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Updated: 16 मई, 2021 10:44 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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'खामोश!' शत्रुघ्न सिन्हा के मुंह से हमेशा ही उनके फैंस ये डायलॉग सुनते रहना चाहते हैं - ये बात अलग है कि कालांतर में बीजेपी नेतृत्व ने इसे उन पर ही अप्लाई कर दिया - और खामोशी अख्तियार करने के बदले वो कांग्रेस में चले गये. पटना साहिब से चुनाव भी लड़े, लेकिन 2019 में पहली बार चुनाव मैदान में उतरे बीजेपी के रविशंकर प्रसाद ने चुनाव जीत कर उनको खामोश ही कर दिया.

शत्रुघ्न सिन्हा का ये डायलॉग राजनीति में भी खूब पसंद किया जाता है. कम से कम व्यवहार में ऐसा देखने को मिलता ही है - और खास बात ये है कि ये पार्टीलाइन से परे हर दिल अजीज फिल्मी डायलॉग है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी में बहुत सारी बातें अलग हैं, लेकिन एक बात कॉमन जरूर है - ये सभी शत्रुघ्न सिन्हा के डायलॉग को सुनना ही पसंद नहीं करते हमेशा ही उसे अमल में लाने की भी कोशिश करते रहते हैं.

मनमोहन सिंह की तरफ इनमें से किसी को भी खामोश रहना हजार जवाबों से अच्छा तो नहीं लगता, लेकिन बाकियों को खामोश करने में ये सभी खूब दिलचस्पी लेते हैं - और उसमें भी खास बात ये है कि ऐसा करना इन्हें खुद तो अच्छा लगता है, लेकिन कोई और करे तो शोर भी खूब मचाते हैं.

ऐसा ही एक ताजा मामला दिल्ली में पोस्टर (Vaccine Poster in Delhi) लगाने का है - जिसमें महामारी एक्ट के तहत कई एफआईआर दर्ज किये गये हैं और करीब दो दर्जन लोगों को गिरफ्तार किया गया - क्योंकि पोस्टर पर एक बहुत बड़ा सवाल छपा था -'मोदी जी, हमारे बच्चों की वैक्सीन को विदेश क्यों भेज दिया?'

पोस्टर को लेकर दिल्ली पुलिस के एक्शन के खिलाफ राहुल गांधी (Rahul Gandhi) सहित बीजेपी से राजनीतिक विरोध रखने वाले तमाम नेताओं ने खुद को गिरफ्तार करने का चैलेंज पेश किया है.

पुलिस को मास्टरमाइंड का पता तक नहीं, फिर भी 25 गिरफ्तार!

वैक्सीन पर मोदी का नाम लेकर सवाल पूछते पोस्टर लगाये जाने को लेकर दिल्ली पुलिस जिन लोगों को भी गिरफ्तार किया, उनमें ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर हैं जो दो वक्त के राशन के खरीदने के लिए 'जो भी काम मिले' की तर्ज पर पोस्टर लगाने के काम में, पुलिस के दावे के मुताबिक, शामिल थे. एक पुलिस अफसर के मुताबिक, पोस्टर लगाने के काम में अधिकतर वे लोग ही शामिल पाये गये जो लॉकडाउन में अपनी रोजी-रोटी या नौकरी गंवा बैठे थे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव को स्पेशल सेल ने ऐसे पोस्टर लगाये जाने की जानकारी दी थी - और फिर 12 मई की रात से ही दिल्ली पुलिस एक्शन में आ गयी और देखते ही देखते 25 लोगों को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस के मुताबिक, गिरफ्तार हुए लोगों से पूछताछ में मालूम हुआ कि इन लोगों को 300-500 रुपये पर पोस्टर लगाने का काम दिया गया था - और उनमें से भी कई ऐसे पाये गये जिनको अभी तक पेमेंट भी नहीं मिल सका है.

पोस्टर लगाये जाने को लेकर जो FIR दर्ज किये गये हैं, वे आईपीसी की धारा 188, 269 महामारी एक्ट के तहत हैं. धारा 188 यानी लोक सेवक के आदेश की अवमानना, और धारा 269 यानी महामारी के दौर में लापरवाही बरतने और संक्रमण फैलाने की आशंका को लेकर.

mamata banerjee, narendra modi, yogi adityanathभाषण तो सभी देते हैं - लेकिन कोई बोलने क्यों नहीं देता?

