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Updated: 03 मई, 2021 01:46 PM
अनुज शुक्ला
अनुज शुक्ला
  @anuj4media
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कुछ दिन पहले तक पश्चिम बंगाल में सबकुछ भाजपा की उम्मीदों के हिसाब से ही था. आख़िर में कोरोना महामारी की खौफनाक तस्वीरों और उल्टे ध्रुवीकरण ने मोदी-शाह के मंसूबों पर पानी फेर दिया. हालांकि राज्य हारने के बावजूद भाजपा ने नंदीग्राम में ममता बनर्जी को शुभेंदु अधिकारी के हाथों 1600 से ज्यादा मतों से शर्मनाक शिकस्त दी है. इसे लेकर विवाद भी हो गया. मगर इस हार को बंगाल की राजनीति में सालों याद किया जाएगा. चुनाव की घोषणा के बाद जब ममता बनर्जी ने भवानीपुर की सीट को छोड़कर नंदीग्राम को चुना, ये एक पर एक बेहद भरोसेमंदों का साथ छोड़ने से बौखलाई ममता का संदेश था कि वो नंदीग्राम की बेहद मुश्किल सीट पर बीजेपी से हर मुश्किल लड़ाई में एक कदम आगे बढ़कर हमला करेंगी. लेकिन उनका ऐलान अब राज्य में भाजपा के मुस्कुराने की वजह है.

दरअसल, इसमें कोई शक नहीं कि यहां से भाजपा के पास शुभेंदु के रूप में राज्य का सर्वाधिक शक्तिशाली उम्मीदवार था. शुभेंदु के आगे ममता को काफी जूझना पड़ा. संभवत: देश में बंगाल ऐसा राज्य बन गया जहां ममता जैसी ताकतवर मुख्यमंत्री को अपने ही निर्वाचन क्षेत्र में पांच दिनों तक रुकना पड़ा हो. मतदान के दिन भी बूथों तक के चक्कर लगाने पड़े. ममता की परेशानी के पीछे भाजपा की तगड़ी ब्यूह रचना थी.

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भाजपा ने समूचे बंग़ाल को पहले ही कई स्तरों में बांट दिया था. दिल्ली से स्थानीय ईकाई तक हर स्तर पर पहले से मौजूद पार्टी का ढांचा था. चुनाव के लिए इसमें एक और चीज जोड़ी गई. समूचे बंगाल को अलग-अलग जोन में बांटा गया और प्रबंधन की कमान केंद्रीय नेताओं को सौंप दी गई. नंदीग्राम जिस जोन में था उसका प्रबंधन केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान संभाल रहे थे. ममता के आने के बाद पार्टी ने नंदीग्राम की अहमियत के हिसाब से यहां के प्रबंधन की खास जिम्मेदारी प्रधान के अधीन भाजयुमो के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनोरंजन मिश्रा को सौंप दिया.

भाजपा की योजना नंदीग्राम में ममता को पूरी तरह से घेरने की थी. नंदीग्राम के कैम्पेन में जिन चीजों को फोकस किया गया वो थीं- महिलाओं को आगे लाना, विधानसभा के हर गांव और हर घर तक पहुंचना, टीएमसी सरकार में पीड़ितों से मुलाक़ात करना, खासकर वाम और कांग्रेस समर्थकों का भी सहयोग लेना. बैठकें करना करना और समीक्षा के बाद जरूरतों पर काम करना. मनोरंजन मिश्रा ने बताया- हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती थी पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं और शुभेंदु के साथ आए नए कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल बिठाना. शुभेंदु दिसंबर 2020 में पार्टी में आए थे और पुराने प्रतिद्वंद्वी होने की वजह से कुछ कार्यकर्ताओं में उन्हें लेकर ना-नुकर थी. पार्टी ने सबसे पहले इसी पर काम हुआ.

