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Updated: 10 अक्टूबर, 2022 02:40 PM
नवेद शिकोह
नवेद शिकोह
  @naved.shikoh
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यतीम हो गया समाजवाद

ज़मीनी राजनीति का अंत!
 
समाजवाद का सूरज अस्त!
 
ज़मीनी राजनीति के पाठ्यक्रम की जीती-जागती किताब बंद हो गई. समाजवाद का सूरज अस्त हो गया. पिछड़ों, कमज़ोरों, किसानों, नौजवानों, मेहनतकशों और अकलियत के लिए लड़ने वाला ज़िन्दगी की जंग हार गया. किसी के मसीहा, किसी के लिए धरती पुत्र तो किसी के रफीकुल मुल्क नेता जी मुलायम सिंह यादव ने दुनिया छोड़ दी. समाजवाद के आसमान पर आंसुओं के बादल छा गए. समाजवादी रुंधे गले से कहते नजर आ रहे हैं- हम यतीम हो गए.
 
देश में समाजवाद के लिए ज़मीनी लड़ाई लड़ने वाला मुलायम सिंह यादव जैसा कोई नेता फिलहाल नहीं दिखता. मृत्यु के शास्वत सत्य के आगे गुरुग्राम के वेदांता अस्पताल की लाख कोशिशों और लाखों लोगों की दुवाएं काम नहीं आईं. धरती पुत्र ने मौत और जिन्दगी के संघर्ष के बाद अंततः धरती छोड़ दी. 
 
mulayam singh yadav, mulayam singh yadav death, mulayam singh yadav death news, mulayam singh yadav education, mulayam singh yadav family, mulayam singh yadav political careerदेश की सियासत पर असर छोड़ने की तासीर का नाम भी मुलायम सिंह यादव है
 
पिछले कई दिनों से गंभीर हालत में वेदांता अस्पताल में भर्ती समाजवादी पार्टी के फाउंडर-संरक्षक पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव की सेहत के लिए प्रार्थनाएं हो रहीं थीं. सोशल मीडिया पर कोई लिख रहा था- समाजवाद का सूरज आईसीयू में तो कोई कह रहा है-गुरुग्राम ध्यान रखना, हमारा ख़ुदा तुम्हारी हिफाज़त में है.
 
समाजवाद के इस पुरोधा के ना रहने की खबर से समर्थक या समाजवादी ही नहीं विरोधी भी दुखी हैं. मरहूम की बहुत सारे खूबियों में एक खूबी ये भी थी कि अपने तो अपने विरोधियों के लिए भी वो मददगार रहे वो समर्थकों के ही नहीं धुरविरोधियों के भी रफीक़ रहे हैं.
 
रफीक़ का अर्थ है- साथी, सहयोगी, मददगार, दोस्त, सहायक... मुलायम सिंह यादव को "रफीक़ुल मुल्क" का ख़िताब शायद इसीलिए दिया गया था क्योंकि वो सिर्फ मुल्क के ही मददगार नहीं बल्कि उनकी राजनीति इनके विरोधी दल भाजपा तक के लिए भी मददगार साबित हुई थी।
 
उन्हें सिर्फ नेता कहना नाकाफी है. देश की सियासत पर असर छोड़ने की तासीर का नाम भी मुलायम सिंह यादव है. आजादी के बाद करीब चार दशक तक यूपी में एकक्षत्र राज करने वाली किसी पार्टी (कांग्रेस) का वर्चस्व तोड़ने की क़ूबत का नाम भी मुलायम है. यूपी में बहुजन समाज की जड़ों को दोस्ती का खाद-पानी देकर बसपा को पहली बार सत्ता में सहभागिता दिलाने और यूपी में पहले सियासी तालमेल की जादूगरी का नाम भी मुलायम है. धरती पुत्र,रफीकुल मुल्क और नेता जी के नाम से भी ये ज़मीनी नेता जाना जाता रहा.
 
आज़ादी के बाद तीस-चालीस बरस तक ठीक से रेंग पाने में भी अक्षम भाजपा की गाड़ी को रफ्तार देने के ईंधन का नाम भी मुलायम सिंह यादव है. राजनीतिक पंडित कहते हैं कि अयोध्या विवाद और वीपी सिंह की मंडल-कमंडल को मुलायम सिंह रंग ना देते तो शायद आज भाजपा इस मुकाम पर न होती. सियासत में रिवर्स गेम की एजाद करने वाले मुलायम एम-वाई फेक्टर में जितना आगे बढ़े उससे कई गुना आगे धीरे-धीरे भाजपा कुछ ऐसे बढ़ी कि वो आज पूरे देश में सबसे ताकतवर पार्टी बन गई. समाजवादी पार्टी ना होती तो शायद भाजपा की सियासी पिक्चर अस्सी-बीस के मसाले से सुपरहिट न होती.
 
यूपी में क्षेत्रीय राजनीति का दौर शुरू करने से लेकर राष्ट्रीय राजनीति में तीसरे मोर्चे की शिल्पकारी में अपनी हुनरमंदी दिखाने वाले मुलायम सिंह ने क्षेत्रीयता की सरहदों से निकल कर अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाई. दिलचस्प बात ये रही कि सियासत की क्षितिज पर ये शख्सियत इतनी असरदार रही कि इनका विरोध भी नेता बना देने का माद्दा रखता था. अयोध्या में कार सेवकों पर गोली चलने का दुखद पहलू हो या गेस्टहाऊस कांड हो, इन दोनों वाक़ियो को याद दिलाकर क्रमशः भाजपा और बसपा जैसे दल बार-बार सियासी लाभ लेते रहे. समर्थकों ने जहां इनको धरती पुत्र और रफीकुल मुल्क जैसे खिताबों से नवाजा वहीं विरोधियों ने इनपर मुल्ला मुलायम के फिरक़े कसे और मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगाए. कहा जाता है कि भाजपा को मुलायम का विरोध ख़ूब रास आया और मुलायम का राजनीतिक क़द भी भाजपा की वजह से ही बढ़ा. इसी तरह बसपा और सपा की दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही समय समय पर दोनों दलों को राजनीतिक फायदा देती रही.
 
