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Updated: 15 अगस्त, 2016 03:59 PM
कुणाल वर्मा
कुणाल वर्मा
 
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आ बैल मुझे मार कहावत तो आपने कई बार सुनी होगी. लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गो-रक्षा के नाम पर ठेकेदारी करने वालों को स्पष्ट संदेश क्या दिया, कहावत थोड़ी बदल गई है. यूपी, पंजाब सहित कई बड़े राज्यों के चुनाव के प्री-क्वार्टर फाइनल की तैयारियों के बीच प्रधानमंत्री के बयान ने कहावत को पलट दिया है.

जिस तरह से गो-रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे संगठनों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उसमें यह कहने में जरा भी गुरेज नहीं कि अब बैल की जगह गाय ने ले ली है और लोग कहने लगे हैं आ 'गाय' मुझे मार.

आज स्वतंत्रता दिवस की हम 70 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस स्वतंत्रता दिवस को भारत पर्व के रूप में सेलिब्रेट करने का आह्वान किया था. पर जबसे भारत पर्व मानने के लिए मोदी जुटे, एक से बढ़कर एक बयान दिए जा रहे हैं. लंबे समय से तमाम बड़े मुद्दों पर मौन साधे मोदी ने अचानक फ्रंट फुट पर आकर ताबततोड़ बैटिंग क्या शुरू की हर तरफ हो हल्ला मच गया. दलितों पर बड़ा बयान, कश्मीर पर खुलकर बयान फिर गो-रक्षकों को स्पष्ट चेतावनी ने जहां एक तरफ मोदी विरोधियों को शांत कर दिया है, वहीं मोदी के अपने उनसे खासे नाराज हो गए हैं.

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विपक्ष के पास पिछले कुछ महीनों से एक ही मुद्दा था कि मोदी न तो कश्मीर पर कुछ बोल रहे हैं, न तो दलितों पर और न गो-रक्षा के नाम पर मची मारकाट पर. पर अचानक से मोदी ने पलटवार तो किया, लेकिन खुद मुसीबत को न्योता दे दिया है. नरेंद्र मोदी के नाम का दिनरात गुणगान करने वाले विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल सहित तमाम हिंदू संगठनों के नेता अचानक मोदी से नफरत करने लगे हैं.

सोशल मीडिया पर ऐसे संगठनों के बयानों ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि मोदी ने अपने चौके छक्कों से विरोधियों को तो शांत कर दिया है, पर बॉल बाउंड्री पर बैठे अपनों को जो लगा है उसका दर्द लंबे समय तक सुनाई देने वाला है.

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 तोगड़िया की नाराजगी से होगा बीजेपी को नुकसान?

विश्व हिंदू परिषद के फायर ब्रांड नेता और अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष डा. प्रवीण तोगड़िया ने तो बकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर मीडिया के सामने अपनी भड़ास निकाली. तोगड़िया ने कहा, 'पीएम के भाषण बाद देश के करोड़ों हिंदू रो रहे हैं.' तोगड़िया ने खुलेआम मोदी के भाषण की धज्जियां उड़ाते हुए स्पष्ट संदेश दे दिया है कि गो-रक्षा के नाम पर भले ही प्रधानमंत्री का बयान राजनीति से प्रेरित है, लेकिन आम जनमानस उन्हें कभी माफ नहीं करेगा.

हालांकि जानकार मानते हैं कि प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे किसी भी शख्स की बातों के हमेशा से ही दो मतलब होते हैं.

एक बात का तात्पर्य तात्कालिक परिस्थितियों से होता है और दूसरी दूरागामी सोच से परिलक्षित होती है. एक तरफ देश को देखना होता है दूसरी तरफ अपने दल और उसके हितों की रक्षा करना भी उनका कर्तव्य होता है.

शायद यही कारण है कि विहिप और उसके सहभागी संगठनों को प्रधानमंत्री की बात नागवार गुजरी है. प्रधानमंत्री की मुख से बात निकली है तो दूर तलक जाएगी. यही कारण है कि सभी बातों को यूपी, पंजाब सहित कई अन्य राज्यों के चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है.

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भले ही प्रधानमंत्री की बातों के कई मतलब निकाले जाएं, पर आजादी के इतने वर्षों बाद भी इस सत्य से बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता है कि गो-रक्षा के नाम पर हमेशा से राजनीति ही होती है. प्रधानमंत्री ने सीधे-सीधे गो-रक्षकों को असमाजिक करार दे दिया, लेकिन उस पर कुछ नहीं बोले कि जिन राज्यों में गो-हत्या पूरी तरह प्रतिबंधित है उन राज्यों में आज भी गो-हत्या कैसे हो रही है.

प्रधानमंत्री ने इस पर भी कुछ नहीं बोला कि जब हरियाणा, जम्मू कश्मीर, झारखंड, राजस्थान जैसे राज्यों में गो-हत्या पर दस साल तक जुर्माना है तो क्यों वहां फिर भी गो-हत्या धड़ल्ले से हो रही है. मोदी ने सीधे आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा कि अस्सी प्रतिशत गो-रक्षक फर्जी हैं, पर ये आंकड़े कौन बताएगा कि गो-हत्या के मामले में आजादी से लेकर अबतक कितने लोगों को सजा हुई है.

प्रधानमंत्री को इस बात पर भी अपनी स्पष्ट राय रखनी चाहिए कि जब भारत में गो-रक्षा के लिए सभी राज्यों में अलग-अलग कानून क्यों है? क्यों किसी राज्य में गो-हत्या कानून वैध है तो कहीं अवैध? क्यों नहीं गो-रक्षा के नाम पर राजनीति को रोकने के लिए एक सामन व्यवस्था का गठन किया जाए.

इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि पिछले दो वर्षों में गो-मांस और गो-हत्या के नाम पर भारत ने बहुत कुछ झेला है. इस बात से भी कतई इनकार नहीं किया जा सकता है कि धर्म के कुछ ठेकेदारों ने गो-रक्षा के नाम पर अपनी दुकान खोल रखी है. बेवजह लोगों को परेशान भी किया जा रहा है. लेकिन क्या इससे भी इनकार किया जा सकता है कि हर क्षेत्र में कुछ गलत लोग बसते हैं.

कई ऐसे राज्य हैं जहां गो-रक्षा दलों की पहचान कर उन्हें पहचानपत्र तक जारी किया जाता है. ऐसा क्यों नहीं हो सकता है कि सभी राज्यों में ऐसी व्यवस्था की जाए, ताकि भविष्य में होने वाली घटनाओं को रोका जा सके. प्रधानमंत्री की अपील के तत्काल बाद गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी कर दिया है. बेहतर तो यह भी होता कि गो-रक्षकों को पकड़ने की जगह गो-हत्या पर होने वाली राजनीति को खत्म करने का प्रयास किया जाता. मंथन का वक्त है कि हम गो-हत्या के मुद्दे को राजनीति के चाकू से कब तक टूकड़े-टूकड़े करेंगे.

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