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Updated: 26 सितम्बर, 2021 04:14 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ जंग छेड़ने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) अपने एनडीए बैचमेट्स के साथ फुर्सत के पल बिता रहे हैं. ऐसा लग ही नहीं रहा है कि अमरिंदर सिंह ने कुछ दिन पहले ही कड़े तेवर दिखाते हुए न केवल नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) बल्कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के खिलाफ तीखे हमले किए थे. हालांकि, इस मामले में गांधी परिवार की ओर से सीधा हमला न होते हुए प्रियंका गांधी की करीबी कही जाने वाली सुप्रिया श्रीनेत ने अमरिंदर सिंह फटकार लगाते हुए कहा था कि अगर वह पार्टी छोड़ना चाहते हैं, तो उस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगी. जिसके जवाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पलटवार करते हुआ कहा था कि राजनीति में गुस्से के लिए कोई जगह नहीं है, लेकिन क्या कांग्रेस में अपमान के लिए जगह है. अगर मेरे जैसे वरिष्ठ पार्टी नेता के साथ इस तरह का व्यवहार किया जा सकता है, तो मुझे आश्चर्य है कि कार्यकर्ताओं के साथ क्या होता होगा?

खैर, पंजाब में कैप्टन और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रही सियासी खींचतान में अब राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) का भी नाम खुलकर सामने आ चुका है, तो माना जा सकता है कि आने वाले समय में अमरिंदर सिंह और गांधी परिवार के बीच कटुता अपने चरम पर पहुंच सकती है. इस बात की पूरी संभावना है कि नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) की कैबिनेट में कैप्टन के वफादारों को बाहर का रास्ता दिखाने पर अभी तक केवल बयानों तक सीमित रही बगावत और ज्यादा खुलकर सामने आ सकती है. क्योंकि, नवजोत सिंह सिद्धू किसी भी हाल में नहीं चाहेंगे कि अमरिंदर सिंह के करीबियों को चरणजीत सिंह चन्नी की कैबिनेट में जगह मिले. राहुल गांधी के साथ चन्नी और सिद्धू की हालिया मुलाकात में मंत्रियों के नामों पर फैसला हो ही गया होगा. इस स्थिति में कहना गलत नहीं होगा कि अब 'कैप्टन' का अगला फैसला ही तय करेगा पंजाब में कांग्रेस का क्या होगा?

अमरिंदर सिंह के लिए मुख्यमंत्री पद अब दूर की कौड़ी हो गया है.अमरिंदर सिंह के लिए मुख्यमंत्री पद अब दूर की कौड़ी हो गया है.

चन्नी के मंत्रिमंडल पर टिकी निगाहें

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस आलाकमान कैप्टन की नाराजगी से परेशान नहीं है. हो सकता है कि राहुल गांधी को उनके सलाहकारों (जिन्होंने अमरिंदर सिंह को हटाने की सलाह दी) ने पंजाब कांग्रेस में बढ़ रहे असंतोष को कम करने के लिए कैप्टन के करीबियों में से कुछ को कैबिनेट में जगह देने के लिए मना लिया हो. जैसी खबरें मिल रही हैं, उससे ये ही सामने आता है कि अमरिंदर सिंह के कुछ वफादरों को चन्नी सरकार में शामिल किया जाएगा. लेकिन, अभी तक इस पर मुहर नहीं लगी है, तो मानकर चला जा सकता है कि कैप्टन के करीबियों पर कतरे जाना तय है. क्योंकि, पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू शायद ही अमरिंदर सिंह के मातहतों को सरकार में शामिल करने के पक्ष में होंगे. वैसे, कांग्रेस आलाकमान के सामने बगावत को रोकने का यही आखिरी सियासी हथियार भी है. अगर इसे सही तरीके से इस्तेमाल करने में चूक हुई, तो पार्टी के सामने मुसीबतों का एक नया पहाड़ खड़ा हो जाएगा. और, पंजाब के सियासी हालात कांग्रेस के लिए संभालना मुमकिन नहीं होगा.

