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Updated: 27 अगस्त, 2022 05:12 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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23 मार्च 2003... अतीत की किताब का वो मनहूस पन्ना जिसमें दर्ज है 24 कश्मीरी पंडितों की एक साथ 'टार्गेट किलिंग'. करीब दो दशक बाद जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने नदीमर्ग नरसंहार केस को फिर से खोलने का आदेश दिया है. 2003 में हुई कश्मीरी पंडितों की इस 'टार्गेट किलिंग' को भारतीय सेना को बदनाम करने की साजिश के तौर पर भी जाना जाता है. क्योंकि, नदीमर्ग नरसंहार को अंजाम देने वाले आतंकियों ने भारतीय सेना की वर्दी पहनी हुई थी. जिसके बाद दावा किया गया था कि भारतीय सेना ही जम्मू-कश्मीर का माहौल खराब करने के लिए ऐसे नरसंहारों को अंजाम देती है. नदीमर्ग नरसंहार ने 90 के दशक में 'रालिव-गालिव-सालिव' का इस्लामी कहर झेलने वाले कश्मीरी पंडितों के पुराने जख्मों को फिर से हरा कर दिया था. आइए जानते हैं नदीमर्ग नरसंहार की खौफनाक दास्तान...

Nadimarg Massacre Caseबच्चे के रोने पर आतंकियों ने चुप कराने के लिए गोलियां बरसा दी थीं.

नरसंहारों के डर से पलायन को मजबूर हुए कश्मीरी पंडित

90 के दशक में 'कश्मीर बनेगा पाकिस्तान, कश्मीर पंडितों के बगैर हिंदू औरतों के साथ' जैसे नारों से घाटी का माहौल अचानक ही बदल गया था. उस दौरान कश्मीरी पंडितों पर इस्लाम के नाम पर जो कहर टूटा था, वो आज भी जारी है. 90 के दशक में सैकड़ों कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और लाखों के पलायन के बाद लंबे समय तक घाटी का माहौल जहरीला रहा. महिलाओं और बच्चियों से बलात्कार की घटनाओं और लगातार होते रहने वाले नरसंहारों ने बचे हुए हिंदुओं को घाटी से पलायन के लिए मजबूर कर दिया. 2003 में नदीमर्ग में भी ऐसे ही एक हिंदू नरसंहार को अंजाम दिया गया था.

नाम पुकारे, लाइन में खड़ा किया और गोलियों से भूना

नदीमर्ग नरसंहार की कहानी को हाल ही में बॉलीवुड फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' में दिखाया गया था. 2003 में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने पुलवामा जिले के नदीमर्ग गांव में 24 कश्मीरी पंडितों को लाइन से खड़ा कर गोली मार दी थी. इस नरसंहार में 11 पुरुष, 11 महिलाएं और 2 बच्चों को मौत के घाट उतार दिया गया था. मरने वाला एक बच्चा तो महज 2 साल का था. जब पूरी घाटी से कश्मीरी पंडितों का पलायन हो रहा था. उस दौरान नदीमर्ग गांव के करीब 50 कश्मीरी पंडितों ने वहीं रुकने का फैसला किया था. लेकिन, 23 मार्च 2003 की रात इन कश्मीरी पंडितों के लिए जिंदगी की सबसे खौफनाक रात साबित हुई.

सेना की वर्दी पहनकर आए 7 आतंकियों ने नदीमर्ग गांव में रह रहे हिंदुओं के नाम पुकारना शुरू किया. लोगों को लगा कि शायद किसी आतंकी हमले की संभावना के चलते कश्मीरी पंडितों को वहां से निकालने की कोशिश की जा रही है. लेकिन, कुछ ही देर में कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से खींच कर बाहर निकाला जाने लगा. सभी को एक लाइन से खड़ा किया गया. और, उनके सिर में गोलियां उतार दी गईं. इस नरसंहार को लेकर कहा जाता है कि नदीमर्ग के ही किसी शख्स ने आतंकियों को गांव में हिंदुओं के रहने की खबर दी थी.

जब रोते बच्चे को चुप कराने के लिए सीने में उतार दी गोली

नदीमर्ग नरसंहार में इकलौते जिंदा बचे गवाह मोहन लाल भट ने इंडिया टुडे से बातचीत करते हुए बताया कि रात को करीब साढ़े 10 बजे हम सभी सो रहे थे. अचानक बाहर से शोर सुनाई देने लगा. तोड़-फोड़ और घरों की खिड़कियां बंद करने की आवाजें आने लगीं. मैंने दरवाजे की ओट लेकर देखा, तो सामने सेना की वर्दी में कुछ लोग खड़े थे. मेरी मां ने उनसे हमें जिंदा छोड़ देने को कहा. लेकिन, उन्होंने कहा कि हम तुम्हें चुप करने ही आए हैं. इसके बाद एक फ्लैशलाइट चमकी और आतंकियों ने गोलियां बरसा दीं. इसी बीच एक बच्चा रोया. तो, आतंकी ने कहा कि ये अभी जिंदा है और फायरिंग करो. और, उस दो साल के मासूम के सीने में गोली उतार दी गई. 

इकलौते गवाह ने खोया था पूरा परिवार

नदीमर्ग नरसंहार में बचे इकलौते शख्स मोहन लाल भट के पूरे परिवार को आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया था. उस भयावह दिन को याद कर आज भी मोहन लाल भट की रूह कांप जाती है और उनकी आवाज में थरथराहट साफ महसूस की जा सकती है. नदीमर्ग नरसंहार में मोहन भट के पिता, मां, बहन और चाचा को गोलियों से भून दिया गया था. 

राज्य सरकार और पुलिस पर लगे गंभीर आरोप

मोहन लाल भट ने बातचीत में आरोप लगाते हुए कहा कि जम्मू और कश्मीर की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने नरसंहार के बाद कश्मीरी पंडितों को नदीमर्ग गांव छोड़ने से रोकने के लिए बाड़ाबंदी कर दी. ताकि, कोई कश्मीर छोड़कर ना जा सके. इतना ही नहीं, कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा के लिए तैनात स्थानीय पुलिस ने भी आतंकियों पर गोलियां नहीं चलाईं. उलटा हिंदुओं को पहचानने में उनकी मदद की.

दो दशक बाद क्या अब मिलेगा न्याय?

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने दो दशक पुराने नदीमर्ग नरसंहार केस को फिर खोलने का फैसला किया है. इस नरसंहार के बाद जैनापुर पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था. जांच के बाद सात लोगों के खिलाफ आरोप तय किए गए थे. और, पुलवामा सेशंस कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई थी. जिसे बाद में शोपियां सेशंस कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया. इस दौरान अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में आवेदन किया कि कई गवाह कश्मीर से बाहर जा चुके हैं और जान के खतरे को देखते हुए गवाही देने के लिए वापस नहीं आना चाहते हैं. 2011 में हाईकोर्ट ने रिवीजन पेटिशन को खारिज कर दिया था.

2014 में इस मामले में नई याचिका दाखिल की गई थी. इस याचिका में मामले की नए सिरे से सुनवाई या पलायन कर चुके गवाहों को जम्मू की किसी अन्य अदालत में बयान दर्ज कराने की अपील की गई थी. जिसे खारिज कर दिया गया था. इसके बाद राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. जिसमें फिर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने को कहा गया था. हाल ही में हुई सुनवाई में जस्टिस संजय धर ने हाईकोर्ट के पुराने फैसले को वापस लेते हुए रिवीजन पेटिशन दाखिल करने का आदेश दिया है. इस मामले में अब अगली सुनवाई 15 सितंबर 2022 को होगी.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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