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Updated: 25 अक्टूबर, 2021 07:27 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) ने अपनी नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है. कांग्रेस नेतृत्व (गांधी परिवार) द्वारा अपमानित कर सीएम पद से हटाए जाने के बाद से ही माना जा रहा था कि अमरिंदर सिंह उनके खिलाफ बगावत करने वाले नवजोत सिंह सिद्धू और कांग्रेस आलाकमान को पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में संभलने का कोई मौका नहीं देना चाहते हैं. उन्‍होंने अकाली दल के विद्रोही गुट, अकालियों द्वारा छोड़ी गई भाजपा और पंजाब हितैषी राष्‍ट्रवादी ताकतों के साथ गठजोड़ का इशारा किया है. इतना ही नहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मुख्य रूप से पंजाब से जोर पकड़ने वाले किसान आंदोलन का किसानों के हित समाधान निकलने की भी बात छेड़ दी है. अमरिंदर सिंह की इस घोषणा से पंजाब के सियासी समीकरण बदलने की संभावना जताई जा रही है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि अगर सबकुछ कैप्‍टन के मन का हो भी जाता है, तो क्‍या उसमें कांग्रेस को सत्‍ता से बेदखल करने की ताकत होगी?

Amarinder Singh New Party Strongअमरिंदर सिंह द्वारा नई पार्टी बनाने की घोषणा से पंजाब के सियासी समीकरण बदलने की संभावना जताई जा रही है.

कौन आएगा कैप्‍टन के साथ?

पंजाब चुनाव के मद्देनजर नई पार्टी बनाने के लिए कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने इस गठजोड़ में शिरोमणि अकाली दल से अलग हो चुके रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा और सुखदेव सिंह ढींढसा को शामिल करने की बात कही है. इसके साथ ही अमरिंदर सिंह ने भाजपा के साथ भी हाथ मिलाने का दांव चला है. हालांकि, भाजपा के साथ गठबंधन से पहले उन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन का किसानों के हित में समाधान निकलने पर ही जुड़ने की शर्त रखी है. अगर किसान आंदोलन के बाबत कोई हल निकल आता है, तो कैप्टन को हल्के में लेना भारी पड़ सकता है. अमरिंदर सिंह ने इंडिया टुडे से बातचीत में कहा था कि कोई भी आंदोलन हमेशा के लिए चलता नहीं रह सकता है. तो, बहुत हद तक संभावना है कि आने वाले समय में केंद्र की भाजपा सरकार कृषि कानूनों का कोई ऐसा हल निकालकर लाए, जो किसान आंदोलन को खत्म ना भी करे, तो काफी हद तक कमजोर कर सकता है.

वैसे भी किसान आंदोलन को पंजाब में खाद-पानी देकर कैप्टन ने ही इसे दिल्ली पहुंचाया था. राकेश टिकैत सरीखे नेता तो किसान आंदोलन का मंच सजने के बाद उससे जुड़े हैं. भाजपा के साथ उनका गठबंधन इसलिए भी आसानी से हो सकता है कि पंजाब में भगवा दल के पास खोने के लिए बहुत बड़ी सियासी जमीन नहीं है. 1992 में पंजाब के अंदर भाजपा का वोट शेयर 16.5 फीसदी हुआ करता था, जो 2017 में घटकर 5.4 फीसदी पर आ चुका है. दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के हिसाब से अमरिंदर सिंह ने भाजपा को सांप्रदायिकता और एंटी मुस्लिम होने के नाम पर पहले ही क्लीन चिट दे दी है. भाजपा के साथ गठजोड़ में किसान आंदोलन का समाधान ही सबसे जरूरी होगा. और, कैप्टन अमरिंदर सिंह की किसान संगठनों पर पकड़ किसी से छिपी नहीं है.

कितना प्रभावी है अकालियों से छिटका हुआ गुट

शिरोमणि अकाली दल छोड़ने वाले रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा और सुखदेव सिंह ढींढसा गुट की बात करें, तो अमरिंदर सिंह ने बहुत सोच-समझकर ये दांव खेला है. सुखदेव सिंह ढींढसा परिवार का जनाधार और प्रभाव पंजाब के मालवा क्षेत्र के संगरूर, बरनाला, पटियाला में माना जाता है. मालवा को पंजाब की सियासत का पावर सेंटर कहा जाता है. क्योंकि, 117 विधानसभा सीटों वाले पंजाब की करीब चार दर्जन से ज्यादा सीटें इसी मालवा क्षेत्र से आती हैं. बीते साल फरवरी में अकाली दल से निकाले जाने के बाद सुखदेव सिंह ढींढसा और रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा ने शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) बना लिया है. शिअद (संयुक्त) की माझा क्षेत्र में भी अच्छी खासी पकड़ है, जिसमें सूबे की 25 विधानसभा सीटें आती हैं. खडूर साहिब के पूर्व सांसद रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा की इस क्षेत्र में काफी असर है. खडूर साहिब को सिख धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. इस क्षेत्र में कई गुरुद्वारे, डेरा और बाबाओं का समीकरण भी है. इन क्षेत्रों का मतदाता पंथिक और अकालियों का साथ देने के लिए जाने जाते हैं. क्योंकि, सुखदेव सिंह ढींढसा और रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा दोनों ही पंथिक और अकाल तख्त से जुड़े नेता हैं, जिनके जाने से अकाली दल को नुकसान होगा. जिसका फायदा कैप्टन उठा सकते हैं.

