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Updated: 10 मई, 2017 02:02 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी में मचे कोहराम के दरम्यान यूपी में मायावती ने बीएसपी में बड़ा बदलाव किया है. मायावती के भाई आनंद कुमार की एंट्री के बाद नसीमुद्दीन सिद्दीकी का हटाया जाना बीएसपी में चौंकाने वाला दूसरा बड़ा फैसला है.

बीएसपी के मुस्लिम फेस और मायावती के अति भरोसेमंद नसीमुद्दीन सिद्दीकी के साथ उनके बेटे अफजल को भी बीएसपी से निकाल दिया गया है - और दोनों पर बीएसपी की छवि धूमिल करने का इल्जाम लगा है.

दिलचस्प बात ये है कि इसका ऐलान न तो मायावती, न ही बीएसपी उपाध्यक्ष आनंद, बल्कि सतीश चंद्र मिश्रा द्वारा किया गया है. ठीक नसीमुद्दीन की तरह एक बार मुख्तार अंसारी को भी बीएसपी से बाहर किया जा चुका है. नसीमुद्दीन के बाद मुख्तार के खिलाफ भी वैसे ही एक्शन की आशंका बढ़ गयी है.

नसीमुद्दीन और अफजल पर इल्जाम

सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा है कि नसीमुद्दीन और उनके बेटे को पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोप में निष्कासित किया गया है. सतीश चंद्र मिश्रा के मुताबिक सिद्दीकी ने पश्चिम यूपी में बेनामी संपत्ति बनाई और अवैध बूचड़खाने चला रहे थे.

इतना ही नहीं, सतीश चंद्र मिश्रा का आरोप है कि नसीमुद्दीन बीएसपी के नाम पर अवैध वसूली भी करते थे. अब नसीमुद्दीन और उनके बेटे को बीएसपी के सभी पदों से बर्खास्त कर पार्टी से निकालने का फैसला किया गया है. अभी कुछ दिन पहले ही मायावती ने नसीमुद्दीन को यूपी से हटाकर मध्य प्रदेश का प्रभारी बनाया था जिसे उनके पर कतरने के तौर पर देखा गया था.

naseemuddin siddiquiनसीमुद्दीन पर बीएसपी के गंभीर इल्जाम

खास बात ये है कि बीएसपी को नसीमुद्दीन की बताई गई गतिविधियों की जानकारी चुनाव बीतने के इतने दिन बाद हुई. क्या यूपी के नतीजे अलग होते तो भी नसीमुद्दीन पर ऐसे ही आरोप लगते?

क्योंकि मुस्लिम वोट नहीं मिले

यूपी चुनाव में जीत के लिए मायावती ने मुस्लिम वोट पर हद से ज्यादा भरोसा किया था, लेकिन वोट उन्हें नहीं मिल पाये. मुस्लिम वोटों के लिए मायावती ने पश्चिम यूपी में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी पर दांव खेला था. अंसारी तो समाजवादी पार्टी से बात न बन पाने की हालत में बीएसपी के साथ चुनाव के ऐन पहले जुड़े लेकिन नसीमुद्दीन तो 2014 के आम चुनाव के बाद से ही सक्रिय रूप से जुटे हुए थे.

नसीमुद्दीन का बीएसपी से निकाला जाना हीरो से जीरो बनने की बेहतरीन मिसाल है. बीएसपी के अस्तित्व में आने के बाद 1988 में नसीमुद्दीन सिद्दीकी पार्टी से जुड़े और गुजरते वक्त के साथ उसका सबसे बड़ा मुस्लिम चेहरा बन गये. 1995 में मायावती की सरकार बनने पर वो कैबिनेट मंत्री बने और धीरे धीरे उनका दबदबा बढ़ता गया.

satish mishra, mayawati, naseemuddinअचानक इतने बुरे कैसे हो गये नसीमुद्दीन?

लोक सभा चुनाव में जब बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली तो मायावती ने 2017 विधानसभा चुनाव की तैयारी तेज कर दी. इन्हीं तैयारियों में पश्चिम यूपी में भाईचारा मीटिंग का आयोजन था. ये मीटिंग मुस्लिम समुदाय को जोड़ने के मकसद से शुरू की गईं - और नसीमुद्दीन और उनके बेटे अफजल सिद्दीकी को इसे अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी. ऐसी हर मीटिंग के शुरू होने से पहले अफजल सुनिश्चित करते रहे कि कुरान की आयतें जरूर पढ़ी जाएं. मीटिंग में लोगों को समझाया जाता कि क्यों दलितों की तरह मुस्लिमों को भी एक कायद की जरूरत है.