करीब दो दर्जन लोगों की गिरफ्तारी के बावजूद हैरानी की बात ये है कि पुलिस को अभी तक ये नहीं मालूम कि ऐसे पोस्टर लगाये जाने के पीछे कौन व्यक्ति है?

लिहाजा पुलिस ने पोस्टर छापने वाले, छपवाने का ठेका लेने वाले, छपे हुए पोस्टर जहां लगाये जाने थे वहां पहुंचाने वाले और दीवारों पर पोस्टर चिपकाने वालों को ही पकड़ लिया है - दरअसल, सीसीटीवी फुटेज खंगालते वक्त पुलिस ने दो चेहरे देखे और फिर राकेश और मुरारी नाम के दो व्यक्तियों को धर दबोचा.

अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, पुलिसवाले ही बता रहे हैं कि राकेश ऑटो चलाता है और उसने वे पोस्टर जहां छपे थे वहां से जहां चिपकाये जाने थे वहां तक पहुंचाया था - मुरारी पोस्टर लगाने का काम करता है, इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया.

रिपोर्ट के मुताबिक जो लोग गिरफ्तार किये गये उनके परिवार वालों ने बताया कि ये तो किसी को पता भी नहीं था कि ये कैसे पोस्टर हैं? ये राजनीतिक पोस्टर हैं या किसी और चीज के - वे तो बस पेट भरने के लिए पैसे पाने के मकसद से जो काम मिला वो कर दिये.

मालूम नहीं पुलिस ने गिरफ्तार किये गये लोगों में से किसी के बारे में ये जानने की कोशिश की या नहीं कि वे ये भी पढ़ पा रहे हैं कि नहीं कि पोस्टर पर वास्तव में लिखा क्या है? पुलिस का दावा है कि सीसीटीवी में राकेश और मुरारी बिजली के एक खंभे पर पोस्टर लगाते देखे गये थे.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि 24 साल के राहुल त्यागी का कहना है कि आम आदमी पार्टी पार्षद धीरेंद्र कुमार के कार्यालय में 11 मई को उन्हें 20 पोस्टर दिये गये थे - ये पोस्टर कल्याणपुरी इलाके में लगाये जाने थे और उसके एवज में 600 रुपये देने का वादा किया गया था. राहुल त्यागी के साथ तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया था.

रिपोर्ट के मुताबिक पार्षद धीरेंद्र कुमार ने राहुल त्यागी के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है. वैसे आम आदमी पार्टी ट्विटर पर पोस्टर की तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा है - 'सुना है ये पोस्टर शेयर करने से पूरा सिस्टम कांपने लगता है.'

नेताओं का खुला चैलेंज - आओ गिरफ्तार करो!

सीनियर कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने पोस्टर पर गिरफ्तारी को लेकर एक खबर के साथ ट्विटर पर लिखा - प्रधानमंत्री मोदी के आलोचनात्मक पोस्टर लगाना अब अपराध है? IPC की तर्ज पर पूछा है क्या देश मोदी पीनल कोड से चल रहा है? क्या दिल्ली पुलिस के पास महाआपदा के बीच कोई काम नहीं बचा है?

जयराम रमेश ने सरकार और पुलिस को चुनौती देते हुए कहा कि वो अपने घर की दीवार पर पोस्टर लगाने जा रहे हैं - आओ और गिरफ्तार करो मुझे.

जयराम रमेश उन कांग्रेस नेताओं में शुमार हैं जो प्रधानमंत्री मोदी को लेकर पर्सनल अटैक से परहेज करने की वकालत करते हैं. जयराम रमेश कई बार कह चुके हैं कि अगर मोदी को हर वक्त विलेन के रूप में पेश किया जाएगा तो उनका मुकाबला नहीं किया जा सकता.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने उसी पोस्टर को ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा है - मुझे भी गिरफ्तार करो!