कांग्रेस से भी सपा का अद्भुत रिश्ता रहा. यूपी से कांग्रेस को साफ करने वाली सपा ने केंद्र में यूपीए सरकार का समर्थन भी किया. बतौर रक्षा मंत्री मुलायम ने बोफोर्स मामले को दबाने की भी कोशिश की थी.
 
सरकारी एजेंसियों द्वारा विरोधियों को डराने-दबाने की तोहमतें आज मोदी सरकार पर खूब लगती हैं. भाजपा सरकार से पहले केंद्रीय सत्ता पर ऐसे आरोपों लगाने की परंपरा मुलायम सिंह यादव ने शुरू की थी. वो कांग्रेस की सीबीआई जैसी एजेंसियों के जरिए यूपीए सरकार उन क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं को डराने और दबाने की कोशिश करती है जो सरकार की समाज-विरोधी नीतियों का विरोध करते हैं. 
 
गरीबों, किसानों, मेहनतकशों,नौजवानों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के हक़ की लड़ाई लड़कर भारतीय राजनीति में समाजवाद का परचम लहराने वाले मुलायम ने बतौर रक्षा मंत्री चीन को दुश्मन नंबर वन माना था और हमेशा उससे सावधान रहने की नसीहत दी थी. छात्र राजनीति को बढ़ावा देने से लेकर देश की रक्षा नीति में उन्होंने अपनी राजनीतिक दक्षता साबित की.
अपने राजनीतिक सफर में सोशलिस्ट पार्टी और फिर जनता पार्टी में रहने के बाद समाजवादी पार्टी का गठन करने वाले धरती पुत्र ने तीन बार मुख्यमंत्री से लेकर रक्षामंत्री की कुर्सी हासिल की.
 
शिक्षक और गांव का एक पहलवान सन 60 में डाक्टर राम मनोहर लोहिया के सोशलिस्ट आंदोलन से जुड़ा और फिर समाजवाद का ये सूरज चमकता ही रहा. 1969 में जसवन्तनगर से ये पहली बार बहुत कम उम्र के विधायक चुने गए. फिर जनता पार्टी में राजनीतिक सफर  समाजवादी पार्टी के गठन तक पंहुचा. ये वही समय था जब राम मंदिर आंदोलन शुरू हो गया था. कांग्रेस और भाजपा की सीधी लड़ाई ख़ासकर यूपी मे कांग्रेस को नेपथ्य में डाल रही थी। अयोध्या विवाद के टकराव के भीषण काल में  भाजपा और सपा भारतीय राजनीति के दो ऐसे किनारे थे जो विचारधारा के मामले में भले ही एक दूसरे के विपरीत थे लेकिन दोनों को अयोध्या बराबर का फायदा दे रही थी.
 
कल से लेकर आजतक समाजवादी पार्टी की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी पार्टी भाजपा रही, लेकिन भाजपा के सबसे बड़े नेता और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ करके और लोकसभा चुनाव से पहले संसद में भाजपा के सांसदों को दुबारा जीतने की शुभकामनाएं देकर मुलायम ने एक बार सबको चौकाया और कटुता से दूर रहकर राजनीति में शिष्टाचार का एतिहासिक संदेश दिया था.
 
भारतीय राजनीति को एक नए क़िस्म की ऊर्जा देने और लोकतंत्रिक सौंदर्य में निखार लाने के लिए प्रतिद्वंदता को कटुता से दूर रखना, विरोध के रिश्तों में भी नैतिकता और शिष्टाचार की खूबसूरती बरकरार रखने वाले विरले नेताओं में शामिल मुलायम सिंह अपनी तमाम खूबियों की वजह से नेता जी के खिताब से नवाजने गए. नेता जी सुभाष चंद्र बोस के बाद नेता जी के नाम से जाने जाने वाले दूसरे नेता मुलायम न सिर्फ समाजवादियों के बल्कि भारतीय राजनीति के नेता के रूप में स्थापित हुए. डॉ. राममोहन लोहिया का ये शिष्य ऐसे ही नेता जी नहीं कहलाया. इनमें वो तासीर थी कि इनका समर्थन करने वाले न जाने कितने लोग नेता बन गए, यही नहीं नेता जी का विरोध भी कईयों को इतना रास आया और विरोधी भी स्थापित नेता बन गए.
 
सपा ही नहीं कांग्रेस, भाजपा और बसपा जैसे दलों के उतार-चढ़ाव में नेता जी मुलायम सिंह यादव की सियासत का ख़ूब रंग दिखाई देता रहा. पूरे राजनीतिक करियर में भाजपा को वोट सबसे ज्यादा रास आए, शायद इसीलिए आज भाजपा के सबसे बड़े नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े नेता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मुलायम के प्रति मुलायम रिश्ता समय-समय पर नजर आता रहा‌.  
धरती पुत्र ने भले ही धरती छोड़ दी पर ट्वीटर/ सोशल मीडिया और मीडिया मैनेजमेंट वाले आज की राजनीतिज्ञों को इस ज़मीनी नेता की ज़मीनी राजनीति का पाठ्यक्रम नसीहत देता रहेगा.

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लेखक

नवेद शिकोह नवेद शिकोह @naved.shikoh

लेखक पत्रकार हैं

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