वहां छोड़ा और बकरी को वापस ले आया. फिर बकरी को इस किनारे छोड़ा और घास का गट्ठर ले गया. घास शेर के पास छोड़कर वापस आया और फिर बकरी को ले गया. इस तरह उसने बिना किसी क्षति के नदी पार कर ली.'

उद्धव ठाकरे, शिवसेना, महाराष्ट्र, शरद पवार, एनसीपी, Uddhav Thackeray 19 में एनसीपी ने 2014 का बदला लिया है और शिवसेना को कहीं का नहीं छोड़ा है

कहानी में किसान के पास धैर्य है जिसके चलते उसने सही फैसला लिया. लेकिन महाराष्ट्र में ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला, जिससे न सिर्फ भारी चूक हुई. बल्कि किसी को कुछ नहीं मिला और छोटी सी नादानी के चलते सब कुछ बर्बाद हो गया. महाराष्ट्र में किसान भी नहीं बचा और न बच पाए शेर, बकरी और घास का गट्ठर.बात कारण की हो तो महाराष्ट्र में किसी के पास इतना समय ही नहीं था कि वो धैर्य का परिचय दे.

कहानी के जरिये हमने जाना कि कैसे किसान की जरा सी समझदारी ने एक बड़ी समस्या का समाधान चुटकियों में निकाला और कहानी का सुखद अंत किया. बात समझदारी की चल रही है और महाराष्ट्र का भी जिक्र हो चुका है तो हमारे लिए जरूरी हो गया है कि हम एनसीपी (NCP) का जिक्र करे. बात 2014 की है. जैसी पशोपेश की स्थिति आज है तब भी मामला कुछ वैसा ही था.

तब के चुनाव में भाजपा (BJP) नंबर एक पर शिवसेना (ShivSena) नंबर दो, एनसीपी (NCP) तीसरे और कांग्रेस (Congress) चौथे पायदान पर थी. भाजपा और शिवसेना  में सियासी गतिरोध (Tussle between BJP and ShivSena) चल रहा था. मामले में एनसीपी (NCP) ने टांग अड़ाई और प्रफुल्ल पटेल ने एक बचकाना बयान दे दिया. पटेल ने भाजपा (BJP) को समर्थन देने के नामपर जो बातें कहीं साफ़ पता चल रहा था कि उन्होंने भाजपा के सामने घुटने टेक दिए हैं.

बात वर्तमान की हो तो 2019 की एनसीपी, 2014 की एनसीपी बिलकुल नहीं है. कह सकते हैं कि 2014 की गलती 2019 में न दोहराकर NCP ने शिवसेना को कहीं का नहीं छोड़ा.  सवाल होगा कैसे? तो जवाब है कि समान परिस्थितियां होने के बावजूद एनसीपी ने धैर्य नहीं खोया और बड़े ही आराम के साथ उन्होंने बैठकर पूरा तमाशा देखा. एनसीपी, बड़े ही सुकून के साथ भाजपा आर शिवसेना (ShivSena BJP Alliance) की लड़ाई देख रही थी. मामले के मद्देनजर एनसीपी इस बात से वाकिफ थी कि इस लड़ाई में एक जिंदा रहेगा जबकि एक की मौत होगी.

एनसीपी (NCP) का अंदाजा सही निकला. हुआ वही जो वो चाह रही थी. मुख्यमंत्री बनने (CM Of Maharashtra) की रेस में भाजपा (BJP) ने अपने को अलग कर लिया. भाजपा के जाने के बाद मौका शिवसेना को मिला मगर उसके पास संख्या का आभाव था इसके लिए उसने एनसीपी-कांग्रेस (NCP Congress) की मदद ली और एनसीपी ने इस जगह एक ऐसा दाव खेला जिसके बाद जिसके बाद शिवसेना न घर की रही न घाट की. एनसीपी के प्लान के अनुरूप शिवसेना ने महाराष्ट्र की सत्ता पाने के चक्कर में केंद्र तक में भाजपा के साथ अपना 30 सालों का गठबंधन तोड़ा.

भाजपा का दामन छोड़ एनसीपी का दामन संभालते हुए शायद शिवसेना ये सोच रही थी कि वो जो भी कर रही है उसका एक बड़ा फायदा उसे मिलेगा और वो सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी. लेकिन नतीजा निकला इसके ठीक विपरीत. अब तक महाराष्ट्र में शिवसेना को लेकर मामला अधर में फंसा हुआ है. इन नाजुक हालत में ये कहना कहीं से भी अतिश्योक्ति न होगी कि एनसीपी ने ठीक ऐन वक़्त पर शिवसेना को उस स्थान पर लाकर पटक दिया है जहां से उसकी राजनीतिक जमीन दरकती नजर आ रही है.

शिवसेना की मौजूदा हालत पर ये भी कहा जा सकता है कि, वो जैसे एनसीपी के साथ बिना किसी शर्त के खड़ी हुई है. अगर उसे वैसा ही रुख अख्तियार करना था तो फिर भाजपा में क्या बुराई थी. आखिर क्यों नहीं उसने उसी चरित्र और चेहरे का प्रदर्शन किया जो इस देश की जनता 2014 में देख चुकी थी. अगर शिवसेना 2014 की तरह इस बार भी समझदारी का परिचय देती तो आज पार्टी की इतनी किरकिरी हरगिज़ न होती.

बाकी बात महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की भी चल रही थी तो अब जबकि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग चुका है. शिवसेना को एक बड़ा संदेश मिला है. शिवसेना को समझना चाहिए था कि अगर वक़्त रहते उसने सूझबूझ का परिचय दिया होता तो कम से कम आज पार्टी की ऐसी नौबत तो हरगिज न आती.  

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बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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