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खत्म हुई लाउडस्पीकर के शोर और सड़कों पर नमाज़ की कुप्रथा!
योगी सरकार ने एक ऐतिहासिक काम किया है. रमज़ान- अलविदा और ईद की नमाज भी सिर्फ़ पवित्र मस्जिदों के प्रागंणों में किया गया. नमाज नाली और गटर वाली सड़कों पर नहीं पढ़ी गई. हंसी-खुशी, पूरी परंपराओं अक़ीदे और शांति-सौहार्द के साथ रमज़ान और ईद मनाई गई. बड़ी बात ये रही कि किसी आम इंसान को कोई तकलीफ़ नहीं पहुंची.
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आजाद भारत में ऐसा पहली बार हुआ है कि ईद और अलविदा की बड़ी जमात वाली नमाज़ें सड़क पर नहीं पढ़ी गईं. रमज़ान- अलविदा और अब ईद की नमाज भी सिर्फ़ पवित्र मस्जिदों के प्रागंणों में हुई, नाली और गटर वाली सड़कों पर नमाज़ नहीं पढ़ी गई. हंसी-खुशी, पूरी परंपराओं अक़ीदे और शांति-सौहार्द के साथ रमज़ान और ईद मनाई गई. बड़ी बात ये रही कि किसी आम इंसान को कोई तकलीफ़ नहीं पहुंची. लाउडस्पीकर का हानिकारक शोर बंद हुआ और सड़कों पर पढ़ी जाने वाली नमाज की कुप्रथा को समाप्त कर दिया गया. न कोई विद्यार्थी परेशान हुआ न किसी मरीज़ को तकलीफ़ पंहुची और न कहीं कोई झड़प, तकरार, हिंसा, या दंगा..कहीं कुछ नहीं. यूपी में हर तरफ शांति-शांति है. उम्मीद है कि किसी को नुकसान न पहुंचाने वाली अपने दायरे तक सीमित अज़ान और मस्जिदों में पढ़ी गई नमाज ख़ुदा ने ज़रूर क़ुबूल की होगी. नमाज बाद मुल्क की तरक्की, अमन-शांति और खुशहाली की दुआएं भी इंशाअल्लाह ज़रूर कुबूल होंगी.
योगी सरकार द्वारा ईद पर मुसलमानों को सड़क पर नमाज पढ़ने से रोकना अपने आप में एक बहुत बड़ी पहल है
इस रमजान, अलविदा और ईद में क्या आपने अपने किसी एक भी मुस्लिम भाई से ये कहते हुए सुना कि सड़क पर नमाज की इजाजत न होने से मैं नमाज नहीं पढ़ सका. नहीं सुना होगा. क्योंकि सड़क पर नमाज न पढ़ने से किसी की नमाज नहीं छूटी. जहां लोग ज्यादा थे और मस्जिदों में कम जगह थी वहां दो पाली में नमाज पढ़वाई गई. इसका मतलब मजहबी लिहाज से ये मुमकिन था, और ऐसा पहले भी किया जाया जा सकता था.
यानी साफ जाहिर हो गया कि हमेशा से मस्जिद में नमाज अदा करने की पूरी गुंजाइश रही पर फिर भी चंद लोगों ने सड़क पर नमाज अदा करने की कुप्रथा की प्रथा बरसों-बरस जारी रखी थी. उत्तर प्रदेश की पिछली सरकारें तुष्टिकरण की अति के कारण इसपर सख्त नहीं हुईं. नमाज के नाम पर आए दिन सड़कें घिरी रहीं और आम जनता परेशान होती रही.
कभी कोई एंबुलेंस फंस जाती थी तो कभी किसी परीक्षार्थी की परीक्षा छूट जाती थी. तत्कालीन सपा प्रवक्ता पंखुरी पाठक भी एक बार सड़कों पर पढ़ी जा रही नमाज का शिकार हुईं तो उन्होंने इस पर एतराज़ जताया था. इसके बाद पार्टी में उनके खिलाफ कुछ ऐसा माहौल बना कि कुछ वक्त बाद उन्हें सपा छोड़नी पड़ी.