भाजपा ने नंदीग्राम में नए-पुराने कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें की और बेहतर तालमेल के लिए उन्हें अलग-अलग टीमों में बांटा गया. कार्यकर्ता सुबह सात बजे से बजे कैम्पेन में लग जाते. कहां, कैसे जाना है किससे मुलाक़ात करनी है इसका शेड्यूल पहले ही तय होता था. पार्टी तीन चीजों पर सबसे ज्यादा ध्यान दे रही थी. एक तो उन गांवों में पकड़ ज्यादा मजबूत बनाई जाए जहां टीएमसी का दबदबा था. ताकि वोटर बिना डरे घरों से बाहर निकलें. खासतौर पर इसके लिए जनसंपर्क के अलावा पार्टी ने प्रशासनिक गुहार भी लगाई. चुनाव आयोग और संबंधित एजेंसियों से कुछ चिन्हित गांवों में मतदान के दिन सुरक्षा के व्यापक इंतजाम की मांग की गई जहां वोटरों को डराने-धमकाने की आशंका थी. मनोरंजन के मुताबिक़ बड़े पैमाने पर लोगों के वोट के लिए निकलने से रणनीति कारगर रही.

पार्टी का दूसरा फोकस महिलाओं की व्यापक भागीदारी और उन्हें वोट के दिन बूथ तक पहुंचाने का था. डर था कि ममता की वजह से कहीं महिलाओं की सहानुभूति उनके साथ ना चली जाए. महिलाओं के नेतृत्व में गांव-गांव जनसंपर्क अभियान चला. बैठकें हुईं. महिलाओं के आगे आने से गांव की बैठकों में उनकी भागीदारी बढ़ने लगी. नौजवानों का हौंसला भी बढ़ा और कैम्पेन का कारवां लगातार आगे बढ़ता रहा. मनोरंजन बताते हैं- "एक दिन में कम से कम 25 गांवों में ऐसी बैठकों का सिलसिला चलता था. भाजपा और शुभेंदु की अपनी नेटवर्किंग की वजह से नंदीग्राम में भाजपा के लिए ये बेहद आसन हो गया."

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(शुभेंदु अधिकारी और मनोरंजन मिश्रा)

ममता को हराने के लिए लेफ्ट और कांग्रेस के भी तमाम लोग साथ आए जिनका स्वाभाविक संपर्क शुभेंदु से था. सामजिक आर्थिक रूप से प्रशासनिक उत्पीडन झेलने वालों की लिस्ट पहले से तैयार थी. मुलाक़ात और पार्टी कैम्पेन में भी जोड़ा जाता. सुबह से कैम्पेन के साथ-साथ बैठकों और समीक्षाओं का दौर देर रात तक चलता था. समीक्षाओं के आधार पर भी रोजाना नई रणनीतियां बनाई जाती थीं. नंदीग्राम में पार्टी की व्यापक पहुंच सोशल मीडिया पर भी दिखने लगी. दावा है कि- बीजेपी के मजबूत ब्यूह की वजह से टीएमसी को ममता की हार का आभास होने लगा था. यही वजह है कि जब ममता 27 मार्च को नंदीग्राम आईं तो उन्हें यहां चार-पांच दिन लगातार रुकना पड़ा. यह अपने आप में अनूठा है. मनोरंजन बताते हैं- "चुनाव के दिन भी ममता पोलिंग बूथ पर धरना देने बैठ गई. खुद को हार से बचाने के लिए वो चुनाव प्रभावित करना चाहती थीं."

मनोरंजन ने कहा- "दरअसल, हमारी ब्यूह रचना केवल नंदीग्राम के लिए नहीं थी. पार्टी को पता था कि ममता बंगाल में टीएमसी की इकलौती कैम्पेनर हैं. अगर उन्हें यहां कुछ दिनों के लिए रोक लिया गया तो पूरे राज्य में जो संदेश जाएगा वो पार्टी के हित में होगा. इसके साथ ही 40-50 सीटों पर ममता की अनुपस्थिति में टीएमसी के कैम्पेन पर भी असर पड़ेगा."

योजनाओं से बीजेपी बंगाल तो नहीं जीत पाई, लेकिन ममता अपने ही पुराने वफादार के हाथों सीट गंवा बैठी. इस हार की वजह से निश्चित ही उनकी शानदार जीत का स्वाद कसैला हो गया है.

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लेखक

अनुज शुक्ला अनुज शुक्ला @anuj4media

ना कनिष्ठ ना वरिष्ठ. अवस्थाएं ज्ञान का भ्रम हैं और पत्रकार ज्ञानी नहीं होता. केवल पत्रकार हूं और कहानियां लिखता हूं. ट्विटर हैंडल ये रहा- @AnujKIdunia

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