मीटिंग में मायावती को कायद की नजीर के तौर पर बताया जाता. मायावती के बाद नसीमुद्दीन का गुणगान होता. फिर नसीमुद्दीन को एक मजबूत कायद के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता है. बीएसपी में नसीमुद्दीन की अहमियत समझाने के लिए लोगों को बताया जाता कि मायावती जब मुख्यमंत्री रहीं तो नसीमुद्दीन की हैसियत और रुतबा कैसा रहा – 'तब उनके पास 18 पोर्टफोलियो रहे'. तब लोग ये सब बड़े गौर से सुनते रहे, लेकिन बूथ तक पहुंचते पहुंचते ये बात भूल गये और मायावती के दलित-मुस्लिम फॉर्मूले का यूं ही दम निकल गया.

क्या अब मुख्तार की बारी है

अब सवाल ये उठता है कि जो नसीमुद्दीन मायावती के इतने लाडले थे वो अचानक इतने बुरे कैसे हो गये. क्या मुस्लिम वोट नहीं दिला पाने के कारण ही उनका ये हाल हुआ या कोई और भी वजह है? असल वजह तो मायावती और सतीश चंद्र मिश्रा को ही मालूम होगा.

पहले भी देखा गया और चुनावों के दौरान भी नजर आया कि जब भी कोई नेता बीएसपी छोड़ता मायावती की ओर से यही बताया जाता कि उसे तो निकाला ही जाना था. ये बात स्वामी प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक के बीएसपी छोड़ने पर भी सुनने को मिली. बीएसपी छोड़ने वाले नेताओं में एक बात जो कॉमन रही वो ये कि तकरीबन सभी मायावती पर पैसे लेकर टिकट देने के आरोप लगाये. नसीमुद्दीन शायद अपने खिलाफ हो रही तैयारी को भांप नहीं पाये और उन्हें बर्खास्त कर दिया गया.

ये नसीमुद्दीन सिद्दीकी ही रहे जिन्होंने बीजेपी नेता दयाशंकर सिंह की मायावती पर टिप्पणी के बाद लखनऊ में हंगामे का नेतृत्व किया. तब दयाशंकर की पत्नी स्वाति सिंह ने हंगामों के लिए पुलिस में शिकायत दर्ज करायी थी. स्वाति सिंह अब यूपी की योगी सरकार में मंत्री बन चुकी हैं.

खबर है कि पुलिस नसीमुद्दीन के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी कर रही है. अगर ऐसा होता है तो नसीमुद्दीन पॉक्सो एक्ट में बुरे फंस सकते हैं. उधर, नसीमुद्दीन के खिलाफ लखनऊ छावनी इलाके में अवैध निर्माण पर भी कार्रवाई की तलवार लटक रही है.

तो क्या मायावती ने इन्हीं सब वजहों से नसीमुद्दीन से किनारा कर लिया? मजे की बात ये है कि मायावती ने अपने भाई को बीएसपी में जब शामिल किया उससे ठीक पहले उनके कारोबारी ठिकानों पर आयकर के छापे पड़े थे. मायावती के इस कदम को लेकर उन पर परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप तो लगे ही, अपने भाई को राजनीतिक कवर देने की कवायद के रूप में भी देखा गया.

अगर नसीमुद्दीन के केस पर गौर करें तो लगता है बीएसपी में अगला नंबर मुख्तार अंसारी की हो सकता है. जो अपेक्षा नसीमुद्दीन से पश्चिम यूपी में रही वही पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्तार से थी. दोनों ही उस अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे. वैसे भी मुख्तार को एक बार पार्टी विरोधी काम के आरोप में निकाला जा चुका है. इस बार मायावती ने कहा था कि वो अंसारी बंधुओं को सुधरने का मौका दे रही हैं - थोड़ा और इंतजार करना होगा ये जानने के लिए कि वे सुधरे भी या नहीं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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