सड़क पर नालियां और गटर भी होते हैं, इसके अलावा भी रोड की तहारत (पवित्रता) की कोई गारंटी नहीं होती. कहां पर किस किस्म कि गंदगी हो किसे क्या पता ! मस्जिद पवित्र होती है. यहां कि पवित्रता को क़ायम रखा जाता है. इस पवित्र स्थान और नमाज़ का एक प्रोटोकाल होता है. अगर मस्जिद परिसर में नमाज पढ़ने के लिए एडजेस्ट किया जा सकता है तो आम लोगों के रास्ते/सड़कें/यातायात को रोककर नमाज पढ़ने का क्या मतलब है?
पवित्रता, मस्जिद और नमाज के कई मानक होते हैं. सड़क पर पवित्रता के मानकों का ख्याल कैसे रखा जा सकता है. मुसलमानों के अनुशासन ने ईद की खुशी दोगुनी कर दी. सरकार, प्रशासन, कानून और इंसानियत के नियमों का पालन करके मुस्लिम समाज ने हिन्दू भाइयों को भी ये पैगाम दिया है कि वो भी सड़कों पर आइंदा कोई धार्मिक आयोजन/पंडाल न लगाएं
... इसलिए मुसलमानों के लिए किसी सनातनी की कयादत ज़रूरी है!
आजाद भारत के हर दौर में मुसलमानों ने कभी भी किसी मुसलमान को क़ौम का नेतृत्व (क़यादत) का जिम्मा नहीं दिया. यूपी में भी कभी कांग्रेस, कभी सपा तो कभी बसपा पर भरोसा किया. और इस दौरान अल्पसंख्यक वर्ग ने मुस्लिमवादी दलों और मुस्लिम नेताओं पर विश्वास नहीं किया. यूपी के हालिया चुनावों में नब्बे फीसद मुस्लिम आवाम ने भले ही भाजपा का समर्थन नहीं किया पर योगी सरकार बनने के बाद मुस्लिम आवाम योगी सरकार की हर हिदायत सिर आंखों पर स्वीकार कर रही है.
हर नियम कानुन का बखूबी पालन हो रहा है. दुरुस्त कानून व्यवस्था को लेकर योगी सरकार की उपलब्धियों में मुस्लिम समुदाय का बराबर का योगदान सामने आ रहा है. यूपी सरकार की हर नई गाइड लाइन, कानून के आदेशों, प्रशासन की हिदायतों और नियमों को मानने में अल्पसंख्यक वर्ग बहुसंख्यकों से भी बेहतर भूमिका निभा रहा है.
प्रशासनिक आदेश के चंद दिनों में ही अज़ान की तेज़ आवाज़ बंद कर दी गई. लाउडस्पीकर उतार लिए गए. रमज़ान की अलविदा और ईद की नमाज जो मस्जिद के बाहर जगह-जगह सड़कों पर भी पढ़ी जाती थी इस बार ऐसा कहीं नहीं हुआ. नमाजियों ने मस्जिद में दो पालियों में नमाज़ अदा की. बड़ी तादाद को भी मस्जिद के भीतर एड्जेस्ट किया गया.
बताते चलें कि मुसलमानों खासकर शिया मुसलमानों के तरक्की पसंद धार्मिक गुरु/मौलाना डाक्टर कल्बे सादिक साहब मरहूम का हर वर्ग सम्मान करता था. ग़ैर साइंटिफिक पारंपरिक तौर-तरीकों की पुरानी परंपराओं को त्याग कर आधुनिकत टेक्नोलॉजी (वैज्ञानिक विधि) से चांद निकलने की शिनाख्त करने जैसे डा. सादिक के सजेशन क़ौम ने माने भी थे.
लेकिन वो जीवन भर कहते रहे कि सड़क पर नमाज पढ़ने से यदि जनता को परेशानी होती है तो ऐसा न करें. अपने इतने बड़े धार्मिक गुरु/मौलाना के इस आग्रह को मुसलमानों ने नहीं माना था. लेकिन एक सनातनी, एक योगी और सूबे के मुखिया के निर्देश का यूपी के मुसलमानों ने बखूबी पालन किया. योगी सरकार और मुस्लिम कौम की ये बड़ी उपलब्धि है.
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