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Updated: 05 फरवरी, 2022 07:57 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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पंजाब में कांग्रेस के मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा होने जा रही है - और वादे के मुताबिक ये घोषणा हो सकता है राहुल गांधी ही करें, बशर्ते वो कांग्रेस की लुधियाना रैली में शामिल होते हैं.

कोई माने या न माने, बगैर ये सब परवाह किये पंजाब कांग्रेस के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) ने अपनी तरफ से गाइडलाइन फिर से जारी कर दी है. नयी गाइडलाइन में भी सिद्धू ने अपनी तरफ से, हर तरह से आलाकमान को आगाह करने की कोशिश की है. वरना, नतीजे भुगतने पड़ेंगे ये भी इशारा कर दिया है.

अभी पिछले दौरे में ही राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने कहा था कि वो न चाह कर भी ऐसा करेंगे. राहुल गांधी ने बताया कि वो ऐसा नहीं करते, लेकिन करना पड़ रहा है. कांग्रेस नेता ने तभी कहा था कि पार्टी में विचार विमर्श के बाद सीएफ फेस की घोषणा की जाएगी - और वादे के मुताबिक वो घड़ी भी आने वाली है.

और तभी मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी (Charanjit Singh Channi) के भांजे को गिरफ्तार कर लिया जाता है. भूपिंदर सिंह हनी और उनके साथियों पर ईडी का आरोप है कि वे लोग फर्जी कंपनियां बनाकर मनी लॉन्ड्रिंग कर रहे थे - और बालू के अवैध खनन में भी शामिल थे. चार साल से पंजाब में अवैध खनन के मामले की जांच में जुटे प्रवर्तन निदेशालय के सूत्रों के हवाले से खबर आई है कि पूरे केस में 13 विधायक और 27 बड़े अफसर भी जांच के दायरे में हैं और कभी भी गिरफ्तार किये जा सकते हैं.

सिद्धू को ये मामला बिल्ली के भाग्य से छींका फूटने जैसा ही लगा है और बगैर चूके वो फिर से अलर्ट और आक्रामक हो गये हैं. कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री का चेहरा तो कोई ईमानदार और नैतिकता से भरा बंदा ही होना चाहिये. सिद्धू के मंच से ये सब बोलते ही भीड़ नारेबाजी करने लगती है - 'हमारा CM कैसा हो, नवजोत सिद्धू जैसा हो.'

जाहिर है सिद्धू ये सब चन्नी के रिश्तेदार हनी की गिरफ्तारी को लेकर ही कह रहे हैं. जैसे 2014 के आम चुनाव की तारीख आने से काफी पहले ही नीतीश कुमार एनडीए के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की सलाह देने लगे थे. तब नीतीश कुमार को लगा था कि गुजरात दंगों की वजह से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर तो कोई तैयार होगा नहीं - और वो दांव ऐसा उलटा पड़ा कि अब तक अफसोस हो रहा होगा.

जैसे लालू यादव परिवार नीतीश के खिलाफ एक केस को लेकर शोर मचाता रहा है, सिद्धू का मामला भी मिलता जुलता ही है. फर्क ये है कि सिद्धू का मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है.

सुप्रीम कोर्ट में सिद्धू के खिलाफ वाले केस की सुनवाई 3 फरवरी को ही थी और पंजाब में वोटिंग से ठीक पहले आशंकाओं के बादल मंडराने लगे थे. पंजाब में 20 फरवरी को एक ही फेज में विधानसभा की सभी सीटों के लिए चुनाव होने हैं. बहरहाल, अब वोटिंग के पांच दिन बाद सिद्धू से जुड़े रोड रेज केस में सुप्रीम कोर्ट ने अगली तारीख 25 फरवरी मुकर्रर की है.

सवाल ये है कि चन्नी को टारगेट पर रखते हुए सिद्धू पंजाब में मुख्यमंत्री पद के कांग्रेस के उम्मीदवार की योग्यता के जो पैरामीटर समझा रहे हैं - क्या खुद वो उस पर खरे उतर पाएंगे?

