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Updated: 11 नवम्बर, 2019 06:32 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
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भाजपा-शिवसेना के गठबंधन (BJP Shiv Sena Alliance) के खत्म होने के बाद बीते कई दिनों से सरकार बनाने (Maharahstra Government Formation) को लेकर जारी महाराष्ट्र (Maharahstra Elections 2019) का पॉलिटिकल ड्रामा अपने क्लाइमेक्स की तरफ आ गया है. माना जा रहा है कि उद्धव ठाकरे बतौर मुख्यमंत्री (Uddhav Thackeray to be CM of Maharashtra) शपथ ले सकते हैं. उद्धव का शपथ लेना उन तमाम शिव सैनिकों को जश्न मनाने का मौका देगा जो इस बात को लेकर अडिग थे कि महाराष्ट्र का अगला सीएम शिवसेना से ही होना चाहिए. मोदी 2.0 में मंत्री अरविंद सावंत अपना इस्तीफ़ा दे चुके हैं. भाजपा के पाले से छिटककर शिवसेना ने एनसीपी- कांग्रेस (Shiv Sena NCP-Congress Alliance ) का दामन थाम लिया है. सवाल होगा कि आखिर क्यों शिवसेना ने भाजपा से बरसों पुराना रिश्ता तोड़ा? कारण हैं एनसीपी. जैसे हालत इस वक़्त शिवसेना के हैं साफ़ है कि शिवसेना दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद, गवर्नर के कहने पर सरकार तो बना रही है. मगर जो पर्दे के पीछे का नजारा है वहां निर्णायक भूमिका में शरद पवार और कांग्रेस (Sharad Pawar) हैं. शिवसेना की तरफ से उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) का मुख्यमंत्री बनना (New CM Of Maharashta) शिवसेना का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम है. बात अगर इस प्रोग्राम की हो तो ये यूं भी दिलचस्प है क्योंकि एनसीपी और कांग्रेस इस बात को भली भांति जानते हैं कि अगर महाराष्ट्र में कुछ भी गड़बड़ होती है तो सारा रिस्क, सारा अपयश शिवसेना का रहेगा और किसी भी तरह की बदनामी से एनसीपी और कांग्रेस फ़ौरन ही अपना पल्ला झाड़ लेंगे. जैसे समीकरण अभी महाराष्ट्र में है दूध से जल चुकी शिवसेना को छाछ भी फूंक फूंककर पीना चाहिए.

उद्धव ठाकरे, शिवसेना, महाराष्ट्र, शरद पवार, एनसीपी, Uddhav Thackerayमहाराष्ट्र में शिवसेना का भाजपा से साथ छोड़ते हुए एनसीपी कांग्रेस से गठबंधन करना जरूर बाल ठाकरे की आत्मा को आहत कर गया होगा

महाराष्ट्र की सियासत में मचे इस सियासी घमासान में, अगर हम बात फायदे की करें तो ये कहना कहीं से भी अतिश्योक्ति नहीं है कि एनसीपी ने एक खरा सौदा किया है. एनसीपी और पार्टी सुप्रीमो शरद पवार (NCP Sharad Pawar) चुनाव के फ़ौरन बाद से ही अपने अलग अलग मंचों से इस बात को दोहरा चुके हैं  कि वो सहर्ष विपक्ष में बैठने को तैयार है. और अब जबकि सरकार बनाने के लिए एक मत होते हुए शिवसेना और एनसीपी एक मंच पर आ चुके हैं.इस स्थिति में एनसीपी ही वो दल है जो गिले शिकवे भूला है और ऐसा करते हुए उसने शिवसेना और उद्धव ठाकरे दोनों पर एक बड़ा एहसान किया है.

यानी अगर आज अपनी शर्तों के साथ, जिसमें केंद्र तक में भाजपा-शिवसेना के गठबंधन के खात्मे की बात हो. भले ही शिवसेना के साथ आने के लिए एनसीपी महाराष्ट्र में स्थायित्व का, प्रशासन के सुचारू रूप से काम करने का दावा कर रही हो. लेकिन असल बात यही है कि इन मुश्किल परिस्थितियों में एनसीपी शिवसेना के गले में फंसा वो कांटा है जिसे शिवसेना न तो निगल पा रही है न ही उगल पा रही है.

महाराष्ट्र के इस सियासी खेल में कांग्रेस भी एक दिलचस्प भूमिका है. आज भले ही महाराष्ट्र में कांग्रेस ने शिवसेना को समर्थन दिया हो मगर जैसी स्थिति वर्तमान में कांग्रेस की है और जैसे पार्टी लगातार गर्त के अंधेरों में जा रही है कांग्रेस किसी भी ऐसे दल को समर्थन दे सकती है तो भारतीय जनता पार्टी को पस्त करके ऊपर आ रहा हो.

इस बात में कोई शक नहीं है कि उद्धव ठाकरे ने सत्ता सुख के लालच में जाने अनजाने ऐसा कॉम्प्रोमाइज कर दिया है जिसे इतिहास याद रखेगा, साथ ही आज बाला साहेब ठाकरे की आत्मा जहां कहीं भी होगी उसे उद्धव ठाकरे के इस फैसले ने काफी आहत किया होगा.

चूंकि महाराष्ट्र की इस सियासी हलचल में हम बाला साहब ठाकरे का जिक्र कर चुके हैं. तो हमारे लिए उद्धव ठाकरे के उस वाकये को बताना भी बहुत जरूरी हो जाता है जिसमें एक बार सार्वजानिक मंच से उन्होंने इस बात की पुष्टि की थी कि उन्होंने (उद्धव ठाकरे ने ) बाला साहब ठाकरे से वादा किया था कि एक दिन महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री शिव सैनिक होगा. उद्धव द्वारा कही इस बात को अगर हम आज के सन्दर्भ में देखें तो मिलता है कि उन्होंने बाल ठाकरे से वादा तो जरूर किया होगा मगर ये वादा तो बिलकुल नहीं किया होगा कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने के लिए वो और एनसीपी-कांग्रेस एकमत होकर एक मंच पर आएंगे.

कह सकते हैं कि अगर आज बाल ठाकरे जिंदा होते तो उद्धव को अपने द्वारा लिए इस अनोखे फैसले के लिए कभी माफ़ नहीं करते. जैसी विचारधारा और जिस तरह की आरोप प्रत्यारोप की राजनीति कांग्रेस और शिवसेना के बीच रही है, दोनों ही दलों के लिए किसी भी मुद्दे पर एक राय बनाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है. वाकई राजनीति बड़ी दिलफरेब है. मजबूर कर दिया उद्धव ठाकरे को एक ऐसा फैसला लेने के लिए कि अगर आज बाल ठाकरे होते तो कांग्रेस और एनसीपी तक पहुंचने के लिए उद्धव ठाकरे को उनकी लाश से होकर गुजरना पड़ता.

बाकी बात महाराष्ट्र और मुख्यमंत्री की कुर्सी की चल रही है तो फडणवीस के इस्तीफे के बाद भाजपा इस पूरे मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है. महाराष्ट्र का अगला मुख्यमंत्री जनता के फैसले का नतीजा है तो उसका यानी उध्दव ठाकरे का आने वाला भविष्य कैसा होगा इसका फैसला भी महाराष्ट्र की जनता करेगी. सब जनता के सामने हैं. अगर कुछ गलत हुआ तो जनता मुंह भी खोलेगी और शिवसेना को अपने इस कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का जवाब भी देगी.

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बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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