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Updated: 24 सितम्बर, 2020 06:52 PM
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मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी राजनीतक दल (Opposition) 2019 के आम चुनाव के पहले से ही एकजुट होने की कोशिश करते रहे हैं, लेकिन हमेशा थोड़ी दूर साथ चलने के बाद बुरी तरह बिखर जाते हैं. धारा 370 से लेकर CAA तक और हाल फिलहाल चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर कांग्रेस पूरी ताकत से आवाज उठाने की कोशिश करती रही, लेकिन बार बार वो विपक्षी खेमे में ही अकेले पड़ जाती रही.

केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी को भले न परवाह हो, लेकिन ये किसानों का ही मुद्दा तो है जो एनडीए में उसके सबसे पुराने साथी शिरोमणि अकाली दल भी साथ खड़ा नहीं है. शिवसेना के मंत्री के बाद हरसिमरत कौर बादल मोदी कैबिनेट से विरोधस्वरूप इस्तीफा देने वाली दूसरी नेता हैं.

किसानों (Farm Bills) का मुद्दा तो ऐसा लगता है जैसे केंद्र की नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सरकार ने तरस खाकर विपक्ष को तोहफे के तौर पर दे डाला है - क्योंकि अब तक विपक्ष को ऐसा कोई मुद्दा मिल ही नहीं रहा था जिस पर वो सारे भेदभाव भुलाकर एकजुटता दिखा सके. अब देखिये कांग्रेस और TMC के साथ साथ आम आदमी पार्टी भी कदम से कदम मिला कर चल रही है.

राष्ट्रपति से विपक्ष की गुहार

किसानों के मुद्दे पर संसद में हुए करीब करीब हिंसक हंगामे के बाद राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही उनका बिहार कनेक्शन पेश कर विधानसभा चुनावों में फायदा लेने की सोची हो. हरिवंश ने भी भले ही अपनी तरफ से गांधीगिरी का प्रदर्शन कर संसद परिसर में धरना दे रहे राज्य सभा सांसदों से चाय पर चर्चा करने की कोशिश की हो, लेकिन ताजा विपक्षी एकता को तोड़ने के मामले में निराशा ही हाथ लगी है. राज्य सभा में विपक्षी सांसदों का व्यवहार भले ही मर्यादा के खिलाफ रहा हो, लेकिन ये किसानों का ही मुद्दा है कि वे रात भर संसद परिसर में जमीन पर बिस्तर लगा कर डटे रहे.

एक तरफ संसद परिसर में विपक्षी सांसद 'मोदी सरकार हाय-हाय', 'शेम-शेम' जैसे नारे लगाते रहे तो दूसरी तरफ कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति भवन भी पहुंचा. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिल कर विपक्ष की ओर से गुलाम नबी आजाद ने कृषि बिलों को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज करायी.

राष्ट्रपति भवन से निकलने के बाद गुलाम नबी आजाद ने मीडिया से कहा कि सदन में हुए हंगामे के लिए विपक्ष नहीं बल्कि सरकार जिम्मेदार है. गुलाम नबी आजाद ने राष्ट्रपति से कहा है कि कृषि बिलों को असंवैधानिक तरीके से पास कराया गया है - और गुजारिश की है कि वो बिलों को मंजूरी न दें बल्कि वापस सरकार के पास भेज दें.

ghulam nabi azad, shashi tharoor, kanimozhiजो गुलाम नबी आजाद कल तक कांग्रेस में किनारे लगाये जा रहे थे वो राहुल गांधी और सोनिया गांधी की गैरमौजूदगी में विपक्ष की धुरी बने हुए हैं

गुलाम नबी आजाद ने राष्ट्रपति से हुई बातचीत का पूरा ब्योरा दिया जिसमें वही सब बातें रहीं जो विपक्ष की तरफ से सरकार पर लगाये जा रहे हैं. मसलन, कृषि बिलों को सेलेक्ट कमेटी या स्टैंडिंग कमेटी के पास नहीं भेजा गया और राज्य सभा में उप सभापति ने वोटिंग कराने की मांग ठुकरा दी. विपक्ष मतविभाजन की मांग करता रहा लेकिन ध्वनि मत से पारित करा दिया गया. हालांकि, सरकार की तरफ से पहले छह और फिर तीन मंत्रियों ने प्रेस कांफ्रेंस करके सफाई दी कि चूंकि सदस्य अपनी सीटों पर नहीं जाने को तैयार हुए इसलिए उप सभापति को वैसा करना पड़ा.

संसद परिसर में नारेबाजी के साथ ही कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर और डीएमके की कनिमोझी ने कृषि बिलों के खिलाफ हाथों में तख्तियां लेकर विरोध प्रदर्शन किया.

