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Updated: 27 जुलाई, 2021 03:10 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के तमाम अखबारों में छपे एक फुल पेज विज्ञापन ने सूबे की सियासत में खलबली मचाई हुई है. दरअसल, यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (UP Assembly Elections 2022) से पहले इसी महीने यूपी में फुल पेज विज्ञापन के सहारे विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुकेश सहनी (Mukesh Sahani) ने अपनी पार्टी को लॉन्च किया था. वहीं, 25 जुलाई को दिवंगत पूर्व सांसद और दस्यु सुंदरी फूलन देवी की जयंती पर उनकी प्रतिमा लगाने के लिए मुकेश सहनी ने फिर से फुल पेज विज्ञापन छपवाया. हालांकि, वाराणसी पहुंचे मुकेश सहनी को पुलिस ने एयरपोर्ट से निकलने नहीं दिया और उन्हे यूपी से खाली हाथ लौटना पड़ा. मुकेश सहनी इस बात से काफी नाराज दिखे और उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को यही विरोध बिहार में झेलने की चेतावनी दे डाली.

बिहार में एनडीए (NDA) के सहयोगी और नीतीश कुमार सरकार में मंत्री मुकेश सहनी वाराणसी से बेरंग वापसी पर भाजपा (BJP) से इस कदर नाराज हुए कि बिहार विधानसभा में हुई एनडीए की बैठक का भी बहिष्कार कर दिया. वहीं, मुकेश सहनी की योगी आदित्यनाथ से नाराजगी का आलम ये है कि उन्होंने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में 165 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. वैसे, मुकेश सहनी ने एक बड़ा काम और किया है. उन्होंने यूपी में प्रतिमाओं की सियासत में परशुराम के बाद फूलन देवी का नाम भी जोड़ दिया है. मुकेश सहनी ने दावा किया है कि यूपी में सरकार बनाने के बाद हर जिले में फूलन देवी की प्रतिमा लगाई जाएगी. अपने नाम के आगे 'सन ऑफ मल्लाह' जोड़ने वाले मुकेश सहनी सूबे में निषाद समाज के नए नेता बनने की कोशिश में जुटे हुए हैं.

एनडीए के किसी भी सहयोगी दल से गठबंधन करने का सीधा सा मतलब यूपी में सियासी तौर पर आत्महत्या है.एनडीए के किसी भी सहयोगी दल से गठबंधन करने का सीधा सा मतलब यूपी में सियासी तौर पर आत्महत्या है.

यूपी के सभी बड़े सियासी दल फिलहाल ब्राह्मण मतदाताओं को साधने में लगे हैं. लेकिन, छोटी-छोटी राजनीतिक पार्टियां अपने समाज के वोटों के सहारे चुनावी बिसात बिछाने में जुटी हुई हैं. उत्तर प्रदेश में निषाद समाज के वोटों की संख्या करीब 18 फीसदी है और इनका प्रभाव लगभग 160 सीटों पर है. किसी जमाने में बसपा सुप्रीमो मायावती का वोटबैंक रहा निषाद समाज अब भाजपा के साथ जुड़ गया है. फिलहाल यूपी में इस समाज की राजनीति निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद कर रहे हैं. संजय निषाद के बेटे भाजपा सांसद हैं. वैसे, इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि मुकेश सहनी निषाद समाज के वोटों के सहारे भाजपा पर दबाव बनाकर कुछ सीटें झटकने का मूड लेकर यूपी आए हों. लेकिन, मुकेश सहनी को एक बात समझनी होगी कि बिहार में सरकार गिराए बिना वो यूपी में VIP नही बन पाएंगे.

अगर मुकेश सहनी उत्तर प्रदेश में भाजपा विरोधी वोटों के सहारे सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं. तो, उनका ये दावा सपा, बसपा, कांग्रेस और काफी हद तक भागीदारी संकल्प मोर्चा ही खत्म कर देता है. आखिर सूबे के मतदाता भाजपा के खिलाफ सपा-बसपा-कांग्रेस जैसे मजबूत विपक्षी दलों के सामने विकासशील इंसान पार्टी पर दांव क्यों लगाएंगे? हां, निषाद समाज की 18 फीसदी आबादी की बात करें, तो मुकेश सहनी का दावा कुछ मजबूत नजर आता है. लेकिन, यूपी में निषाद पार्टी पहले से ही इनकी रहनुमा बनी हुई है. अगर मान भी लिया जाए कि वो निषाद वोटों में सेंध लगा लेते हैं, तो इन वोटों के सहारे वो मुख्यमंत्री फिर भी नहीं बन पाएंगे. इस स्थिति में उनके पास केवल गठबंधन का ही विकल्प बचता है.

गठबंधन की बात करें, तो मायावती पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि बसपा यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लिए किसी पार्टी से गठबंधन नहीं करेगी. वहीं, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जरूर छोटे सियासी दलों से गठबंधन की बात कही है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने भी सपा से दोबारा गठबंधन करने के संकेत दिए हैं. लेकिन, लगता नहीं है कि अखिलेश यादव 2017 वाली गलती दोहराने के मूड मे हैं. तो, सपा या कांग्रेस के साथ गठबंधन में भी मुकेश सहनी के सामने एक बड़ा सियासी पेंच फंसेगा. वो ये कि बिहार में विकासशील इंसान पार्टी एनडीए का घटक दल है. एनडीए की नीतीश कुमार सरकार में सहयोगी होने की वजह से ही वो मंत्री भी बने हैं. एनडीए के किसी भी सहयोगी दल से गठबंधन करने का सीधा सा मतलब यूपी में सियासी तौर पर आत्महत्या है.

भाजपा ने मुकेश सहनी को वाराणसी एयरपोर्ट से वापसी का टिकट कटाकर साबित कर दिया है कि यूपी में मुकेश सहनी हों या विकासशील इंसान पार्टी, इन दोनों में ही उसका कोई इंट्रेस्ट नहीं है. बिहार में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आरजेडी और कांग्रेस का महागठबंधन छोड़ने वाले मुकेश सहनी का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड भी उनके पक्ष में नही है. अगर उन्हें उत्तर प्रदेश की सियासत में VIP बनना है, तो बिहार में एनडीए नीत नीतीश कुमार की सरकार गिरानी होगी. अगर मुकेश सहनी ये कर देते हैं, तो निश्चित तौर पर सपा या कांग्रेस में से कोई दल उनसे गठबंधन कर लेगा. जिन भाजपा विरोधी वोटों की राजनीति का ख्वाब वो देख रहे हैं, बिना इस कदम के पूरा नहीं हो पाएगा.

बिहार में एनडीए सरकार गिराने के साथ ही भाजपा विरोधी वोटों में उनकी धमक बन सकती है. लेकिन, बिहार में एनडीए सरकार गिराए बिना यूपी की सियासत में वीआईपी बनने का ख्वाब देखना मुकेश सहनी के लिए दिवास्वप्न ही होगा. इसके लिए उन्हें अपनी मंत्री की कुर्सी भी छोड़नी पड़ेगा. राजनीति में कुर्सी की माया क्या है, ये बताने की जरूरत शायद ही पड़े.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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