कैप्‍टन का मुद्दा जमीन से कितना जुड़ा है?

कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब के सीएम रहने के साथ ही राज्य के गृह मंत्री भी रहे हैं. कहना गलत नहीं होगा कि पंजाब के हालातों को जितने बेहतर और करीबी तरीके से कैप्टन समझ सकते हैं, शायद ही कोई अन्य समझ सकता होगा. अमरिंदर सिंह की मानें, तो पाकिस्तान के साथ सीमा साझा करने वाले पंजाब में बीते एक साल में ड्रोन के जरिये हथियार, ड्रग्स, रुपये जैसी चीजों के भेजे जाने की घटनाओं में इजाफा हुआ है. आसान शब्दों में कहा जाए, तो पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई खालिस्तानी स्लीपर सेल के सहारे पंजाब का माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रही है. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसान आंदोलन में नजर आने वाले खालिस्तानी समर्थक कहीं न कहीं पंजाब में भिंडरावाले का समय दोहराने की कोशिश कर सकते हैं. वहीं, किसान आंदोलन का समाधान निकलवाकर कैप्टन पंजाब में हीरो बन सकते हैं, जो कांग्रेस आलाकमान से लेकर सूबे में पार्टी के संगठन तक को हिला सकता है. अमरिंदर सिंह का राष्ट्रवादी विचारों का होना उनका सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट नजर आता है. पंजाब में सुरक्षा हमेशा से ही बड़ा मुद्दा रहा है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

यदि चन्‍नी चेहरा रहे, तो कैप्‍टन क्‍या करेंगे?

इंडिया टुडे के साथ बातचीत में अमरिंदर सिंह ने पंजाब के नए सीएम चरणजीत सिंह चन्नी की तारीफ की थी. कैप्टन की इस कमजोरी को भांपते हुए अगर कांग्रेस चरणजीत सिंह चन्नी को ही मुख्यमंत्री का चेहरा बना देती है, तो अमरिंदर सिंह के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. लेकिन, इस स्थिति में कांग्रेस के लिए भी पंजाब विधानसभा चुनाव की राह आसान नहीं होगी. पंजाब कांग्रेस के प्रधान बने नवजोत सिंह सिद्धू पहले से ही मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं. चरणजीत सिंह चन्नी के ऊपर नवजोत सिंह खुद को सुपर सीएम साबित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. चरणजीत सिंह चन्नी के नाम को आगे करने पर पंजाब कांग्रेस के ही कई अलग-अलग गुटों का पार्टी के फैसले के विरोध में सामने आना तय है. वहीं, अगर पंजाब चुनाव के बाद नवजोत सिंह सिद्धू का चन्नी पर ऐसा ही दबाव बना रहा, तो पंजाब की राजनीति को देखते हुए इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चरणजीत सिंह को पाला बदलने में देर नहीं लगेगी. क्योंकि, कांग्रेस में रहने पर भी चन्नी को सीएम पद मिलने वाला नहीं है. वहीं, अमरिंदर सिंह कोई अच्छा पद ऑफर करने में पीछे नहीं हटेंगे.

एंटी सिद्धू, एंटी अकाली एजेंडा कितना ताकतवर

सुखदेव सिंह ढींढसा और रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा गुट के साथ गठबंधन कर अमरिंदर सिंह अकालियों का सीधे तौर पर कमजोर करेंगे. ये दोनों ही गुट किसान संगठनों में अच्छी-खासी पकड़ रखते हैं. अकाली दल शुरुआत से ही कृषि कानूनों का समर्थन करने को लेकर किसानों के निशाने पर है. हालांकि, अकाली दल ने स्थिति को संभालने की कोशिश की है. लेकिन, वह कामयाब होते नजर नहीं आ रहे हैं. पंजाब की राजनीति के लिहाज से देखा जाए, तो कैप्टन को कांग्रेस से अपमानित करके निकाले जाने से सहानुभूति मिलना तय है. नवजोत सिंह का विरोध कर अमरिंदर सिंह ना केवल सिद्धू को बल्कि पंजाब कांग्रेस को भी कठघरे में खड़ा करने में कामयाब होते दिख रहे हैं. नवजोत सिंह सिद्धू पर पाकिस्तान से करीबी के आरोपों का असर कैप्टन की राष्ट्रवादी विचारधारा के लिए संजीवनी का काम करेगा. 

कांग्रेस के साथ एक समस्या ये भी है कि करीब दो दर्जन पार्टी विधायक कैप्टन के साथ जाने के लिए तैयार बैठे हुए हैं. इन विधायकों को रोकना पंजाब कांग्रेस के लिए लिए बड़ी चुनौती होने वाली है. अमरिंदर सिंह के नई पार्टी बनाने की घोषणा के साथ ही कांग्रेस उन पर हमलावर हो गई है. क्योंकि, कांग्रेस को पता है कि अमरिंदर सिंह पंजाब में सरकार ना भी बना सके, तो कम से कम कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करवाने की ताकत रखते ही हैं. वहीं, अमरिंदर सिंह जिस गठजोड़ को बनाने की बात कर रहे हैं, अगर वो बन जाता है. तो, पंजाब में कैप्टन की बागी ब्रिगेड द्वारा चुनाव में बड़ा कमाल करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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