ऐसी विपक्षी एकता तो अरसे बाद दिखी है

किसानों के मुद्दे पर जिस तरह विपक्ष एकजुट नजर आ रहा है वो तो अरसा बाद नजर आ रही है. अब तक तो यही नजर आया है कि धारा 377 का मुद्दा हो, CAA का मुद्दा हो या फिर चीन के साथ सीमा विवाद का, राहुल गांधी और सोनिया गांधी जरूर मोदी सरकार के खिलाफ आवाज उठाती रही है, लेकिन विपक्षी खेमे से कोई न कोई राजनीतिक दल कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ ही खड़ा देखा गया है.

कृषि बिलों को लेकर कांग्रेस ने तो पहले से ही तय कर लिया था कि विरोध करना है, वैसे भी किसानों का मुद्दा राहुल गांधी का सबसे पसंदीदा मसला रहा है. किसान यात्रा और खाट सभा से लेकर कर्जमाफी की मांग तक. संसद में भी राहुल गांधी के शुरुआती भाषणों में कलावती प्रसंग ही याद किया जाता है - और भट्टा परसौल गांव का साथियों के साथ राहुल गांधी का दौरा भी खास तौर पर दर्ज है.

कांग्रेस के साथ साथ बीएसपी नेता मायावती, AAP नेता अरविंद केजरीवाल ने भी विपक्षी दलों से इस मुद्दे पर मोदी सरकार के विरोध की अपील की थी. ममता बनर्जी तो खैर शुरू से ही आक्रामक रूख अपनाये हुए हैं.

राज्य सभा में हंगामे के चलते सस्पेंड किये गये 8 सांसदों को एनसीपी नेता शरद पवार का साथ मिला है. सभापति एम. वेंकैया नाडयू ने तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, आप के संजय सिंह और कांग्रेस रिपुन बोरा और सीपीएम नेताओं सहित 8 राज्य सभा सांसदों को मॉनसून सत्र तक निलंबित कर दिया है. विपक्ष ने सासंदों का निलंबन वापस लेने की मांग के साथ सदन की कार्यवाही का बहिष्कार किया.

ये किसानों का ही मुद्दा है जब कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस साथ खड़े देखने को मिल रहे हैं. सोनिया गांधी की तरफ से गैर बीजेपी मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में ममता बनर्जी के साथ सम्मान भाव देखने को जरूर मिला था, लेकिन तभी कांग्रेस की तरफ से अधीर रंजन चौधरी को पश्चिम बंगाल कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया. अधीर रंजन चौधरी तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी के कट्टर विरोधी माने जाते हैं. कांग्रेस के तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन न करने और लेफ्ट के साथ जाने के भी पक्षधर रहे हैं. ये नियुक्ति तो ममता बनर्जी को फूटी आंख नहीं सुहा रही होगी.

बावजूद ये सब होने के जब कृषि बिलों के विरोध में जो सांसद सभापति के करीब पहुंचे, माइक तोड़े और रूल बुक फाड़े उनमें तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के संजय सिंह साथ साथ डटे रहे. हो सकता है विरोध का मुद्दा एक होने और सभी के उग्र रूप धारण कर लेने के कारण अलग अलग दलों के ये सांसद साथ खड़े नजर आये हों, लेकिन आठों को एक साथ सस्पेंड कर सबको एक साथ संसद परिसर में धरना देने का मौका दे दिया गया. ममता बनर्जी ने बहुत कोशिश की कि कांग्रेस सरकार के खिलाफ अपनी मुहिम में आम आदमी पार्टी को भी शुमार कर ले, लेकिन कांग्रेस नेतृत्व को एक दो मौकों को छोड़ दें तो हमेशा ही इस बात से परहेज रहा, लेकिन किसानों का मुद्दा ऐसा हो गया कि सभी साथ देखे जा सकते हैं.

सांसदों के व्यवहार के खिलाफ उप सभापति हरिवंश ने एक दिन का उपवास रखा तो उनके काउंटर में एनसीपी नेता शरद पवार ने भी एक दिन का उपवास रख कर विपक्ष के आठों सांसदों का सपोर्ट किया है. ये भी देखना काफी दिलचस्प है कि ये विपक्षी एकता भी तभी देखने को मिली है जब राहुल गांधी और सोनिया गांधी दोनों ही देश से बाहर हैं - क्या ये महज संयोग है? कहीं ऐसा तो नहीं विपक्षी दलों के एकजुट होने में कांग्रेस नेतृत्व ही बाधक बन रहा हो?

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