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Updated: 07 सितम्बर, 2021 04:35 PM
नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  @naved.shikoh
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अक्सर शहरी जनता या हुकुमत किसानों की परेशानियों से वाक़िफ नहीं होती, ये इनकी ग़ैर जिम्मेदाराना पुरानी फितरत है. लेकिन सैकड़ों किसान नेताओं की महापंचायत यूपी के किसानों के गढ़ मुज़फ्फरनगर मे हो, लाखों लोग जुटें, अल्लाह हू अकबर-हर हर महादेव... और तमाम बातें हो और यूपी के किसानों की सबसे बड़ी समस्या की बात प्रमुखता से न हो तो ताज्जुब तो होगा ही. आपको ये समस्या भले ही मामूली लगे लेकिन ये यूपी के किसानों की बेहद बड़ी समस्या है. छुट्टा जानवर किसानों को बर्बाद और उनकी फसलों को तबाह किए दे रहे हैं. इस बात पर यक़ीन न आए तो किसी भी परिचित या अंजान किसान से इस बात की तस्दीक़ कर लीजिए. यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जनता का रुख़ जानने के लिए गांव-किसानों का मन टटोलने के लिए सैकड़ों बड़े सर्वे हुए हैं, हर सर्वे में किसानों ने आवारा जानवरों को अपनी सबसे बड़ी समस्या बताया है. केवल इस बात को लेकर भाजपा समर्थक और योगी सरकार के प्रशंसक भी सरकार से नाख़ुश हैं.

योगी सरकार ने अपने शुरुआती फैसलों में गायों की रक्षा-सुरक्षा और संरक्षण को लेकर कई बड़े क़दम उठाए थे. गायों की तस्करी और ख़रीद-फरोख्त को लेकर योगी सरकार के सख्त फैसले आने के बाद किसान आवारा गायों और सांडों से परेशान होना शुरू हो गए. आवारा जानवरों की तादाद बढ़ती गई. गायों-सांड़ों के झुंड किसानों की फसलों को तहस-नहस कर रहे हैं. बीते साढ़े चार वर्ष में यूपी के किसानों के लिए ये परेशानी सबसे बड़ी मुसीबत बनी हुई है.

Farmer, Kisan Mahapanchayat, Muzaffarnagar, UP, BJP, Yogi Adityanath, Rakesh Tikaitसवाल ये है कि क्या भोले भाले किसानों को मुजफ्फरनगर में भी अपने को किसानों के नेता कह रहे राकेश टिकैत द्वारा ठगा गया है

हांलाकि योगी सरकार ने गो वध पूरी तरह से रोकने के लिए गौ तस्करी और खरीद-फरोख्त को लेकर सख्त कदम उठाने के साथ गोवंश के संरक्षण के लिए गोशालाओं का सिलसिला भी शुरू किया था. लेकिन जितनी तेजी से आवारा गाय-सांडों की तादाद बढ़ी है उस हिसाब से इनके संरक्षण के लिए गौशालाएं पर्याप्त नहीं हैं. किसानों से बातचीत के अनुसार दस प्रतिशत आवारा जानवरों को गोशालाओं में संरक्षण नहीं मिल पा रहा है.

किसानों का कहना है कि बड़े और धनागढ़ किसान जो दस फीसद भी नहीं हैं, ये कांटेदार तारों से अपने खेतों को जानवरों से बचा लेते हैं. मामूली क्षेत्रफल के खेतों को लोहे के खंभों और तारों से कवर करने में लाखों रुपए खर्च होते हैं. इतना खर्च करना मामूली किसान के बस मे नहीं. नब्बे फीसद से ज्यादा यूपी के किसान तारों से अपने खेत सुरक्षित नहीं कर सकते.

ऐसे में गायों और सांड़ों के झुंड पूरी-पूरी फसले और पूरे-पूरे खेत तहस-नहस कर देते हैं. भले ही पूरी फसल खा न पायें पर ये पूरा खेत रौंद देते हैं. किसान दिनों रात रखवाली करने की कोशिश करते हैं, लेकिन हर रोज़ दिन भर रखवाली करने के साथ पूरी रात जागकर पूरे खेतों में रखवाली करना आसान नहीं है. किसानों की इस समस्या को न सरकार देख पा रही है और न ही किसानों के नेतृत्व का दावा करने वाले किसान नेता व किसान संगठन.

कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहा संयुक्त मोर्चा इन दिनों यूपी में अपने आन्दोलन को वृहद रूप देने की बात कर रहा है. बीते रविवार को यूपी के मुजफ्फरनगर में महापंचायत में तमाम बातें हुईं, कृषि कानून के खिलाफ आवाज बुलंद हुई, तमाम मांगे की गईं, लेकिन ये आयोजन किसानों की जमीनी समस्याओं को उठाने के बजाय राजनीति ज्यादा दिखाई दिया.

आवारा जानवरों से तबाह और बर्बाद हो रहे यूपी के असंख्य गरीब किसानों की इस मुख्य समस्या को प्रमुखता से नहीं उठाया गया. संयुक्त मोर्चा के नेताओं की शिकायत रही है कि कृषि कानून बनाने से पहले केंद्र सरकार ने किसान संगठनों से बात नहीं की थी. अब सवाल ये उठता है कि महापंचायत के मुद्दों और एजेंडा तय करने से पहले क्या संयुक्त मोर्चा के संगठनों/नेताओं ने क्या यूपी के आम किसानों की जमीनी परेशानियों को जानने की कोशिश की थी.

यदि कोशिश की होती तो आवारा जानवरों की सबसे बड़ी समस्याओं को मुजफ्फरनगर की महापंचायत में प्रमुखता से उठाया जाता. उत्तर प्रदेश की क़रीब आधी आबादी का सीधा रिश्ता खेती से है. कोई किसान है तो कोई किसान के परिवार का हिस्सा है. खेत, खेती और किसान इस सूबे की आत्मा है. खेतों की माड़ की तरह कृषक यहां की ही हुकुमतें बनाते भी हैं और तोड़ते भी हैं.

यूपी में पश्चिमी उत्तर प्रदेश खेती-किसानी का गढ़ है और मुजफ्फरनगर को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजधानी कहा जाता है. मुज़फ्फरनगर में कृषि कानूनों के ख़िलाफ और यूपी के किसानों की समस्याओं को लेकर किसान संयुक्त मोर्चा की सबसे बड़ी किसान महापंचायत में चिराग तले अंधेरा छाया रहा. भाजपा और भाजपा समर्थकों के इल्ज़ामों को बल मिलने लगा.

बक़ौल भाजपाइयों के- ये किसान आंदोलन नहीं सियासी आंदोलन है. ये आंदोलनकारी किसानों के नहीं विपक्षी ताकतों के नुमाइंदे हैं. आरोप लग रहे हैं कि ये आंदोलन किसानों की समस्याओं के हल के लिए कम पर सियासी मकसद पूरा करने के लिए ज्यादा है. यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराना की धुन में यूपी के किसानों की वास्तविक और सबसे बड़ी समस्या को ही नहीं जान सका संयुक्त मोर्चा, जानता होता तो मुजफ्फरनगर की महापंचायत में गरीब किसानों की सबसे बड़ी इस समस्या को प्रमुखता से उठाया जाता.

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लेखक

नवेद शिकोह नवेद शिकोह @naved.shikoh

लेखक पत्रकार हैं

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