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Updated: 06 सितम्बर, 2021 10:56 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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चुनाव आयोग ने तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को राहत की सांस लेने का मौका दे दिया है. पश्चिम बंगाल की तीन सीटों के साथ ओडिशा की एक सीट पर विधानसभा उपचुनाव की घोषणा से बंगाल की सीएम ममता बनर्जी का रास्ता काफी हद तक 'साफ' हो गया है. माना जा रहा है कि भवानीपुर की जिस सीट से ममता बनर्जी चुनावी मैदान में जाएंगी, वहां कांग्रेस (Congress) अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी. कहा जा रहा है कि मिशन 2024 के मद्देनजर चल रही साझा विपक्ष तैयार करने की कोशिशों को और ज्यादा मजबूती देने के लिए कांग्रेस 'टोकन ऑफ रेस्पेक्ट' के तौर पर इस सीट से दूरी ही बनाए रखेगी. आसान शब्दों में कहें तो, बंगाल विधानसभा चुनाव में खाता तक न खोल पाने वाली कांग्रेस के पास इस उपचुनाव से दूर रहने के अलावा और कोई रास्ता भी नहीं है.

वहीं, ममता बनर्जी ने भाजपा के खिलाफ 'ऑपरेशन ग्रासफ्लावर' छेड़ा हुआ है. पिछले एक महीने में भाजपा के चार विधायक तृणमूल कांग्रेस (TMC) में शामिल हो चुके हैं. लेकिन, 'ऑपरेशन ग्रासफ्लावर' के निशाने पर केवल भाजपा (BJP) ही नहीं कांग्रेस भी शुरूआत से ही रही है. दरअसल, जुलाई में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के बेटे और कांग्रेस के पूर्व सांसद अभिजीत मुखर्जी के ममता बनर्जी के साथ आने के बाद बीते कुछ समय से बंगाल कांग्रेस के कई बड़े नेता तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. इस बात की संभावना काफी ज्यादा है कि जैसे-जैसे भाजपा के विधायकों पर ऑपरेशन ग्रासफ्लावर का रंग चढ़ेगा, कांग्रेस (Congress) के नेता भी वही राह अपनाते नजर आएंगे. लेकिन, इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि ममता बनर्जी अगर बंगाल कांग्रेस में ही सेंध लगाने लगीं तो एन्टी-बीजेपी फ्रंट का क्या होगा?

जैसे-जैसे भाजपा के विधायकों पर ऑपरेशन ग्रासफ्लावर का रंग चढ़ेगा, कांग्रेस के नेता भी वही राह अपनाते नजर आएंगे.जैसे-जैसे भाजपा के विधायकों पर ऑपरेशन ग्रासफ्लावर का रंग चढ़ेगा, कांग्रेस के नेता भी वही राह अपनाते नजर आएंगे.

नेताओं को 'बोझ' बताकर किनारा नहीं कर पाएगी कांग्रेस

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले दलबदल के 'खेला' ने खूब सुर्खियां बटोरी थीं. ममता बनर्जी के करीबी कहे जाने वाले शुभेंदु अधिकारी के साथ ही बड़ी संख्या में टीएमसी, वामदलों और कांग्रेस के नेताओं ने भाजपा का दामन थामा था. कायदे से देखा जाए, तो नंदीग्राम में ममता बनर्जी को हराने वाले शुभेंदु अधिकारी ही इस चुनावी परीक्षा में पूरे नंबरों के साथ पास हुए थे. लेकिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की जीत के साथ तमाम उम्मीदें धूल-धूसरित हो गईं. हालांकि, तीन सीटों वाली भाजपा बढ़कर 77 विधानसभा सीटों पर जीत गई थी. लेकिन, कांग्रेस और वामदलों के गठबंधन के लिए ये विधानसभा चुनाव किसी बुरे सपने से कम नहीं थे. यह गठबंधन एक सीट भी जीतने में कामयाब नहीं हो सका था. पश्चिम बंगाल में एक तरह से खत्म होने के करीब पहुंच चुकी कांग्रेस के नेताओं दलबदल कर तृणमूल कांग्रेस के साथ जाना सत्ता से नजदीकी बनाए रखने का उदाहरण कहा जा सकता है.

लेकिन, एक बयान में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने इन नेताओं को 'बोझ' कहते हुए कहा था कि ऐसे लोग अवसरवादिता का शिकार हुए हैं. अधीर रंजन चौधरी के अनुसार, इन नेताओं के जाने से कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हालांकि, कांग्रेस नेता इस पर खफा तो हैं. लेकिन, टीएमसी के खिलाफ खुलकर नाराजगी नहीं जता पा रहे हैं. ममता बनर्जी के नाम पर चौधरी के मुंह पर ताला लगा ही नजर आता है. वहीं, कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व ने भी इस मामले पर फिलहाल चुप्पी ही साध रखी है. लेकिन, नेताओं को बोझ बताकर कांग्रेस इस बात से किनारा नहीं कर पाएगी कि पश्चिम बंगाल में पहले से ही कमजोर नजर आ रही कांग्रेस को खत्म करने के लिए ममता बनर्जी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगी.