सिद्धू के दिशानिर्देश, अपने कैप्टन के लिए

ये तो मानना पड़ेगा नवजोत सिंह सिद्धू ने आज तक कभी ये नहीं कहा कि उनको ही मुख्यमंत्री बना दिया जाये. वो तो बस इतना ही चाहते हैं कि 'फैसले का अधिकार' उनको मिलना चाहिये - शायद राहुल गांधी की तरह, जिनको वो अपना कैप्टन मानते रहे हैं.

navjot singh sidhu, charanjit singh channi, rahul gandhiपंजाब के मामले में सिद्धू ने अपने साथ साथ राहुल गांधी को भी फंसा दिया है

राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष नहीं है और न ही वो बनने को तैयार हैं, लेकिन फैसले का अधिकार तो उनके पास है ही. पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष भी सिद्धू को राहुल गांधी ने ही बनाया है. हां, पहल और प्रयास थोड़ा बहुत प्रियंका गांधी वाड्रा का भी रहा है.

पीसीसी अध्यक्ष बन कर भी तो सिद्धू खुश थे ही, लेकिन जब लगा कि पंजाब के सरकारी कामकाज में फैसला तो कोई और कर रहा है, तो गुरु हो गये शुरू. माने भी तभी जब चन्नी ने सरकारी वकील सहित दूसरी नियुक्तियों पर यू टर्न लिया.

फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटा दिया गया और सिद्धू के NOC देने पर ही चन्नी को सीएम बनाने के फैसले पर आखिरी मुहर लगी. जाहिर है सिद्धू मान कर चल रहे होंगे कि बात मानने के साथ साथ फैसले का अधिकार भी उनको मिल गया, लेकिन चन्नी भी पूरे उस्ताद निकले. बिलकुल बिहार के जीतनराम मांझी की तरह. वो रबर स्टांप बन कर काम करने को तैयार ही नहीं हैं.

सिद्धू की डिमांड अब भी राहुल गांधी से उनकी ही तरफ पंजाब में फैसले के अधिकार को लेकर ही है - लेकिन बाद में वो भी 'ता-ता थैय्या करने' को तैयार नहीं हैं. सिद्धू ये खुलेआम कह भी रहे हैं टॉप लीडरशिप को तो बस हां में हां मिलाने वाले ही चाहिये. तभी ये सवाल भी खड़ा हो जाता है कि राहुल गांधी के अलावा भी कांग्रेस में सिद्धू की नजर में टॉप लीडरशिप कोई और है?

ये 'ऊपरवाले' कौन हैं: अमृतसर में सिद्धू कहते हैं, ऊपर वाले तो चाहते हैं कि कोई कमजोर मुख्यमंत्री हो... जो इनकी ताल पर ता-ता थैय्या नाचे... फिर ऊपर से कहेंगे कि नाच मेरी बुलबुल... पैसा मिलेगा... पहले बांह मरोड़ते हैं और फिर दर्द होने पर छोड़ देते हैं.'

सिद्धू ये तो नहीं बताते कि ये ऊपरवाले कौन हैं, लेकिन भीड़ जोर जोर से नारे लगाने लगती है - 'हमारा CM कैसा हो, नवजोत सिद्धू जैसा हो.' हो सकता है भीड़ सिद्धू के मन की बात समझ जाती हो. जरूरी भी नहीं. इवेंट मैनेजमेंट भी तो बड़ा खेल है.

सिद्धू पहले भी बोल चुके हैं कि वो कोई दर्शानी घोड़ा नहीं हैं. और ये भी कह चुके हैं कि ऐसी बातें वो आलाकमान को बता भी चुके हैं. खुल कर धमका भी चुके हैं - अगर फैसले की छूट न मिली तो वो ईंट से ईंट खड़का देंगे. निशाने पर हर बार कोई एक ही या कुछ लोग होते हैं या बार बार बदलते रहते हैं, ये तो सिद्धू या उनके सलाहकार ही बेहतर जानते होंगे - बतायें या न बतायें ये उनका हक तो है ही.