वैसे, नवजोत सिंह सिद्धू ने जिस मुख्यमंत्री पद के लिए सिद्धू ने इतना बवाल मचाया था. उस पर काबिज होने के लिए उन्हें अन्य कांग्रेस नेताओं से ही चुनौती मिली थी. पंजाब के पहले दलित सीएम बने चरणजीत सिंह चन्नी को कुर्सी मिलने की वजह भी यही रही. तो, भविष्य में भी नवजोत सिंह सिद्धू की राह आसान होने वाली नही है. वहीं, कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर पहला दलित सीएम बनाने का श्रेय ले लिया है. लेकिन, कांग्रेस आलाकमान का ये फैसला उनके ही गले की फांस बनता दिखाई दे रहा है. कांग्रेस नेतृत्व (राहुल गांधी-प्रियंका गांधी) चाहते हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद नवजोत सिंह सिद्धू सीएम बनें. लेकिन, चुनाव नतीजों के बाद चरणजीत सिंह चन्नी के कांग्रेस से बगावत करने की संभावनाएं पूरी तरह से बरकरार हैं. जिस कुर्सी के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे वरिष्ठ नेता ने कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, तो चन्नी अभी नए-नए सीएम हैं. सत्ता का नशा किस कदर सिर चढ़ बोलता है, ये पहले भी कई बार देखा जा चुका है.

'कैप्टन' खेल रहे हैं माइंड गेम

अमरिंदर सिंह ने नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ खुलेतौर पर वैसी ही जंग छेड़ दी है, जैसा कभी उनके विरोध में किया गया था. कांग्रेस आलाकमान की लगातार हुक्मउदूली करते हुए साढ़े नौ साल तक पंजाब के मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह को राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं. कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने सिद्धू के खिलाफ प्रत्याशी उतारने की बात केवल कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए की होगी. अगर चरणजीत सिंह चन्नी की कैबिनेट में कैप्टन के करीबियों को थोड़ी-बहुत भी जगह मिलती है, तो कैप्टन विधानसभा चुनाव के नतीजे आने का इंतजार करेंगे. लेकिन, उससे पहले टिकट बंटवारे के दौरान ही सारा मामला साफ हो जाएगा कि अमरिंदर सिंह असल में क्या करने वाले हैं? एक बात तो तय है कि अमरिंदर सिंह पंजाब में सीएम पद की कुर्सी पर बिना जोड़-तोड़ के नहीं पहुंच सकते हैं. उम्र के इस पड़ाव पर जोड़-तोड़ की राजनीति कैप्टन शायद ही कर पाएंगे. लेकिन, '40 साल की उम्र में बुजुर्ग और 80 साल की उम्र में युवा' होने की बात कहकर उन्होंने काफी हद तक इशारा दे ही दिया है कि उनके सभी विकल्प खुले हैं.

अकाली दल के बादल परिवार के साथ जाना कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए सियासी तौर पर आत्महत्या करने जैसा होगा. क्योंकि, ऐसा करने का सीधा मतलब यही निकलेगा कि नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा लगाए गए आरोप सही थे. कैप्टन अमरिंदर सिंह अभी 'वेट एंड वॉच' की भूमिका में हैं. उन्होंने भरोसा है कि आने वाले समय में पंजाब कांग्रेस में स्थितियां अपनेआप ही बिगड़ने लगेंगी. और, उनका ये अंदाजा काफी हद तक सही भी लगता है. पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत द्वारा नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़े जाने पर पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने ही सवाल उठा दिए थे. इतना ही नहीं, सुनील जाखड़ ने तो चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाए जाने की प्रक्रिया पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया था. वैसे, अमरिंदर सिंह ने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनने पर बधाई देकर उनके अंदर कहीं न कहीं सत्ता की ललक जरूर जगा दी होगी. कहना गलत नहीं होगा कि अपमानित कर सीएम पद से हटाए गए अमरिंदर सिंह का एकसूत्रीय एजेंडा किसी भी हाल में सिद्धू को ठिकाने लगाना ही होगा. कैप्टन खुद सीएम नहीं बने तो सिद्धू को तो बनने नहीं ही देंगे. और, अगर इसके रास्ते में कांग्रेस आती है, तो 'गेंहू में घुन के साथ वो भी पिसेगी'.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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