पूर्वोत्तर राज्यों में भी जारी है 'दीदी' का खेला

नेताओं के दलबदल की मुसीबत का सामना कांग्रेस तकरीबन हर राज्य में कर रही है. वहीं, ऐसा लग रहा है कि पूर्वोत्तर में कांग्रेस को साफ करने के लिए ममता बनर्जी ने पूरी तरह कमर कस ली है. हाल ही में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुष्मिता देव ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया. तृणमूल कांग्रेस की कोशिशें त्रिपुरा में भी कांग्रेस को झटका देने की हैं और पार्टी इसके लिए हरसंभव कोशिश में जुटी हुई है. पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी टीएमसी प्रशांत किशोर को आगे रखते हुए 'खेला' करने को तैयार दिख रही है. खैर, ममता बनर्जी की ये चाल कांग्रेस के लिए भारी पड़ती दिख रही है. क्योंकि, वो एक तरफ तो मिशन 2024 के लिए साझा विपक्ष की तैयारी कर रही कांग्रेस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है. वहीं, दूसरी ओर बंगाल समेत अन्य राज्यों में कांग्रेस को तोड़कर टीएमसी को मजबूत करने की कोशिश कर रही हैं.

एन्टी-बीजेपी फ्रंट का क्या होगा?

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) की हाल ही में हुई विपक्षी दलों की बैठक में ममता बनर्जी भी शामिल थीं. वहीं, संसद के मानसून सत्र के दौरान राहुल गांधी ने अपने स्तर से ब्रेकफास्ट डिप्लोमेसी के आधार पर कई दलों को साथ लाकर भाजपा और मोदी सरकार का जमकर विरोध किया. लेकिन, राज्य स्तर पर टीएमसी की तरह ही कई दल कांग्रेस की जड़ें खोजने में लगे हुए हैं. उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तो कांग्रेस के साथ गठबंधन करने से सीधे तौर पर न सही, लेकिन छोटे दलों से गठबंधन की बात कहकर लगभग मना ही कर दिया है. वहीं, सपा भी कांग्रेस नेताओं को पार्टी में शामिल कर सबसे पुराने राजनीतिक दल को चोट देने में कोताही नहीं बरत रही है.

हो सकता है कि आगे चलकर बिहार, महाराष्ट्र जैसे अन्य राज्यों में भी कांग्रेस के लिए ऐसा ही माहौल तैयार होने लगे. वैसे, जिस साझा विपक्ष को तैयार करने के लिए फिलहाल बातचीत चल रही है, उसके जरिये सोनिया गांधी कोशिश कर रही हैं कि राहुल गांधी के लिए मिशन 2024 की राह आसान की जाए. लेकिन, ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. ममता बनर्जी ने अन्य राजनीतिक दलों को राह दिखा दी है कि किस रास्ते पर चलकर कांग्रेस के सत्ता पाने के ख्वाब को तोड़ा जा सकता है.

वहीं, जी-23 नेताओं के अगुआ और वरिष्ठ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के घर हुई बर्थडे की डिनर पार्टी में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिले थे. विपक्ष के लगभग सभी बड़े नेता इस पार्टी में शामिल हुए थे. वैसे, इस डिनर पार्टी में ये तक कह दिया गया था कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को बिना किसी स्वार्थ के अखिलेश यादव का समर्थन करना चाहिए. हालांकि, डिनर पार्टी पर कपिल सिब्बल ने सफाई दी थी कि ये गांधी परिवार के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन नहीं है. लेकिन, राहुल गांधी की 'डरपोक' नेताओं को कांग्रेस से बाहर जाने की सलाह के बाद काफी हद तक ये शक्ति प्रदर्शन ही नजर आया था. कहा तो ये भी जा रहा था कि भविष्य में कपिल सिब्बल कांग्रेस को साझा विपक्ष में रखते हुए राहुल गांधी को सत्ता से दूर करने की तैयारी के सूत्रधार बनेंगे.

कुल मिलाकर जैसी हालत कांग्रेस की हो रही है, उसे देखकर तो यही कहा जा सकता है कि भविष्य में एन्टी-बीजेपी फ्रंट तभी बरकरार रहेगा, जब कांग्रेस कई राज्यों में अपने जनाधार और नेताओं का मोह छोड़ देगी. क्योंकि, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल, जगनमोहन रेड्डी, नवीन पटनायक जैसे नेता इस साझा विपक्ष की नैया में गांधी परिवार की सत्ता और दबदबे को शायद ही बर्दाश्त करेंगे.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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