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Updated: 07 अगस्त, 2016 12:46 PM
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टाउन हॉल में कहां तो mygov के दो साल का जश्न और कहां गऊ माता. मेरी सरकार के जश्न में खुद 'सरकार' ने ऐसा चाबुक मारा कि 'गायवाले' सिहर उठे. गोरक्षा बनाम गोहत्या की आड़ में राजनीतिक निशानेबाजों पर मोदीजी ने सात ताड़ के पीछे से ऐसा निशाना साधा कि विरोधियों की बोलती बंद कर दी. गऊ मन्त्र के शक्ति बाण से पीएम ने कई शिकार किए. राजनीतिक भी, सामाजिक भी और रणनीतिक भी.

अव्वल तो 'गऊ माता ' के नाम पर राजनीति करने वालों को चित्त किया. रणनीतिक ये कि दलितों पर गोहत्या के नाम और आड़ से हो रहे हमलों पर अपने सरकार का और पार्टी का रुख साफ़ कर दिया. बड़बोले राज्यों की खबर ली और नाम लिए बगैर गाय के नाम पर खुलेआम दबंगई करने वालों को खुली चेतावनी भी- बस! बहुत हुआ!

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 गोरक्षकों को मोदी की फटकार के मायने क्या हैं... (फाइल फोटो)

पीएम नरेंद्र मोदी से टाउन हॉल कार्यक्रम में सवाल पूछा गया था वोलेंटियर्स के लिए क्या संदेश और विज़न है और मोदी ने अपने अंदाज़ में जवाब का रुख मोड़ दिया गोरक्षा बनाम गोहत्या की ओर. बेबाक कहा- दिन में गोरक्षा का चोला पहनकर और रात में असामाजिक काम करने वाले सुधरें. राज्यों से ऐसे लोगों का डोसियर बनाने को कह दिया गया है.

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स्वयंसेवक समूह या संगठन होने का ये मतलब कतई नहीं कि आप गोरक्षा के नाम पर किसी को दबाएं या गुंडागर्दी करें. मोदी ने ऐसे ठेकेदारों को ललकारा भी... कहा- कत्लखानों से ज़्यादा गायें तो प्लास्टिक (पॉलिथीन)खाने से मरती हैं. सच में गोरक्षक हो और कुछ करना चाहते हो तो ऐसी मौत रोको. ये तो होता नहीं और बाकी सारे काम होते हैं. कुछ बातें जो पीएम ने तो नहीं कहीं पर टाउन हॉल में उनका ज़िक्र होता तो कामधेनु को और अच्छा लगता.

मसलन, बेहतर होता गोरक्षक पार्टी की सरकारें जिन राज्यों में हैं वहां बेहतर विकल्प तैयार कर प्लास्टिक थैलियों पर पूर्ण और सख्त पाबन्दी लगाई जाती. पर्यावरण के नाम पर न तो गाय के नाम पर ही सही.

देश में जहां साधु-साध्वी मुख्यमंत्री और मंत्री बने वहां ही गाय और गंगा को कौन सा निहाल कर दिया? गोमाता को संस्कृति का स्तम्भ बताने वाले बाबा अपने भक्तों को प्लास्टिक थैलियों में ही प्रसाद बांटते हैं. तब न तो गाय याद आती है न ही गंगा. कुछ बातें जो पीएम ने नहीं कही उनमें गोशालाओं और पिंजरापोल के नाम पर काले धन की वैतरणी भी धन्नासेठ गाय की पूंछ पकड़कर ही पार उतरते हैं. इन धनपशुओं को अपनी (गो) माता का सौदा करने में भी रत्ती भर झिझक नहीं आती.

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तिलक छापा लगाने वाले एक धार्मिक संगठन के नेता जिनका वनस्पति घी का कारोबार था उनके गोदामों पर छापा पड़ा तो वहां से गाय-भैंस की चर्बी का भंडार मिला था. पकड़े गए तो कहा वो तो मुक्ति के मार्ग पर गई हैं.0 गाय तो बेचारी है बस गाय. जो जब चाहे जिस तरह जिधर हांक ले जाय! सबको दूध पीने से मतलब है. इसकी फ़िक्र किसे है कि क्या खाकर दूध दे रही है घास या प्लास्टिक... बस ऐसा ही जनता के साथ भी है... सबको वोटों का दूध ही चाहिए.... चारे की फ़िक्र किसे... भ्रष्ट नेताओं और अफसरों से बचे तब तो गोमाता का नम्बर आये!

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लेखक

संजय शर्मा संजय शर्मा @sanjaysharmaa.aajtak

लेखक आज तक में सीनियर स्पेशल कॉरस्पोंडेंट हैं.

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