कांग्रेस का मुख्यमंत्री चेहरा कैसा हो: कांग्रेस के मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर सिद्धू ने अपनी तरफ से हर तरीके से समझाने की कोशिश की है. हर पहलू पर अपनी बात रखी है - और ख्याल इस बात का भी रखा है कि पैरामीटर ऐसे भी सख्त न हों कि उनकी भी ऑटो-छंटनी हो जाये.

वो जोर देकर पूरी तरह आगाह कर देना चाहते हैं, 'दूध का जला लस्सी भी फूंक-फूंक कर पीता है... लोग ठगे हुए महसूस कर रहे हैं... आपने अगर ईमानदार बंदा, नैतिकता से भरा हुआ बंदा नहीं दिया तो विकल्प है उनके पास - और चाहे वो झूठा ही हो चाहे वो ये वाला हो कि इनको भी देख लिया, उनको भी देख लिया... अब इसको देखेंगे.'

मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर जो सवाल मन में हैं वे भी सबके सामने एक एक कर सामने रखने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन ऐसा लगता है जैसे वो खुद को ही केंद्र में रख कर तैयार किये हों -

याद रखिएगा कि जो आपका लीडर होगा वोट उसको पड़ेंगे तो क्या 60 एमएलए बना लेंगे?

बिना विधायकों के कोई मुख्यमंत्री कैसे बनेगा?

विधायक बने नहीं - और मुख्यमंत्री बना देना है ये कैसे होगा?

अब एक सवाल तो सिद्धू से पूछना जरूरी हो ही जाता है, पूछ भी लिया जाता है - 'साफ-साफ बताइए ईमानदार कौन है और विकल्‍प कौन है?'

लंबी चौड़ी लफ्फाजी के बाद सिद्धू कहते हैं, '...जनता की आवाज में परमात्मा की आवाज है... मैं ये कह सकता हूं कि मैंने दुनिया का ठेका नहीं लिया लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू चवन्नी रवादार नहीं है - और 17 साल से उसका किरदार बोलता है, उसको बोलने की जरूरत नहीं है.'

क्या वाकई बिलकुल ऐसा ही है? पंजाब के बाकी नेताओं को छोड़ दें तो सिद्धू की मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को ही खारिज करने में ज्यादा दिलचस्पी है. चन्नी के रिश्तेदार की गिरफ्तारी के बाद सिद्धू कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो गये हैं, लेकिन वो ये क्यों भूल रहे हैं कि उनका तीन दशक पुराना सिरदर्द फिर से शुरू हो चुका है.

क्या बोलता है 17 साल का सिद्धू का किरदार

सिद्धू को निजी अधिकार है अपनी मार्केटिंग का और राजनीतिक अधिकार हासिल है अपने विरोधियों को कठघरे में खड़ा करने का, लेकिन ये नहीं भूलना चाहिये कि हाल ही में सिद्धू की बहन अपने परिवार के बारे में क्या क्या बता रही थीं - वो तो व्यक्तिगत मामला है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जो सुनवाई शुरू हुई है, उसके बारे में क्या ख्याल है?

सिद्धू या उनके सलाहकार ये भी दावा कर सकते हैं कि ये राजनीतिक साजिश है, लेकिन जो घटना हुई थी वो - एक व्यक्ति की मौत को तो झुठलाया नहीं ही जा सकता.

1. पटियाला रोड रेज केस: ये 1988 का केस है. पटियाला में पार्किंग को लेकर सिद्धू और उनके दोस्त रूपिंदर सिंह का एक बुजुर्ग के साथ झगड़ा हुआ था... हाथापाई के बीच आरोप है कि सिद्धू ने बुजुर्ग को मुक्का मार दिया - और 65 साल के गुरनाम सिंह की मौत हो गई.

पुलिस ने नवजोत सिंह सिद्धू और रुपिंदर सिंह के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया था, लेकिन सबूतों के अभाव में सेशन कोर्ट ने साल भर बाद ही आरोपियों को बरी कर दिया. अपील किये जाने पर हाई कोर्ट ने 2006 में सिद्धू को तीन साल की कैद और एक लाख रुपये जुर्माने की सजी सुनायी गयी.

सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट से मिली सजा खारिज हो गयी. दो साल पहले ही गुरनाम के परिवारवालों ने सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू याचिका दायर की और आईपीसी की धारा 304 के तहत सजा की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर ली है और अगली सुनवाई 25 फरवरी को होने वाली है.

अगर सिद्धू ने 17 साल के किरदार का दायरा फिक्स किया है, ये मामला तो उसके बाहर का ही है.

2. मां के साथ दुर्व्यवहार का इल्जाम: सिद्धू पर अपनी मां के साथ दुर्व्यवहार का आरोप लग चुका है - और ये अभी अभी की बात है. आरोप लगाने वाला भी कोई गैर नहीं बल्कि सिद्धू की बहन ही हैं.

नवजोत सिद्धू की NRI बहन सुमन तूर का कहना है कि पिता की मौत के बाद भाई ने मां की देखभाल नहीं की... बाद में दिल्ली के रेलवे स्टेशन पर लावारिस हालत में वो आखिरी सांस ली थीं.

सिद्धू का कहना है कि राजनीतिक वजहों से तीस साल बाद उनकी मां को कब्र से निकाला जा रहा है - सही कह रहे हैं, ये 17 साल के दायरे से तो बाहर है ही.

3. रेल हादसे के पीड़ितों के जख्म: वो कोई आम रेल हादसा नहीं था. न तो ट्रेन का ब्रेक फेल हुआ था और न ही पटरी से ही उतरी थी.

2018 में दशहरे के मौके पर सिद्धू की पत्नी डॉक्टर नवजोत कौर चीफ गेस्ट थीं. रावण दहन देखने के लिए भीड़ जमा थी और काफी लोग रेल की पटरियों पर बैठ कर देख रहे थे. पटाखों की आवाज के बीच जब पटरी पर ट्रेन आयी तो बहुतों को पता ही नहीं चला. बच वे ही पाये जो पटरी से कूद गये.

हादसे में 59 लोगों की मौत हुई थी और 200 गंभीर रूप से जख्मी हुए थे. फौरन ही सिद्धू पहुंचे और पीड़ित परिवारों को गोद लेने, हर माह पेंशन देने और बच्चों की शिक्षा का पूरा खर्च उठाने जैसे वादे कर डाले.

तब की कैप्टन सरकार ने तत्काल प्रभाव से पीड़ित परिवारों को 5-5 लाख रुपये की मदद दी थी - और दो साल के इंतजार के बाद 34 परिवारों के एक सदस्य को किसी न किसी सरकारी दफ्तर में नौकरी भी दी, लेकिन सिद्धू का अब भी सबको इंतजार है. पीड़ितों में चार परिवार यूपी के भी थे, लेकिन जब जगह जगह धक्के खाने के बाद भी नौकरी नहीं मिली तो लौट गये.

हादसे के पीड़ितों को सिद्धू और उनकी पत्नी का अब भी इंतजार है - और गौर करने वाली बात है कि कम से कम ये मामला 17 साल के किरदार वाले दायरे के भीतर ही है.

सिद्धू को लेकर एक और भी विवाद काफी चर्चित रहा है, जिसे लेकर वो हमेशा ही कैप्टन अमरिंदर सिंह सहित सभी विरोधियों के निशाने पर रहे हैं - पाकिस्तान जाकर उनका जनरल बाजवा से गले मिलना और इमरान खान से याराना. पंजाब के कांग्रेस प्रभारी रहे हरीश रावत इसे राजनीतिक मामला बता कर खारिज कर चुके हैं. जाहिर है कांग्रेस नेतृत्व की भी मंजूरी तो रही ही होगी - लेकिन पाकिस्तान परस्ती को लेकर जो लोग राहुल गांधी को पूरे देश में खारिज कर सकते हैं, भला नवजोत सिंह सिद्धू की क्या बिसात?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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