राहुल गांधी की बहन और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने पोस्टर को ही ट्विटर पर अपनी प्रोफाइल इमेज के तौर पर लगा लिया है - और राहुल गांधी की तरह पोस्टर भी ट्वीट किया है. प्रियंका गांधी की देखा देखी सोशल मीडिया पर लोग अब अपनी प्रोफाइल तस्वीर वैसे ही बदलने लगे हैं जैसे 2019 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी को फॉलो करते हुए अपने नाम के पहले 'चौकीदार' जोड़ लिये थे.

जब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश में ऑक्सीजन की कमी का अफवाह फैलाने वालों की संपत्ति सीज करने का फरमान जारी किया था तो भी प्रियंका गांधी वाड्रा ने यूपी सरकार को गिरफ्तार करने के लिए चैलेंज किया था.

योगी आदित्यनाथ ने ऑक्सीजन के मामले में संपत्ति सीज करने के साथ ही NSA लगाने का भी आदेश दिया था - ठीक वैसे ही जैसे CAA-NRC का विरोध करने वालों के लिए था और उसी में गोरखपुर अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ रहे डॉक्टर कफील खान को भी NSA लगा कर जेल भेजा गया था, लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पुलिस एक्शन को गलत पाकर जमानत पर छोड़ने के आदेश दे दिया था. डॉक्टर कफील खान फिलहाल प्रियंका गांधी वाड्रा की मदद से राजस्थान में शरण लिये हुए हैं - और हाल ही में यूपी के मुख्यमंत्री से कोविड 19 महामारी के बीच लोगों की सेवा करने की अनुमति देने की मांग की थी.

योगी सरकार की यूपी पुलिस ने अमेठी से एक युवक को इसलिए गिरफ्तार कर लिया था क्योंकि वो अपने नाना के लिए ऑक्सीजन की मांग रहा था. पुलिस जांच के बाद दावा किया गया कि न तो उसके नाना कोविड पॉजिटिव थे और न ही उनको ऑक्सीजन की जरूरत थी. दुखद बात ये रही कि शंशाक यादव नाम के इस नवयुवक के नाना को बचाया नहीं जा सका. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा होने की सूरत में पुलिस पर अदालत की अवमानना की कार्यवाही करने का आदेश जारी कर दिया है.

पोस्टर विरोध की इस बहती गंगा में टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा को भी हाथ धोते देखा गया है - ताज्जुब की बात ये है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही 2021 में जाधवपुर यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र को सोशल मीडिया पर किसी और का बनाया एक कार्टून पोस्ट करने के लिए गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था.

तब की कौन कहे, 5 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ममता बनर्जी की प्राथमिकता सूची में जो काम देखे गये, उनमें से एक रहा सोशल मीडिया पर 500 से ज्यादा पोस्ट के खिलाफ एक्शन. ये पोस्ट बंगाल के चुनाव नतीजे आने के बाद हुई हिंसा को लेकर रहे और दावा किया गया कि ये बीजेपी और उसके समर्थकों की तरफ से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ थे - फेक न्यूज के रूप में.

अभी हाल ही की तो बात है - मोदी सरकार के आदेश पर ट्विटर ने एक सांसद, एक एक्टर, एक फिल्म डायरेक्टर और पश्चिम बंगाल के एक मंत्री सहित 50 से ज्यादा लोगों के ट्वीट डिलीट कर दिये थे.

लंदन के सेंट्रल हॉल वेस्टमिंस्टर में भारत की बात सबके साथ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आलोचना लोकतंत्र की सबसे सुंदर चीज है. कार्यक्रम संचालक प्रसून जोशी के एक सवाल का जवाब देते हुए पीएम मोदी ने कहा था 'ये लोकतंत्र की खूबसूरती है कि अगर इसमें विरोध या आलोचना न हो तो वह लोकतंत्र नहीं हो सकता... मैं मानता हूं कि लोकतंत्र की उत्तम खूबसूरती आलोचना ही है... मोदी सरकार की भरपूर आलोचना होनी चाहिए, हर प्रकार से आलोचना होनी चाहिये - इसी से लोकतंत्र पनपता है. सरकारों और प्रशासन में बैठे लोगों को भी इसे सौभाग्य मानना चाहिये.'

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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